Tuesday, September 25, 2012

हे भद्र पुरुषों..

हे भद्र पुरुषों , किसी स्त्री को इतना भी ना चाहो की मंथरा की पहचान ही न कर सको !  और हे भारत की नारियों , किसी पुरुष को कभी भी गांधारी बन कर ना पूजो ! तुम दोनों ही अपना अस्तित्व बचा कर रखो !

12 comments:

अशोक सलूजा said...

सार्थक सोच,सार्थक सीख ....
शुभकामनायें हम सब को :-)

virendra sharma said...

बढ़िया सीख .

महेन्‍द्र वर्मा said...

सही संदेश।

Gyan Darpan said...

सत्य वचन

दिवस said...

चाहो ज़रूर, किन्तु चाहने से पहले पहचान कर लो। मंथरा और धृतराष्ट्र की पहचान होने पर उन्हें कदापि न चाहो।

सूबेदार said...

बहुत ही उपयुक्त बिचार, ग्रहण करने योग्य.

Prabodh Kumar Govil said...

Stree aur Purush ke sahi astitv ko sweekarne vaala santulit vichar!

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

Love is blind so we shouldn't keep our eyes open. :)

पूरण खण्डेलवाल said...

अच्छी सीख लेने योग्य सन्देश !!

DR. ANWER JAMAL said...

महान सत्य.

जीवन और जगत said...

शिक्षाप्रद पोस्‍ट। इसे पढकर राम मनोहर लोहिया जी का कथन याद आ रहा है, जब उन्‍होंने एक बार कहा था‍ कि भारत की आदर्श नारी तो द्रौपदी है, सीता या सावित्री नहीं।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

किलकारी की गूँज सुनाती,
परिवारों को यही बसाती।
नारी नर की खान रही है,
जन-जन का अरमान रही है।
नारी की महिमा अनन्त है।
नारी से घर में बसन्त है।।