पृथ्वी पर आधी आबादी पुरुष है और आधी आबादी स्त्री। दोनों ही प्रकृति की उत्कृष्ट संतानें हैं। दोनों ही इंसान हैं और विवेक तथा अविवेक का पुतला भी। जब तक हम प्रकृति की इन दोनों संतानों का मनोविज्ञान अच्छी तरह नहीं समझ लेंगे , तब तक मतभेद और मनभेद जन्म लेते ही रहेंगे। इसीलिए स्त्री-पुरुष का मनोविज्ञान समझना और उस पर सकारात्माक लिखना अथवा विमर्श द्वारा अनेक भ्रांतियों को दूर करना ही एकमात्र उद्देश्य है।
मेरे एक पाठक ने , एक आलेख पर लिखा की -"स्त्री पुरुष मानसिकता पर लिखना अतिवाद है " ....तो यह स्पष्ट कर दूं , की इस विषय पर मेरे लेख भिन्न-भिन्न पहलुओं पर समय-समय पर आते रहेंगे। और इन आलेखों से बहुत से लोगों को अनसुलझे प्रश्नों के उत्तर मिलते हैं। जिन्हें लोग पत्र लिखकर मुझे सूचित करते हैं। और यही प्रतिक्रियाएं , स्त्री-पुरुष मनोविज्ञान को समझने में मेरी रूचि बढ़ाती है और मैं इन विषयों पर लिखती हूँ।
अब हम बात करते हैं आज के विषय की - "स्त्री , स्त्री की दुश्मन नहीं होती है"
बहुत बार कुछ स्त्रियों के मुंह से ये जुमला सुनने को मिलता है की "स्त्री , स्त्री की दुश्मन होती है" । जब भी यह पढ़ती या सुनती हूँ, मन को बहुत दुःख होता जब यह बात ख़ास तौर पर स्त्रियाँ कहती हैं तो।
स्त्री होने के नाते , स्त्रियों की पहली जिम्मेदारी स्त्रियों के सम्मान की रक्षा करना है। इसलिए महिलाओं को बचना चाहिए ऐसे जुमलों का प्रयोग करने से। ये जुमला ज़रूर किसी विवेकहीन मनुष्य द्वारा बनाया गया है , जो अविवेकियों द्वारा ही यत्र-तत्र प्रयुक्त होता है और स्त्री की छवि को धूमिल करता है। यह तो अपने ही हाथों , अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसी बात हुयी। क्या समझदार महिलाएं ऐसा करेंगी ? आज पढ़ी लिखी सासें अपने अनुभवों द्वारा अपनी बहू की तरक्की में मार्गदर्शन कर रही हैं तो कभी सुशिक्षित बहुएं अपनी साँसों के लिए बेटी के सामन प्रेम करने वाली हैं।
स्त्री , कभी भी स्त्री की दुश्मन नहीं होती। हर किसी का अनुभव अलग हो सकता है , लेकिन मेरे व्यक्तिगत अनुभवों में , मैंने कभी भी किसी स्त्री को अपने से द्वेष रखते हुए नहीं पाया। घर में , अस्पताल में , पड़ोस में और किसी भी प्रकार की विषम परिस्थिति में स्त्री को ही प्रथम अपनी सहायता के लिए तत्पर पाया । जो स्त्रियाँ , किसी स्त्री से द्वेष रखती हैं, वे मात्र अपने अज्ञान के कारण । आज पढ़े लिखे समाज में एक स्त्री , दूसरी स्त्री को बेहतर समझती है। जहाँ अशिक्षा एवं अज्ञान है , वहीँ पर कन्या भ्रूण हत्या अथवा दहेज़ जैसी कुप्रथाओं का प्रचलन है , जिसके लिए उनकी अज्ञानता ही जिम्मेदार है , और ऐसे निर्णय स्त्री अकेले नहीं लेती। बिना पुरुष की सहमती के भ्रूण हत्या या दहेज़ हत्या संभव नहीं है।
यदि स्त्रियाँ चाहती हैं की समाज में उन्हें सम्मान मिले तो सबसे पहले उन्हें ही अपने सम्मान की रक्षा करनी होगी। अतः निवेदन है महिलाओं से की इस प्रकार के जुमलों का प्रयोग करने से बचें , तभी सकारात्मक बदलाव आएगा। अन्यथा अविवेकी मनुष्यों के मस्तिष्क में यह जुमला घर कर जाएगा और उसके साथ ही द्वेष न रखने वाली स्त्रियाँ भी इस निरर्थक जुमले का शिकार बनेंगी ।
अतः द्वेष चाहे स्त्री और पुरुष में हो , अथवा स्त्री एवं स्त्री में हो , अथवा पुरुष और पुरुष में हो , इसके लिए द्वेष रखने वाले मनुष्य की जड़ता और अज्ञानता जिम्मेदार है , उसका gender नहीं ।
स्त्री-शक्ति को नमन।
मेरे एक पाठक ने , एक आलेख पर लिखा की -"स्त्री पुरुष मानसिकता पर लिखना अतिवाद है " ....तो यह स्पष्ट कर दूं , की इस विषय पर मेरे लेख भिन्न-भिन्न पहलुओं पर समय-समय पर आते रहेंगे। और इन आलेखों से बहुत से लोगों को अनसुलझे प्रश्नों के उत्तर मिलते हैं। जिन्हें लोग पत्र लिखकर मुझे सूचित करते हैं। और यही प्रतिक्रियाएं , स्त्री-पुरुष मनोविज्ञान को समझने में मेरी रूचि बढ़ाती है और मैं इन विषयों पर लिखती हूँ।
अब हम बात करते हैं आज के विषय की - "स्त्री , स्त्री की दुश्मन नहीं होती है"
बहुत बार कुछ स्त्रियों के मुंह से ये जुमला सुनने को मिलता है की "स्त्री , स्त्री की दुश्मन होती है" । जब भी यह पढ़ती या सुनती हूँ, मन को बहुत दुःख होता जब यह बात ख़ास तौर पर स्त्रियाँ कहती हैं तो।
स्त्री होने के नाते , स्त्रियों की पहली जिम्मेदारी स्त्रियों के सम्मान की रक्षा करना है। इसलिए महिलाओं को बचना चाहिए ऐसे जुमलों का प्रयोग करने से। ये जुमला ज़रूर किसी विवेकहीन मनुष्य द्वारा बनाया गया है , जो अविवेकियों द्वारा ही यत्र-तत्र प्रयुक्त होता है और स्त्री की छवि को धूमिल करता है। यह तो अपने ही हाथों , अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसी बात हुयी। क्या समझदार महिलाएं ऐसा करेंगी ? आज पढ़ी लिखी सासें अपने अनुभवों द्वारा अपनी बहू की तरक्की में मार्गदर्शन कर रही हैं तो कभी सुशिक्षित बहुएं अपनी साँसों के लिए बेटी के सामन प्रेम करने वाली हैं।
स्त्री , कभी भी स्त्री की दुश्मन नहीं होती। हर किसी का अनुभव अलग हो सकता है , लेकिन मेरे व्यक्तिगत अनुभवों में , मैंने कभी भी किसी स्त्री को अपने से द्वेष रखते हुए नहीं पाया। घर में , अस्पताल में , पड़ोस में और किसी भी प्रकार की विषम परिस्थिति में स्त्री को ही प्रथम अपनी सहायता के लिए तत्पर पाया । जो स्त्रियाँ , किसी स्त्री से द्वेष रखती हैं, वे मात्र अपने अज्ञान के कारण । आज पढ़े लिखे समाज में एक स्त्री , दूसरी स्त्री को बेहतर समझती है। जहाँ अशिक्षा एवं अज्ञान है , वहीँ पर कन्या भ्रूण हत्या अथवा दहेज़ जैसी कुप्रथाओं का प्रचलन है , जिसके लिए उनकी अज्ञानता ही जिम्मेदार है , और ऐसे निर्णय स्त्री अकेले नहीं लेती। बिना पुरुष की सहमती के भ्रूण हत्या या दहेज़ हत्या संभव नहीं है।
यदि स्त्रियाँ चाहती हैं की समाज में उन्हें सम्मान मिले तो सबसे पहले उन्हें ही अपने सम्मान की रक्षा करनी होगी। अतः निवेदन है महिलाओं से की इस प्रकार के जुमलों का प्रयोग करने से बचें , तभी सकारात्मक बदलाव आएगा। अन्यथा अविवेकी मनुष्यों के मस्तिष्क में यह जुमला घर कर जाएगा और उसके साथ ही द्वेष न रखने वाली स्त्रियाँ भी इस निरर्थक जुमले का शिकार बनेंगी ।
अतः द्वेष चाहे स्त्री और पुरुष में हो , अथवा स्त्री एवं स्त्री में हो , अथवा पुरुष और पुरुष में हो , इसके लिए द्वेष रखने वाले मनुष्य की जड़ता और अज्ञानता जिम्मेदार है , उसका gender नहीं ।
स्त्री-शक्ति को नमन।
.
30 comments:
दिव्या जी .
आपने सच कहा है अपने लेख में .....कोई भी पढ़ी लिखी संस्कारी नारी , दूसरी नारियों से दुश्मनी क्यों रक्खेगी ?
बात अज्ञान और अशिक्षा की , शायद यही कारण हो ....सास और बहू , ननद और भाभी , जेठानी और देवरानी
जैसे संबंधों के बीच गहरे मतभेदों का ....कहीं कहीं |
दिव्या जी नमस्कार,
आपने कहा कि एक स्त्री दूसरी स्त्री की दुश्मन नहीं होती, लेकिन अपने भारत में तो हजारों मुकदमे इस से जुडे हुए है,
जैसा आपने कहा, दहेज के केस तो आप तो जानती ही है, दहेज/घरेलू हिंसा के केस में असली दुश्मन सास व बहु ही होती है, बाकि को कोई फ़र्क नहीं पडता है,
दिव्या दी..
आज तो अपने लेख में आप खुद ही फंसती नजर आ रही हैं। दोनों बाते आप ही कह रही हैं। स्त्री को स्त्री का दुश्मन बताने वाले पुरुषों के बारे में आपने लेख में ही ऐसी प्रतिक्रिया दी है, कि इस बारे में कुछ कहने की हिम्मत ही नहीं हो रही है। आपने ही लिखा है....
जो स्त्रियाँ , किसी स्त्री से द्वेष रखती हैं, वे मात्र अपने अज्ञान के कारण । आज पढ़े लिखे समाज में एक स्त्री , दूसरी स्त्री को बेहतर समझती है। जहाँ अशिक्षा एवं अज्ञान है , वहीँ पर कन्या भ्रूण हत्या अथवा दहेज़ जैसी कुप्रथाओं का प्रचलन है , जिसके लिए उनकी अज्ञानता ही जिम्मेदार है। ...
बात आपकी बिल्कुल सही है, बात स्त्री या पुरुष की नहीं, बात सामाजिक सोच की है,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
एक सार्थक आलेख के लिये दिव्या जी को बधाई।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
अपने ब्लॉग से हमारी वाणी को साइड में लगाइए न!
ऐसा लगता है जेसे व्लॉग का नाम ही हमारी वाणी है!
लेकिन लड़के की चाह में लड़कियों को दुश्मन मान लेना न जाने कितनी महिलाओं को देखा है, उम्रदराज और अनुभवी महिलाओं को.
दिव्या जी, इस पोस्ट के विषय में इतना ही कहना चाहूँगा कि अधिकांश मामलों में स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है और पुरुष पुरुष का. opposite sex के प्रति तो प्रायः आकर्षण ही होता है.
एक सार्थक व रचनात्मक पोस्ट के लिए आभार !
दिव्या जी नमस्ते ! क्षमा कीजिएगा शायद मै पहली बार आपके विचारों से सहमत नहीं हूँ | यह मेरे अनुभव की बात है शायद आपने ऐसा अनुभव न किया हो | हर व्यक्ति का अनुभव उसके देश, काल तथा परिवेश पर निर्भर होता है | एक दुसरे के बीच मतों का अंतर होने का मतलब ये नहीं है की उनके बीच इर्ष्या भी हो | इसके लिए लड़की के मायके तथा ससुराल का उदाहरण ही काफी है | आपने बहुत कम लड़कियों को विवाह के बाद आगे की शिक्षा ग्रहण करते देखा होगा | विशेष रूप से इसकी विरोधी अधिकतर सास ही होती है | बहुत ही कम लड़कियां ऐसी सौभाग्य शाली होंगी जिन्हें विवाह बाद ऐसा अवसर मिला हो !
व्यक्ति के दोषों के लिये पूरे वर्ग को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।
Aap se pooree tarah sahmat hun.....agyan,ashiksha,in karanon se kayee baar aisa prateet zaroor hota hai,ki,stree stree kee dushman hai...
दोनों ही बातें हैं. कोई भी एक बात पूर्ण सत्य नहीं है. मैं दोनों ही प्रकार के सत्य अनुभवों से गुज़रा हूँ. मात्र अशिक्षा ही नहीं हमारी सोच भी दोषी है मैं यहाँ एक परिवार को जानता हूँ...महिला उच्च शिक्षिता है ....अध्यापन करती है ....पर खाने-पीने से लेकर पढाई-लिखाई तक के मामले में घर की लड़कियों से पक्षपात करती है, उस घर में लड़कों को जो स्थान प्राप्त है वह लड़कियाँ तो अपने लिए सोच भी नहीं सकतीं. यदि शिक्षा में पक्षपात है तो निश्चित ही यह लड़की के प्रति द्वेषपूर्ण भाव है ...मैं इसे लड़की के प्रति दुश्मनी का ही भाव मानता हूँ. ऐसे परिवार आज भी काफी संख्या में हैं. ऐसे भी परिवारों को देखा है जहाँ लड़कियों को बड़े ही आदर और लाड़-प्यार के साथ पाला जाता है ....पर ऐसे कम परिवार ही देखे हैं. असल में स्वयं दिव्या की दृष्टि में कोई स्त्री/ लड़की दुश्मन नहीं है इसलिए उन्हें लगता है कि सब स्त्रियाँ ऐसी ही हैं. चलो अच्छा है दिव्या की बहू सौभाग्यशालिनी होगी ऐसी सास पाकर. बहू को अग्रिम बधायी....मतलब यह कि सास हो तो दिव्या जैसी वरना मत हो .
नारी शक्ति को नमन...और जो लोग इसे झेल रहे हैं...उन्हें भी नमन...पुरुष जितना नारी का सम्मान करता है...मुझे शक है की नारी उतना कर पायेगी...
द्वेष रखना व्यक्तिगत है.स्त्री हो या पुरुष.कोई भी किसी से भी रख सकता है.
.
मेरा विवाह २१ वर्ष की आयु में मेडिकल के तृतीय वर्ष की पढाई के दौरान हुआ था। आगे की higher studies , विवाह के उपरान्त ही संपन्न हुई। इसमें पहला सहयोग मेरे पति का था। कहा भी गया है ...हो मियां बीबी राजी तो क्या करेगा काजी ? यदि मुझे सहयोग नहीं भी मिलता तो भी सब कुछ मुझ पर ही निर्भर करता है । पढाई बीच में तो छोड़ नहीं सकती थी। विरोध के बावजूद भी पढ़ती ही। यहाँ बहू की स्वयं की इच्छा शक्ति भी शामिल है।
जो कमज़ोर इच्छा शक्ति वाले होते हैं , वे ही दूसरों को दोष देते हैं । अन्यथा आगे बढ़ना तो स्त्री के स्वयं के हाथ में ही है। मार्ग से विघ्न- बाधाओं को हटाते चलें और अपना मार्ग प्रशस्त करें। सास को दोष देने से क्या लाभ।
वैसे बात बात पर सास-बहू को क्यूँ दोष दें । यदि ससुर दामाद को महिना भर साथ रख दिया जाए तो शायद दिन में भी तारे नज़र आ जायेंगे। उसी दिन समझ आ जाएगा पुरुषों में आपस में कितनी एकता है।
.
.
इस आलेख में लीक से हटकर एक नयी सकात्मक सोच पर बल दिया गया है। कोशिश कीजिये उस तरफ भी ध्यान देने की । इस आलेख में विशेषकर महिलाओं से अपील की गयी है की इस नकारात्मक जुमले का प्रयोग करके 'स्त्री-स्वाभिमान' को स्वयं ही ठेस मत पहुंचिए।
यदि संभव हो तो इस सन्देश पर ध्यान दें।
.
हर माँ एक लड़की होती है,लेकिन वह लड़का ही चाहती है। हमारी सामाजिक सोच आज भी रुढ़िवादी है। नई सोच...जिसमें वैज्ञानिकता हो, का आज भी सर्वथा अभाव दिखाई देता है। आज लोग साक्षर जरुर हैं,पर शिक्षित नहीं। जो लोग स्वयं को शिक्षित कहते हैं,उनमें भी शिक्षा जैसा कोई गुण नहीं दिखाई देता। शिक्षा का अर्थ है:जो भीतर है,उसे बाहर निकालना अर्थात विवेक-बुद्धि का इस्तेमाल करना। इस परिभाषा के अनुसार एक अनपढ़ व्यक्ति भी शिक्षित हो सकता है,जो अपने विवेकानुसार कार्य करता है और एक तथाकथित शिक्षित व्यक्ति भी अनपढ़ हो सकता है,यदि उसमें विवेकबुद्धि अनुसार कार्य करने की क्षमता न हो। समाज में व्याप्त अनेक बुराइयों की जड़ यही है कि व्यक्ति अपने विवेक-सम्मत कार्य नहीं करता। फिर समाज में व्याप्त धारणाएँ ऐसे लोगों को प्रिय लगने लगती हैं,जो विवेकानुसार कार्य नहीं करते। किसी विद्वान ने कहा है कि गुस्से में हो,तो कभी न लिखो...क्योंकि गुस्से में विवेक साथ नहीं रहता। अब आता हूँ अपने शुरु के कथन पर। स्त्री यदि स्त्री का सम्मान करे तो वह कभी पुत्र की चाह न करे, बल्कि नियति में जो हो उसे स्वीकार करे। बहुत गहरे में हमारी धारणाएँ सामाजिक रुढ़ियों से जुड़ी हैं। इन्हें तभी तोड़ा जा सकता है...जब व्यक्ति-व्यक्ति की सोच वैज्ञानिक आधार पर हो और व्यक्ति अपने स्व-विवेक से कार्य करे।
वस्तुत: न कोई किसी का दोस्त होता है और न ही दुश्मन। यह उसकी सोच ही है जो उसे किसी का दोस्त और किसी का दुश्मन बना देती है। हमारी सोच का जो केंद्र-बिंदु होता है, हम वैसे ही बन जाते हैं।
जिंदगी में हमारी सजगता कहाँ है, हमारे विश्वास किस प्रकार के हैं या किस परिवेश की देन हैं, हम क्या चुनते हैं ...इन सब बातों से ही हमारा नजरिया बनता है...जो हमें किसी का दोस्त या किसी का दुश्मन बना देता है।
अंतत: इतना कहूँगा कि स्वविवेक से जीने वाला व्यक्ति स्थितप्रज्ञ को प्राप्त होता है...जहाँ सब भेद मिट जाते हैं और व्यक्ति अपने स्वभाव के अनुसार मैत्री भाव से जीने लगता है।
@ द्वेष चाहे स्त्री और पुरुष में हो , अथवा स्त्री एवं स्त्री में हो , अथवा पुरुष और पुरुष में हो , इसके लिए द्वेष रखने वाले मनुष्य की जड़ता और अज्ञानता जिम्मेदार है , उसका gender नहीं ।
सब बातों की जड़ और लाख टके की बात यही है।
पिछली टिप्पणी में “जड़” को निचोड़” पढ़ा जाए।
व्यक्तिगत अनुभव और अधिकता में फर्क होता है न .... पर इस सच का होना दुखद है !
@ इस आलेख में विशेषकर महिलाओं से अपील की गयी है की इस नकारात्मक जुमले का प्रयोग करके ‘स्त्री-स्वाभिमान‘ को स्वयं ही ठेस मत पहुंचाइए।
आपकी इस सद्भावनापूर्ण अपील का मैं समर्थन करता हूं।
अतः द्वेष चाहे स्त्री और पुरुष में हो , अथवा स्त्री एवं स्त्री में हो , अथवा पुरुष और पुरुष में हो , इसके लिए द्वेष रखने वाले मनुष्य की जड़ता और अज्ञानता जिम्मेदार है , उसका gender नहीं ।
-इसके बाद तो कुछ भी कहने को शेष नहीं रह जाता है.
मनोज जी नें जड़ निकाल के जो निचोड़ प्रस्तुत किया है मैं उससे सहमत हूँ। वही लाख टके की बात है।
आज का लेख आदर्शवादी सोच की देन है जबरन सकारात्मक दिशा लिये है. होना तो ऐसा ही चाहिए लेकिन वास्तविकता और स्त्री-मनोविज्ञान की दृष्टि से शीर्षक से ठीक उलट बात सही है.
लाखों उदाहरण मिल जायेंगे और अपने आस-पास एग्जिट पोल करवाकर देखेंगे तो भी आज का लेख शीर्षक शीर्षासन करता नज़र आयेगा.
विचारणीय पोस्ट आभार
‘स्त्री , स्त्री की दुश्मन नहीं होती है’
सास-बहू को देख लीजिए, ननंद-भावज को देख लीजिए या फिर पत्नी और वो देख लीजिए :)
आप क्यो मेरा इम्तिहान ले रही हे...? चलिये एक बहुत छोटा सा प्रयोग करे.. अपनी किसी भी जान पहचान की दो नारियो को ढुढें, यानि आप तीनो एक दुसरे को जानती हो अब एक नारी के सामने दुसरी की थोडी ज्यादा तारीफ़ कर दे, रजल्ट दो चार दिन तक मिल जायेगा:)
वैसे पुरुषो मे भी यह बिमारी मिलती हे, लेकिन उन्हे डर भी होता हे कि कही दांत ना टूट जाये... बात आगे निकलने पर.
i liked the post content and if all woman understand that they are conditioned by the norms of society to stand against each other they will learn to be friends of each other
आपने तो बहुत गजब का प्रश्न उठा दिया है मै आप से वादा करती हूँ की मैं न तो ऐसे जुमलों का कभी खुद प्रयोग करुँगी और न ही सुनूंगी
.
रेखा जी ,
नत मस्तक हूँ आपकी प्रतिज्ञा के आगे । यही जज्बा देखना चाहती हूँ हर स्त्री में ।
.
Post a Comment