Saturday, September 1, 2012

बैसाखी तलाशते सपने

गाँव में पढ़ी-लिखी बोधिया शिक्षा क्षेत्र में बहुत आगे जा चुकी थी ! उसकी ज़हीनियत का लोहा सभी मानते थे ! लेकिन अफ़सोस की वो एक लड़की थी , बहुत आगे तक जाना उसके हाथ में नहीं था , धन और सुरक्षा दोनों के लिए दूसरों पर निर्भर थी ! जो उसकी मदद करना चाहता वह पहले बोधिया से बहुत कुछ पा जाने की अपेक्षा रखता था ! बोधिया को ये उम्मीद थी की कभी तो , कोई तो निस्वार्थ होकर उसकी काबिलियत को पहचानकर उसके सपनों को पूरा करेगा ! लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ ! धीरे धीरे बोधिया ने प्रकृति के इस नियम को जान लिया की कोई भी इतना महान नहीं होता की किसी दुसरे की खातिर अपने सपनों की तिलांजलि देकर किसी और के सपने जिये! साथ में पढ़ा और बड़ा हुआ गोपाल बोधिया से प्रेम करता था! उससे वादा करता था की वो उसके सपनों को पूरा करेगा ! समय-समय पर बोधिया को बताता था की उसे याद है की उसे बोधिया के सपनों को पूरा करना है ! थोड़े समय तक तो बोधिया , गोपाल के दिखाए सपनों में अपने खयाली पुलाव पकाती रही , लेकिन जब उसे ये एहसास हो गया की गोपाल सिर्फ बातें करता है , शायद मन से सोचता भी अच्छा है , लेकिन करेगा कुछ नहीं क्योंकि समय बहुत तेज़ रफ़्तार से बीत रहा था और कुछ बड़ा करने के लिए ज़िन्दगी का हर एक पल कीमती होता है ! बोधिया अपनी आयु को निरंतर छोटा होते हुए देख रही थी, उसके साथ ही उसके सपने भी अपना आकार कम रहे थे ! उसने अपनी किसमत स्वीकार कर ली थी !

समय के साथ गोपाल बहुत ऊपर चला गया था ! अपने सपनों को पूरा करने में दिलो जान से लगा हुआ था ! अपने स्वास्थ्य की परवाह किये बगैर वो दिन-रात एक करके अपने काम में लगा रहता था ! उसके बहुत से दोस्त थे , बड़े-बड़े परिचय थे ! रसूख वालों के साथ उठाना-बैठना था उसका ! जी-तोड़ मेहनत के बाद जब भी उसे प्रेम की ज़रुरत होती वो बोधिया से बात कर लेता था ! अपनी मेहनत , योजनायें , उपलब्धियां सभी कुछ बोधिया को बताता था ! बोधिया चुप-चाप सुनती थी ! उसकी ख़ुशी में शामिल रहती थी ! और जब गोपाल, बोधिया की चुप्पी से असहज हो उठता तो अचानक से बोल उठता - " मैं तुम्हारे सारे सपने ज़रूर पूरा करूंगा बोधिया , बस एक बार मुझे सक्षम, हो जाने दो "

बोधिया बुद्धिमान थी , स्त्री और पुरुष का फर्क जानती थी ! उसे पता था स्त्री को ऊपर उठाना है तो उसे किसी का सहारा नहीं तलाशना होगा ! जितनी हिम्मत, ताकत, और बुद्दी होगी , स्त्री उतना ही ऊपर जायेगी ! बैसाखियाँ उसे ऊपर नहीं ले जा सकेंगी , उलटे उसे कमज़ोर ही करेंगी!

आज बोधिया का विवाह हो चुका है , वह अपने पति मनसुख के साथ एक सामान्य-खुशहाल जीवन जी रही है ! अपने सपनों की उड़ान को विराम दे चुकी है ! कल्पनाओं का दायरा बहुत छोटा कर चुकी है ! महत्वाकांक्षाओं को मारकर बहुत सी समस्याओं का हल ढूंढ चुकी है ! घर-गृहस्थी में फंसी बोधिया अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में सब कुछ भूल चुकी है !

गोपाल उसका दोस्त है ! अब भी उससे मिलने पर अपनी समस्याएं, योजनायें और उपलब्धियों की चर्चा करता है ! बोधिया निर्विकार , चुप-चाप सुनती है ! बोधिया को बहुत देर से चुप पाकर वो असहज होकर कह उठता है -- "मैं तुम्हारे सपने पूरा करूंगा बोधिया , बस एक बार मुझे सक्षम हो जाने दो "

बोधिया मन ही मन सोचने लगती है...

Zeal

11 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

वर्तमान की बूँद, भविष्य के सागर से बड़ी होती है..

Unknown said...

भगवान् के साथ-साथ सब उसी की सहायता को आगे आते है जो अपनी सहायता स्वयं करते है , यही सास्वत नियम है

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

आदरणीया दिव्या जी जय श्री राधे ...अक्सर ऐसा होता है लेकिन बोधिया जैसे ही लोगों को जाग कर ...सपने अपने सीमित कर खुद को एक मुकाम पर ले जाना चाहिए बहुत सी बैशाखियाँ धोखा दे जाती हैं ...सुन्दर कहानी शिक्षाप्रद
भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण

महेन्‍द्र वर्मा said...

बैशाखियों का सहारा लिए बगैर जीना सीख लेना ही जीना है।
संदेशपरक कहानी।

Sheshnath Prasad said...

डॉ दिव्या, क्या आपलोगों को सम्यक आसोचना से परहेज है? आपके पिछले ब्लॉग पर मैंने जो टिप्पणी लिखी 'हमारी वाणी ने' उसे प्रकाशित नहीं किया. हिंदी ब्लॉगरों की कमजोरियाँ किस प्रकार उन्हीं के ब्लॉगों में झलकती हैं, यही उसमें मैंने उजागर किया है.
अगर 'हमारी वाणी एग्रीगेटर' को यह पसंद नहीं है तो फिर इस एग्रीगेटर के सदस्य होने से मेरा क्या फायदा ? आपलोग मेरे ब्लॉग को भी न तो पढ़ते हैं न कोई टिप्पणी करते हैं.

पूरण खण्डेलवाल said...

एक कहानी के माध्यम से बहुत अच्छा कहा है आपने लेकिन बोधिया को निराशा में ही छोड़ दिया !!

ZEAL said...

शेषनाथ जी , मुझे तो सम्यक चर्चा से कोई परहेज़ नहीं है ! कोशिश रहती है हर सम-सामयिक विषय पर चर्चा रख सकूं !

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

बहुत ख़ूब!

एक लम्बे अंतराल के बाद कृपया इसे भी देखें-

जमाने के नख़रे उठाया करो

Bharat Bhushan said...

बोधिया की पीड़ा समझ में आती है.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

ऐसे ही स्त्रियॉं के सपने दफन हो जाते हैं .... विचारणीय कहानी

Asha Lata Saxena said...

जो बैसाखी का सहारा लेता है वह अपनी चाल
भूल जाता है |
बढ़िया शिक्षाप्रद कहानी |
आशा