Sunday, March 20, 2011

नाथूराम गोडसे का कोर्ट में अंतिम बयान .

प्रत्येक व्यक्ति का पृथ्वी पर जन्म किसी किसी ख़ास प्रयोजन से ही होता है प्रयोजन की पूर्ती होने के बाद उस व्यक्ति के जीवन का प्रयोजन भी पूर्ण हो जाता है

गुलाम हिंदुस्तान की आजादी किसी एक व्यक्ति के प्रयास का फल नहीं है, अपितु अनेकों देश भक्तों , और स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी आहुति दी है इसमें आजादी १९४७ में नहीं मिली थी पूरी आज भी भारत आंशिक रूप से गुलाम है

महात्मा गांधी ने २१ वर्षों तक साउथ अफ्रीका में वहां के लोगों के अधिकारों के लिए एक सकारात्मक लड़ाई लड़ी , फिर भारत की आज़ादी में उनके योगदान से सभी परिचित हैं। लेकिन १९४७ की आज़ादी के बाद गांधी जी संभवतः कमज़ोर पड़ने लगे मोहम्मद अली जिन्नाह की मज़बूत इच्छा-शक्ति के आगे ऐसी स्थिति में कितनी मार-काट और खून की होली हुई है , उससे भी सभी परिचित हैं। भारत की इस दुर्दशा से तड़प उठा नाथूराम गोडसे का दिल उन्होंने अपनी आन और जीवन की परवाह करते हुए एक परिस्थितिजन्य निर्णय लिया।

मेरे विचार से हिंदुस्तान की रक्षा में नाथूराम गोडसे की भी महती भूमिका है।

नाथूराम ने कोर्ट में जो अंतिम वक्तव्य दिया उसे पढने के लिए यहाँ क्लिक करें

इस लेख पर कमेन्ट करने से पहले Paradise blog पर जाकर वास्तविकता अवश्य जान लें

जय हिंद

60 comments:

Sawai Singh Rajpurohit said...

रंग के त्यौहार में
सभी रंगों की हो भरमार
ढेर सारी खुशियों से भरा हो आपका संसार
यही दुआ है हमारी भगवान से हर बार।

आपको और आपके परिवार को होली की खुब सारी शुभकामनाये इसी दुआ के साथ आपके व आपके परिवार के साथ सभी के लिए सुखदायक, मंगलकारी व आन्नददायक हो। आपकी सारी इच्छाएं पूर्ण हो व सपनों को साकार करें। आप जिस भी क्षेत्र में कदम बढ़ाएं, सफलता आपके कदम चूम......

होली की खुब सारी शुभकामनाये........

सुगना फाऊंडेशन-मेघ्लासिया जोधपुर,"एक्टिवे लाइफ"और"आज का आगरा" बलोग की ओर से होली की खुब सारी हार्दिक शुभकामनाएँ..

ZEAL said...

सब के मन में एक प्रश्न आना चाहिए की नाथूराम ने आखिर ऐसा क्यूँ किया ? इस क्यूँ का उत्तर यहाँ है

Irfanuddin said...

well.... suppose i commit a murder and then say something in my defense, will it be treated as the circumstantial evidese.... i think no... never...

like wise here i think we should not go with what Nathuram Godse told to court....

moreover its a debatable issue and cant be justified with a paragraph of comment.

Regards,
irfan.

डॉ. दलसिंगार यादव said...

डॉ. दिव्या जी,
आपकी प्रोफ़ाइल देखने से लगता है कि आप थाईलैंड में मानव जीवन की रक्षा करती हैं। आपका काम ईश्वर (यदि आप मानती हों तो) के समान है। परंतु कानून और सामाजिक उत्तरदायित्व के मामले में थोड़ा भावुक लगती हैं। नाथूराम गोडसे के इंतकाम को सही मानती हैं तो अजमल कसाब, अफ़ज़ल गुरु समेत तमाम आतंकवादी, कश्मीरी युवक सभी सही हैं। क्या आप सहमत हैं इस बात से? मेरा ख्याल है कि आप सहमत नहीं होंगी और यही मानकर मैं आपका ध्यान आपकी पोस्ट में लिखे गए एक अंश की ओर दिलाना चाहता हूं - The then Viceroy, Lord Wavell, though distressed at what was happening, would not use his powers under the Government India Act of 1935 to prevent the rape, murder and arson.
अब इस बात पर ग़ौर करें तो लगता है कि देश में उन परिस्थितियों के जनक अंग्रेज़ थे न कि हमारे नेता चाहे गांधी हों, नेहरू हों या राजेंद्र प्रसाद। अतः अंग्रेजों द्वारा सामुदायिक विभाजन, धार्मिक घृणा फैलाने का परिणाम देश का विभाजन रहा, सांप्रदायिक हिंसा रही। उन सब के लिए गांधी की हत्या और गोडसे की दलील को सही नहीं ठहराया जा सकता है। आपने स्वयं यह कोट किया है कि -
An appeal to the Punjab High Court, then in session at Simla, did not find favourable and the sentence was upheld. The statement that you are about to read is the last made by Godse before the Court on the 5th of May 1949.
यदि गोडसे सही होते और न्यायालय उसे स्वीकार करते तो आज किसी के गुनाहों को सही और ग़लत न्याय व्यवस्था नहीं बल्कि अपराधी, हथियार उठाने वाले असामाजिक तत्व करते और फिर हम कितना सुरक्षित होते इसकी कल्पना की जा सकती है। अन्यायिक बात करना, अन्यायिक विचारधारा को बढ़ावा देना है। एक अच्छे नागरिक का कर्तव्य है सामाजिक हित, सांप्रदायिक सौहार्द्र और परस्पर प्रेम फैलाने वाले विचारों की वकालत करे न कि वैमनस्य फैलाने वाले।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

हर सिक्के के दो पहलू होते हैं :)

ZEAL said...

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कुछ लोगो होली के नाम पर बेहूदा टिप्पणियां कर रहे हैं , इसलिए कमेन्ट आप्शन बंद कर रही हूँ। वैसे इंग्लिश ब्लॉग पर दिया गया गोडसे का वक्तव अवश्य पढ़ें । इतिहास की जानकारी रखने में कोई हर्ज नहीं है ।

डॉ दिलसिंगार यादव जी ,
जो आतंकवादी नहीं हैं , उनकी आतंकवादियों से तुलना करना अनुचित है।

आभार ।

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ZEAL said...

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Irfan ji -

At least I was not aware that why he killed Mahatma Gandhi . I am thankful to the one who forwarded this mail and I got to read a very relevant piece of information about History.

I am not questioning court's decision , but I want others also to go through the facts.

Everyone has the right to speak his mind, so did Godse . It is not justification . His opinion may offend some people , while his opinion may genuinely appeal millions.

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डॉ. दलसिंगार यादव said...

दिव्या जी,
क्षमा करें अनाहूत परामर्श के लिए। आप अपना लेख लिखकर दूसरों की टिप्पणियाँ प्राप्त करें और आवश्यक हो तो एक ही टिप्पणी लिखकर अपना रुख स्पष्ट करें हो। हर टिप्पणी पर टिप्पणी लिखना समय की बरबादी और मूल मुद्दे से भटकाव है।
आपने स्वयं यह स्वीकार किया है कि मैं यह नहीं जानती थी कि उसने महात्मा गाँधी की हत्या क्यों की? अतः बिना अध्ययन, किसी सिरफिरे की पोस्ट पढ़कर उसमें शामिल हो जाना किसी बुद्धिजीवी के लिए घातक सिद्ध होगा।

ZEAL said...

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डॉ यादव ,

मौन की तुलना में संवाद अधिक पसंद करती हूँ , इसलिए जरूरी समझने पर प्रति-टिपण्णी अवश्य करती हूँ। और मुझे कभी नहीं लगता की मैं अपना समय व्यर्थ नष्ट कर रही हूँ।

अभद्रता का जवाब एक बार तो देना ही होगा । फिर बाद में निश्चित ही आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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Rakesh Kumar said...

मैंने अपनी टिपण्णी आपके 'Paradise' ब्लॉग पर कर दी है. मेरा मानना है जिस रंग का चश्मा पहनो रंग वही दिखलाई देता है.इस सम्बन्ध में सद् विवेक की अति आवशयकता है.
मेरी पोस्ट 'बिनु सत्संग बिबेक न होई' का आपने भी समर्थन किया है.किसी भी बात पर मत बंनाने के लिए सभी तथ्यों की गहन जांच
और सकारात्मक विश्लेषण की जरूरत है.केवल भावनाओं से ही तो काम नहीं चलता.

ZEAL said...

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@- किलर झपटा -

अपने ब्लौग पर क्या लिखूं और क्या न लिखूं , अब आप ये तय करेंगे ?

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Rakesh Kumar said...

जो टिपण्णी मैंने Paradiseब्लॉग पे की है उसको यहाँ भी दोहरारहा हूँ

"No doubt, my own future would be totally ruined, but the nation would be saved from the inroads of Pakistan. People may even call me and
dub me as devoid of any sense or foolish, but the nation would be free to follow the course founded on the reason which I consider to be
necessary for sound nation-building."

By the own sacrafice of Godse,and murder of Mahatma Gandhi
Could the nation be saved from the inroads of Pakistan?
Could the nation be free to follow the course founded on the reason which he consider to be necessary for sound nation-building?
If not,then think about whether the decision of Godse was matured enough.Had he ever tried to convey his feelings to Gandhiji and put his opinion before public for an open discussion before murdering Gandhi ji.
As far as,Gandhiji is concerned his feelings and opinion were not in privacy,he was quite an open book.Saint by his thinking and deeds as it deemed to be.Was Gandhi ji betraying the public at large.why no agitation or movement arose in public aganist Gandhiji.I had read some of the speeches of Netaji Subhash Chandra Bose.He had a great respect for Gandhiji,though he was not fully convinced with the policies of then congress(may be including Gandhi ji).Did murder of Gandhiji not make him much more famous all around the world.How can we say then the approach of Godse was right when he was failure on all fronts.Did he achieve the level of Ram or Krisna or Arjun in his life before taking the one sided decision of murder.Did Ram not send his messangers{Hanuman,Angad)to Ravana before killing him.Did krisna not tried to avoid unpleasant fight of Mahabharat.Godse's opinion may genuinely appeal millions,as "utsav's attempt to attack Dr.Talwar may appeal millons.
Anyway,I am not at all convinced with the logics
placed by Godse.

मेरी समझ में जो नुकसान नाथू राम गोडसे ने हिंदुत्व का किया है वह
अपूर्णीय है.

Khushdeep Sehgal said...

राकेश जी के इस विचार के बाद इस विवाद को यहीं विराम दे देना श्रेयस्कर है...

जय हिंद...

ZEAL said...

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यहाँ कोई विवाद नहीं है , सभी पाठक अपने विचार लिखने के लिए स्वतंत्र हैं । मेरे हर लेख पर विमर्श सदैव जारी रहेगा । कभी कोई कमेन्ट आप्शन बंद करने पर आपत्ति जताता है , कभी कोई विराम लगाने की बात कहता है ।

लेख से सहमत होना आवश्यक नहीं है , न ही टिप्पणियों से ।

वैसे मुझे बहुत से पत्र मिले हैं जिनमें लोगों ने सहमती जताई और ये भी लिखा की आज जो दुर्दशा है भारत की , वो विभाजन के समय लिए गए गलत निर्णयों के कारण ही है । लेकिन ये लोग अपनी टिपण्णी लिखने में घबरा रहे हैं।

समझ सकती हूँ लोगों के मन का भय , इसलिए अपनी सुविधानुसार लेख चुनिए और निर्भय होकर लिखिए। टिपण्णी करना जरूरी भी नहीं है ।

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सुज्ञ said...

चलो माना कि दिव्या जी ने गडा मुर्दा उखाड़ दिया!!

पर यह सोहार्द की सलाह देने वालों नें उस पर मिट्टी डालनें की जगह अपनी अपनी विचारधारा का विष-वमन भी कर दिया॥ लगे हाथ।

शाबाश सलाहकारों!!

प्रतुल वशिष्ठ said...

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ऐसे होली खेलो लाल
उतरे 'रंगी सियारी' खाल.
ऐसे होली खेलो लाल
आवें याद लाल बाल पाल.

थप्पड़ खाकर नहीं कोई भी
आगे करे ... दूसरा गाल.
ठंडा खून सफ़ेद हो जाता
गरम खून होता है लाल.
यदि खेलना होली है तो
रंग चुनो बलिदानी लाल.

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आशुतोष की कलम said...

भारत के सपूत नाथूराम गोडसे को मेरा नमन..
उनके विचार सही थे मगर तरीका शायद सामाजिक दृष्टि से स्वीकार्य नहीं था..

Aakshay thakur said...

गोडसे एक महान क्रांतिकारी थे.
उन्होने वही किया जो एक देश भक्त को करना चाहिये.

जिस देश को मुगलो और अंग्रेजो से आजाद करने के लिये हमारे वीरो ने इतनी भयंकर कुर्बानी दी थी.

उसी देश को गांधी उन्ही मुगलो की औलादो को ऐसे खैरात मे बाँट रहे थे जैसे ये गांधी की निजी प्रापर्टी हो.

अगर गोडसे गांधी को न मारते. तो आज हैदराबाद और कई अन्य स्थान पाकिस्तान के पास होते.

गांधी एक कायर इंसान थे. और उन्होने अपनी कायरता को अहिँसा का चोला पहना दिया.

गांधी की कायरता का परिणाम आज तक हिँदुस्तान झेल रहा है.

कौन कहता है कि भारत आजाद हो गया. अपने देश का इतना बड़ा हिस्सा उन मुगलो की औलादो को देकर हमे आजाद भारत नही खंडित भारत मिला है.

मुझे नफरत है उस गांधी से और गांधीवादी सोच से.

मदन शर्मा said...

दिव्या जी आपके साहस को सलाम जो ऐसा विवादित विषय उठाने की कोशिश की. सत्य की चमक ही अलग होती है चाहे हम लाख उसे झूठ के आवरण में ढकने की कोशिश करें लेकिन एक न एक दिन सत्य उभर के सामने आता ही है. कुछ लोगों द्वारा नाथू राम का आतंक वादिओं के साथ तुलना ये बिना सर पैर की बात लगी'. वे ये भी तो बताएं उन्होंने क्या आतंक वादिओं जैसा काम किया था? आज सभी को स्वीकार करना ही होगा की आज जो दुर्दशा है भारत की , वो विभाजन के समय लिए गए गलत निर्णयों के कारण ही है. सुभाष चन्द्र बोस तथा सरदार पटेल जैसे नेताओं को दरकिनारे कर के जवाहर लाल नेहरु को आगे लाने वाला कौन था?जब लोग तर्कों को पचा नहीं पाते, तो उसे टालने के लिए दूसरे पर ही इस प्रकार रद्दा जमाने लगते हैं। शान्त मन से और तथ्यों के आधार पर विश्लेषण करने का प्रयास करनेवाले बिरले ही होते हैं। ये कैसी विडंबना है ! हम सब जानते हैं, समझते हैं, किन्तु मानने को तैयार नहीं हैं. तर्क करना है तो दिए गए विषय पर कीजिये. यदि नहीं कर सकते तो मौन रहिये किन्तु व्यक्तिगत आक्षेप तो न कीजिये . ये आप कह सकते हैं की नाथू राम के विरोध का तरीका गलत था, लेकिन उसकी देश भक्ति तथा उसके उच्च विचारों को निसंदेह कोई भी गलत साबित नहीं कर सकता.

ZEAL said...

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आज हम आजाद भारत में सिर्फ इसीलिए बैठे हैं क्यूंकि एक क्रांतिकारी ने अपने ऊपर कातिल होने का गुनाह लिखवा लिया लेकिन देश को टुकड़े-टुकड़े होने से बचा लिया। अगर एक देशभक्त और क्रांतिकारी ने उस समय गोली नहीं चलायी होती ,तो जो हाल आजादी के ६० साल बाद हुआ है , वही २-४ सालों में हो चुका होता। १९४७ में अँगरेज़ से आजादी तो मिल चुकी थी , लेकिन मुगलों की गुलामी तयशुदा दिख रही थी । क्रांतिकारी बहुत दूरदर्शी होते हैं । गोडसे की आँखों ने आज का भारत बहुत पहले ही देख लिया था। हज़ारों मासूमों की कुर्बानी व्यर्थ नहीं जाने देना चाहते थे वो ,इसीलिए एक कुर्बानी और लेकर , खुद भी शहीद हो गए।

क्रांतिकारियों को आतंकवादी नहीं कहा जाता। आतंक्वादी मात्र आतंक फैलाते हैं । लेकिन जब पूरा देश ही किसी को खैरात में दिया जा रहा हो तो क्रांतिकारी ही बचा सकते हैं। अंग्रेजों के खिलाफ जब खून खौला तो , शहीदों के खून की नदियाँ बहीं , लेकिन जब देश के टुकड़े होने लगे तो खून क्यूँ न खौले ?

क्रांतिकारी, सर पर कफ़न बाँध कर चलते हैं। देश पर जब संकट आता है तो वो 'ब्लोगिंग' नहीं करते हैं ।

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ZEAL said...

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देशभक्त गांधी जी भी थे और नेताजी भी । एक ने अहिंसा का व्रत रखा तो दुसरे ने कहा " तुम मुझे खून दो , मैं तुम्हें आजादी दूंगा " । खून क्या सिर्फ आम जनता का होना चाहिए , महापुरुषों का नहीं ? फांसी पर सिर्फ देशभक्त ही लटकें महापुरुष नहीं ?

गोडसे के पास अन्य कोई विकल्प ही नहीं था। और खून भी इतना ठंडा नहीं था की मासूम देशवासियों के साथ हो रही खून की होली को देखते रहते । उन्होंने पहले अपनी मौत को आमंत्रण दिया और फिर गोली चलायी । नमन है उनकी देशभक्ति के जज्बे को । देश के लिए किसी एक की जान इतनी कीमती कैसे हो सकती है, जहाँ अरबों कुर्बानियों दी जा चुकी हों ?

मरना तो सबका तय है , कोई जलिया वाला बाग़ काण्ड में आजादी के पहले मरा तो कोई बाद में । उस एक गोली ने ही गाँधी और गोडसे दोनों का नाम शहीदों की फेहरिश्त में जोड़ दिया ।

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ZEAL said...

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Primes Minister Nehru's preachings and deeds were at times at variances with
each other when he talks about India as a secular state in season and
out of season, because it is significant to note that Nehru has played
a leading role in the establishment of the theocratic state of
Pakistan, and his job was made easier by Gandhis' persistent policy of
appeasement towards the Muslims.

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प्रतुल वशिष्ठ said...

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होली पीछे गयी रंग की
आयी है उतरन होली.
रंगे हुए सियारों की अब
सुन लो 'हुआ-हुआ' बोली.

"मेरे अनशन ने दिलवाया
भूखों को खाना भरपेट.
पर सुभाष ने खून माँगकर
खुलवाया हिंसा का गेट."

"मेरे बन्दर बँटवारे ने
रोकी छीनाझपटी कैट.
पर नाथू लंगूर भगाता
पार 'राम नाम' के गेट."

"मेरे 'हरिजन' संबोधन ने
दी दलितों को बिग नेम-प्लेट.
भीमराव जी फिर भी घूमे
अम्बेडकर का नाम लपेट."

"वैष्णवजन तो तैने कहिये
शैतानों को दे भरपेट.
उनको दुश्मन कहो देश का
जो रहते हैं 'आउट ऑफ़ डेट."

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अन्तर सोहिल said...

अंग्रेजी समझ नहीं आती जी
हिन्दी में लेख होता तो पढ सकता था

प्रणाम

ZEAL said...

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प्रतुल वशिष्ट जी ,

अगर आप काव्य में ना कहकर , सरल हिंदी में और अभिद्या में अपने विचार रखें तो हम सभी को आपके विचार समझने में सुविधा होगी ।

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ZEAL said...

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व्यंग करने से बेहतर है स्पष्ट निंदा।

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आशुतोष की कलम said...

विषयांतर हो रहा है मगर बोले बिना रह नहीं पाया
नेहरु ने सुभाष जी को आतंकवादी का तमगा दिया ..
और खुद एडविना की बाँहों में व्यस्त रहे और MAUNTBETAN ने हिंदुस्तान को लुटा..
गोडसे ने ठीक ही किया इस स्थिति के लिए जिम्मेदार को ख़तम कर दिया..

प्रतुल वशिष्ठ said...

दिव्या जी,
जब बहुत अधिक कहना होता है तब कविता विधा ही सहारा होती है.
आपने होली पर 'होली' खेलने का ढंग सिखा दिया.
इस कारण ही रंगों की होली फीकी लगी.
अब तक हमारा समाज जिनको महात्मा और महापुरुष के रूप में सम्मान देता रहा
उन रंगे सियारों का रंग होली जाते-जाते उतरने लगा है.
और जिनको कायर, गद्दार और उग्रवादी तमगों से नवाजता रहा उनका स्वर्णिम रंग [पक्ष] दिखाने की जरूरत है.
वैसे ये कोशिश समय-समय पर होती रही है.
फिर भी प्रयास जारी रहने चाहिए..... इस दृष्टि से आपका प्रयास सराहनीय है.

सुभाष चन्द्र बोंस, नाथूराम गोडसे के प्रति दुष्प्रचार रोका जाना चाहिए. असलियत का अन्वेषण होना ही चाहिए.
भीमराव रामजी सकपाल का सवर्णी नाम अपनाने का रंग भी उतरना चाहिए.
जितने भी रंगे महात्मा हैं उनसे 'अग्नि-परीक्षा' लेनी ही होगी.
आदर्श जब शुद्ध होते हैं तब ही राह सही सूझती है.
आजादी के इतने वर्षों बाद भी सही मार्ग न मिल पाने का कोई तो कारण होगा?
महात्मा जी ने दलितों को 'हरिजन' नाम देकर परोक्ष रूप से अपनी सुपीरियर जातीय मानसिकता को झलकाया .... लेकिन इस मानसिकता को भीमराव जी ने समझ कर भी 'सवर्णीय' महात्म्य को नकारा नहीं.
अपने नाम के पीछे 'अम्बेडकर' जोड़ ही लिया. गांधी जी और भीमराव जी इस बात पर एकमत नहीं थे.

प्रतुल वशिष्ठ said...

गांधी जी और भीमराव जी इस बात पर एकमत नहीं थे...
हरिजन नाम दिये जाने वाली बात ..

ZEAL said...

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आशुतोष जी ,

विषयांतर कतई नहीं है। नेहरु एक बहुत ही शक्तिशाली व्यक्ति थे जिनके साथ अंग्रेजों की भी ताकत मिली हुई थी , आजादी के बाद गांधी जी का समर्थन मिलने से उनकी तानाशाही काफी बढ़ चुकी थी। आज का भारत नेहरु जी की ही देन है। किसी न किसी को हथियार उठाना ही था इन अनियमितताओं के खिलाफ ।

बड़ी हस्तियों के खिलाफ मुहीम कोई आम आदमी नहीं चलाता। सर पे कफ़न बांधकर ही कोई विरला आगे आता है। गोडसे कोई गरजने वाला बादल नहीं थे ।

उन्होंने गांधी को नहीं मारा था बल्कि उस कारण को समाप्त किया था जिसके आगे सभी लाचार थे और देश के टुकड़े होते हुए देखने को मजबूर थे।

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ZEAL said...

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प्रतुल जी ,

आपने अच्छा किया जो सरल शब्दों में अपने विचार रखे । नेताजी बोस जैसे खुद्दार लोगों को साजिश के साथ मरवा दिया जाता है । नेहरु जी को एक अरब भारतीयों में से एक भी स्त्री ऐसी नहीं मिली जिसे वो अपना दिल दे पाते । जिसने अपने मन मंदिर में ही एक विदेशी को स्थान दे दिया , वो देश के साथ पूरा पूरा न्याय कैसे कर सकता था। अपने गुनाहों को छुपाने के लिए , अपने वतन की कीमत पर अन्य समुदायों के साथ समझौता करना उनकी मजबूरी बन गया था।

गाँधी जी पर तो गोडसे का एहसान है , जिसने उनके उजले व्यक्तित्व पर , भविष्य में लगने वाले अनेंक धब्बों लगने से बचा लिया।

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ZEAL said...

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गाँधी जी पर तो गोडसे का एहसान है , जिसने उनके उजले व्यक्तित्व पर , भविष्य में लगने वाले अनेंक धब्बों से उन्हें बचा लिया।

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Aakshay thakur said...

गांधी के जाने के बाद भी उनकी कायराना गांधीवादी सोच खत्म नही हुयी बल्कि उसी गांधीवादी सोच वाले लोग इस देश की सत्ता पे 55 साल से बैठे है.

और उन्होने इस देश की जनता पर वही कायरना गांधीवाद थोपकर जनता को भी कायर बना दिया है.

और उसी सोच के कारण आज भी ये लोग इस देश के दुश्मनो को नष्ट करने के बजाय पाल पोस कर और ताकत वर बना रहे है. जिसका भयंकर दुष्परिणाम आनेवाले समय मे इस देश को भोगना होगा.

उस एक गांधी ने देश का ये हाल कर दिया था. आज तो हर शाख पे गांधी बैठे है.
तो इस देश का क्या हाल होगा ?

इस का अंदाजा कोई भी लगा सकता है बशर्ते वो गांधीवादी न हो.

प्रतुल वशिष्ठ said...

जिन पर कुछ गहरा रंग चढ़ा हुआ है उनकी समय-समय पर सुरेश चिपलूनकर जी धुलाई करते ही रहते हैं.
"अन्दर बाहर, बाहर अन्दर होता है.
जो दिखता जैसा, वैसा ना होता है."


मोतीलाल जी के पिता का असली नाम ? क्या गियासुद्दीन गाजी था? आओ इसका पता लगाएँ :
http://krishnajnehru.blogspot.com/2005/04/nehru-died-of-tertiary-syphilis-aortic.html
मोतीलाल जी की असली पहचान ??
जवाहर जी की वास्तव में पंडित थे ???
इंदिरा जी ने धर्म बदलकर क्यों शादी की ??
क्या गांधी नाम रखना राजनीती करने भर के लिये है ????
रंग बदलकर आखिर क्या पा लेना चाहते हैं गांधी नाम की प्रसिद्ध बिरादरी?????

एक बिलकुल ताज़ा शेर, अभी-अभी पैदा हुआ :
उम्र होती है नहीं कुछ काई की.
गंध दबती है नहीं सच्चाई की.

प्रतुल वशिष्ठ said...

मै कोशिश करता हूँ कि धीरे-धीरे सभी सियारों के [गांधी और ग़ैर-गांधी सभी तरह के] दर्शन करा दूँ :

कुछ रंगे सियारों का सत्ता में आना.
सर्जरी करा चुपचाप सिंह हो जाना.
यह बात मुझे बिलकुल भी ना पचती है.
देखूँ सियार जाति कब तक बचती है.
मैं आज़ आपको उनकी दुम दिखलाऊँ.
जो दबा-दबा बैठे. . दुम बाहर लाऊँ.
बस तुमको उनका पता लगाना होगा.
दुम देख जीव का नाम बताना होगा.
मैं एक नहीं दो-तीन-चार क्लू दूँगा.
मैं बिना नाम बोले ही सब बोलूँगा.
जब तक जिह्वा पर नाम नहीं आवेगा.
या भेजे में जब तक ना घुस जावेगा.
बस साथ आपका तभी तलक मैं दूँगा.
धीरे-धीरे फिर से परदा कर लूँगा...

प्रतुल वशिष्ठ said...

सुधार :
बस तुमको इतना पता लगाना होगा.
दुम देख जीव का नाम बताना होगा.

...

था एक व्यक्ति सत्ता में गमछाधारी
दाढी वाले बाबा से जिसकी यारी.
दो फाड़ कर दिया स्व-दल फिर भी भारी.
संस्थापक थे वे सूटकेस गिरधारी.
जिसका बिलकुल ना हमको अता-पता है.
चल..लो, आम बात, लगती न कोई खता है.
लेकिन उसमें गुण एक विशेष आता था.
अपनी कुर्सी हर बार बचा जाता था.
घोटालों में कोई साथी फँस जाता.
पर चोर, चोर को चोर नहीं ठहराता.
शेयर घोटाला होवे चाहे चीनी.
लेयर चढ़ती जाती थी झीनी-झीनी.
है समझदार के लिये इशारा काफी.
अब भी बोलोगे नहीं, नहीं है काफी?

प्रतुल वशिष्ठ said...

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धन दोहन ने मेरे मन को है मोहा
ले रहा विदेशी कंपनियों से लोहा.
था एक समय ऐसा भी उसपर आया.
जब देश कोश डॉलर से खाली पाया.
लेकिन पहले जैसी अब बात नहीं है
डॉलर ही डॉलर हैं... स्थान नहीं है.

अब तो सर पगड़ी कंधे पर सोनाया.
इस्तमाल होता फिर भी इठलाया.
है एक मदारिन बन्दर को नचवाया
पैसा जो आया स्विस बैंक भिजवाया.
राजा को जिसने महाराज बनवाया
हैं वो वजीरeआज़म का असली साया.
मैनो हसीना के कहने में आकर
हसन अली पर टैक्स माफ़ करवाया.
मैं जान गया हूँ सभी जानते हैं सब
फिर भी कहता हूँ नहीं मानते हैं लब.

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प्रतुल वशिष्ठ said...

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अब छोटी-छोटी पूछूँ कूट पहेली.
सबसे सुन्दर है कौन करप्ट सहेली.
किसके सर फोड़ी गयी गेम की हांडी.
कौन बेचारा लगता चारा कांडी.
दलित-मसीहा कौन कुँवारी चंडी.
है एक कुँवारा और प्रिंस पाखंडी.
है कौन नाम से नरम करम से कट्टर.
किसके शासन में हुआ कांड मुजफ्फर.

इस तरह बहुत से रंगे पुते हैं दिखते.
थक चुका खोजते उनको लिखते-लिखते.
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प्रतुल वशिष्ठ said...

दिव्या जी,
क्षमा चाहता हूँ कविता स्वभाव नहीं छोड़ पाया.
आपने प्रकाशित किये भाव ...... आभारी हूँ.

ZEAL said...

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प्रतुल जी ,

विचारों को काव्य के माध्यम से रखना एक कठिन कार्य है । इसी बहाने आपकी उत्कृष्ट काव्य रचना का भी आनंद उठाया।

आपने जो clue दिए हैं , उनसे नामों को स्पष्ट तौर पर समझा जा सकता है । आपने बेहतरीन विश्लेषण किया है सत्ता में बैठी महान हस्तियों का , जो अच्छे-अच्छों को नचा रहे हैं अपने इशारों पर।

..

अंकित कुमार पाण्डेय said...

मुझे ये पोस्ट देर से दिखी इसका दुःख है .मिने भी फेसबुक तथा अपने ब्लॉग पर इस विषय पर चर्चा की थी और अक्सर लोगों का तर्क देखने को मिलत अहै की अगर हुतात्मा गोडसे जी सहे हैं तो आतंकवादी भी सही हो सकते हिं ............परन्तु लोग ये क्यूँ नहीं देखते की गोडसे जी ने निर्दोषों को नहीं मारा था अपितु उन्होंने एक आइसे व्यक्ति का वध किया था जिसको मरने क यूनके पास 150 कारण थे |
महात्मा गांधी : अहिंसा का पुजारी या 1919 के हिन्दुओं के नरसंघार का नेतृत्वकर्ता

अंकित कुमार पाण्डेय said...

"यदि अपने राष्ट्र के प्रति भक्ति भाव रखना पाप है तो मैं स्वीकार करता हूँ की वो पाप मैंने किया है और यदि वह पुन्य है तो उससे जनित पुन्य पद पर मेरा नम्र अधिकार है |"
हुतात्मा पंडित नथी राम विनायक गोडसे
Mahatma Gandhe - The priest of nonviolence or Leader of the large massacre of Hindu in 1919

ashish said...

देर से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ . देशभक्त तो मै भी अपने आप को बोलता हूँ लेकिन अँधा देशभक्त नहीं . गोडसे ने जो वक्तव्य दिये कानून के सामने हो सकता है वो उसको कानून से बचने के लिए काफी ना हो लेकिन कई बार कानून सच्चाई से परे जाकर फैसले लेता है . मै नहीं कहता की हत्या को न्यायोचित कहना चाहिए लेकिन गोडसे के दिमाग में उपजे विचार और देश में बन रही परिश्थिति जिसके लिए कही ना कही गाँधी जी भी जिम्मेदार थे को एकदम सिरे से ख़ारिज नहीं किया जा सकता है . जब बटवारा हुआ धर्म के नाम पर तो इसके लिए अनशन , ये बात मुझे आजतक समझ नहीं आयी .

Bharat Swabhiman Dal said...

वास्तव में महात्मा गोडसे ने गांधी जी को न मार कर उस व्यक्ति को मारा था जिसने भारत की जनता को निजी हित के लिए साम्प्रदायिकता की दृष्टि से देखा और अपने कार्यो द्वारा आधुनिक भारतीय राजनीति में विभाजनकारी साम्प्रदायिक तुष्टिकरण के बीज बोये जिसका दुष्परिणाम देश आज तक भुगत रहा हैं । गांधी जी ने तो खिलापत आन्दोलन ( जिसका भारत या भारत के मुसलमानों से कोई सम्बन्ध नहीं था । ) का समर्थन करके पाकिस्तान का आधार तो जिन्ना से भी पहले रख दिया था । आज यदि दिल्ली के लाल किले पर भारत का झंडा लहराता हैं तथा हैदराबाद व कश्मीर भारत में हैं तो इसका श्रेय अखण्ड भारत के अनन्य उपासक , सच्चे समाज सुधारक , यशस्वी पत्रकार , वीर महात्मा नाथूराम गोडसे को हैं जिन्होंने राष्ट्र की रक्षा के लिए गांधी वध करके आत्मबलिदान दे दिया । अधिक जानकारी के लिए www.vishwajeetsingh1008.blogspot.com पर तीन भागों में लिखा गया " अखण्ड भारत के स्वप्नद्रष्टा वीर नाथूराम गोडसे " लेख पढा जा सकता हैं ।

SANDEEP PANWAR said...

जाट देवता की राम राम,
इस देश का दुर्भाग्य ही ज्यादा है,
यहाँ की राजनीति के कारण,
नात्थू राम ने जो किया मेरी नजर में उस समय सबसे ठीक होगा।
बहुत ठीक आज भी है।

SANDEEP PANWAR said...

अपनी कमेन्ट के लिये इंतजार मत कराइये।

सागर नाहर said...

दिव्याजी,
बड़ा खतरनाक विषय चुन लिया आपने। एक जमाने में मैने भी इस तरह की बात की तो गोडसे भक्त से नवाजा गया। आपकी हिम्मत को सलाम करता हूँ।
उपर के कुछ टिप्पणी कर्ताओं से सोच पर गुस्सा नहीं आता, दया आती है। पढ़ लिख लिए बड़ी बड़ी डिग्री हासिल कर ली लेकिन ऊपर अशोभनीय टिप्पणियां कर यह बता दिया कि जो पढ़ा सब बेकार जाया किया।
जिन लोगों को अजमल कसाब और नाथूराम गोड़से में फर्क नजर नहीं आता उनकी सोच कितनी संकुचित है।
आपने जो लिंक दिया वह अंग्रेजी में है, मैं अंग्रेजी नहीं जानता लेकिन इतना जरूर जानता हूँ कि गोड़से जी से बड़े देशभक्‍त तो वे भी नहीं जिनके हम दिन-रात गुणगान गाते फिरते हैं।
दिव्याजी आपको पता है ये तथाकथित गांधीवादी बस नाम के गांधीवादी हैं, गांधीजी अहिंसा- अहिंसा का संदेश देते रहे(?) लेकिन उनके भक्त गांधीजी पर कोई टिप्पणी होते ही फट से तलवारें निकाल लेते हैं।
एक बार फिर से धन्यवाद।

Anonymous said...

Greetings.....

I've no clue what I'm supposed to write here. I'm just a student and that also not of history. So please pardon me If I say something invalid but I'll try my level best to not to commit such mistakes.....

Unknown said...

नमस्कार अगर हिंदी में लिखा होता तो सबको समझ आता धन्यवाद्

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