Wednesday, February 2, 2011

क्यूंकि सासें नहीं जलायी जातीं !

मुग्धा एक सुन्दर और सुशील लड़की थीसभी उससे प्यार करते थेअपने मधुर स्वभाव के कारण , घर और कालेज सभी जगह उसे बेशुमार प्यार मिलता थापढने में होशियार मुग्धा कों बैंक में अच्छी नौकरी मिल गयी

घर पर शादी के लिए ढेरों रिश्ते आने लगेमाँ-बाप की लाडली मुग्धा विवाह के बाद सबको छोड़कर पति के साथ ससुराल विदा हो गयीएक आम भारतीय लड़की की तरह उसकी नौकरी भी पीछे छूट गयीलेकिन उसने कभी इसका दुःख नहीं कियापति का घर ही उसका सब कुछ थायही शिक्षा और संस्कार मिले थे उसे माता-पिता से

शायद तितली की तरह वन-उपवन में उड़ना और चिड़ियों की तरह निर्भय चहचहाना सिर्फ पिता के घर में ही हो सकता हैकुछ बेहद भाग्यशाली स्त्रियों कों अपवाद स्वरुप छोड़ दें , तो शायद ज्यादर स्त्रियों कों ससुराल में वो अपनत्व नहीं मिलता जिस लाड-दुलार में वो पली बढ़ी होती हैं

अब मुग्धा के पास था ससुराल , सास और माँ के इशारों पर नाचने वाला पतिमायके का मोल तो विवाह के बाद ही समझ आता हैसास के ताने मुग्धा की आत्मा कों छलनी करने लगेमाँ के बहकावे में आकर पराग , मुग्धा कों पीटता थामाँ इसे अपनी विजय समझती थी

दस वर्ष इस तरह बीत गएबच्चे भी थोड़े बड़े हो गएमुग्धा जानती थी इस परिस्थिति का कोई हल नहीं हैउसने हालात से समझौता कर लिया थाखुद कों अपने बच्चों तक सीमित कर लिया था उसनेउनकी बेह्तर परवरिश ही उसका ध्येय था

एक दिन मुग्धा कों तेज़ बुखार थामुग्धा की सास कों जाने क्या सूझा उन्होंने जूठे बर्तन धो डालेघर में पराग के आते ही उससे कहा की बहु ने मुझसे बर्तन धुलवाएइतना सुनते ही पराग ने बिना सच कों जाने , मुग्धा कों मारना शुरू कर दियामुग्धा कों यूँ पिटते हुए देखकर सास के होठों पर विजयी मुस्कान खिल गयीमुग्धा ने स्वयं कों बचाने की बहुत कोशिश की लेकिन बीमार मुग्धा पराग के मज़बूत हाथों से खुद कों नहीं बचा सकी और बेहोश होकर गिर पड़ी

जब उसे होश आया तब टीवी चल रहा था और माँ और बेटे की हंसने की आवाजें रहीं थीअसहनीय दर्द और तिरस्कार ने मुग्धा के बर्दाश्त की हर हदों कों तोड़ दियाअपमान की पीड़ा ने मुग्धा के अन्दर के संकोच और संस्कारों का गला घोंट दियाउसने सोचा इस ज़िल्लत भरी ज़िन्दगी से तो बेहतर है अपने अधिकारों के लिए लड़ते हुए मर जानाजो लोग प्यार और सम्मान नहीं दे सकते , उनके लिए अपनी जिंदगी यूँ बर्बाद नहीं करनी है

अपमानित मुग्धा ने कठोर निर्णय लिया , बैठक में पहुंची और सास से सीधी मुखातिब हुई --

  • आप जैसी जल्लाद साँसों के कारण ही अच्छी सासें भी बदनाम होती हैं
  • आपको शर्म आनी चाहिए इस तरह आप अपने बेटे कों उसकी पत्नी के खिलाफ भड़काती हैं
  • पिछले दस वर्षों से आपको माँ कह रही हूँ , लेकिन आपमें तो ममता जैसा कुछ है ही नहीं
  • आपके पास संस्कार हैं , ही आपने अपने बेटे कों दिए हैं
  • आप डायन हैं , जो अपने बेटे और बहू के खुशहाल जीवन में जहर घोल रही हैं
  • आप एक असली भारतीय सास हैं जो बहु कों सताने में ही अपनी विजय समझती है
  • झूठ बोला की मैंने आपसे बर्तन साफ़ करायेआपको तो इसे अपना घर समझकर और बीमार बहू को अपनी बेटी समझकर उसकी मदद ख़ुशी के साथ करनी चाहिए थीलेकिन नहीं ! आप तो सास हैं
  • क्या मेरी माँ यहाँ होती तो वो कभी मुझे पिटते हुए देख सकती थी ?
  • आप अपनी दोनों बहुओं में तुलना करके हमेशा मुझे अपमानित करती हैंतुलना का काम भी सासें ही करती हैंकभी माएं अपनी बेटियों की तुलना करके उन्हें अपमानित नहीं करती
  • जब तक आप जैसे सासें रहेंगी इस समाज में, बहुएं जलाई जायेंगी और बोटियों में काटी जायेंगी कभी सुना आपने की सास भी जलाई गयी और में टुकड़ों में काटी गयी ?
मुग्धा बोलती जा रही थी और सास पराग कों भड़काती जा रही थी - " देखो-देखो , कैसी जबान चला रही है आज ..माँ की उलाहना पर पराग , मुग्धा कों फुटबौल की तरह मारता जा रहा थामुग्धा के मुख से निकले हर शब्द पर उसे लात और घूंसे मिल रहे थेकभी वो ज़मीन पर गिरती , कभी दीवार से टकरा रही थी

पास खड़ा बेटा जार-जार रो रहा थामुग्धा ने उसे बुलाया और कहा - " यदि मैं मर जाऊं तो रोना मत , मन लगाकर पढना और जब शादी हो जाए तो अपनी पत्नी कों बहुत प्यार करना और उसे पूरा सम्मान देनाजब मेरी बहु कों प्यार मिलेगा और वो इस घर-आँगन में ख़ुशी से चहकेगी , तभी मेरे मन को शान्ति मिलेगी "

रात्रि हो चली थी , घर में सन्नाटा था , मातम जैसे माहौल में सभी जन बिना भोजन के सो गएरात्रि कों मुग्धा की नींद खुली , बच्चा सिसकियाँ लेकर रो रहा थामुग्धा से बोला - " माँ , मरने की बात मत करना फिर कभी "

यह एक सत्य घटना हैक्या मुग्धा ने गलत किया ? इस घटना के बाद मुग्धा का क्या अंजाम हुआ होगा ? "

51 comments:

केवल राम said...

आपकी पोस्ट में दर्द और दर्द देने वालों का जिक्र हुआ है ...यह आज भी एक सच्चाई है ...ज्यादा तर जगहों में ....वास्तविकता को पेश किया है आपने

Kunwar Kusumesh said...

माहौल से घबराकर मरने की बात करना ज़िंदगी से पलायन करना है.ये ग़लत क़दम है.
बाकी मुग्धा ने अपनी सास से clear बात की ये ठीक है मगर दस साल बाद की ये भी ग़लत है.
वैसे मुग्धा अभी भले ही ठीक लग रही है मगर जब वो सास बनेगी तो वो भी वैसा ही करेगी.
मैं जानता हूँ दिव्या जी कि महिला होने के नाते आपको मेरी बात का अंतिम हिस्सा शायद सही न लगे मगर होता यही है.

पी.एस .भाकुनी said...

samne khulkr bolne ka jo sahas mughdha ne dikhaya usse to yahi lagta hai ki usne atmhtya jaise vichaar tyag diye honge, iske bawjud bhi yadi mugdha ne atmhtya jaisi harkt ki hai to yh srwtha galat hoga ,mugdha yadi sina taankr saas ka mukabla kr sakti hai to wh apne dm pr jine ki kabliyat bhi rakhti hai ,kul milakr uske pati ki bhumika hr anjaam ko prabhawit kregi ..
achhi post, isandeh ek anukrniy post .....

गिरधारी खंकरियाल said...

घरेलू हिंसा अभिशाप बन गयी है ऐसी सासों ने माँ के रूप को भी बदसूरत कर दिया है

A.G.Krishnan said...

A lesson to be learnt by all

svdesk said...

पत्नी क्या कर सकती है उसने तो अपने उस बच्चे के रुदन के आगे हार मानकर फिरसे ग्राहश्थी संभाल ली होगी...
इस स्टोरी के बारे में मैं ये तो नहीं कहूँगा की ऐसे पति को फांसी पर लटका देना चाहिए .. या कठोर सजा मिलनी चाहिए... क्योंकि समाश्या का यह हल नहीं है... एक को मारोगे दूसरा फिर यही करेगा.. इनकी सजा तो यह है की इनको ताउम्र काली कोठी में दाल दिया जाना चाहिए ये सूरज की एक किरण भी देखने न पाए... ऐसे ५-६ पतियों को सजा मिल गयी तो बाकि अपने आप सुधर जायेंगे...
१२ साल के बच्चो को सेक्स में छूट सम्बन्धी लेख पर आपकी टिपण्णी पढ़ी .. आपने लिखा है की आपने समाचार में नहीं यह सुचना नहीं पढ़ी... आपकी जानकारी के लिए लिंक यदा दे रहा हूँ इसे पढ़े और जबलपुर एक्सप्रेस का ०२ फ़रवरी २०११ का अंक पढ़े :-
http://www.bhaskar.com/article/SPLDB-poll-survey-on-sex-in-minors-1808446.html

ashish said...

मर्मस्पर्शी आलेख ने भावुक कर दिया . काश सास और बहू का नाता माँ और बेटी वाला होता .

रचना said...

woman have to learn to protect each other whether its daughter in law or mother in law

the moment such protection comes in all problems will be solved

and its not just daughter in laws who suffer many mother in laws also suffer

between mother in law and daughter in law the misunderstandings are created by others and in most cases this is due to conditioning of society

woman like mugdha should not compromise even for the first time

marriage is not about compromise but in india its thought so

सोमेश सक्सेना said...

दिल दहल गया ये पढ़कर. गलत तो उसने कुछ नहीं किया पर ये उसे बहुत पहले करना चाहिए था, जब पहली बार पति ने उस पर हाथ उठाया था.
सहन करके उसने अत्याचार को बढ़ावा ही दिया था.
कोई भी लड़की जो अपने माँ बाप की आँखों का तारा होती है क्यों किसी की मार सहे. विरोध करना आवश्यक है.

deepti sharma said...

bahut si jagho par yesa hota hai
saas bahuo par atyachar karti hai
or bahu chupchap sahti jati hai
..
par unhe sahna nhi chahiye
balki aawaz uthani chahiye
.

vandana gupta said...

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (3/2/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com

AS said...

Its sad, but the truth. Read the newspaper, see the TV, news or serials, listen to FM, do anything, you end up hearing one or the other atrocities being done on women, either by women or men or both. This has become an increasing phenomenon. Media and the publicity also has contributed to increasing it. The lawlessness has also contributed to increasing the number. Why see around, maybe if you look inside your own home, you would end up finding up some discrimination. It is a chronic problem. What is the cure? It all boils down to self esteem and self respect of the women. It needs a rethinking, on the role and contribution of women as a whole both by the women them self and the society.
A different thought a different perspective - Lots of time i have thought, how can a nation in which almost half of the population does not contribute to the national development progress?
Blind copying has eroded our age old ecosystem whether in the cities or villages. There is no alternative ecosystem available, and this also is leading to the divide, and lots of unemployment.
Life in villages and cities has changed. Earlier the women used to feel satisfied and an equal contributor in the household and thus indirectly contributing to the national growth.
But with the changing lifestyle and with the village and city self sustained ecosystem being destroyed, there is a lot of time at hand and a feeling of frustration and a empty mind. How has this empty time been filled with? With thoughts of atrocities?
So maybe letting women contribute to work, giving them respect and a position in the nation building can be a solution. This does not mean that homemakers are not the contributors, they are the biggest contributers, but then the measurement scale has changed with time.

प्रवीण पाण्डेय said...

दुर्भाग्य है यह समाज का जहाँ नारी दूसरी नारी पर श्रेष्ठता सिद्ध करने में लगी है, सभी हदों को ताक पर रखते हुये।

सहज समाधि आश्रम said...

क्या मेरी माँ यहाँ होती तो वो कभी मुझे पिटते हुए देख सकती थी ?
very nice divya ji

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बात एक तरफ़ा है ...हर सास ऐसी नहीं होती ....भारतीय सास कह कर सब महिलाओं को कटघरे में खड़ा कर दिया है ...क्यों की कभी तो वो भी सास बनेगी ...मुग्धा को यह सब पहले करना चाहिए था ..और फिर मरने की बात क्यों ?

उपेन्द्र नाथ said...

मुग्धा को ये कदम पहले ही उठा लेने चाहिये थे।बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति।

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

marmik prastuti ..
mugdha ne jo bhi kiya sahi kiya.

ZEAL said...

.

@ संगीता जी ,

@--मुग्धा को यह सब पहले करना चाहिए था ॥और फिर मरने की बात क्यों ?

पहले दस वर्षों तक मुग्धा ने ऐसा इसलिए नहीं किया क्योंकि माता पिता के दिए गए संस्कार उसकी खून में बसे थे। लीक से हटकर करने की हिम्मत जुटाने में उसे समय लगा । शुरू में उसे अपनी सास से उम्मीद थी की इनका भी दिल पिघलेगा और उसे प्यार मिलेगा । और पति से भी अपेक्षा थी की वो उसके प्रेम और समर्पण का सम्मान करेगा। लेकिन जब उसको भरोसा हो गया की उसे सारी जिंदगी इस तिरस्कार कों ही सहना है , तो उसे विरक्ति हो गयी हर चीज़ से और उसके मन से , मारे जाने का डर भी निकल गया। मरने के पहले कम से कम संतोष तो रहेगा की उसने अपनी कह दी । मार तो हर हाल में उसे खानी ही है , फिर घुट घुट कर क्यूँ ? इसलिए वो पिटती रही और चीख चीख कर अपनी बात कहती रही।

@--..और फिर मरने की बात क्यों ?

मरने की बात इसलिए क्यूंकि जो दुर्दशा उसके पति और सास मिलकर कर रहे थे उसके कारण उसे अपनी मृत्यु तयशुदा लग रही थी । मरते समय उसे सिर्फ अपने बच्चों की चिंता सता रही थी। अपने जीवन से उसे कोई उम्मीद शेष नहीं रह गयी थी।

.

कविता रावत said...

यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति हैं कि ऐसी घटनाएँ आज भी बदस्तूर जारी हैं .....मार्मिक और चिंतनशील प्रस्तुति के लिए आभार

P.N. Subramanian said...

कैसी विडम्बना है जिस समाज में एक नारी ही नारी पर अत्याचार का कहर बरपाती है.

सुधीर राघव said...

आपने सही लिखा, सास-बहू के झगड़े हमारे यहां आम बात हैं? शिक्षा के प्रसार के बाद भी ये नहीं रुक रहे हैं। इन्ही वजहों से परिवार भी टूट रहे हैं।

दिवस said...

दिव्या जी निश्चित ही ऐसी जालिम साँसों ने अच्छी साँसों को भी बदनाम किया है| मै नहीं मानता कि मुग्धा ने कुछ गलत किया| आखिर कब तक वह यह सब सहती रहती| मुग्धा का क्या हुआ होगा यह सोचकर ही मन भारी हो रहा है| परन्तु ऐसा कहना कि भारतीय सास ऐसी ही होती है गलत होगा| मै मानता हूँ कि आज हमारे भारत देश में इस प्रकार की समस्याएँ व्याप्त हैं किन्तु भारत इनका मूल नहीं है| सनातन पद्धति में तो नारी को पुरुष से उच्च स्थान दिया गया है| हमारे वेदों में तो यह लिखा है कि पुरुष में पवित्रता नारी के गर्भ से जन्म लेने के कारण है अत: नारी प्रकृति की सबसे पवित्र कृति है| ये कुरीतियाँ तो विदेशी हमारे देश में ले कर आये थे| इस विषय पर आपको यह लेख पसंद आएगा|

http://www.pravakta.com/story/१९३०७

मुग्धा से हमें पूरी सहानुभूति है| इस प्रकार के कुकृत्यों को समाप्त करना ही चाहिए साथ ही ऐसा करने वालों को कठोर दंड भी मिलना चाहिए| भगवान् करें मुग्धा ठीक हो| क्या आप जानती हैं मुग्धा के बारे में?

दिवस said...

क्षमा करें दिव्या जी अपनी टिप्पणी में कुछ और जोड़ना चाहूँगा| मुग्धा के आत्महत्या के निर्णय के पक्ष में मै नहीं हूँ, किन्तु सास की असलियत को व्यक्त करना व अपने पति को इससे वाकिफ कराना उचित था| वह क़ानून का सहारा भी ले सकती है| किन्तु आत्महत्या करना गलत है|

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

कठोर बातें भी नर्मी से बताई जा सकती हैं और शायद अधिक असर करती हैं। कहते हैं ना - Stronger the objection, milder should be the language :)

Arvind Jangid said...

ये भी अजीब दुर्भाग्य है की नारी ही नारी की शत्रु बनती है जाने क्यूँ ? ज्यादातर सास "ललिता पंवार" जैसी ही होती हैं, लेकिन कुछ ऐसी भी होती हैं जो बहु को बेटी की तरह मानती है....सच कहूँ तो मैंने अच्छी सास कम ही देखी हैं....शायद ये कोई संयोंग मात्र ही हो.

प्रेरणादाई आलेख हेतु साधुवाद.

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

दिव्या जी ! मेरा अनुभव रहा है कि स्त्री का सर्वाधिक शोषण स्त्रियों ने ही किया है .....दिन भर बाहर रहकर थका हारा शाम को आया पुरुष द्विविधा में होता है कि वह माँ का सम्मान करे या पत्नी का ? भारतीय संस्कार उसे माँ की ओर खींच ले जाते हैं .....किन्तु यह संस्कार भी दिए किसने ? बच्चों को हम कभी यह नहीं सिखाते कि केवल सत्य का समर्थन करो ... माँ और पत्नी ...दोनों महिलायें ...किसका पद बड़ा ...किसका पक्ष लेना अधिक उचित और लाभकारी .....मूर्ख पुरुष इसी में उलझा रह जाता है ...और महिलाओं की सनातन अदावत चलती रहती है . आज २१ वीं सदी में भी उच्च-शिक्षित एवं शिक्षक महिला को लड़के- लड़की में भेद करते देख रहा हूँ .....कष्ट होता है ...ऐसी महिलायें ही सास-बहू के मध्य एक मूर्खतापूर्ण अहम् की रेखाएं खीचती रहती हैं.
मुग्धा जी के बारे में क्या कहूं ? हर शहर और गाँव में न जाने कितनी मुग्धायें ऐसा अभिशप्त जीवन जीने को विवश हैं ...किन्तु मैं पुरुष वर्ग से अपील करना चाहूंगा कि वे पत्नी को भी माँ जितना ही सम्मान दें ...आखिर पत्नी भी तो एक माँ है ..वो भी आपके ही बच्चे की. और सासों को क्या कहूं मैं ज़ो इतनी बेशर्म और हृदय हीन हैं कि अपने जाए से स्त्री पर अत्याचार करवाती हैं ...बहरहाल पहल पुरुष को करनी होगी कि एक स्त्री दूसरी स्त्री का सम्मान करे.

Sushil Bakliwal said...

न तो हर सास ऐसी होती है और न ही आज की बहू इतने सितम सहती है । और फिर ऐसे मां के आज्ञाकारी व दब्बू बेटे कितने घरों में पाए जाते हैं । यकीनन अपवाद सब जगह होते हैं और दस बीस वर्ष पूर्व तक शायद ऐसा अधिक देखने में आता था अब लेकिन प्रतिशत शायद बदल रहे हैं ।

अरुण चन्द्र रॉय said...

दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति हैं कि ऐसी घटनाएँ आज भी बदस्तूर जारी हैं .....मार्मिक और चिंतनशील प्रस्तुति

विशाल said...

बहुत ही गंभीर सवाल है?
उतर अपने अन्दर ही टटोलना होगा.
very thought provoking post.

महेन्‍द्र वर्मा said...

मुग्धा की कहानी बहुत ही मार्मिक है, बहुत।
दस साल तक अत्याचार सहती रही वह। मायके में मिले संस्कारों ने उसे धीरज सिखाया था। लेकिन धीरज की भी एक सीमा होती है। इस मनोदशा में सभी प्रकार का भय समाप्त हो जाता है। दस साल तक सहेज कर रखा दिल का दर्द उबल पड़ा और इसी मनोदशा में मुग्धा ने अपनी सास और पति को सुना दिया।
ऐसा कर मुग्धा को उस क्षण मानसिक संतुष्टि मिली होगी। उसने बिल्कुल सही किया। उम्मीद करता हूं कि यह सब सुनकर उसकी सास और पति का हृदय परिवर्तन हुआ होगा और सब कुछ ठीक हो गया होगा।
नकारात्मक अंजाम सोचते ही दिल घबरा रहा है।

ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι said...

मुग्धा के लिये ्मैं प्रत्यक्छ रूप से शायद कुछ न कर सकूं मगर मुग्धा के हौसलों को सलाम करता हूं और साहित्य जगत की ओर से ये कहना चाहूंगा इस जंग में आपकी ही जीत होगी और अगर किसी वजह से आप हार भी गये तो आप जैसे हज़ार मुग्धा आपकी लड़ाई लड़ने खड़े हो जायेंगे।

गौरव शर्मा "भारतीय" said...

वन्दे मातरम,
आज आपने वाकई भावुक कर दिया और एक आम भारतीय नारी को हमारे सम्मुख जीवंत खड़ा कर दिया जिसके पूछे गए हर सवाल में, जिसके कहे हर एक बात में पीड़ा झलकती है | वाकई एक ऐसी लड़की जो अपना सब कुछ छोड़कर अनजान घर को अपना सबकुछ मानकर चली आती है क्या हम उसे थोडा सा प्यार और अपनापन भी नहीं दे सकते ? क्यों आज भी बहु दहेज़ की आज में झुलस जाती है ? उन सासों को यह क्यों समझ नहीं आता की उनकी बेटी भी कभी किसी की बहु बनेगी और भगवान न करे कल कोई उसकी बेटी के साथ भी ऐसा कृत्य करे तो उस बेटी की दशा क्या होगी ?
आज इश्वर से यही प्रार्थना है की आदरणीया दिव्या जी का यह सार्थक लेख और "मुग्धा" की पीड़ा उस सासों तक भी पहुंचे और हमारे देश में फिर कोई मुग्धा अपमान का घूंट पीकर मौत की दहलीज़ तक न पहुंचे |
आदरणीया दिव्या जी को इस सार्थक पोस्ट के लिए बारम्बार बधाई प्रेषित करता हूँ एवं निवेदन करता हूँ की आप इसी प्रकार समाज को जागरूक करती रहें |

Rajesh Kumar 'Nachiketa' said...

गुस्से में आ के जो कर सकता है वही मुग्धा ने किया...ये इसलिए हुआ क्योकी मुग्धा ने अपना सारा गुस्सा एक दिन के लिए जमा कर लिया....
अगर जब जो समस्या हुई उस समय उस पर ढंग से बात होती तो शायद मामला सुलझ जता...
और हाँ...आपकी सच्ची घटना सही है....इसी कारण से काफी सासें बदनाम हुई हैं....
मुझे याद है आपने अपनी सास पे एक बहुत ही अच्च्छा लेख लिखा है...उसका लिंक यहाँ दे दें तो लोगों को कुछ अच्छा फील होगा और थोड़ी सी निराशा सा जो माहौल है उसमे कुछ आशा फ़ैल जायेगी.
वैसे सासें जलाई भले ही न जाती हों मगर प्रताड़ित तो वो भी बहुत की जाती है.... बहुओं द्वारा..

राज भाटिय़ा said...

मुझे नही लगता कोई आदमी इतना मुर्ख होगा ओर कोई सास इस्तनी निर्दयी होगी, फ़िर मुग्धा १० सालो तक चुप रही ओर एक दिन इतना कुछ केसे कह गई.... होता हे ऎसा भी होता हे लेकिन दोनो तरफ़ से ही होता हे,

Deepak Saini said...

@ आप एक असली भारतीय सास हैं जो बहु कों सताने में ही अपनी
विजय समझती है।

इस बात से असहमत हूँ कि सारी भारतीय सास ऐसी ही होती है मुग्धा अपनी जगह सही परन्तु जरूरी नही सबके साथ ही ऐसा हो
आप भी भारतीय है, आज बहू है कल सास भी बन जायेगी तो क्या आप भी ऐसा ही व्यवहार करेगीं

वाणी गीत said...
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Irfanuddin said...

hhmmmm.... this is really a very sad part of our society, this is not the only MUgdha, there are so many going through all this in every moment of their life...

Respecting n following our parents is not at all bad indeed but at the same time there should not be any injustice with other relations too....

People like Paraag must try to see the other side of the story then only react,
irfan

शिवा said...

वास्तविकता को पेश किया है आपने

जीवन और जगत said...

nari ki yah sthiti nari ke hi kaaran hai. mainse trin aur bus me bhi dekha hai, ek aadmi doosre aadmi ko baithne ki jagah de dega, lekin ek aurat doosri aurat ko baithne ki jagah aasani se nahi degi.

Kailash Sharma said...

मुग्धा जी की व्यथा मन को बहुत व्यथित और उद्वेलित कर देती है. हमारे समाज में मुग्धा अकेली नहीं है, जाने कितनी मुग्धायें इस तरह का दुःख झेल रही हैं. इसके विरुद्ध खड़े होना निश्चय ही ज़रूरी है. लेकिन तस्वीर का एक दूसरा भी पहलू है. सभी बहुएं न तो मुग्धा जैसी संस्कारशील और सहनशील होती हैं और न ही सभी सासें और पति मुग्धा के सास और पति की तरह अत्याचारी. यह भी सत्य है कि कुछ बहुएं अपनी सासों को उम्र की अंतिम अवस्था में इस तरह पीड़ित करती हैं कि उसका वर्णन नहीं किया जा सकता. यह पीड़ा शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार की हो सकती है. पुत्र भी पत्नी का इस में पूरा साथ देते हैं. सास यहाँ भी जल रही है पर धीरे धीरे बहू के अत्याचार की आग में.
वास्तव में स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है. ससुर बहू के झगडे बहुत कम सुने होंगे.
आवश्यकता है पति,पत्नी और ससुराल के दूसरे संबंधो के बीच उचित सामंजस्य बनाने की. जहां एक दूसरे के सम्मान और मर्यादा का ध्यान रखा जाएगा, वहाँ यह समस्या आयेगी ही नहीं.

shikha varshney said...

उफ़ बेहद मार्मिक ...पर मुग्धा ने जब एक बार हिम्मत कर ली तो फिर मरने की बात क्यों ? उस बच्चे पर क्या असर होगा?अगर ससुराल वाले इतने बुरे हैं तो उसे अपनी लड़ाई लड़नी चाहिए.उस घर में रहकर या उस घर से बाहर...

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

durbhagy yhi hai ki nari ki dushman nari hi hai , lekin yeh kahkar prag jaise logon ko doshmukt nhin kiya ja skta fir bhi yah sach to rahega hi ki nari ki dushman nari hi hai
aapka shatkiay lekh pdhna chaha tha ,pta nhin kyon vo page khul hi nhin rha . shayd aapko bhi is smasya ki jankari hogi. agr sudhar ho sken to kijiega taki ise padha ja ske

G Vishwanath said...

Heart rending story indeed.
My sympathies are with Mugdha of course.
But let us not generalise.

I have known some mothers-in- law who shout at their sons when the sons behave badly with their wives.
I have known mothers-in-law, who did not have daughters of their own and started looking upon their daughter-in-law as their own daughter. I have known wives who turn to their mother in law for support when the husband behaves badly and get this support. I have seen mothers scolding the son and lecturing him on how to be a good husband.
I

Of course, these are rare cases.
But Mugdha type cases are also rare.

What is common in most families is that there is some nominal friction between the two ladies of the family and both, the wife and mother in law are equally to blame. Sometimes, one is at fault, sometimes it is the other.
The mother does not want to lose her son to a newcomer in his life.
Some wives unreasonably expect that their the husbands should at once transfer all his loyalties to his wife after his marriage.
Conversely some husbands also unreasonably expect their wives to forget about her family and be totally involved only with the husband's family.

These days daughters in law are better educated and they find the mother in law's lack of education a barrier in effective communication. The wives are often career woman and they find that they cannot discuss topics other than the menu for the day and the cooking/washing/sweeping tasks pending since the maid servant has failed to turn up.


(Continued ------)

G Vishwanath said...

Only after the baby is born, does the modern wife realize the value of the mother-in- law. She then compromises and accepts her mother in law as she is.

Children in such familes serve as a strong bond and they help hold the family together.
Whatever their differences, both the mother and wife of a man are united when it comes to the welfare of the child.

For a modern husband, to suddenly switch loyalties from his mother to his wife is not so easy. May be, one fine day, he can change the name of the beneficiary of his insurance policy and substitute his mother's name with the name of his wife but a similar substitution for love and affection is not easy.
Besides it is not necessary to do this.
A man cannot be faulted if he holds both his wife and mother equally dear.
A successful man is one who can maintain this balance and tactfully deal with friction between his mother and wife.
Strangely, the husband does not usually have a problem with his father in law.
The wife does not usually have a problem with her father in law.
What is about women? Why do they seem to be unable to get along?

In joint families, the problem is more common. These days, in unitary families, where the couple live separately and the the family comes together on special occasions only, these problems do not come up.

Mugdha's is an extreme and uncommon case and she must take the help of social organisations.
This was a a deeply disturbing and touching story.
If this is a true story, I hope and pray it will somehow end happily, with the help of counselors/family elders and social workers.
Regards
GV

वीरेंद्र सिंह said...

ऐसा होता तो ज़रूर है जोकि बेहद निंदनीय है। लेकिन दूसरे तरह की घटनाएँ भी आम हैं जैसे कि पढ़ी-लिखी बहुओं द्धारा अपनी सासू माँओं का घोर तिरस्कार.......
दिव्या जी... समाज में हर तरह के लोग हैं। दु:ख तो इस बात का है कि पढ़-लिखने के बाद भी इंसान अपनी जंगली प्रवृत्ति पर रोक नहीं लगा पाता। इसीलिए तो हर इंसान मौक़ा मिलने पर अपने अधिकारों का दुरुपयोग करता है।

शोभना चौरे said...

दिव्याजी
मै जो कुछ कहना चाह रही थी वाणीजी और विश्वनाथजी की टिप्पणी से पूरी तरह सहमत |
मुग्धा जी के साथ सहानुभूति है उन्हें अपने सवैधानिक अधिकारों का ईमानदारी से उपयोग करना चाहिए |
ईमानदारी से इसलिए की महिलाओ के लिए जो कानून बनाये है उनके अधिकार के लिए, आजकल उसका दुरूपयोग
बहुतायत से हो रहा है |

Amit Sharma said...

@ आप एक असली भारतीय सास हैं जो बहु कों सताने में ही अपनी विजय समझती है।
# माफी चाहते हुए आपकी इस लाइन पर अपना घोरतम विरोध व्यक्त करता हूँ .

@आप अपनी दोनों बहुओं में तुलना करके हमेशा मुझे अपमानित करती हैं। तुलना का काम भी सासें ही करती हैं। कभी माएं अपनी बेटियों की तुलना करके उन्हें अपमानित नहीं करती ।
# मतलब की दूसरी बहु के साथ इतना अनर्थकारी व्यवहार नहीं था सास का, तुलना करने की स्थिती उत्पन्न हुए तो कहीं ना कहीं दोनों पक्ष जिम्मेदार है.

परन्तु फिर भी इस बात में कोई दो राय नहीं है की ऐसी अनर्थकारी घटनाएं बहुधा घटती ही रहती है, इनसे निपटने के लिए शिक्षा और संस्कारों को बढावा देने की जरुरत है, और मुग्धा जी को तो यह सब सहने और मारने की जरुरत ही नहीं है क्योंकी वेह तो पढी लिखी हैं और खुद के पैरों पर खादी भी हो सकती है, क्योंकी पहले बैंक में नौकरी कर चुकी है, इसलिए उन्हें इस दिशा में थोड़े प्रयास से कोई काम मिलने या करने में आसानी होगी.
जब पाती और सास अपनी सीमाओं का अतिक्रमण कर ही चुकें है, जिमें किसी तरह के बदलाव की गुंजाईश शायद ही हो तो उन्हें अलग होकर अपना और अपने बच्चे का भविष्य सुरक्षित करने की दिशा में कदम बढ़ाने चाहिये.

एस एम् मासूम said...

जब मेरी बहु कों प्यार मिलेगा और वो इस घर-आँगन में ख़ुशी से चहकेगी , तभी मेरे मन को शान्ति मिलेगी "

मदन शर्मा said...

ईश्वर ऐसा कभी किसी के साथ न करें...
आज महिला ही महिला की दुश्मन है उसे सामाजिक अंधविश्वास से बाहर आना ही होगा. उसे प्रारब्ध नहीं अपितु कर्म पर विश्वास करना ही होगा .
इनसे निपटने के लिए शिक्षा और संस्कारों को बढावा देने की जरुरत है,

aarkay said...

Converse may also be true, but this is the most common truth . A heart rending story/incident indeed !

Anonymous said...

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