कई बार सुनने को मिलता है की स्त्रियों की आर्थिक स्वतंत्रता घरों को तोड़ रही है । आखिर कैसे ? यदि पुरुषों की आर्थिक स्वतंत्रता घरों को नहीं तोड़ रही तो स्त्रियों की आर्थिक स्वतंत्रता परिवारों को कैसे तोड़ सकती है भला ?
मैंने तो आज तक यही देखा और सुना है की स्त्री परिवारों को सदैव जोडती है और रिश्तों को बनाए रखने में अहम् भूमिका निभाती है । फिर वह परिवारों के टूटने का सबब कैसे हो सकती है ?
मैंने तो आज तक यही देखा और सुना है की स्त्री परिवारों को सदैव जोडती है और रिश्तों को बनाए रखने में अहम् भूमिका निभाती है । फिर वह परिवारों के टूटने का सबब कैसे हो सकती है ?
- स्त्रियाँ यदि नौकरी करती हैं तो पति आर्थिक जिम्मेदारियों को भी साझा करती हैं , जिससे पति पर अनावश्यक बोझ नहीं रहता ।
- नौकरी करने वाली स्त्रियाँ घर से बाहर निकलती हैं , जिससे उनमें आत्म-विश्वास की वृद्धि होती है । वे घर के काम काज के अतिरिक्त अन्य बहुत से कार्यालय सम्बन्धी कार्यों और बारीकियों को समझने लगती हैं , जिससे वे पति की अन्य बाहरी जिम्मेदारियों का भी सहजता से वहां कर लेती हैं ।
- सुन्दर पत्नी किस पति को नहीं अच्छी लगती । नौकरी करने वाली स्त्रियाँ स्वयं तो maintained और आकर्षक रखती हैं , अन्यथा वे अपनी परवाह कम करती हैं ।
- बाहर निकलने से उनका exposure बढ़ता है तथा बाहर की दुनिया की समझ बढती है ! इससे उनमें जागरूकता आती है , और आत्म-विश्वास की वृद्धि होती है । जो परिवार में एक स्वस्थ्य वातावरण को उपस्थित करता है।
- स्त्री पुरुष में समानता आती है और आपसी द्वेष ख़तम होते हैं । कुंठा मिटती है और एक-दुसरे के लिए परस्पर सम्मान बढ़ता है ।
- वह खुश रहती है ! उसे अपनी शिक्षा और जीवन दोनों सफल लगने लगते हैं । मन की ख़ुशी उसे परवार के ज्यादा करीब लाते हैं । बच्चे एवं पति उस पर गर्व करते हैं ।
- उसकी भी तरक्की होती है । Promotion मिलता है । उसके कार्यों की सराहना होती है जो उसके self esteem को बढ़ाता है । उसे अपनी सम्पूर्णता का एहसास होता है। पति के साथ वह भी अपनी उपलब्धियों को साझा करती है ! दोनों की आपसी ख़ुशी बढती है ! समाज को भी अधिक योगदानकर्ता मिलते हैं ।
- पति का अपनी पत्नी की योग्यता पर विश्वास बढ़ता है । पत्नी के लिए ह्रदय में प्यार तो पहले से रहता है , अब सम्मान भी बढ़ जाता है , अन्यथा घर की खेती साग बराबर ही रहती है ।
- पति अपनी पत्नी को बेहतर understand करता है । उसके वर्क-लोड को कम करने के लिए घरेलु कामों में भी उसकी सहायता करता है । दोनों सच्चे अर्थों में एक दुसरे के जीवन साथी बन जाते हैं ।
- इसके अतिरिक्त यदि एक गृहणी को उसका पति आर्थिक स्वतंत्रता देता है , तो वह कुंठाग्रस्त नहीं रहती , प्रसन्नचित्त रहती है । पति उसका ध्यान रखता है , इस बात से अभिभूत रहती है और दूरियां घटती हैं ।
आजकल तो पुरुष स्वयं ही अपने लिए समकक्ष योग्यता और नौकरी करने वाली पत्नी चाहते हैं , जो सही अर्थों में उनके दुःख सुख की भागीदार बने । पति गर्व के साथ अपनी पत्नी की उपलब्धियों की चर्चा अपने मित्रों से करता है। ऐसे बहुत से लोगों को जानती हूँ जहाँ पति- पत्नी दोनों आर्थिक रूप से आत्म-निर्भर हैं और परिवार में खुशहाली है। मेरी समझ से परिवारों का टूटना , झूठे दंभ , दहेज़ प्रथा , लालच, अज्ञानता और रूढ़िवादिता के कारण होता है । आर्थिक स्वतंत्रता के कारण नहीं।
फिर भी पाठकों से निवेदन है मेरा भ्रम दूर करें !
Zeal