Thursday, September 22, 2011

रचना जीजी-मोरी ननदिया (बिंदास ब्लॉगर रचना के पत्र का उत्तर)

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रचना जी ,

आपने मेरे नाम पत्र लिखा और कहा की अपने ब्लॉग पर पत्र का जवाब दें। मुझसे लिखवाने आपका यह तरीका बहुत अद्भुत लगा, अच्छा भी लगा। चूँकि आपके पत्र में लेखन छोड़ने का निवेदन है , इसलिए यहाँ आपको पत्र लिखकर लेखन जारी रखकर आपके पत्र का उत्तर है।

लेकिन रचना जी एक बात कहूँगी , कि स्नेह किसी की मौत हो जाने पर नहीं दिया जाता। जब जाने का निर्णय पढ़ लिया तब बुलाया कभी-कभी इंसान के टूटने और टूट कर बिखरने से पहले ही उसे सहारा दिया जाता है।

चूँकि आपने मेरी प्रशंसा में भी चंद शब्द कहे हैं। उसके जवाब में यही कहूँगी कि जब मेरे आलेख में कुछ पसंद आये तो प्रशंसा भी कर दिया कीजिये जरूरी नहीं है कि केवल उन्हीं आलेखों पर आप टिप्पणी करें जहाँ आपका मत-वैभिन्न हो और और आप कडुवाहट के साथ लिखें। टिप्पणियों में असहमति भाषा कि मिठास बरकरार रखते हुए भी जताई जा सकती है।

आपने लिखा कि ब्लॉग ऐसी जगह नहीं है जहाँ रिश्ते बनाए जाएँ। मेरा जवाब है कि रिश्ते बनाए नहीं जाते , स्वमेव बनते हैं। लोग अपने दिलों में मेरे लिए नफरत और द्वेष पाले हुए हैं और मुझे अपने दिल में साथी ब्लॉगर के प्रति प्रेमपूर्ण सहज रिश्ते बनाने का भी हक नहीं ?

मैं आत्माओं के मिलन में यकीन रखती हूँ। कुछ लोग मन में जगह बना लेते हैं , उनसे मन का बहुत जुड़ाव हो जाता है , एक लगाव हो जाता है। उम्र और अवस्था के अनुसार उस रिश्ते का स्वतः ही नामकरण भी हो जाता है। लेकिन इन रिश्तों में किसी पर कोई बोझ नहीं है , किसी से कोई अपेक्षा नहीं है , किसी से कुछ माँगा भी नहीं गया है। सभी कि स्वतंत्रता सुरक्षित है। और मेरे रिश्तों कि बाध्यता नहीं है किसी पर कि कोई मुझे भी अपना सगा माने। प्रेम एक तरफ़ा ही होता है ऐसा मेरा मानना है , किन्तु यदि दोनों तरफ से निभे तो सोने पर सुहागा हो जाता है। मैं आज तक किसी से मिली हूँ, ना ही मिलूँगी बस जिनसे मेरी आत्मा का मिलन हो चुका ही वे सदा ही मेरे मन में रहते हैं , उसके लिए मिलना जरूरी नहीं। मन से मन का संवाद होता है।

मासूम जी ने एक आलेख लिखा था- "जायज रिश्तों के प्रति वफादार रहिये " ----उनके आलेख पर मेरे विचार कुछ इस प्रकार थे ----

ZEAL said...

प्रिय भाई मासूम ,

एक बेहतरीन आलेख के लिए बधाई। इसमें निहित सुन्दर शिक्षा बहुत सारगर्भित है। ध्यान देने योग्य है एवं अनुकरणीय है। एक बात कहूँगी की रिश्ते कभी जायज और नाजायज नहीं होते। इंसान जब कमज़ोर पड़ जाता है तो अपने ही बनाए रिश्तों की लाज नहीं रख पाता है, और अच्छे भले रिश्ते नाजायज़ की श्रेणी में आ जाते हैं। । चाहे वह अपने कोख से जन्म देने वाली माँ हो अथवा सहोदर भाई हो , जीवनसाथी हो अथवा जिंदगी के विभिन्न पडावों पर मिलने वाले मित्र हों।

यदि व्यक्ति स्वयं में चारित्रिक दृढ़ता लाये तो वह बखूबी हर रिश्ते को पूरी इमानदारी के साथ निभा सकता है। जो व्यक्ति माता-पिता , भाई-बहन, पुत्र-पुत्री के साथ न्याय नहीं कर पाते वे घर-बाहर ,किसी के भी साथ न्याय न्याय नहीं कर पाते।

अतः हर रिश्ते मूल में चारित्रिक दृढ़ता बेहद आवश्यक है। यही हमें हर रिश्ते के प्रति इमानदार रखती है और हम रिश्तों की खुशबू और मिठास को महसूस कर पाते हैं।


मेरे विचार से हम सभी सामाजिक प्राणी हैं और समाज रिश्तों के दायरे में बंधा है ये रिश्ते हमें प्रेम कि डोर से बांधते भी हैं और हमें मर्यादित भी रखते हैं। रिश्तों का गुटबाजी से कोई सम्बन्ध नहीं होता। गुटबाजी करने वाले वालों के अन्दर एक अलग ही जेनेटिक-कोड होता है जिसके तहत वे चाहते हुए भी गुट बनाते और छोड़ते रहते हैं।

लेकिन जिनमें चारित्रिक दृढ़ता होती है , उनके अन्दर इमानदारी भी कूट-कूट कर भरी होती है , वे नीर-क्षीर विभेदक बुद्धि भी रखते हैं वे भावनाओं में बहते नहीं हैं। और ब्लौगजगत भी ऐसे ही निर्भीक , इमानदार और स्पष्टवादी लोगों से भरा हुआ ही। चंद खेमेबाजों और "जी-हुजूरी" करने वालों से कोई थोड़े समय के लिए विचलित तो हो सकता है लेकिन अपने कर्तव्यों से विमुख नहीं हो सकता

आपने मुझे पत्र लिखकर मुझे मेरे कर्तव्य का बोध कराया इसके लिए आप सम्मान और आभार कि हक़दार हैं
आपके साथ-साथ मेरे पिछले आलेख पर आये सभी सम्मानित ब्लॉगर जिन्होंने मुझे दिशा दी , उनका आभार।

जिन लोगों ने मुझसे निर्णय बदलने के लिए कहा और अलविदा कहा , उनसे क्षमा मांगती हूँ, क्यूंकि मैंने अपना निर्णय बदल दिया है। जो लोग मुझे ब्लॉगजगत से रुखसत करना चाहते हैं , उनके अपवित्र उद्देश्यों कि पूर्ती नहीं होने दी जायेगी। जो लोग टंकी आरोहण , नौटंकी और ब्लौगरीय हथकंडा समझते हैं , वे लोग चाहें तो पुनः अपने ब्लॉग पर ऐसे आलेख लगा सकते हैं अब इस प्रकार के द्वेषपूर्ण आलेखों को तवज्जो नहीं दी जायेगी। ही उन्हें उनके मंसूबों में सफल होने दिया जाएगा।

लेखन छोड़ने के निर्णय से बहुत उदास थी कि हिंदी-भाषा कि सेवा का अवसर जो ब्लॉग के माध्यम से मिला था वह दुबारा नहीं मिलेगा। लेकिन अब लिखूंगी, फिर लिखूंगी , लिखती रहूंगी मिटाने वालों कि हस्ती खुद ही मिट जायेगी।

जिन लोगों ने डट कर मेरा समर्थन किया , उनको (कौशलेन्द्र जी , दिवस जी , प्रतुल जी , भोला-कृष्ण जी और अन्य बहुत से मेरे शुभचिंतकों को) अपने खेमे में शामिल करने के लिए अनुराग शर्मा ने मेल और फोन किये तथा उनसे माफ़ी मांग कर उनको मेरे खिलाफ भड़काने की कुचेष्टा में लगा हुआ है. और मेरे खिलाफ विष-वमन उन मेलों और फोन द्वारा किया। धन्य है अनुराग का षड्यंत्र। कोई बात नहीं हम अकेले ही चलते रहेंगे...

हम अकेले ही चले थे जानिबे मंजिल कि ओर
लोग जुड़ते गए , कारवां बनता गया
कुछ चिढ़ते रहे , हम बढ़ते रहे....
कुछ कुढ़ते रहे , हम बढ़ते रहे...

Zeal

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पोस्ट पर कमेन्ट आप्शन बंद है शुभचिंतकों का आभार एवं द्वेष रखने वालों का भी आभार