Thursday, February 3, 2011

मइके की कभी न याद आये , ससुराल में इतना प्यार मिले...

बाबुल की दुआएं लेती जा ,
जा तुझको सुखी संसार मिले
मइके की कभी याद आये ,
ससुराल में इतना प्यार मिले .....

मुग्धा हार गयी !

मुग्धा ने हारी हुई जंग लड़ने की कोशिश की थीअंजाम तो मालूम ही थाआज पहले से भी बुरी स्थिति में है मुग्धाएक दिन मुंह खोलकर क्या मिला ? भविष्य में मिलने वाला अपमान और हिंसा बदस्तूर जारी रहेगीयही हश्र होना था उसकाउसने गलत निर्णय लिया थाजहाँ ह्रदय ही हो वहां ह्रदय परिवर्तन की उम्मीद क्यूँ रखीचिल्ला-चिल्लाकर यदि न्याय मिलता तो बहुएं नहीं जलाई जातींऔर टुकड़ों में काटी जातीं

कहते हैं यदि मियां बीबी राजी तो क्या करेगा काजी

यहाँ तो पति ही मुग्धा के खिलाफ हैमाँ शब्द से प्यार करता है , स्त्री का सम्मान करना ही नहीं जानताजब पति ही खिलाफ हो जाए तो पत्नी की हार तयशुदा है

कहते हैं , स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है ,

ये भी चरितार्थ हो गया मुग्धा के परिवार सेउसकी सास ही पिटवाती थी , और यदि सास चाहती तो पति कभी नहीं पीटता क्योंकि वो पूरी तरह माँ के नियंत्रण में थावही सास मुग्धा कों अपने आँचल की छाँव देकर उसे हर बला से बचा सकती थी और एक खुशहाल परिवार बनाने में सहयोग कर सकती थी

मुग्धा के पास क्या-क्या विकल्प हैं ?

वो पिता के घर जाकर पति और सास पर घरेलु हिंसा का मुकदमा कर सकती हैलेकिन नहीं वो ऐसा करना नहीं चाहतीक्यूंकि वो बच्चों कों उसके पिता से दूर नहीं करना चाहतीऔर अपने माता पिता के जीवन के बचे हुए दो चार वर्षों कों अदालतों की जिल्लतों से दूर रखना चाहती हैबेटी के दुःख का उन्हें पता ही नहीं हैक्यूंकि मुग्धा तो फोन पर हमेशा उनके दामाद की तारीफ़ ही करती हैक्यूंकि वो जानती है की उसके बूढ़े पिता अपनी बेटी पर हो रहे अत्याचार कों नहीं बर्दाश्त कर पायेंगे और असमय ही चल बसेंगे

वो तलाक दे सकती है ? लेकिन फिर वही समस्याअपनी परिवार कों बिखरता हुआ नहीं देखना चाहतीविवाह करने के बाद तलाक के बारे में सोचना उसके संस्कार में ही नहीं है

तो फिर वो क्या करे ? क्या सास बनने का इंतज़ार करे , क्यूंकि समाज के एक बड़े हिस्से की सहानुभूति सास के साथ हैकोई करे करे बेटा तो हिफाज़त करेगा ही और फिर वो अपना बदला अपनी बहू से निकाले ?

मुग्धा का निर्णय --

क्यूंकि मुग्धा अपनी सास और पति से प्यार और सम्मान चाहती हैएक खुशहाल परिवार चाहती है , लेकिन ये सब अदालत की मदद से नहीं मिलताप्यार तो सिर्फ प्यार करने वाले दिलों से ही मिलता हैइसलिए उसने अपनी नियति कों स्वीकार कर लिया हैकम से कम उसका परिवार तो नहीं बिखरेगाबच्चे , बिना माँ अथवा पिता के तो नहीं रहेंगेजहाँ दस साल कट गए , वहीँ दस और सहीकभी तो अत्याचार करने वाले के हाथ भी थकेंगे

मुग्धा अस्पताल में हैआज उससे मिलने गयी तो पूरे चेहरे पर नीले-काले धब्बे थेमुझे देख कर मुस्कुराई , फिर आँख में आँसू आने पर उसने पलकें झुका लींकुछ बोली नहीं सिर्फ मेरा हाथ पकडे चुपचाप लेटी रही

धीरे से बोली - "मेरा एक काम करोगी ? " ..मैंने पूछा - क्या ? ..तो बोली -

" बेटे से वादा किया था की फर्स्ट आओगे तो जन्मदिन पर PSP दिलाऊंगीबेटा एक-एक दिन इंतज़ार कर रहा है अपने जन्मदिन का जो मई में हैजाने क्यूँ जीवन की अनिश्चित्तता दिख रही हैचाहती हूँ , उसे जल्दी से जल्दी वो गिफ्ट पहले ही दे दूँ , कहीं कोई वादा अधूरा रह जाए......... "

64 comments:

केवल राम said...

अत्यंत दुखद .....और कुछ कहने की स्थिति में नहीं हूँ ....

सोमेश सक्सेना said...

इस तरह से नियति को स्वीकार कर लेना भी हार मान लेना ही है।

रश्मि प्रभा... said...

mugdha ... prayah her stree me jiti hai

प्रवीण पाण्डेय said...

दुखद।

मनोज कुमार said...

उफ़्फ़!
दुखद, मार्मिक ..!

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

आखरी ख्वाहिश तो पूरी होनी चाहिए :(

राज भाटिय़ा said...

इस बुढिया ने अपने बेटे की शादी ही क्यो कि थी जब वो उसे सुखी नही देख सकती?अब क्या कहे????

Rakesh Kumar said...

Yadi bure din aaye to achche din bhi jaroor aayenge.Yahi aas Mugdha ko dilasa de sakti hai.Prabhu antaryami hai,aur dino per avasya daya karte hai, aisa mera visvas hai.

डा० अमर कुमार said...


मुग्धा सिरे से गलत है,
वह अन्याय को बढ़ावा दे रही है,
और बच्चों को एक गलत उदाहरण !

राज भाटिय़ा said...

अरे हम तो इसे एक परिवारिक झगडा ही समझ रहे थे, लेकिन जब मैने अपनी बीबी को यह लेख पढवाया ओर हम ने विचार किया तो... हम दोनो ही एक पल के लिये सुन्न रह गये, आप को जरुर इस महिला की मदद करनी चाहिये किसी भी तरह, अरे कल इसे कुछ हो गया तो इस के बच्चे को उस मुर्ख ने घर से निकाल दिया तो? या उस सास के दिल मे जब इस बहू के लिये प्यार नही तो क्या वो पागल अपने पोते को पूछेगी? इस ना समझ को समझाओ कि हिम्मत ना हारे ओर वक्त से लडे, जब इतना कुछ हो ही गया हे तो जाये साला पति भाड मे सीधा तलाक ले ले, या आप इस के परिवार मे किसी को जानती हे तो उन्हे सुचित करे, ओर इस महिला को हिम्मत दे, बहादुर बनाये लडे इस हालात से हिम्मत हारने से क्या होगा, इस के बाद वो पागल बुडिया अपने बेटे की शादी फ़िर से कर के किसी ओर की जिन्दगी बरबाद करेगी, इसे अब आप ने ही समभालना हे, ओर हिम्मत देनी हे, जीये बच्चो के लिये जीये साथ ही इस मां बेटे को भी सबक दे.... आप का लेख पढ कर दिमाग काम नही कर रहा, जिसे हम घरेलू झगडा समझ रहे थे वो तो बहुत खतरनाक लग रहा हे.

विशाल said...

मेरा मानना है जब हालात हाथ से निकल जाएँ तो उनसे लड़ना ही बेहतर है.ज़िन्दगी बहुत बार दूसरा मौक़ा देती है.इस तरह घुट घुट के जीने से क्या फायदा.परिवार तो पहले ही बिखरा हुआ है और बच्चे बीमार परिवेश में सांस ले रहे हैं.सो मुग्धा जी उठिये,संघर्ष का बिगुल बजाईये

Irfanuddin said...

"स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है"...the root of the cause..

"माँ शब्द से प्यार करता है"...nothing wrong doing this provided injustice is not done to other relations..

Regards,
irfan

amit kumar srivastava said...

what to say....so tragic.

ashish said...

क्या कहा जाए . मुग्धा को ऐसी परिस्थिति में निकलने के लिए कोई ठोस निर्णय तो लेना ही पड़ेगा .

पी.एस .भाकुनी said...

Aap yadi koi bhumika nibha sakte hain to please jarur koshis kijiyega, or han shrif Raj Bhatiya ji ki baaqton se purnth sahmat hun,

आशीष मिश्रा said...

बहोत ही मार्मिक

amrendra "amar" said...

lag raha hai jaise abhi nahi to kal to barish hogi hi................dil ke kahi kone me gher gher ker gayi aapki behad sanvedansheel rachna ...............
http://amrendra-shukla.blogspot.com

सहज समाधि आश्रम said...

बहुत सुन्दर दिव्या जी । आपका ब्लाग bolg world .com में जुङ गया है ।
कृपया देख लें । और उचित सलाह भी दें । bolg world .com तक जाने के
लिये सत्यकीखोज @ आत्मग्यान की ब्लाग लिस्ट पर जाँय । धन्यवाद ।

G Vishwanath said...

सुनकर बहुत दु:ख हुआ।
क्या कोई महिला संगठन नहीं है जहाँ जाकर रिपोर्ट दर्ज किया जा सकता है?
संगठन के सदस्या जानते होंगे, ऐसे पति और सास से कैसे निपटना चाहिए।
पर एक बात का डर है।
मुँह खोलकर बात करने पर यदि मुग्धा का यह हाल हुआ है, तो यदि महिला संगठन कुछ नहीं कर सका तो आगे मुग्धा का क्या हाल कर देंगे ये लोग?
तलाक के बारे में यदि सोचती है तो क्या किसी का समर्थन मिलेगा उसे?
स्वावलंबी बनकर जीने की क्षमता है उसमें ?
बच्चों का भार क्या वह अकेली उठा सकेगी?
ईश्वर उसे शक्ति दे, यही कामना है हमारी
जी विश्वनाथ

सदा said...

बहुत ही मार्मिक प्रस्‍तुति ।

ZEAL said...

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भाकुनी जी ,

मुग्धा मेरी सहेली है , इसलिए अपनी भूमिका उसके जीवन में बखूबी समझती हूँ। उसके पति और सास के विचार तो मैं नहीं बदल सकती , इसलिए उसके घर के हालात बदल सकने में तो कोई भूमिका नहीं हो सकती मेरी । उसके मन कि दुविधा समझती हूँ , इसलिए उसके वृद्ध एवं आर्थिक रूप से अशक्त पिता को भी असलियत बताने कि हिम्मत भी नहीं।

मुझे सिर्फ उसके स्वास्थ्य कि चिंता रहती है। घर के हालात से गुमसुम और खामोश मुग्धा कहीं अवसाद से न ग्रस्त हो जाये , बस यही भय रहता है । जब भी मौका लगता है अक्सर उसे घर से बाहर निकलने को विवश कर थोड़ा बाहर घुमा लाती हूँ।

उसे सबसे ज्यादा चिंता अपने दोनों छोटे-छोटे बच्चों कि रहती है , जिसका वो आजकल ध्यान नहीं रख पा रही , इसलिए तकरीबन दस दिनों से मैंने उसके बच्चों को पढाना शुरू किया है। दोनों बहुत सहमे-सहमे से रहते हैं। शायद थोड़े दिनों में मुझसे घुल-मिल जाएँ ।

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एस एम् मासूम said...

मुग्धा के पास क्या-क्या विकल्प हैं ? विकल्प समाज को देना है. लोग शर्मनाक कह देते हैं बस. ज़ुल्म के खिलाफ जब समाज आवाज़ उठता है तभी ज़ुल्म मिट सकता है.

महेन्‍द्र वर्मा said...

मुग्धा के करुण क्रंदन का असर उसकी सास और पति पर नहीं हुआ। लगता है, उसकी दुष्टा सास और दुष्ट पति मानसिक रोगी हैं।

मुग्धा की यह दशा दुखद है।

नारी संगठनों, स्वयंसेवी संगठनों को इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए।

मुग्धा के लिए आप ही कुछ कीजिए।

प्रतुल वशिष्ठ said...

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आप मुग्धा को बेहतर राय दे सकते हैं.
भावुक और त्रासद घटनाओं पर मस्तिष्क सुन्न हो जाता है.
परिवार को टूटते नहीं देख सकता. इसलिये क्या करूँ क्या न करूँ की स्थिति बन जाती है.
इसलिये ऐसे मसले बहुत धैर्य वाले व्यक्ति ही सुलझा सकते हैं.

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दिगम्बर नासवा said...

आज ही पूरी कहानी पढ़ पाया और ... आपने कमेन्ट से पता चला की वो आपकी सहेली है ...
सच है ऐसे में बहुत मुश्किल होती है ... बस साहस और धैर्य ही काम आता है ... आशा है मुग्धा जल्दी ही इन सब बातों से उभर पाएगी ...

Kunwar Kusumesh said...

मुग्धा की हालत पर दुखी होना स्वाभाविक है.सच ये भी है की ऐसी एक नहीं अनेक मुग्धायें प्रताड़ना की मार झेल रही हैं. आप या कोई दूसरा कुछ दिनों तक और कुछ हद तक ही मदद कर सकते हैं वो भी ऐसी सभी मुग्धाओं की मदद सम्भव नहीं. मुग्धा को ख़ुद उठ कर हिम्मत से उनके खिलाफ खड़ा होना होगा. हिम्मत से न सिर्फ वो अपने लिए रास्ता निकाल पायेगी बल्कि ऐसी पीड़ित महिलाओं के लिए एक उदाहरण बन कर भी उभर सकती है.

गिरधारी खंकरियाल said...

आप मुग्धा की मदद के लिए आगे आये . उसकी सास और पति से किसी तीसरे माध्यम के द्वारा संवाद बना कर , बाद में स्वयं भी, उनसे अलग अलग बात कीजिये .शायद अभी तक किसी ने समझाया ना हो संभव है उन्हें सदबुधि मिल जाये आपके प्रयास से .

Arvind Jangid said...

दुखद ! मुग्धा को परिवार को बिखरने की चिंता छोड़ देनी होगी. दोनों हाथों में लड्डू नहीं होते..........देखिए ये जिंदगी जो चाहती है करती है...जब कोई विकल्प ही ना बचे तो फिर मुग्धा को ऐसी परिस्थितियों से निकल जाना ही बेहतर है. ये भी सही है की सामने भविष्य अनिश्चित है लेकिन जरुरी नहीं की वो भी बुरा ही निकले ?

ZEAL said...

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भाटिया जी ,

इस मामले में समझ नहीं पा रही किस तरह उसकी मदद करूँ । उसके पति और सास से बात करने की हिम्मत तो मुझमें नहीं है। वो लोग मुझे ही किसी झूठे इल्जाम में फसा देंगे।

किसी संगठन की मदद तब ली जा सकती है जब मुग्धा अपने परिवार से अलग रहने कों तैयार हो जाए। लेकिन वो ऐसा नहीं चाहती । इस मामले में मैं भी कमज़ोर पड़ जाती हूँ। परिवार सदा से ही मेरी भी प्राथमिकता रही है , तो फिर कैसे उसे सलाह दूँ अलग होने की ।

कोशिश करुँगी ज्यादा से ज्यादा उसका साथ दे सकूँ और हिम्मत दे सकूँ ताकि वो खुद कों अकेला न समझे और मानसिक रूप से कमज़ोर न पड़े। मुझे उम्मीद है की मुग्धा कों हिम्मत देकर ही कोई राह निकल सकेगी । लेकिन उसका परिवार न बिखरे यही प्राथमिकता रहेगी। उसके बच्चों का ध्यान रख रही हूँ , फिरहाल तो ज्यादा कुछ नहीं कर पा रही । उम्मीद है उसके पति भी , समय के साथ ,उसके साथ सहानुभूति का रूख अपनायेंगे।

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Rahul Singh said...

शायद मुद्दा रायशुमारी से आगे बढ़ चुका है.

मुकेश कुमार सिन्हा said...

uff ye trasadi hi hai, ki apne khushaal bharat me abhi bhi bahut saari mugdha hain...
aur unhe aise dardnaak yaatna se gujarna parta hai..:(

G Vishwanath said...

Diyyajee,

The font size in the comments is too small.

People like me find it difficult to read.
I have now adopted the following technique.
Press CTRL-Shift-Plus on the laptop.
Wait for a few seconds.
The font size will increase.
Repeat till the font size is big enough to read.

Conversely, press Ctrl-shift- Minus to reduce the font size

By plus and minus, I don't mean words "Plus" or "Minus" but the symbols + or -
This tip works in Windows XP and Windows Vista.

Hope this tip will be useful to some of your readers who also may be finding it difficult to read the comments.

Regards
GV

Bharat Bhushan said...

दुखद और कठिन परिस्थिति है. अनिर्णय से कभी-कभार ही लाभ होता है.

समयचक्र said...

मुग्धा की हालत पर दुखी होना स्वाभाविक है...

Er. सत्यम शिवम said...
This comment has been removed by the author.
Er. सत्यम शिवम said...

आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार ०५.०२.२०११ को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

Kailash Sharma said...

बहुत दुखद और शर्मनाक स्तिथि..

Sunil Kumar said...

बहुत ही मार्मिक घटना बस साहस और धैर्य ही काम आता है .।

Akhilesh pal blog said...

sundar prastuti dr. divya ji

Amit Chandra said...

दुखद घटना। कभी कभी जब हालात काबु से बाहर हो जाते है तो उसे वक्त पर छोड़ देना चाहिए। बीते वक्त के साथ उसका कोई न कोई हल निकल ही आता है।

जयकृष्ण राय तुषार said...

गंभीर चिंतन का विषय है |हमारा समाज एक साथ कई युगों में जीता है|समाज में बदलाव पूरी तरह से होना चाहिए |डॉ दिव्या जी बहुत बहुत बधाई |

ZEAL said...

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Vishwanath ji ,

Indeed its a wonderful suggestion and truly helpful for the readers.

thanks and regards ,

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Sushil Bakliwal said...

अब तो इन्हे अलग होकर इस अन्याय के खिलाफ कानूनू कार्यवाही करनी ही चाहिये । दस साल बाद के सुख की आस में आज अन्याय सहते चले जाना भी कोई अक्लमंदी तो नहीं । और यदि मां बेटे के इन जुल्मों से मुग्धा की हत्या ही हो जावे तो ? गाय किसी का बुरा नहीं करती और सबको दूध भी देती है फिर भी कुदरत ने आखिर उसे सिंग क्यों दिये हैं ?

ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι said...

भारतीय माइथोलोजी की कई कहानियों में मां पार्वती , मां काली या अन्य किसी देवी के कई ऐसे रूप भी होंगे जिसमें उन्होंने अपने पति और ससुराल के विरूद्ध किसी न किसी कारण अपनी आवाज़ बुलन्द करके समाज को सन्देश देने का काम किया हो, शायद इस समस्या का कोई हल, कोई रास्ता हमार्रे धार्मिक ग्रन्थों में तर्क सम्मत दिया हो आइये मिल कर ढूंढने का प्रयास करें।

VIVEK VK JAIN said...

According to me, julm krne bala gunahgar hota h to utna hi sahne bala. Agar mugdha ji ko ye lagta h ki unke bete bin pita k kaise palenge to unhe ye b lagna chahiye ki unhe kuch ho gya to bin ma k us mahol me kaise palenge. Ma ki kami pita kabi puri nhi kr sakta, aur ap NRI h, shayad ye kahani vha ki h....yadi h to vha k laws is mamle me india k compare me zarur strng honge. Mugdhaji ko kanoon ki madad leni hi chahiye aur apko unki madad krni hi chahiye. Awaaz uthane ki zarurat h, dard se cheekhne ki nhi.

मुदिता said...

दिव्या जी ,
बहुत दुखद है यह स्थिति ..शर्मनाक है कि प्रगतिशील कहलाते भारत में आज भी स्त्रियों की यह हालत है.. इसका कारण क्या सदियों का अनुकूलन नहीं ...जिसने इस समाज को इस तरह का बना छोड़ा है कि अपने परिवार से अलग होने का सोच ही एक स्त्री को इस मुकाम पर ला खड़ा करने को मजबूर कर देती है..तथाकथित परिवार ,सम्मान ,माता पिता की असमर्थता, येही सोचें कमजोर कर देती हैं नारी को ..मुग्धा जी के साथ जो कुछ भी हो रहा है उसमें बहुत बड़ा हाथ इन सोचों का है..जिसका फायदा उसके पति जैसे कायर पुरुष और उसकी सास जैसी हृदयहीन नारियाँ उठा लेती हैं...यह अन्याय तब तक चलता रहेगा जब तक नारी स्वयं के अस्तित्व को नहीं जानेगी.. परिवार तभी बनता है जब एक नारी हो... नारी से परिवार होता है ..परिवार से नारी नहीं... एक क्रांति चाहिए इस बदलाव के लिए समाज में..जिस तरह से देश को स्वतंत्र करने के लिए शहीद हुए थे भगत सिंह सुखदेव आदि उसी तरह नारी मानस को इस अनुकूलन से मुक्ति दिलाने के लिए भी शहादतें चाहिए... कोई कुछ नहीं करता ..नारी मुक्ति संगठन , नारी सहायता संगठन ..सभी की अपनी सीमाएं हैं... इस अन्याय के खिलाफ नारी को ही सशक्त होना होगा...आसान नहीं यह जानती हूँ..किन्तु सहन करना भी कोई विकल्प नहीं ....आप मानसिक और भावनात्मक सहारा दे पाने में सक्षम हैं मुग्धा जी को... किन्तु सामजिक तौर पर उनके विद्रोह में स्वर मिलाने में आप भी कमजोर पाती हैं क्या खुद को...बहुत सी अडचनें होती हैं..कानून , पोलिस , आर्थिक पहलू... किन्तु इन सब का हल निकल सकता है यदि मन में दृढ विश्वास हो.... आंसू बहा कर , सहानुभूति दिखा कर इस तरह की समस्याओं का कभी हल नहीं निकाला जा सकता .. इसके लिए साहस चाहिए जो भीतर से आता है...

वाणी गीत said...

अत्याचार और अन्याय सहने की हद पर भी परिवार को बचाए रखना ...और वो भी एक आत्मनिर्भर महिला का ...मुझे उचित नहीं लगता ...सामंजस्य होना चाहिए मगर उसकी भी सीमा होनी चाहिए ...इस तरह वे अपने बच्चों के साथ अन्याय ही कर रही है1

Atul Shrivastava said...

दुखद और गंभीर चिंतन का विषय। आपने दुनिया की सच्‍चाई से रूबरू करा दिया।

ZEAL said...

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मुदिता जी ,

आपकी टिपण्णी से अक्षरतः सहमत हूँ। आपने स्त्री के कमज़ोर पहलू कों बखूबी समझा । समाज का ढांचा ही कुछ ऐसा है। एक स्त्री के लिए पति का घर ही सब कुछ है , इसी संस्कार के साथ उसे बड़ा किया जाता है । विवाह के बाद लड़की के माता पिता इसी उम्मीद के सहारे जीते हैं की उनकी बेटी ससुराल में खुशहाल है। लेकिन ५० प्रतिशत लड़कियां जो घरेलु हिंसा का शिकार हैं वो अपने माता-पिता कों दुखी नहीं देखना चाहतीं और उन्हें सच नहीं बताती । पूरी जिंदगी यही सिलसिला चलता रहता है । उनकी चुप्पी कों ही उनकी खुशहाली समझ लड़की के माता पिता भी उम्र का आखिरी पड़ाव शान्ति से गुज़ार लेते हैं।

एक स्त्री पर -- माँ होने का , पत्नी होने का , बहु होने का, और बेटी होने का भी दायित्व होता है ।

ससुराल के साथ साथ वो ताउम्र अपने मइके की भी खुशहाली के बारे सोचती है। यदि वो पति से दूर रहकर सुसुराल वालों के खिलाफ लड़ेगी तो बूढ़े और निर्दोष माता-पिता कों अनायास ही दुःख देगी । अनेक दुविधाओं से घिरी होती है एक संस्कारी स्त्री। उसकी अंतिम कोशिश यही रहती है , की बिना किसी की बदनामी हुए घर में शांति बहाली हो जाये । एक द्विधारी तलवार पर टिकी है जिंदगी मुग्धा की ।

इश्वर ने बनाया ही स्त्री मन बहुत कोमल है । वो खुद पर तो अत्याचार सह सकती है , लेकिन अपने कारण दूसरों कों दुखी नहीं देखना चाहती ।

मैं मुग्धा प्रकरण में खुद कों बहुत अशक्त पाती हूँ क्यूंकि भावुक हूँ। मुद्दा की जगह स्वयं कों रखती हूँ तो उसी की तरह सोचने लगती हूँ । परिवार मेरे लिए बहुत अहमियत रखते हैं ।

दुनिया की कोई भी जंग दिल से नहीं लड़ी जाती । " मोह" में पड़कर हमेशा हार ही होती है।

मैं मुग्धा की यथा संभव मदद ज़रूर करुँगी । लेकिन मेरी भावुकता शायद उसकी ताकत न बन सके ।

पाठकों के विचार उसे पढ़ाऊँगी , शायद वो कोई बेहतर निर्णय ले सके । यदि वो हिम्मत से काम लेगी , तो मैं कदम दर कदम उसके साथ रहूंगी।

मैं बहुत आशावादी हूँ , इसलिए मुग्धा के बेहतर भविष्य की पूरी उम्मीद है।

आपकी टिपण्णी से बहुत ऊर्जा मिली है ! आपका एक बार पुनः आभार।

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Deepak Saini said...

बहुत ही मार्मिक

सञ्जय झा said...

insan kitna lachar hai.....

aap pas me hain.....apki koshish hi kuch phalit ho.....

pranam.

Dr (Miss) Sharad Singh said...

उसे स्वयं साहस करना होगा...आपकी इस बात से सहमत हूं कि -‘यदि वो हिम्मत से काम लेगी , तो मैं कदम दर कदम उसके साथ रहूंगी।’

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

आदरणीय दिव्याजी ,

अत्यंत मार्मिक लेख है | आप जिस तरह से ज्वलंत विषय पर लिखकर

उसका यथार्थ परक विश्लेषण करती हैं ,बहुत ही साहसिक एवं प्रशंसनीय

है | मुग्धा की जिन्दगी जिस भंवर में फंसी है ,उसके लिए जिम्मेदार आज का

समाज ही है | आज नहीं तो कल इसका समाधान होना तय है | आपके इस

आन्दोलन में हर कलमकार को भागीदार बनकर अपनी असल भूमिका का

निर्वहन करना होगा |

वीरेंद्र सिंह said...

Divya ji..mujhe lagta hai.ki Mugdha ko himmat se kaam lena chahiye....Apne haalaat se ladna chahiye Apne BETE Ke liye....Halaki main ye bhi maanta hun ki raai(Advice) dena alag baat hai ......aur Haqeeqat alag cheez hai. Fir bhi Apne BETE(son) ki khatir use Ladna hi hoga......Divya ji ...Use himmat se ladna hi hoga...uske BETE ko uski Maa( Mother) Chahiye.

Mugdha ji Apne Aap ko Kamjor mat Samjho..... Naari ki Taaqat ko pahchno......Utho( Rise) Lado(Fight) and Jeeto (win). Tumhaare BETE ko Uski Maa chahiye....har haal men, har keemat par.

गौरव शर्मा "भारतीय" said...

दुखद...
ईश्वर ऐसा कभी किसी के साथ न करें...

उपेन्द्र नाथ said...

बहुत ही अफ़सोस की बात है ....मगर फिर भी उम्मीद जिन्दा है मुग्धा की जो काबिलेतारीफ है और शायद उसे बेटे की उम्मीदों में अपना जीवन साकार नज़र आया है..........

Dr Varsha Singh said...

बहुत ही मार्मिक घटना....

Patali-The-Village said...

बहुत ही मार्मिक घटना बस साहस और धैर्य ही काम आता है|

betuliyan said...

आँखे नम हो गयी एक माँ की यह स्थिति पढ़कर...
हम आपके साथ है आदेश दे की हम उनके जीवन में खुशिया भर पाए इसके लिए क्या कर सकते है ?

प्रतिभा सक्सेना said...

मुझे लगता है,दीन बन कर सहने का बजाय अत्याचार का विरोध होना चाहिये -मुग्धा की ओर से दृढ़ता से .उसे कुछ हो गया तो बच्चों का क्या होगा ?

ZEAL said...

Thanks to everyone for your valuable opinion, suggestions and concern for Mugdha.

नीलांश said...

main bhi saath hoon....
sabse pahle mugdha didi ke liye prarthana ..
aur wo akele nahi hain raah me..

aur kranti ki jaroorat hai jahan sabhi ek saman rahe ....sammman ho ...ek peaceful world ...jahan sabhi ke vicharon ko mahatta mile aur badi ko door karne ke liye sabhi ekjoot hon...

Emotional hokar kuch nahi hoga
dhridhta se kaam karna chahiye..

ZEAL said...

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अभिषेक जी ,

आपके विचार बहुत अच्छे लगे। मुग्धा के जीवन में अब थोडा स्थायित्व है । शायद उसकी अपेक्षाएं कुछ कम हो गयीं अब । घरवाले तो उसके वैसे ही हैं , ज़रा भी नहीं बदले। हाँ , मुग्धा ने ज़रूर खुद को पहले से ज्यादा मज़बूत बना लिया है।

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Ramakant Singh said...

forest helps to cut the forests.

JUNGLE NAHIN HOTA TO JUNGLE NAHIN KATATA.

MUGDHA ko aapane likhakar samman diya
NARI ko samman ke pranam swikar karen