त्योहार आने के साथ ही अक्सर एक जैसे लेख और कवितायें पढने को मिलते हैं। विविधता समाप्त हो जाती है। और उससे भी बढ़कर हैं टिप्पणियां , कुछ टिप्पणीकार बस एक ही पंक्ति को हर लेख पर जाकर कॉपी -पेस्ट करते रहते हैं।विषय से उन्हें कोई सरोकार नहीं रहता । मैं शिद्दत के साथ लोगों में त्योहार का खुमार उतरने का इंतज़ार करती हूँ।
39 comments:
Diyva jee, You can found something new at http://allindiabloggersassociation.blogspot.com/2011/03/world-sparrow-day.html
Hope you will find something different !
Saleem
सही बात है.
दिव्या जी,
पहले ही साफ़ कर दूं, मैं आपका शुभचिंतक हूं, इसी नाते कुछ सलाह देना चाहता हूं...वैसे आज के ज़माने में बिना मांगे सलाह दिए जाने को मूर्खता समझा जाता है, फिर भी ये गुस्ताखी कर रहा हूं...लेकिन मुझे आपके लेखन में, विचारों में कुछ अलग बात नज़र आती है...इसलिए चाहता हूं उसकी दिशा हमेशा सकारात्मक रहे...हर व्यक्ति इस दुनिया में कभी पूर्ण तौर पर सही नहीं हो सकता...कुछ उसमें खूबियां होती हैं तो कुछ खामियां भी होती हैं...इसे उसी तौर पर लिया जाना चाहिए...लेकिन आपके विचारों से अलग कोई अपनी राय व्यक्त करता है तो उसे भी उतना सम्मान दिया जाना चाहिए जितना अपने विचारों के समर्थन में राय व्यक्त करने वालों को...व्यक्ति और लेखन का विकास तभी हो सकता है जब आप आलोचना को भी उसी रूप में ग्रहण करें, जैसे कि अपनी प्रशंसा को...आप के ही ब्लॉग पर कुछ दिन पहले पोस्ट आई थी संवाद की सार्थकता ज़्यादा है या मौन ही श्रेयस्कर...फिर आपने नाथूराम गोडसे वाली पोस्ट लगाई...उस पर ज़्यादातर ऐसी टिप्पणियों आने लगीं जिसमें आपकी पोस्ट से अलग विचार व्यक्त किए जा रहे थे...होली का दिन था तो कुछ टिप्पणियां होली की बधाई पर आ गई...आपने उस पोस्ट पर कमेंट बॉक्स बंद कर दिया...और ये नई पोस्ट लगाई कि त्योहार की खुमारी उतरने का इंतज़ार करूंगी...साथ ही ये शिकायत भी की कि एक जैसी बधाई, कविता की टिप्पणियां, कट-पेस्ट कर दी जाती हैं, विषय से कोई सरोकार नहीं रहता...इसमें हमसे भी तो ये चूक हो सकती है कि हमने दिन, माहौल, मूड से अलग जाकर किसी गंभीर विषय पर पोस्ट लगा दी...नाथूराम गोडसे बनाम गांधी की बहस इस देश में नई नहीं है...30 जनवरी 1948 से ही चली आ रही है...और इस मुद्दे पर हमेशा राय बंटी रहेगी...इस स्थिति को बदला नहीं जा सकता...आपने पोस्ट लगाकर पहल की तो आपको आलोचनात्मक स्वरों का भी सम्मान करना चाहिए....अन्यथा मत लीजिए, कमेंट बंद कर नई पोस्ट लगाना कम से कम मेरी दृष्टि में सही नहीं था...ऐसी ही स्थितियों के लिए मैंने हरिवंश राय बच्चन की इस पंक्ति को आत्मसात कर रखा है- मन का हो तो अच्छा, न हो तो और भी अच्छा...इस सलाह को आप किस रूप में लेती हैं, मुझे उसका इंतज़ार रहेगा...चाहे तो आप इसे मोडरेट भी कर सकती हैं...मुझे कोई दुख नहीं होगा...
एक बात और...
Respect yourself but never fell in love with you...
जय हिंद...
Sahmat hun aapke saath.Lekin mubarakbaad kee tippaniyan to hongee hee hongee!Jaise Diwali ke samay!
कट-पेस्ट नहीं कॉपी पेस्ट करते हैं।
मैं भी तंग हूं इनसे।
कट-पेस्ट नहीं कॉपी पेस्ट करते हैं।
मैं भी तंग हूं इनसे। ....
जब कोई जाट तंग आ जाये तो .....
कांपी पेस्ट करने वालो की खाट खडी कर देता हे:)
टिपण्णी कर्ता भी बेचारे क्या करें वो जिस भी पोस्ट पे जाता है एक ही मिलते जुलते विषय पे लेख पाता है. वो तो पूरी तरह मजबूर है. जैसे की आप किसी दावत पे जाएँ और सिर्फ एक ही पकवान रसगुल्ला ही पायें और फिर आप से पूछा जाये की कहो भाई दावत कैसी रही? यदि सिर्फ एक दो को बताना हो तो आप कहेंगी की रसगुल्ला थोडा कम मीठा था या बहुत अच्छा था. लेकिन यदि यही अनेकों लोगो को जबाब देना हो तो आप क्या कहेंगी बेशक " दावत अच्छा था "
त्योहारों का असर लेखों एवं टिप्पणियों पर पड़ना लाजिम बात है.
कम शब्दों, कम समय में होली के दिन अधिक से अधिक ब्लोगरों को होली का सन्देश देना मेरे विचार से आलोचना के दायरे में नहीं आना चाहिए. सबके पास नेट पर बैठने का कोटा अलग अलग होता है.
बधाई और शुभकामनाओं में पुनरावृति लाजिम बात है. आप इसे ऐसे देखिये जब कोई किसी अपने अपने सम्बन्धी को फोन पर बधाई देता है, तो वहां भी लगभग वही बात दुहराई जाती है. चूँकि ब्लॉगजगत में हर अगला पिछली टिप्पणियों का रिकार्ड देख सकता है, इसलिए पुनरावृति फील होती है, जो आपको नागवार लगा.
आज बहुत दिनों बाद मैंने फुर्सत में बहुतो नए पुराने ब्लोगरों के दरवाजे तक सन्देश छोड़ पाया. मेरे लिए कारण सिर्फ यही है - कल से पुनः अपने कार्य में व्यस्त हो जाऊँगा. सो आज की तरह खुल कर टिप्पणी नहीं कर पाऊंगा. ब्लॉग पोस्ट तो फीड, रीडर, इमेल इत्यादि माध्यमो से पढना आसान है.
waise kabhi likhaa tha, yahan LINK de raha hun -
COPY PEST KARNA SARAL HAI
AAJ KEE YE POST AAPKE ANYA POSTON KE MUKAABLE BAHUT HALKI AUR BEJAAN HAI.
MUJHE LAGTA HAI IS PAR TIPPANIYA DENA WAQT JAAYA KARNA HAI. PHIR BHEE MAJE KEE BAAT YE HAI MERI TARAF SE 3 TIMES HO GAYE.
AAJ HOLI KE DIN ADVICE DENA WO BHI BADO KO MUJHE SHOBHA NAHI DETA. AAP KAM LIKHIYE ZORDAAR LIKHIYE, JISME BEHATAR SAMAAJ NIRMAAN, RASHTRA NIRMAAN AUR AATM-VISHWAAS BADHAANE SAMBANDHEE BAATEN Ho. YAHI ZEAL BLOG KEE SAARTHAKTA HOGI.
मैं भी खुशदीप सहगल जी के बातों से पूरी तरह सहमत हूँ. विरोधी टिप्पणियो से घबराके पोस्ट का कमेन्ट बॉक्स बंद करने के बजाय हमें अपना भी पक्ष रखना चाहिए. तभी बहस भी सार्थक होगी. यदि कुछ विरोध में हैं तो बहुत लोग आपको समर्थन भी देंगे.
अन्य की टिप्पणियों की प्रकृति को नियंत्रित करना असंभव है. हाँ, इस बात का ध्यान रखा जा सकता है कि पोस्ट के विषय पर ज़रूर कुछ कहें और त्यौहार की शुभकामनाएँ भी दें. अच्छा लगेगा.
Khushdeep ji sahi kah rahe hain, aap unki bato par dhyan de.
STHITI KUCH BHI HO HUMEIN LEKH KE VISHAY KE ANUSSAR HI COMMENT KARNE CHAAHIYE....
AUR COMMENTS KISI BHI HAALAT MEIN NIJI NAHI HONE CHAAHIYE.
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खुशदीप जी एवं मदन शर्मा जी ,
आखिर आप दोनों ने भी ये तोहमत लगा ही दी की मैं असहमतियों को स्वीकार नहीं करती ।
आप दोनों की बात के उत्तर के में मौन ही श्रेयस्कर है । क्यूंकि जब कोई व्यक्तिगत और अभद्र टिपण्णी करता है तब मूक दर्शक बहुत रहते हैं , आप लोगों ने ये नहीं देखा क्यूँ कमेन्ट बंद किये गए थे। अभद्र टिपण्णी मैं भी लिख सकती हूँ लेकिन ऐसा करके मैं अपने और अभद्र टिप्पणीकारों के भेद को मिटाना नहीं चाहती।
आप भी , मैं भी और पढने वाले भी बुद्धिमान हैं । उचित अनुचित का फैसला खुद ही कर लेंगे।
खैर पिछले लेख पर टिपण्णी आप्शन खुला है , आप लोग अपनी असहमति वहां दर्ज कर सकते हैं।
धन्यवाद।
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@- तारकेश्वर गिरी -
-माटी का माधव
-जाहिल
-कमज़ोर
-कामचोर
आप उपरोक्त विशेषणों से मुझे नवाज़ चुके हैं , पहले आप ये सीख लीजिये लीजिये कि टिपण्णी में कैसी भाषा प्रयोग करनी चाहिए और लेखक अथवा लेखिका पर व्यक्तिगत कमेन्ट नहीं करना चाहिए । विषय पर लिखना ही बुद्धिजीवियों कि पहचान है ( चाहे सहमती हो अथवा असहमति)
अब मोडरेशन नहीं है । आप अपनी भड़ास निकालने के लिए स्वतंत्र हैं। आपकी अभद्र टिप्पणियों को पढ़कर आनंद लेने वाले हज़ारों हैं।
आभार।
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भूषण जी ,
बस यही मैं भी कहना चाहती थी , विषय पर कमेन्ट लिखने के बाद ही पर्व की बधाई लिखनी चाहिए । अन्यथा ऐसा लगता है जैसे हाजिरी लगाने के लिए कमेन्ट किया गया है। इससे लेख और विषय के साथ अन्याय होता है।
संजीदा लेखक शुभकामनाओं से ज्यादा 'सार्थक टिप्पणियों ' की अपेक्षा रखते हैं।
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उसी खुमार में टिप्पणी:
आपको एवं आपके परिवार को होली की बहुत मुबारकबाद एवं शुभकामनाएँ.
सादर
समीर लाल
http://udantashtari.blogspot.com/
त्योहारों का खुमार बना रहने दीजिये, एकरसता भी कचोटती है।
दिव्या जी कम से कम किसी ने तो आवाज उठाई। वैसे टिप्पणी के बारे मैं अपनी बात बता दूं कि कभी भी कॉपी पेस्ट नहीं करता और ऐसा संकल्प मन में कर रखा हूं कि चाहे दो चार पोस्ट पर ही टिप्पणी कर सकंू पर बिना पढ़े नहीं करूगा। अभी तो दौर है बिना पढ़े कुछ शब्द सेव कर रखंे है और पेस्ट करते रहने का। बहुत बुरा लगता है। कहीं कहीं तो ऐसी रचनाओं पर नजर पड़ जाती है जिसमें एक आध टिप्पणी रहती है पर रचना स्तरीय होती है तब क्या कहा जाय खैर फिर कभी मैं आपके आवाज के साथ हूं।
दिव्या जी,
शुक्रिया, आपने मेरी बात को सकारात्मक तौर पर लिया...मैंने सिर्फ आपकी नाथूराम गोडसे वाली पोस्ट के संदर्भ में लिखा था और वहां मुझे कोई अभद्र टिप्पणी नहीं दिखी थी...मुझे खुद ऐसी सलाह मिलती रही है कि मैं मॉडरेशन का प्रयोग करा करूं...लेकिन नहीं करता...और अब तक मेरे विश्वास को किसी ने ठेस नहीं पहुंचाई है...हां, आलोचनात्मक टिप्पणियों को मैंने भी हमेशा पूरा मान दिया है...अगर कोई अभद्र भाषा का प्रयोग करता है तो हमारे पास डिलीट का आप्शन तो रहता ही है...और कृपया इसे तोहमत के तौर पर न लें, एक वरिष्ठ साथी के तज़ुर्बे के निचोड़ के रूप में लें...कामना है कि आप आगे भी नए नए विषयों पर लेखनी चलाती रहेंगी और सफलता के ऊंचे से ऊंचे सोपान तय करती रहेंगी...
जय हिंद...
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Tarkeshwar Giri said...
अब क्या कह सकते हैं, आप के अन्दर कमेन्ट छापने कि हिम्मत तो हैं नहीं, में तो आज कि तारीख में आप को दुनिया कि सबसे कामचोर और कमजोर नारी कहना चाहता हूँ.
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खुशदीप जी ,
उपरोक्त टिपण्णी यदि आपको अभद्र नहीं लगी तो शायद हम सबकी परिभाषाएं ही भिन्न हैं 'अभद्रता ' के सन्दर्भ में।
उप्रुक्त टिपण्णी का विषय से दूर-दूर तक सम्बंधित नहीं है तथा लेखिका पर की गयी व्यक्तिगत टिपण्णी है ।
यदि आप समझना चाहेंगे तभी किसी की व्यथा समझ सकते हैं अन्यथा मुझे गलत समझने वालों की संख्या यूँ भी ज्यादा ही है।
कोई गिला नहीं है अब,टिप्पणीकारों से । अभद्र टिप्पणियों का भी स्वागत है।
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I agree with you and that seems to be trend
दिव्या जी, हमारे त्योहारों का मतलब है हंसी ख़ुशी ! एकसाथ मिलजुल कर मनाना--यही तो जिन्दगी के मेले है वरना एक जैसी जिन्दगी जीकर इंसान पागल न हो जाएगा त्यौहार आते ही जिस तरह घर में बाज़ार में रोनके छा जाती है उसी तरह ब्लोक जगत भी इसी जिन्दगी का एक हिस्सा है हर इंसान सामाजिक बन्धनों में बंधा है और त्यौहार इसी समाज का हिस्सा है तो क्यों नही हम भी इस समाज का एक हिस्सा बने --
और जब हंसने हसाने का मोसम हो तो क्यों कोई एक नीरस सब्जेक्ट को पडेगा और टिप्पड़ी करेगा --हा यदि यही पोस्ट २अक्तुम्बर को लिखती तो शायद ढेरो टिप्पणिया आपके ब्लोक की शोभा बनती --
कई बार खरबूजे को देखकर रंग बदलना पड़ता है...
खुशदीप साहेब की बातो से मै भी इतेफाक रखती हु --माडरेसन नही होना चाहिए --अगर कोई गलत टिप्पड़ी करता है तो हमारे पास आब्सन है उसे डिलीट करने का -दुबारा सामने वाला ऐसी हिम्मत नही करेगा --
कोई गलत बात हो गई होतो माफ़ी चाहती हु --
कम शब्दों, कम समय में होली के दिन अधिक से अधिक ब्लोगरों को होली का सन्देश देना मेरे विचार से आलोचना के दायरे में नहीं आना चाहिए. सबके पास नेट पर बैठने का कोटा अलग अलग होता है.बधाई और शुभकामनाओं में पुनरावृति लाजिम बातहै.............................
खेद है की शुलभ जी की टिपण्णी को मैंने कापी करके यहाँ पर पेस्ट कर दिया है और अपना काफी समय बचाया , इसमें बुराई क्या है ?ठीक उसी तरह जैसे "आपको होली की हार्दिक शुभकामनाये "
अर्थात मैं शुलभ जी के विचारों से सौ फीसदी सहमत हूँ ,
आभार.......................
दिव्या जी ,
मुझे शिकायत है आपसे.आपने होली की शुभ कामना कुछ ब्लोगों पर तो की ,परन्तु मुझे बिलकुल भी इस लायक न समझा.यद्धपि आपने मेरी पोस्ट 'बिनु सत्संग बिबेक न होई' पर आकर शानदार टिपण्णी की, जो मेरे लिए किसी भी शुभ कामना से कम नहीं है.फिर भी फोर्मलिटी तो फोर्मलिटी है.कहा गया है
"माना की तकल्लुफ में है तकलीफ सरासर
पर वे लोग भी क्या लोग हैं जो तकल्लुफ नहीं करते."
ये इस बात का जबाब है कि
"जोंक तकल्लुफ में है तकलीफ सरासर
बेहतर हैं वे लोग जो तकल्लुफ नहीं करते"
अब आपका क्या कहना है बताएं?
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राकेश जी ,
आपके ब्लौग पर ये औपचारिकता रह गयी जिसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ। गलती सुधारने के लिए आपके ब्लौग पर आकर ये फोर्मलिटी भी पूरी कर दूँगी ताकि आपको कोई गिला न रहे मन में ।
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दिव्या जी,
मन में कोई गिला न थी.बस तकल्लुफ के तौर पर शिकायत की.फिर भी आपने तकल्लुफ निभाया इसके लिए बहुत बहुत आभार.
मैंने तकल्लुफ के बारे में आपके विचार जानने चाहे थे.
ये सच है की त्यौहार का हैंग ओवर चलता रहता है कई दिनों तक लेकिन इसमें कोई बुराई नहीं है , हा ये जरुर है की टिपण्णी पोस्ट के विषय पर करनी चाहिए , बाद में आप चाहे तो बधाई दे सकते है .
होली पर्व के अवसर पर आपको और आपके परिजनों को मित्रों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई ...
the content of this post is very too the point
on blogs if some one is posting something other than related to festivals we need to restrain in giving good wishes on a post not related to festival
इसका एक प्रमुख कारण है कि आजकल विशेषकर महानगरों में त्यौहार फ्लैट के चहारदीवारी में ही सिमटे रहते हैं, टी वी की भी भूमिका रहती है तथा उस घर के लोग भी एकसाथ मुश्किल से हो पाते हैं इसलिए भाव लेखन में उछल पड़ता है और तब लगता है कि हॉ अब त्यौहार मना. यह तो परिस्थितियों की देन जिसमें व्यक्ति असहाय है। करे तो क्या करे।
पता नही होली पर लड़ने क्यों बैठ गए हम सब..
चलो मेरे पास इतना ज्ञान नहीं है की इस महाभारत में भाग ले सकू..
अगली पोस्ट में शायद मुझे कुछ सिखने लायक मिल जाएगा .........
दिव्या जी नमस्कार. मैंने आप पे किसी भी किस्म का आरोप नहीं लगाया अपितु अपना समझ के उचित सलाह दिया था. यदि आप को ऐसा लगता है तो मैं क्षमा चाहता हूँ. क्यों की हमारा या आप का लक्ष्य है समाज की सत्य बातों का समर्थन करना तथा अनुचित बातों का सकारात्मक विरोध करना. सलाह मानने के लिए आपका धन्यवाद
पोस्ट अच्छी लगी, सही बात कही है आपने
मुझे भी ऐसी खुमारी उतरने का इंतजार रहता है।
बहुत ही अजीब सा लगता है जब कोई ब्लॉगर एक ही टिप्पणी को बिना पोस्ट पढे हर जगह कॉपी-पेस्ट करता रहता है। चलो वो अपना संदेश या शुभकामना देना भी चाहता है तो कम से कम जिस पोस्ट पर टिप्पणी कर रहे हैं, उस विषय पर एक पंक्ति तो लिखनी चाहिये।
पर्वों पर औपचारिक और दिखावटी शुभकामनायें बाँटना मुझे कभी भी प्रिय नहीं रहा।
प्रणाम स्वीकार करें
बहस में जीतने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि वहस की ही न जाय.
धन्यबाद.
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True, but this time I've written something different during 'HOLI' !
@ जिसके पास जो है वही देगा. जरूरी नहीं कि सभी आगुन्तक ... पाठक हों अथवा समीक्षक. अतः अपनी वैचारिक दीवार पर पोस्टर चिपकाने वालों को छूट देना आपकी सहृदयता ही मानी जायेगी.
— एक उपदेशक.
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