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Wednesday, July 14, 2010

ये रोना -धोना बंद करो - खुद पर गर्व करना सीखो !

कब तक रोती रहोगी?,
भीख मांगती रहोगी?

मुझे सामान अधिकार चाहिए ..
मुझे बराबरी चाहिए..
मुझे नौकरी करनी है..
मैं भ्रूण हत्या नहीं कराऊंगी..
मैं इस दहेज़ लोभी से शादी नहीं करुँगी ..
मैं अकेले मंदिर जा सकती हूँ..
मुझे भी pilot बनना है ..

अरे तो बनो न , रोका किसने है? क्यूँ मुफ्त में बेचारे पति को बदनाम करती हो ? सास को भी बिना जुर्म की सजा दिलाती हो?

"नाच न आये आँगन टेढ़ा !"

अरे भाई खुद में दम है तो करके दिखा दो ! पति भी तुम्हारी उपलब्धियों से खुश होगा ! फख्र से तुम्हारा ज़िक्र करेगा अपने दोस्तों से ! उसका भी मान बढ़ता है , तुम्हारी शान से !

लेकिन तुम जब रोती हो , उदास होती हो , शिकायक करती हो , आंसू बहाती हो तो तुम्हारी बहनें जिन्होंने मेहनत से इस जहान में अपनी जगह बनाई है वो लज्जित होती हैं !

मिलो अपनी बहनों से -

किरण बेदी
कल्पना चावला
सुनीता
इंदिरा गाँधी
प्रतिभा पाटिल
लता मंगेशकर
पी टी उषा
ऐश्वर्या राय
सोनिया गाँधी
शबाना आज़मी
मायावती
ममता बनर्जी
डॉक्टर कल्याणी
डॉक्टर चन्द्रावती

क्या इतने नाम काफी नहीं?

महिलाओं को अपनी आदत बदलनी होगी ! सहानुभूति की भीख से बचो ! अपनी मागदर्शक खुद बनो ! जब एक जैसा माँ-बाप ने पाला , तो फिर तुम कमतर कैसे हो सकती हो?

एक जैसा अन्न खाती हो , फिर कमज़ोर भला कैसे हो सकती हो?

सदियों से चली आ रही दासता से मुक्त हो जाओ ! अपना attitude बदलो ! अपनी मानसिकता को बदलो ! अपनी इज्ज़त आप करना सीखो फिर ज़माना खुद-ब-खुद आपकी इज्ज़त करने लगेगा !

जब तक हम ज़माने से बदलने की फ़रियाद करते रहेंगे , कुछ नहीं बदलेगा ! कोशिश करो खुद में साहस और हिम्मत लाने की, आगे बढ़ने की , फिर आगे-आगे चलने की ! फिर देखना आदत पड़ जाएगी मुस्कुराने की ! अपने आप पर गर्व करने की !

" Gradually winning becomes our habit ."

आज समय आ गया है की हम अपने भटके हुए भाइयों को सही राह दिखायें ! सम्मान के नाम पर जो अपनी बहनों को मार कर अपनी जिंदगी बर्बाद कर रहे हैं, हम उन्हें सही राह दिखा सकते हैं। आज समय है की हम अपनी स्त्री शक्ति को पहचाने और समाज के उत्थान में योगदान करें !

अपने को कमतर समझना और समाज से उम्मीद करना की हमे बेहतर समझे , ये हमारी नादानी है !

आज समय के साथ, समाज बहुत बदल गया है ! हम शुक्र गुज़ार हैं की हम एक बेहतर समाज में जी रहे हैं। पहले 'सती-प्रथा' थी , जो आज इतिहास बन गयी है ! क्या ये बदलाव नहीं है?

चाँद पे पुरुष पहुंचा, तो औरत भी ! क्या ये बदलाव नहीं है?

पुरुष, एक देश सम्हाल सकता है तो क्या हमारी बहनें नहीं संभाल रही ? क्या ये बदलाव नहीं है?

बदलाव की मांग मत करो , खुद को बदलो ! आखिर बदलाव चाहते किस्से हैं? कौन देगा हमे परिवर्तन? हम खुद ही इस समाज का हिस्सा हैं , हम बदल सकते हैं अपने समाज को!

जो बदलाव आया है वो स्त्री और पुरुष दोनों की व्यवहारिक सोच बदलने से संभव हुआ है ! हम दोनों हाथों से इस बदलाव का स्वागत करते हैं !

" खुदी को कर बुलंद इतना की,
खुदा बन्दे से पूछे , बता तेरी रज़ा क्या है? "
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