स्त्री एवं पुरुष जीवन में एक दुसरे के पूरक हैं । रथ के दोनों पहियों के परस्पर समन्वय से ही जीवन रुपी रथ मंथर गति से , अनेक विघ्न बाधाओं कों पार करते हुए आगे बढ़ता रहता है। एक समझदार स्त्री एवं पुरुष एक दुसरे कों अच्छी प्रकार समझते हैं और एक दुसरे के प्रति सहयोग कि भावना रखते हैं।
बचपन से बड़े होने तक हम अपनी माँ और पिता कि छत्रछाया में बढ़ते हैं। वो भी तो एक स्त्री और एक पुरुष हैं ।उन दोनों कों परस्पर एक दुसरे का सहयोग और सम्मान करते हुए देखते हैं तभी अपने छोटे से परिवार कि पूर्णता दिखती है । माता और पिता कों हम बराबर प्यार और सम्मान देते हैं। दोनों में से कोई भी हमें किसी से कमतर नहीं लगता । लेकिन अफ़सोस जब हम बड़े होते हैं तो क्यूँ हम स्त्री और पुरुष एक दुसरे से अलग देखते हैं । क्यूँ हम स्त्रियों की समाज में कमज़ोर स्थिति के लिए पुरुषों कों जिम्मेदार ठहराने लगते हैं।
मुझे लगता है स्त्रियाँ अपनी स्थिति के लिए स्वयं ही जिम्मेदार हैं। माना कि समाज का ढांचा सदियों से कुछ इस प्रकार का रहा है कि स्त्री के हिस्से में घरेलू काम और पुरुष के हिस्से में धनोपार्जन आता है । लेकिन यदि कोई महिला कार्यों के इस आबंटन से संतुष्ट नहीं है तो उसे बिना अपने पति कों दोष दिए ही अपनी रूचि के अनुसार नौकरी करनी चाहिए । अच्छी नौकरी , जिसमें पैसा और इज्ज़त दोनों ज्यादा हो , उसके लिए स्वयं कों बेहतर शिक्षित भी करना होगा ।
इसके लिए स्त्री कों स्वयं ही सोचना होगा । स्कूलों और विद्यालयों में लड़का लड़की का कोई भेद नहीं है । माता पिता भी बेटे और बेटी कों समान शिक्षा का अवसर देते है । विवाह के बाद पति भी अपनी पत्नी कों बढ़ते हुए देखना चाहता है । अपनी पत्नी कि तरक्की और ख़ुशी में पति भी गौरवान्वित महसूस करता है । वो पत्नी के ऊपर घरेलू कार्यों के बोझ कों कम करने के लिए उसका हाथ बंटाने में सहयोग करता है । और पत्नी भी पति के जिम्मे कुछ कार्यों कों अपने ऊपर ले लेती है । इस प्रकार काम के बोझ और काम कि प्रकृति दोनों कों समान रूप से मिलती जाती है । दोनों कों एक दूसरे से कोई शिकायत नहीं रहती । मन में कोई अवसाद और क्लेश नहीं रहता और जीवन मधुर और सुखमय होता है ।
जो महिलाएं आज उच्च पदस्थ हैं , देश का नाम रौशन कर रही हैं , वो भी हमारी तरह स्त्रियाँ हैं। वे तो पुरुष प्रधान सत्ता कों दोष नहीं देतीं । क्यूंकि उन्होंने शिकायत करने जैसी महामारी से स्वयं कों बचा कर रखा में और अपनी सकारात्मक ऊर्जा कों अपने ही विकास में लगाया और सक्षम होने के बाद अपना योगदान समाजोपयोगी रूप में कर रहीं हैं। वो कुंठित नहीं हैं। कुंठा मन में तब आती है जब हम स्वयं कों असक्षम पाते हैं तब। हमारी कमतरी के लिए पुरुष जिम्मेदार नहीं हैं। हमें प्रेरणा लेनी चाहिए समाज में जिन स्त्रियों ने अपना स्थान बनाया है , अपनी पहचान बनायी है ।
जो स्त्रियाँ कुछ करना चाहती हैं , समाज में स्थान चाहती हैं वो स्वयं ही विकट से विकट परिस्थिति में भी बेहतर विकल्प ढूंढ लेती हैं। सर्वप्रथम तो स्वयं कों शिक्षित करती हैं फिर नौकरी करके या फिर बच्चों कों पढ़ाकर या फिर पत्र पत्रिकाओं में लेख लिखकर समाज में एक जागरूकता लाने का सार्थक कार्य कर सकती हैं। सकारात्मक कार्य करने वाली एक स्त्री अनावश्यक रूप से शिकायती नहीं होती । प्रसन्नचित्त रहती है ।
लेकिन कुछ स्त्रियाँ के पास समय प्रचुर मात्रा में होता है । पति अच्छा कमा रहा है तो उनके पास नौकर होने कि अवस्था में कुछ ख़ास कार्य शेष नहीं रह जाता । खाली दिमाग शैतान का घर । दिन भर समय नष्ट करना फालतू टीवी सेरियाल्स देखना , जिसमें कुछ भी सकारात्मक देखने कों नहीं मिलता । फिर बचे हुए समय में अनावश्यक करना और समय नहीं कटता इसलिए किटी-पार्टीज़ जैसे विकल्प कों अपनाती हैं। रोजाना कि इसी दिनचर्या से उनके दिमाग कों घुन लग जाता है । थोड़ा ऊपर उठकर सोचने कि शक्ति का उनका ह्रास हो जाता है ।यही बहुमूल्य समय वो अपनी मानसिक गुणवत्ता बढ़ाने में कर सकती हैं । शिक्षा के प्रचार प्रसार में सहयोग कर सकती है । पत्र -पत्रिकाओं , जर्नल्स , periodicals तथा समाचारों द्वारा खुद कों अपडेट रख सकती है । जितनी ज्यादा ज्ञान होगा उतना ज्यादा योगदान होगा उसका समाज और परिवार के लिए , खासकर उसके अपने बच्चों की बेहतर परवरिश में।
यदि हम समाज के गरीब वर्ग कि बात करें तो वो एक मेहनतकश जीवन गुजारती हैं , घर के काम के साथ साथ वो मेहनत मजदूरी कर आर्थिक रूप से अपने पति का सहयोग करती हैं।
मिडिल क्लास कि बात करें तो वो भी यथासंभव अपनी योग्यतानुसार नौकरी करती हैं । पति का सहयोग करती हैं और कुंठित नहीं रहतीं ।
एक वर्ग ऐसा है जहाँ पति ज़रुरत से ज्यादा कमा रहा है । पत्नी के पास हर सुविधा और ऐशो आराम है । घरेलू कामों के लिए नौकर भी हैं। ये ही महिलाएं अक्सर आराम तलब बन जाती हैं । अपनी शैक्षणिक योग्यता कों ताख पर रख , अनावश्यक gossip , आदि में बहुमूल्य समय नष्ट करते हुए अपना जीवन व्यर्थ गुज़ार देती हैं।
स्त्रियों कों प्रेरणा लेने चाहिए समाज कि उन महिलाओं से जो समाज में विभिन्न संस्थानों में कार्यरत हो, पुरुषों के कंधे से कंधा मिला कर चल रही हैं । हमें प्रेरणा लेनी चाहिए मध्यम वर्ग कि मेहनतकश महिलाओं से जो बिना किसी कुंठा के , सकारात्मक सृजन में अनवरत लगी हुई हैं। प्रेरणा उन मजदूर वर्ग कि महिलाओं से , जिनकी लगन ये सन्देश देती है कि - जीवन एक संघर्ष है , मुस्कुरा कर जियो , शिकायतों का कोई स्थान नहीं है ।
अधिकाँश पुरुष अपने समय कों व्यर्थ नहीं करते । हमें पुरुषों से भी प्रेरणा लेनी चाहिए कि कैसे वो अपने जीवन कों नियंत्रित करते हैं , और प्रसन्नचित्त रहते हैं । यदि समाज में उनकी स्थिति ज्यादा सुदृढ़ है तो हम महिलाओं कों उनसे सीखना होगा कि वे हमसे ज्यादा सशक्त क्यूँ और कैसे हैं । एक बार यदि हम कोशिश करेंगे तो खुद कों बेहतर बनाकर समाज में अपना स्थान बनाकर कुंठा से दूर रह सकेंगे।
यहाँ मेरे आस पास के परिवेश में जितनी भी महिलाएं हैं वो सभी उच्च शिक्षित हैं । समय इफरात है , इसलिए किटी पार्टीज़ जैसे विकल्प से स्वयं कों व्यस्त रखती हैं। मुझसे कहा शामिल होने के लिए , और जब मैंने इनकार किया तो मुझ पर बहुत ही unsocial , असामाजिक होने का टैग लगा दिया । मैं खुश हूँ इस टैग से , कम से कम मैं जो करना चाहती हूँ वो कर तो पा रही हूँ।
जब मैं भारत वापस आउंगी तो मेडिकल प्रैक्टिस करुँगी लेकिन जब तक यहाँ हूँ , तब तक ब्लोग्स के माध्यम से स्वास्थ्य एवं सामाजिक विषयों पर लिखकर समाज के लिए योगदान जारी रहेगा । हम अपने बच्चों के सामने भगत सिंह , डॉ कलाम , कल्पना चावला और किरण बेदी जैसे व्यक्तित्वों कि मिसाल रखते हैं ताकि वो प्रेरणा ले सकें , इसलिए मुझे लगता है कि अपनी कमतरी पर रोने के बजाय और शिकायत करने से बेहतर है खुद का मानसिक विकास करना और एक मिसाल कायम करना । स्त्री हो या पुरुष , स्वाभिमान के साथ जीना उसके अपने हाथ में है ।
मेरी दिनचर्या -
बचपन से बड़े होने तक हम अपनी माँ और पिता कि छत्रछाया में बढ़ते हैं। वो भी तो एक स्त्री और एक पुरुष हैं ।उन दोनों कों परस्पर एक दुसरे का सहयोग और सम्मान करते हुए देखते हैं तभी अपने छोटे से परिवार कि पूर्णता दिखती है । माता और पिता कों हम बराबर प्यार और सम्मान देते हैं। दोनों में से कोई भी हमें किसी से कमतर नहीं लगता । लेकिन अफ़सोस जब हम बड़े होते हैं तो क्यूँ हम स्त्री और पुरुष एक दुसरे से अलग देखते हैं । क्यूँ हम स्त्रियों की समाज में कमज़ोर स्थिति के लिए पुरुषों कों जिम्मेदार ठहराने लगते हैं।
मुझे लगता है स्त्रियाँ अपनी स्थिति के लिए स्वयं ही जिम्मेदार हैं। माना कि समाज का ढांचा सदियों से कुछ इस प्रकार का रहा है कि स्त्री के हिस्से में घरेलू काम और पुरुष के हिस्से में धनोपार्जन आता है । लेकिन यदि कोई महिला कार्यों के इस आबंटन से संतुष्ट नहीं है तो उसे बिना अपने पति कों दोष दिए ही अपनी रूचि के अनुसार नौकरी करनी चाहिए । अच्छी नौकरी , जिसमें पैसा और इज्ज़त दोनों ज्यादा हो , उसके लिए स्वयं कों बेहतर शिक्षित भी करना होगा ।
इसके लिए स्त्री कों स्वयं ही सोचना होगा । स्कूलों और विद्यालयों में लड़का लड़की का कोई भेद नहीं है । माता पिता भी बेटे और बेटी कों समान शिक्षा का अवसर देते है । विवाह के बाद पति भी अपनी पत्नी कों बढ़ते हुए देखना चाहता है । अपनी पत्नी कि तरक्की और ख़ुशी में पति भी गौरवान्वित महसूस करता है । वो पत्नी के ऊपर घरेलू कार्यों के बोझ कों कम करने के लिए उसका हाथ बंटाने में सहयोग करता है । और पत्नी भी पति के जिम्मे कुछ कार्यों कों अपने ऊपर ले लेती है । इस प्रकार काम के बोझ और काम कि प्रकृति दोनों कों समान रूप से मिलती जाती है । दोनों कों एक दूसरे से कोई शिकायत नहीं रहती । मन में कोई अवसाद और क्लेश नहीं रहता और जीवन मधुर और सुखमय होता है ।
जो महिलाएं आज उच्च पदस्थ हैं , देश का नाम रौशन कर रही हैं , वो भी हमारी तरह स्त्रियाँ हैं। वे तो पुरुष प्रधान सत्ता कों दोष नहीं देतीं । क्यूंकि उन्होंने शिकायत करने जैसी महामारी से स्वयं कों बचा कर रखा में और अपनी सकारात्मक ऊर्जा कों अपने ही विकास में लगाया और सक्षम होने के बाद अपना योगदान समाजोपयोगी रूप में कर रहीं हैं। वो कुंठित नहीं हैं। कुंठा मन में तब आती है जब हम स्वयं कों असक्षम पाते हैं तब। हमारी कमतरी के लिए पुरुष जिम्मेदार नहीं हैं। हमें प्रेरणा लेनी चाहिए समाज में जिन स्त्रियों ने अपना स्थान बनाया है , अपनी पहचान बनायी है ।
जो स्त्रियाँ कुछ करना चाहती हैं , समाज में स्थान चाहती हैं वो स्वयं ही विकट से विकट परिस्थिति में भी बेहतर विकल्प ढूंढ लेती हैं। सर्वप्रथम तो स्वयं कों शिक्षित करती हैं फिर नौकरी करके या फिर बच्चों कों पढ़ाकर या फिर पत्र पत्रिकाओं में लेख लिखकर समाज में एक जागरूकता लाने का सार्थक कार्य कर सकती हैं। सकारात्मक कार्य करने वाली एक स्त्री अनावश्यक रूप से शिकायती नहीं होती । प्रसन्नचित्त रहती है ।
लेकिन कुछ स्त्रियाँ के पास समय प्रचुर मात्रा में होता है । पति अच्छा कमा रहा है तो उनके पास नौकर होने कि अवस्था में कुछ ख़ास कार्य शेष नहीं रह जाता । खाली दिमाग शैतान का घर । दिन भर समय नष्ट करना फालतू टीवी सेरियाल्स देखना , जिसमें कुछ भी सकारात्मक देखने कों नहीं मिलता । फिर बचे हुए समय में अनावश्यक करना और समय नहीं कटता इसलिए किटी-पार्टीज़ जैसे विकल्प कों अपनाती हैं। रोजाना कि इसी दिनचर्या से उनके दिमाग कों घुन लग जाता है । थोड़ा ऊपर उठकर सोचने कि शक्ति का उनका ह्रास हो जाता है ।यही बहुमूल्य समय वो अपनी मानसिक गुणवत्ता बढ़ाने में कर सकती हैं । शिक्षा के प्रचार प्रसार में सहयोग कर सकती है । पत्र -पत्रिकाओं , जर्नल्स , periodicals तथा समाचारों द्वारा खुद कों अपडेट रख सकती है । जितनी ज्यादा ज्ञान होगा उतना ज्यादा योगदान होगा उसका समाज और परिवार के लिए , खासकर उसके अपने बच्चों की बेहतर परवरिश में।
यदि हम समाज के गरीब वर्ग कि बात करें तो वो एक मेहनतकश जीवन गुजारती हैं , घर के काम के साथ साथ वो मेहनत मजदूरी कर आर्थिक रूप से अपने पति का सहयोग करती हैं।
मिडिल क्लास कि बात करें तो वो भी यथासंभव अपनी योग्यतानुसार नौकरी करती हैं । पति का सहयोग करती हैं और कुंठित नहीं रहतीं ।
एक वर्ग ऐसा है जहाँ पति ज़रुरत से ज्यादा कमा रहा है । पत्नी के पास हर सुविधा और ऐशो आराम है । घरेलू कामों के लिए नौकर भी हैं। ये ही महिलाएं अक्सर आराम तलब बन जाती हैं । अपनी शैक्षणिक योग्यता कों ताख पर रख , अनावश्यक gossip , आदि में बहुमूल्य समय नष्ट करते हुए अपना जीवन व्यर्थ गुज़ार देती हैं।
स्त्रियों कों प्रेरणा लेने चाहिए समाज कि उन महिलाओं से जो समाज में विभिन्न संस्थानों में कार्यरत हो, पुरुषों के कंधे से कंधा मिला कर चल रही हैं । हमें प्रेरणा लेनी चाहिए मध्यम वर्ग कि मेहनतकश महिलाओं से जो बिना किसी कुंठा के , सकारात्मक सृजन में अनवरत लगी हुई हैं। प्रेरणा उन मजदूर वर्ग कि महिलाओं से , जिनकी लगन ये सन्देश देती है कि - जीवन एक संघर्ष है , मुस्कुरा कर जियो , शिकायतों का कोई स्थान नहीं है ।
अधिकाँश पुरुष अपने समय कों व्यर्थ नहीं करते । हमें पुरुषों से भी प्रेरणा लेनी चाहिए कि कैसे वो अपने जीवन कों नियंत्रित करते हैं , और प्रसन्नचित्त रहते हैं । यदि समाज में उनकी स्थिति ज्यादा सुदृढ़ है तो हम महिलाओं कों उनसे सीखना होगा कि वे हमसे ज्यादा सशक्त क्यूँ और कैसे हैं । एक बार यदि हम कोशिश करेंगे तो खुद कों बेहतर बनाकर समाज में अपना स्थान बनाकर कुंठा से दूर रह सकेंगे।
यहाँ मेरे आस पास के परिवेश में जितनी भी महिलाएं हैं वो सभी उच्च शिक्षित हैं । समय इफरात है , इसलिए किटी पार्टीज़ जैसे विकल्प से स्वयं कों व्यस्त रखती हैं। मुझसे कहा शामिल होने के लिए , और जब मैंने इनकार किया तो मुझ पर बहुत ही unsocial , असामाजिक होने का टैग लगा दिया । मैं खुश हूँ इस टैग से , कम से कम मैं जो करना चाहती हूँ वो कर तो पा रही हूँ।
जब मैं भारत वापस आउंगी तो मेडिकल प्रैक्टिस करुँगी लेकिन जब तक यहाँ हूँ , तब तक ब्लोग्स के माध्यम से स्वास्थ्य एवं सामाजिक विषयों पर लिखकर समाज के लिए योगदान जारी रहेगा । हम अपने बच्चों के सामने भगत सिंह , डॉ कलाम , कल्पना चावला और किरण बेदी जैसे व्यक्तित्वों कि मिसाल रखते हैं ताकि वो प्रेरणा ले सकें , इसलिए मुझे लगता है कि अपनी कमतरी पर रोने के बजाय और शिकायत करने से बेहतर है खुद का मानसिक विकास करना और एक मिसाल कायम करना । स्त्री हो या पुरुष , स्वाभिमान के साथ जीना उसके अपने हाथ में है ।
मेरी दिनचर्या -
- परिवार के लिए पौष्टिक भोजन पकाती हूँ।
- विभिन्न विषयों पर ब्लॉग लेखन एवं पठन , जिससे मेरे दिमाग कों जंग न लगे और अपनों के बीच हूँ , इस बात का भी एहसास होता है ।
- IBM के चार बच्चों कों सप्ताह में तीन दिन पढाती हूँ (इससे मेरे मस्तिष्क का अच्छा व्यायाम होता है और धनोपार्जन भी)
आभार ।