Monday, December 5, 2011

लोकतंत्र अथवा तानाशाही ?

लोकतंत्र अथवा तानाशाही ?

कहने को तो हमारे देश में लोकतंत्र है! लेकिन क्या ये सच है ? क्या वास्तव में हमारे नेतागण लोकतंत्र का पालन करते हैं ?

कलमाड़ी मुद्दा गायब
2G scam का मुद्दा गायब
काले धन का मुद्दा आएगा तो भटका देंगे!
लोकपाल बिल का मुद्दा भी भटका दिया.
FDI के मुद्दे को जबरदस्ती बीच में घुसाकर.

मनमानी करेंगे! जब सरकार को निजी खतरा दिखेगा तो वह--

अनशनकारियों को पिट्वाएगी
इमानदार अफसरों को मरवा देगी अथवा उन पर ऊँगली उठा उनकी छवि धूमिल करेगी.
कर्तव्यनिष्ठों को पुरस्कृत करना तो इस सरकार के अहम् के खिलाफ है...

देशभक्ति की बातें करने वालों से सरकार को विशेष खतरा महसूस होता है! ऐसा क्यों आखिर ?

यही हमारे देश में लोकतंत्र है देश के विकास सम्बन्धी निर्णय मतैक्य से लेने चाहिए ना कि मनमानी करनी चाहिए..

या फिर देश का सबसे बुद्धिमान व्यक्ति प्रधानमन्त्री ही है ? दुसरे सभी मूर्ख हैं?

हम इस देश में रहने , खाने , चलने का टैक्स तो भरें , लेकिन देश के मामले में दखल देने का कोई अधिकार नहीं ?

यह देश हम सबका है अथवा तानाशाहों का है केवल ?

29 comments:

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

विचारोत्तेजक पोस्ट !
इस देश में लोकतंत्र का उपयोग केवल अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए किया जाता है ! अगर लोकतंत्र मजबूत होता तो जनता कभी भी कमज़ोर और बेबस नहीं होती और ऐसे घोटाले भी नहीं होते !
आभार !

S.N SHUKLA said...

सार्थक, सामयिक, यथार्थ.

मनोज कुमार said...

जनता का है। और जनता सब दिमाग में रखती है और सारा हिसाब किताब चुका लेती है वक़्त पड़ने पर।

दिवस said...

तानाशाही ही है
लोकतंत्र होता तो क्या राहुल विन्ची जैसा गधा स्वघोषित प्रधानमन्त्री होता? क्या सोनिया मायनों जैसी चुड़ैल सुपर प्रधानमंत्री होती? मनमौनी राजा प्रधानमंत्री होते हुए भी क्या कठपुतली होता?
लोकतंत्र है kahaan?
लोक आवाज़ को कुचल दिया जाता है, तो यह कैसा लोकतंत्र?
मैं तो कहता हूँ की कांग्रेस को खुद को गद्दाफी की नाजायज़ घोषित कर देना चाहिए| हालांकि कांग्रेसी तानाशाही देखकर तो नरक में बैठी गद्दाफी की आत्मा भी हीन भावना का अनुभव कर रही होगी|

लेकिन कब तक चलेगी तानाशाही| भारत के सभी लोग तो मूर्खों की तरह शांत नहीं बैठ सकते न| कुछ डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी, बाबा रामदेव, आचार्य बालकृष्ण, नरेंद्र मोदी जैसे शेर भी हैं|
अभी तो प्रतीक्षा कीजिये आठ दिसंबर की, जब चिदंबरम जैसे धूर्त की तिहाड़ यात्रा का आयोजन होगा| डॉ. स्वामी ने उसे लपेटे में ले लिया है और उसके खिलाफ सारे सबूत भी जुटा लिए हैं|

हम सब इस देश में रहने, खाने, चलने का टैक्स तो भरें, लेकिन देश के मामले में दखल देने का कोई अधिकार नहीं|
बिलकुल सही कहा है आपने| अब ऐसे तंत्र को लोकतंत्र को कतई नहीं कहा जा सकता|

दिव्या दीदी, हमेशा की तरह एक और बेहतरीन लेख|

सदा said...

विचारणीय बिन्‍दु हैं ... सार्थक व सटीक लेखन ।

अन्तर सोहिल said...

मुझे तो लगता है कि भारत देश को कांग्रेस ने हाईजैक कर लिया है।
गद्दाफी जैसों की तानाशाही तो इनसे अच्छी थी, क्योंकि कम से कम वहां की जनता को इस बारे में मालूम तो था और यहां की जनता को भ्रम है कि वे स्वतंत्र देश के नागरिक हैं।

प्रणाम

सूबेदार said...

कांग्रेस में लोकतंत्र को कोई स्थान नहीं है क्या कभी कोई नेहरु परिवार के अतिरिक्त अध्यक्ष हुआ ? ----और मनमोहन तो नौकर की भूमिका में है उनकी हैसियत तो प्रियंका के बच्चे से भी कम है सोनिया को तो देश से जाना है इस नाते वह जितना बर्बाद कर सकती है करेगी ही ,क्या किया जय बिपक्ष भी कुछ नहीं कर रहा.

प्रवीण पाण्डेय said...

सर्वसहमति ही आधार बने।

कविता रावत said...

badiya saarthak aur vicharniya prastuti..

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

लोकतंत्र तो जनता को बहलाने का एक झुनझुना है :)

दिगम्बर नासवा said...

हमारे देश का लोकतंत्र सरकार और मीडिया मिल के चलाते हैं ...

महेन्‍द्र वर्मा said...

इन दिनों लोकतंत्र में से लोक गायब है, और तंत्र भी। इन शब्दों के स्थान पर ताना और शाही नजर आ रहा है।

प्रतिभा सक्सेना said...

सुरेश चिपलूणकर जी की यह पोस्ट भी पढ़ लें -
'वोटिंग मशीनों से छेड़छाड़ फ़िर उजागर…:- सात में से पाँच वोट हमेशा कांग्रेस को'

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

बहुत सुन्दर प्रविष्टि...वाह!

Amrit said...

I think once in power, democratic elected leaders become dictator.

Arun sathi said...

दिव्या जी केवल तानशाही होती तो लोगों को समझ में भी बात आती पर यहां सत्ता के बैठने वाले नेता डेमोक्रेटिक डिक्टेटर है। जनता को लोकतंत्र का अफीम पिलाते है और फिर डंडा खिलाते है।
आपने सभी मुददे सटीक उठायें है पर जनता जागे तो बात बने।

Maheshwari kaneri said...

सार्थक सटीक विचारणीय लेख..

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" said...

satya se rubru karti behtarin post..sadar pranam ke sath

Bikram said...

this is old way of taking peoples mind away from politcis , i fear that the terrorist attacksand all are also GOVT sponsored ..

Indian politics is a Dirty game

Bikram's

प्रतुल वशिष्ठ said...

देश तो सभी का है जो इस समय तानाशाह होकर शासन कर रहे हैं... वे अपने प्रति क्रोध और घृणा तो जनमानस में भर ही चुके हैं... बस उनका रिजल्ट मिलना उनको बाक़ी है.
रिजल्ट गद्दाफी टाइप भी हो सकता है और गांधी टाइप भी... (गांधी में अब तक के सभी पापुलर गांधियों की बात करता हूँ. )
अब्राहम लिंकन की परिभाषा है - लोकतंत्र जनता का, जनता के लिए और जनता द्वारा शासन है..
इसलिये मेरा मानना है ... जो जनता की इच्छा के विरुद्ध जायेगा... वह अंततः पछतायेगा..

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

बहुत गुस्सा है आपको..
देश के बर्बादी के सिर्फ दो कारण है.. ना आप कुछ कर सकती हैं, ना मै कुछ कर सकता हूं। होता वही है जो होता रहता है।
लेकिन उम्मीद बाकी है.. कभी ना कभी तो उजाला होगा ही...

aarkay said...

With due apologies to Abraham Lincoln, nowadays, democracy is rightly defined as, Government off the people, far (from) the people and buy the people ! Unfortunately we have to live with this fact, whichever party or coalition is in power.

mridula pradhan said...

sare mudde gayab hote ja rahe hain.....yahi to vidambna hai.

DUSK-DRIZZLE said...

IN INDIA THERE IS NO DEMOCRACY ... ONLY LOOTTRANT

Bharat Bhushan said...

व्यवस्था की बदहाली के पीछे सदियों से अनपढ़ जनता में राजनीतिक जागरूकता की कमी और नीतियों के प्रति नितांत अनभिज्ञता है. इसी का लाभ राजनीतिक पार्टियाँ उठाती हैं. अब समय बदल रहा है. हमें आशावान होना चाहिए.

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) said...

दिव्या जी ........ जिसकी लाठी उसकी ही भैंस होती है ......

Dr.NISHA MAHARANA said...

विचारणीय लेख.

Kunwar Kusumesh said...

ये पब्लिक है,सब जानती है.

Rakesh Kumar said...

आपकी प्रस्तुति विचारोत्तेजक है.
मुश्किल है कि जनता में मतभेद है,जिसका का लाभ सरकार
उठाती आ रही है.