कभी-कभी कुछ लोग प्रति-टिपण्णी मिलने पर नाराज़ हो जाते हैं। इसलिए प्रति-टिपण्णी लिखने में डर सा लगता है।
मेरा आप सभी से ये प्रश्न है की क्या -
- लेख लिखने के बाद लेखक अथवा लेखिका को मौन धारण कर लेना चाहिए ?
- क्या विषय को विस्तार देने के लिए यदि कोई नयी बात मस्तिष्क में है तो भी नहीं लिखनी चाहिए?
- क्या प्रति-टिपण्णी मिलने पर टिप्पणीकार का बुरा मानना उचित है ?
- क्या लेखक को ये अधिकार है की वो अपने ऊपर आई व्यक्तिगत टिपण्णी पर आपत्ति करे ?
- क्या प्रति-टिपण्णी में सिर्फ यही उचित है की ....आपका आभार , पुनः आइयेगा , स्नेह बनाए रखियेगा , आदि-आदि ....
मेरे विचार से किसी भी विषय पर विमर्श के दौरान लेखक अथवा प्रतिभागियों को एक से ज्यादा बार अपनी बात लिखने अथवा कहने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। टिप्पणियां जितनी अहम् हैं , प्रति-टिप्पणियां भी उतनी ही उपादेय हैं । बस इतना ध्यान रखें की अपने विचार रखते समय किसी पर व्यक्तिगत आक्षेप न करें , तथा अपनी शैली को शिष्ट एवं शालीन रखें ।
इस विषय पर आपके विचार जानने की उत्कंठा है ।
आभार।
56 comments:
1 लेख लिखने के बाद लेखक अथवा लेखिका को मौन धारण कर लेना चाहिए ?:
नहीं, वो अपने विचार प्रकट करें तो ही कृति की सार्थकता है..
2 क्या विषय को विस्तार देने के लिए यदि कोई नयी बात मस्तिष्क में है तो भी नहीं लिखनी चाहिए ?:
बिलकुल लिखनी चाहिए अगर विषयांतर न हो रहा हो
3 क्या प्रति-टिपण्णी मिलने पर टिप्पणीकार का बुरा मानना उचित है:
प्रतिकूलता मतलब आप के लेखन में दम है..में तो अच्छा मानूंगा
4 क्या लेखक को ये अधिकार है की वो अपने ऊपर आई व्यक्तिगत टिपण्णी पर आपत्ति करे ?
सबको अधिकार है अपनी स्थिति स्पस्ट करने का ..
5 क्या प्रति-टिपण्णी में सिर्फ यही उचित है की ....आपका आभार , पुनः आइयेगा , स्नेह बनाए रखियेगा , आदि-आदि ....
अगर विषय सार्थक हो और लेखक को ज्ञान हो तो इससे आगे भी जाना चाहिए
प्रतिक्रिय को आने की सूचना भर भी माना जा सकता है...
अपनी शैली को शिष्ट एवं शालीन रखें ।
टिप्पणियां जितनी अहम् हैं , प्रति-टिप्पणियां भी उतनी ही उपादेय हैं ।
आपका कहना सही है इससे कोई लेख सही और सार्थक निष्कर्ष पर पहुँच सकता है ...बाकी सबकी अपनी अपनी राय है ...आपका आभार
टिप्पणी प्रति-टिप्पणी द्वारा विचारों के आदान प्रदान से हमारे विचारों का परिमार्जन होता है, नये आयाम मिलते है और विषय को विस्तार भी मिलता है।
आपने ठीक ही कहा……,यही तो ब्लॉगिंग की विशिष्ठता है, सुविधा भी!!
दिव्या जी , आपसे पूर्णतया सहमत हूँ । कई टिप्पणियां ऐसी होती हैं जिनका ज़वाब या प्र्त्यातुर देना ज़रूरी होता है और सार्थक भी रहता है ।
विमर्श तो तभी होता है जब दोनों पक्ष अपनी अपनी बात कह सकें और समझ सकें ।
मैं स्वयं भी कभी कभी उम्मीद करता हूँ कि मेरी टिप्पणी पर प्रति टिप्पणी की जाए ।
vyaktigat evam akshep-purn baton ko chor prati-tippani ki utni hi upadeyata hai jitni post par tippani ka........
bakiya........hum to murid hain 'tippani kari..kari na kari'............................
pranam.
टिपण्णी और उनकी सार्थकता के बारे में अच्छे विचार . टिपण्णी के माध्यम से हम अपने विचारो का आदान प्रदान करते है और सहमत या असहमत होने का पूरा अवसर होता है . लेकिन मतभेद कई बार मनभेद बन जाता है जो कतई उचित नहीं है . सुन्दर सार्थक आलेख .
बहुत ज़रूरी है। एक स्वस्थ बहस हो।
भई, हम तो टिप्पणी न मिलने पर नाराज़ हो जाते हैं, प्रतिटिप्पणी को हम जिन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं :)
अभिव्यक्ति के लिए सभी स्वतंत्र हैं.. लेखक भी पाठक भी।
प्रति टिप्पणी के बाद पाठक का दुबारा न आना उसके बुरा मान जाने का प्रमाण नहीं है।
कमेंट पोस्ट आधारित होनी चाहिए न कि व्यक्ति आधारित।
व्यक्तिगत आक्षेप न करते हुए विषय सम्बन्धी विचार विमर्श होना चाहिए ...आशुतोष जी की बातों से सहमत ..
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@-मैं स्वयं भी कभी कभी उम्मीद करता हूँ कि मेरी टिप्पणी पर प्रति टिप्पणी की जाए ।
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डॉ दाराल ,
आपने अपेक्षा सम्बन्धी बात बहुत अच्छी लिखी। सच तो ये है की मैं भी अक्सर इतने मन से और इमानदारी से टिपण्णी लिखती हूँ और प्रति-टिपण्णी की अपेक्षा रखती हूँ , लेकिन अक्सर उत्तर नहीं मिलता । कभी-कभी स्वयं के लेख पर भी बहुत सी टिप्पणियों का प्रत्युत्तर न देकर टिप्पणीकार के साथ अन्याय कर बैठती हूँ।
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टिप्पणी और प्रटीटिप्पणी से ही विषय का विस्तार होता है ... किसी को कोई आपत्ति नही होनी चाहिए ... हां स्वस्थ टिप्पणी ज़रूर होनी चाहिए ..
सार्थक विचार विमर्श हमेशा स्वीकार होना चाहिए. जहां लेखक को अपने विचार रखने और स्पष्टीकरण देने का पूरा अधिकार है, वहाँ टिप्पणीकार को भी अपनी बात कहने का पूरा अधिकार होना चाहिए,लेकिन टिप्पणी शालीन, सभ्य और संयत होनी चाहिए. प्रति टिप्पणी अगर सार्थक है तो उसका हमेशा स्वागत होना चाहिए.
विवादास्पद टिप्पणियाँ नहीं करनी चाहिए!
Creative and true comments always should be wel come it may be negative or positive.unparliamentary language should be avoided . good view
कैलाश जी. शर्मा से सहमत हूँ. लेकिन टिप्पणी-प्रतिटिप्पणी टिप्पणीकार के मन साँचे के अनुसार आती है, आलेखक के अनुसार नहीं. इसलिए इस पर मतभेद रहेंगे ही. अच्छा आलेख.
प्रतिटिप्पणी करना लेखक के स्वविवेक पर निर्भर है।
पोस्ट लेखक के लिए प्रतिटिप्पणी करना आवश्यक प्रतीत होता है, यदि,
- पोस्ट विचार विमर्श के लिए हो।
- टिप्पणी में नया और सार्थक तथ्य व्यक्त किया गया हो।
- प्रस्तुत विषय में कोई नया तथ्य जोड़ना हो।
- यदि कोई पाठक प्रस्तुत तथ्यों का अन्य अर्थ लगाए।
- किसी पाठक द्वारा विषयांतर किया गया हो।
- स्वस्थ टिप्पणी न हो।
- किसी बिंदु पर पोस्ट लेखक को लगे कि प्रतिटिप्पणी करना जरूरी है।
आवश्यकतानुसार प्रतिटिप्पणी अवश्य दी जानी चाहिये ।
उन्नति के मार्ग में बाधक महारोग - क्या कहेंगे लोग ?
पोस्ट ,उस पर हुई टिपण्णी और फिर उस पर प्रतिटिप्पणी यदि वाद का रूप लें तो रोचकता और आनन्द प्रदान करती हैं .वाद में सभी कुछ तो शामिल होता है ,शालीनता,संयम,सार्थकता,सभ्यता आदि आदि.मेरे विचार में पोस्ट लिखना,किसी पोस्ट पर टिपण्णी करना और उसपर प्रति टिपण्णी करना एक प्रकार से यज्ञ और पूजा से कम नहीं हैं.
टिप्पणियां जितनी अहम् हैं , प्रति-टिप्पणियां भी उतनी ही उपादेय हैं । बस इतना ध्यान रखें की अपने विचार रखते समय किसी पर व्यक्तिगत आक्षेप न करें , तथा अपनी शैली को शिष्ट एवं शालीन रखें ।
Is baat se poorn taya sahmat hun.
स्वस्थ बहस होनी चाहिए। इससे किसी को परहेज नहीं करना चाहिए।
स्वस्थ बहस के बाद जो चीजें निकलकर आएंगी वो ही असल में लेखक के लिखे को सार्थक करेंगी।
आप पोस्ट भी लिखें और प्राप्त टिप्पणियों पर प्रति टिप्पणियाँ भी जरूर ही दें लेकिन बहस को कभी अन्यथा न लें । व्यक्तिगत आक्षेप सदैव कष्टकारी होते हैं दोनों पक्षों के लिए ।
आप पोस्ट भी लिखें और प्राप्त टिप्पणियों पर प्रति टिप्पणियाँ भी जरूर ही दें लेकिन बहस को कभी अन्यथा न लें । व्यक्तिगत आक्षेप सदैव कष्टकारी होते हैं दोनों पक्षों के लिए ।
हर लेखक अपने लिखे पर प्रतिक्रिया की आशा करता है .
रचनाएँ एवं आमंत्रित विचारों को पढनी भी चाहिए और
प्रतिक्रिया भी देनी चाहिए मनुष्य प्रशंसाप्रिय प्राणी है।
प्रशंसा उसे उत्साहित करती है।
वहीं थोथी प्रशंसा उसे गुमराह भी कर सकती है।
मै इस विषय पे श्री महेंद्र वर्मा जी के विचारों से पूरी तरह
सहमत हूँ.
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जब आमने-सामने की बात होती है. दो मित्रों के मध्य, एक सभा के बीच, एक वाद-विवाद प्रतियोगिता के अंतर्गत,
— तब हम विषय-चर्चा में अपनी जिज्ञासा शांत करते चलते हैं.
— तब हम अपने अधूरे ज्ञान की पूर्ति कर लेता चाहते हैं.
— तब हम अपने निरुत्तरित प्रश्नों के उत्तर पा लेना चाहते हैं.
— तब हम परस्पर के बीच की दूरी पाट लेना चाहते हैं.
— तब हम अपनी प्रतिभा को कसौटी पर कस लेना भी चाहते हैं.
....... इस तरह के न जाने कितने अभाव... हम एक स्वस्थ चर्चा अथवा विमर्श से .. भर लेना चाहते हैं.
आपका त्वरित विषय पर चर्चा करना आपकी जागरुकता को दर्शाता है.
'परिस्थितियाँ सभी के साथ व्यस्तता की रहती हैं फिर भी आप सभी के लिये समय निकाल पाती हैं' – इस बात की सराहना भी करता चलूँ तो उऋण होने की अनुभूति होगी.
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टिपण्णी ही तो किसी चर्चा को शुरु करती हे, अगर सभी टिपण्णियां हां जी हां जी मे होगी तो... अंधा बांटॆ रेबडी वाली बात होगी .... हां किसी टिपण्णी मे किसी खास आदमी या व्यक्तिगत गुस्सा ना उतारा गया हो यानि किसी को व्यक्तिगत निशाना ना बनाया जाये, बात उस चर्चा पर ही हो, सहमत ओर असहमति भी जताई जा सकती हे, अपना विचार भी रखा जा सकता हे, ओर असहमति वालिया टिपण्णियां भी प्रकाशित जरुर करनी चाहिये( गाली गलोच ) को छोड कर... बाकी सब की अपनी अपनी सोच हे... हम तो गाली गलोच वाली टिपण्णियां भी नही हटाते, ताकि लोगो को उस व्यक्ति के बारे खुद ही पता चल जाये
चाणक्य ने एक बार खुद को प्रकट करते हुए कहा है- "आर्यों का (अर्थात भद्रजनों) का विरोध सदैव सैधांतिक होता है.. व्यक्ति-गत नहीं... मनुष्य रक्त -मांस मात्र नहीं होता बल्कि एक विचार होता है, इसलिए मैं धनानंद का नाश चाहता हूँ क्यूंकि उसका आचरण देश विरोध में है.. मेरा मान-अपमान मेरे सिधान्तो से पूर्व नहीं आता.."
असल में सही गलत कुछ भी नहीं होता.. बस अपना -अपना नजरिया होता है.. बुद्धि-मान की समस्या एक ही है की वो तर्क के माध्यम से कुछ भी सिद्ध कर सकता है |
और फिर कुछ लोग दुर्योधन मानसिकता के भी होते है जो इश्वर तक (कृष्ण) से ये कहते है की "मैं जनता हूँ की क्या अनुचित हो गया है पर मेरी उसमे कोई रूचि नहीं है " ऐसे लोग तो हर काल में रहेंगे..
किसी विचार को शब्द देने के बाद लेखक की जिम्मेदारी दुगनी हो जाती है सत्य और नैतिकता पर उस विचार को तोलने की | यह उसका कर्त्तव्य भी है और अधिकार भी..
और जब आप विरोध झेल नहीं सकते तो विरोध करते क्यूँ है ?
मानवीय स्वभाव है की वो अपना विरोध सरलता से बर्दास्त नहीं करता ... ऐसे में रसा-कशी तो होगी
ऐसे में अपना आचरण खो देना पशुता ही है..
मनुष्य के तौर पर सभी विचारों का स्वागत कीजिये..शालीनता का परिचय दीजिये..
विचार महत्वपूर्ण है.. व्यक्ति नहीं..
वैसे जलन का विषय तो है कहीं टिप्पणियों की बरसात तो कहीं सूना सागर ...........
सोचा जाए ये कोई खजाना भी नहीं क्युन्जी ???
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सभी पाठकों के विचार अनमोल हैं । मेरे मन में जो भयजनित प्रश्न था , उसका सही उत्तर मिलने में मदद मिली है आप सभी के विचारों से । ऊपर आई टिप्पणियों में बिलकुल अलग-अलग पक्षों को सभी ने सामने लाया है। जिससे मेरा बहुत लाभ हुआ है ।
@ दर्शन लाल जी --
आपकी टिपण्णी का विषय , किसी दुसरे ब्लौग पर देखा था , कहीं आप गलती से तो यहाँ टिपण्णी नहीं कर गए ?...Smiles..
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भाई मनोज कुमार और भाई सुशील बाकलीबाल जी की बात से सहमत
आपके ( दिव्या जी ) विचार सही हैं ।
हम तो यही कहेंगे"ऐसी बानी बोलिए मन का ........और आपहुं शीतल होए
प्रति टिप्पणी तभी...जब जबाब देना अति आवश्यक हो.
अन्यथा तो वो आपकी पोस्ट का जबाब ही है, उस पर कैसी प्रतिक्रिया??
मगर कुछ लोग हर टिप्पणी के लिए एक एक आभार डाल टिप्पणियों की संख्या बढ़ाने का लोभ संवरण नहीं कर पाते....
शुरुवाती दौर में मैने भी किया है.
व्यक्तिगत ना होकर विषय पर की गयी टिप्पणी और प्रति टिप्पणी पोस्ट की गुणवत्ता,सार्थकता को बढ़ाते हुए विषय को विस्तार देती है !
दिव्याजी,
लाभ आपका ही नहीं हम सभी का हुआ हैं.बस यूँ ही स्वस्थ वाद का आयोजन करती रहिएगा."वाद" भगवान सदा प्रसन्न रहेंगे.सार्थक चर्चा चलाने के लिए बहुत बहुत आभार आपका.
आदरणीय डॉ.दिव्याजी,
नमस्कार
आपके द्वारा लिखित ये लेख धन्यवाद के योग्य है इस लेख में आपने जो कहा एक दम सही है इस लेख कार्य के लिए आपको कोटि कोटि धन्यवाद
प्रति टिप्पणी यह दिखाती है कि लेखक ने टिप्पणी को गंभीरता से लिया है. अगर विमर्श न हो तो फिर हमारे ब्लोगों और 'सेलिब्रिटीज' के ब्लोग्स में अंतर क्या रह जाएगा जहां हर लाइन पर तीन चार सौ कमेंट्स आते हैं जिन्हें लिखने वाला एक बार देखता तक नहीं...
अशुतोश जी से सहम्त हूँ। सार्थक आलेख। बधाई।
संवाद सदा ही बना रहना चाहिये।
किसी भी रचना को पढ़कर पाठक को
पूरा हक़ है की वह रचना कैसे लगी
कहनेका किन्तु टिप्पणी प्रति टिप्पणी
पर बहस का आखाडा नहीं बनाना चाहिए
तर्क-वितर्क कोई समस्याका हल नहीं है !
इस शहर में ,मैं हूँ अजनबी
पूछोगे मुझ से रास्ता ,भटक जाओ गे |
शुभकामनाएँ !
अशोक सलूजा
aji kabhi koi maje bhi to legaa n?
मीठा मीठा गप गप,
कड़वा कड़वा थू थू...
इस चलन को खुद तोड़ने के लिए बड़ा कलेजा चाहिए...
जय हिंद...
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खुशदीप जी ,
आपने सही कहा लोग अक्सर दूसरों पर आसानी से इल्जाम लगा देते हैं की कड़वा-कड़वा थू और मीठा-मीठा गप । कल एक महिला मित्र ब्लॉगर ने चर्चा के दौरान कहा की खुशदीप जी टिपण्णी डिलीट कर देते हैं जब उनको मनोनुकूल टिपण्णी नहीं मिलती है । तब यकीन नहीं हुआ। हमने तो यही कहा की भाई दूसरों पर ऊँगली उठाना छोडो , अपनी आत्मा टटोलो ।
जय हिंद...
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samvaad hota rahe,mujhe to isme burai nahin najar aati.
दिव्या जी,
लेख का पटाक्षेप सारतत्व का प्रतिपादन करते हुए होता तो अच्छा लगता.मेरी समझ में और मै समझता हूँ आपके भी व अधिकाँश टिप्पणीकर्ताओं के मतानुसार टिपण्णी पर प्रति टिपण्णी यथा योग्य हो तो विषय में रोचकता और गंभीरता आती है.मुझे इस सम्बन्ध में आपके,आशुतोषजी,केवल रामजी,सुज्ञजी,डॉ.टी.एस.दरालजी,दिगम्बर नासवाजी ,कैलाश सी.शर्मा जी,महेंद्र वर्माजी,Kshamaji,अतुल श्रीवास्तवजी,डॉ.अनवर जमाल जी,मदन शर्मा जी ,प्रतुल वशिष्ठ जी,राजभाटिया जी,वाणी गीत जी और सतीश चंद्र सत्यार्थी जी के विचार पक्ष में और अधिक सार्थक लगे.आपकी क्या राय है ?
.
राकेश जी ,
हर लेख में,मैं अपने विचार , पहले ही लिख देती हूँ । हाँ कुछ नया आता है दिमाग में तो अवश्य जोड़ देती हूँ टिप्पणियों के माध्यम से.
@ लेख का पटाक्षेप ...
मेरे किसी भी लेख जिस पर विमर्श आमंत्रित होता है , उस पर कभी भी पटाक्षेप नहीं होता , चर्चा चालू है ....
लेकिन ये सच है कि यहाँ आये आये सभी विचारों से मेरा मार्ग दर्शन हुआ है । और उसके लिए सभी कि ह्रदय से आभारी हूँ।
.
अच्छा प्रश्न आपने उठाया है। टिप्पणी, प्रतिटिप्पणी के रूप मे विषय से सम्बन्धित विमर्श बहुत ही उत्तम है। लेकिन इसके द्वारा विमर्श के नाम पर किसी के प्रति अपमान-जनक शब्दों का प्रयोग उचित नहीं कहा जा सकता। आभार।
@-ZEAL: तुमसे डरता [डरती] हूँ दिव्या ! -- [You are so ruthless]
प्रतिज्ञा बड़ा कठिन और वजनदार शब्द है,
इसके स्थान पर वादा करती
तो मन को प्रसन्नता होती,
क्योंकि वादे तो वायदे हैं जो अक्सर टूट जाते हैं |
सच दुखी हुआ |
प्रति टिपण्णी के बिना कोई भी विमर्श पूरा नहीं...और बिना इसके सबकुछ भेड चाल है... मैं तो आपके साथ हूँ...
पहले तो धन्यवाद आपको जो आपने मेरे ब्लॉग पर आकर अपनी प्रतिक्रिया दी!
दूसरा इसके लिए भी जो आपने अपने ब्लॉग के फॉण्ट बड़े किये!
यह लेख भी आपका हमेशा की तरह अच्छा है!धन्यवाद
मेरे ब्लॉग पर भी आये आप सभी लोग
मेरे ब्लॉग की लिंक "samrat bundelkhand"
@ बेहद निराश मन से ये 'प्रतिज्ञा' कर रही हूँ आज कि कभी 'प्रति-टिप्पणी' नहीं लिखूंगी।
हूँ ऊँ ऊँ........तो ये बात है !
एक बात बताऊँ ?
मैंने दिव्या के अन्दर हमेशा एक उत्सुक,चंचल,नाज़ुक,जिद्दी पर निश्छल, शैतान और प्यारी सी बच्ची को देखा है. जैसे बच्चों की शैतानी अच्छी लगती है वैसे ही दिव्या का यूं रूठना और प्रतिज्ञा करना भी अच्छा लगता है. मुझे मालुम है कि दिव्या रूठने के बाद कोई बड़ा धमाका करेगी. .....और फिर वही पहले वाली दिव्या सामने आकर खड़ी हो जाएगी. मुझे यह भी मालुम है कि दिव्या को मनाना मुश्किल नहीं है ...आखिर तो बच्ची ठहरी न !
दिव्या ! आज तुम्हें एक गोपनीय बात बता रहा हूँ, किसी से कहना मत, दरअसल दिव्या के रूप में मुझे एक बेहतर कैरेक्टर मिल गया है...मेरी अगली कहानी के लिए.
और हाँ ! प्रति टिप्पणी वाली प्रतिज्ञा का समय आज रात को समाप्त हो जाएगा.....ध्यान रखना. भूख हड़ताल का अर्थ जान दे देना नहीं होता है. कल ४ तारीख है न ! कल से प्रतिटिप्पणी भी शुरू और बाबा जी के आन्दोलन में समर्थन भी. आने से पहले ०९४२४१३७१०९ पर खबर करना. कल्याणमस्तु !!!
कौशलेन्द्र जी, मेरा मूक समर्थन है आपको. केवल आप ही प्रति-टिप्पणियों की उपादेयता समझा सकते हैं.
कभी-कभी उपदेश देने वाले को भी उपदेश की जरूरत पड़ती है.
डॉक्टर कभी अपनी इलाज़ खुद थोड़े ही कर पाता है, उसे हमेशा दूसरे डॉक्टर की जरूरत पड़ती है.
वशिष्ठ जी ! आप चिंतित मत होइए. दिव्या की तो खबर लेने के लिए मैं हूँ न ! पहले प्रतिटिप्पणी लिखना बंद करके तो दिखाएँ. न माइग्रेन होने लगे तो मुझसे कहना. अब इस लड़की को यह भी बताना पडेगा कि
प्रतिटिप्पणियाँ ही किसी रचनाकार को परिपक्व बनाती हैं... प्रतिटिप्पणी नहीं होगी तो विमर्श नहीं होगा विमर्श नहीं होगा तो परिपक्वता नहीं आ सकेगी. हाँ ! यह अवश्य है कि विमर्श के आदान-प्रदान में सहनशीलता और आत्म निरीक्षण की अपेक्षा होती है. स्वस्थ्य विमर्श के लिए विनम्रता प्रथम शर्त है.
....और इस तरह किसी की टिप्पणी से इतना बड़ा (आत्मघाती ) कदम नहीं उठा लेना चाहिए. मैं सारी बातें नोट कर रहा हूँ, दिव्या को आने तो दो. बनारस और लखनऊ से लेकर ग्वालियर तक की सारी फौजें इकट्ठी कर दूंगा.
Kaushalendra ji , You are not reading my other posts ?..Why so ?
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