Thursday, July 28, 2011

क्या स्त्रियों की आर्थिक स्वतंत्रता बढ़ते तलाक का कारण है ?

कई बार सुनने को मिलता है की स्त्रियों की आर्थिक स्वतंत्रता घरों को तोड़ रही है आखिर कैसे ? यदि पुरुषों की आर्थिक स्वतंत्रता घरों को नहीं तोड़ रही तो स्त्रियों की आर्थिक स्वतंत्रता परिवारों को कैसे तोड़ सकती है भला ?

मैंने तो आज तक यही देखा और सुना है की स्त्री परिवारों को सदैव जोडती है और रिश्तों को बनाए रखने में अहम् भूमिका निभाती है फिर वह परिवारों के टूटने का सबब कैसे हो सकती है ?

  • स्त्रियाँ यदि नौकरी करती हैं तो पति आर्थिक जिम्मेदारियों को भी साझा करती हैं , जिससे पति पर अनावश्यक बोझ नहीं रहता ।
  • नौकरी करने वाली स्त्रियाँ घर से बाहर निकलती हैं , जिससे उनमें आत्म-विश्वास की वृद्धि होती है । वे घर के काम काज के अतिरिक्त अन्य बहुत से कार्यालय सम्बन्धी कार्यों और बारीकियों को समझने लगती हैं , जिससे वे पति की अन्य बाहरी जिम्मेदारियों का भी सहजता से वहां कर लेती हैं ।
  • सुन्दर पत्नी किस पति को नहीं अच्छी लगती । नौकरी करने वाली स्त्रियाँ स्वयं तो maintained और आकर्षक रखती हैं , अन्यथा वे अपनी परवाह कम करती हैं ।
  • बाहर निकलने से उनका exposure बढ़ता है तथा बाहर की दुनिया की समझ बढती है ! इससे उनमें जागरूकता आती है , और आत्म-विश्वास की वृद्धि होती है । जो परिवार में एक स्वस्थ्य वातावरण को उपस्थित करता है।
  • स्त्री पुरुष में समानता आती है और आपसी द्वेष ख़तम होते हैं । कुंठा मिटती है और एक-दुसरे के लिए परस्पर सम्मान बढ़ता है ।
  • वह खुश रहती है ! उसे अपनी शिक्षा और जीवन दोनों सफल लगने लगते हैं । मन की ख़ुशी उसे परवार के ज्यादा करीब लाते हैं । बच्चे एवं पति उस पर गर्व करते हैं ।
  • उसकी भी तरक्की होती है । Promotion मिलता है । उसके कार्यों की सराहना होती है जो उसके self esteem को बढ़ाता है । उसे अपनी सम्पूर्णता का एहसास होता है। पति के साथ वह भी अपनी उपलब्धियों को साझा करती है ! दोनों की आपसी ख़ुशी बढती है ! समाज को भी अधिक योगदानकर्ता मिलते हैं ।
  • पति का अपनी पत्नी की योग्यता पर विश्वास बढ़ता है । पत्नी के लिए ह्रदय में प्यार तो पहले से रहता है , अब सम्मान भी बढ़ जाता है , अन्यथा घर की खेती साग बराबर ही रहती है ।
  • पति अपनी पत्नी को बेहतर understand करता है । उसके वर्क-लोड को कम करने के लिए घरेलु कामों में भी उसकी सहायता करता है । दोनों सच्चे अर्थों में एक दुसरे के जीवन साथी बन जाते हैं ।
  • इसके अतिरिक्त यदि एक गृहणी को उसका पति आर्थिक स्वतंत्रता देता है , तो वह कुंठाग्रस्त नहीं रहती , प्रसन्नचित्त रहती हैपति उसका ध्यान रखता है , इस बात से अभिभूत रहती है और दूरियां घटती हैं

आजकल तो पुरुष स्वयं ही अपने लिए समकक्ष योग्यता और नौकरी करने वाली पत्नी चाहते हैं , जो सही अर्थों में उनके दुःख सुख की भागीदार बने पति गर्व के साथ अपनी पत्नी की उपलब्धियों की चर्चा अपने मित्रों से करता है। ऐसे बहुत से लोगों को जानती हूँ जहाँ पति- पत्नी दोनों आर्थिक रूप से आत्म-निर्भर हैं और परिवार में खुशहाली है। मेरी समझ से परिवारों का टूटना , झूठे दंभ , दहेज़ प्रथा , लालच, अज्ञानता और रूढ़िवादिता के कारण होता है आर्थिक स्वतंत्रता के कारण नहीं।

फिर भी पाठकों से निवेदन है मेरा भ्रम दूर करें !

Zeal

Tuesday, July 26, 2011

असमर्थ बेटी -- कहानी !

असह्य कष्ट से छटपटाती माँ , जनरल वार्ड में भर्ती थी ! स्थिति बिगडती चली जा रही थी ! दुसरे शहरों में रह रही दोनों बेटियों का परिवार वहां पहुँच चुका था ! चंचल ने जल्दी-जल्दी अपनी जमा पूँजी समेटी और अगली ही गाडी से माँ से मिलने निकल पड़ी ! मन अनेक आशंकाओं से घिरा हुआ था ! पूरा दिन सफ़र के बाद रात दस बजे जब चंचल अस्पताल पहुंची तो माँ की हालत बहुत बिगड़ चुकी थी ! डाक्टरों का कहना था की इन्हें तुरंत ICU में भर्ती करना होगा ! ICU में भर्ती करने के लिए सबसे पहले दस हज़ार की फीस भरनी थी ! उस समय किसी के पास इतना पैसा नहीं था ! चंचल ने तत्परता से दस हज़ार रूपए जमा करके माँ को फ़ौरन ICU में भर्ती करवाया ! जीवन में पहली बार उसे मुट्ठी भर संतोष मिला था ! वो खुश थी की उसकी छोटी सी जमा-पूँजी , माँ की तकलीफ में काम सकी !


फिर सिलसिला शुरू हुआ ICU में होने वाले डाक्टरी इलाज का ! प्रतिदिन का खर्च तकरीबन २०-३० हज़ार ! डाक्टर के प्रत्येक राउंड के बाद नर्स , जांचों , दवाइयों और इंजेक्शंस का परचा थमा जाती थी और चंचल की दोनों बहनें लग जाती थीं माँ की हर आवश्यकता पूरी करने में ! दोनों ही आत्म निर्भर थीं और तन-मन-धन से माँ की सेवा कर रही थीं ! चंचल को गर्व हो रहा था अपनी बहनों पर ! ईश्वर उसकी बहनों जैसी बेटियां, हर माँ को दें !

चंचल असहाय थी ! वो कोई आर्थिक मदद नहीं कर पा रही थी ! सारा भार उसकी बहनों पर ही था ! उसे अफ़सोस था की माँ ने तो अपनी तीनों बेटियों को पढ़ा-लिखाकर सामान रूप से लायक बनाया था लेकिन चंचल आज आर्थिक रूप से इतनी अशक्त थी की वह अपनी बीमार माँ के लिए कुछ नहीं कर सकती थी ! चाहती थी पति उसके मन की उलझन समझ ले लेकिन पति ने अपनी तरफ से कोई तत्परता नहीं दिखाई तो सकोचवश वह अपनी माँ के इलाज के लिए पैसे नहीं मांग सकी उनसे !


रात्री के दुसरे पहर में जब ICU के बाहर जब मरीजों के परिजन फर्श पर चादर बिछाए बेखबर सो रहे थे तब अपनी असमर्थता और लाचारी पर बिना आहट किये वह सिसक रही थी ! बगल में सो रही छोटी बहन की अचानक नींद खुली ! चंचल को सुबकते देख उससे कारण पूछा ! लाख पूछने पर भी चंचल ने अपनी मन की व्यथा छोटी बहन को नहीं बताई ! लेकिन बहन ने चंचल के आंसुओं को पढ़ लिया ! सुबह होते ही उसने दस हज़ार रूपए ATM से निकाले और चंचल के हाथ पर रख दिए ! चंचल आँख मिला सकी !

उसी दिन दोपहर दो बजे माँ इस संसार को छोड़कर विदा हो गयी ! उसी के साथ ख़तम हो गयी सब उधेड़बुन और ज़रूरतें !


मृत्यु के छः महीने बाद जब वृद्ध पिता ने कुछ पैसों का इन्तेजाम किया तो लाख मना करने के बावजूद , सबसे पहले उसी असमर्थ बेटी का पैसा चुका दिया गया ! चंचल को उस छोटे से योगदान से जो मुट्ठी भर संतोष मिला था , वो भी जाता रहा .......

Zeal

Saturday, July 23, 2011

अर्धांगिनी के लिए अर्थव्यवस्था

विवाह के उपरान्त एक पत्नी अर्थात एक अर्धांगिनी मिलती है पति को , जिसका वो सहज ही पूरा ख़याल रखता है ! उसकी छोटी-बड़ी हर इच्छा को भी पूरा करना चाहता है ! लेकिन एक पत्नी जो आर्थिक रूप से स्वतंत्र नहीं है , क्या उसके मन की सभी अभिलाषाएं पूरी हो पाती है ? यदि उस स्त्री के पास महीने के खर्चे का पूरा धन हो भी तो क्या वह उस धन को अपनी निजी ख़ुशी के लिए अधिकार के साथ इस्तेमाल कर पाएगी ? पति के धन को अपनी ख़ुशी के लिए कहीं खर्च करने से पहले उसे पहले अपने पति की अनुमति लेनी होगी ! यदि वह बिना बताये चुप-चाप उस धन को खर्च करती है तो उसके मन पर एक अनजाना सा बोझ रहता है !


तो फिर इसका विकल्प क्या है ? यदि कोई पत्नी एक छोटी सी धनराशी अपनी निजी ख़ुशी के लिए इस्तेमाल करना चाहती है , जिसका उल्लेख वह अपने पति से करना गैरजरूरी समझती है , तथा निजता की रक्षा के लिए अनुमति लेना असहज करता हो तो यह कैसे संभव है ? पत्नी काफी दुविधा से गुजरती है ! बिना बताये पति के धन का इस्तेमाल करने में अपराधबोध से ग्रस्त होती है ! तथा निजता की रक्षा हेतु अनुमति लेने का विकल्प भी उसे असहज करता है . अंततः वह अपनी छोटी-बड़ी कुछ अभिलाषाओं का दमन कर देती है और अपने पर्सनल स्पेस का गला घोंटकर खुद को परिवार की ज़रूरतों तक ही सीमित कर लेती है !

यह समस्या आर्थिक रूप से स्वतंत्र पत्नी को नहीं झेलनी पड़ती !चूँकि वह स्वयं कमाती है इसलिए अपनी खुशियों की पूर्ती के लिए उसे किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ता , न ही पति से बिल पास कराना पड़ता है !

दो ही विकल्प नज़र आते हैं ! स्वाभिमान के साथ जीने के लिए आर्थिक स्वतंत्रता अवश्य होनी चाहिए ! स्त्रियाँ यदि नौकरी कर रही हैं तो आर्थिक रूप से स्वतंत्र होती हैं , कांफिडेंट होती हैं , परिवार का सहयोग भी करती हैं और अपने कमाए हुए धन को अपनी मर्जी के अनुसार खर्च करके अपना पर्सनल स्पेस भी सुरक्षित रखती हैं !

लेकिन एक स्त्री जो अर्थोपार्जन नहीं कर रही है , उसके पति की जिम्मेदारी है की वो अपनी पत्नी को आर्थिक स्वतंत्रता अवश्य दे ! अपनी पत्नी के साथ जोइंट अकाउंट तो सभी खुलवाते हैं लेकिन आवश्यकता है की पत्नी के नाम एक separate खाता खुलवाना चाहिए , जिसमें अर्धांगिनी के लिए अपनी कमाई का आधा हिस्सा डालना चाहिए ! यदि आधा कुछ ज्यादा लगे तो अर्धांगिनी पर जितना भरोसा हो उसके अनुसार एक निश्चित राशि डालनी चाहिए , जिस पर सिर्फ पत्नी का अधिकार हो तथा जिसे वह बिना पति की अनुमति लिए इस्तेमाल कर सके और पति भी इस धन पर अनावाश्रक रूप से अपनी निगाह न रखे !

क्या एक गृहणी जो पति पर आर्थिक रूप से निर्भर है , इस आर्थिक स्वतंत्रता की अधिकारिणी है ? क्या पति अपनी पत्नी पर इतना भरोसा करता है की वह अपनी पत्नी को हर महीने एक निश्चित रकम देकर भूल जाये और पत्नी को यह एहसास दिलाये की उसका पति उसे प्यार के साथ-साथ उस पर भरोसा भी करता है और उसके निजी स्पेस का सम्मान भी करता है !

Thursday, July 21, 2011

सिमटते पन्ने - कहानी

आई ए एस की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद चंचल ने सात वर्ष तक नौकरी की , फिर कुछ परिस्थितियां ऐसी बनीं की नौकरी करना संभव नहीं हो सका ! चंचल ने अपनी अन्य जिम्मेदारियों के साथ लेखन में ही मन की शान्ति ढूंढ ली थी . लेखन के माध्यम से वह समस्त चराचर जगत से जुड़ गयी थी ! नाते रिश्ते , प्यार , जीवन मूल्य , संवेदनाएं और भावनाएं क्या होती हैं ये उसने लेखन के जुड़ने के बाद ही जाना था! लोगों को करीब से जानने और समझने लगी थी ! लेखन ही मानों उसका संसार हो गया था ! खुश थी वो ! समस्त सृष्टि भी उसके साथ उसकी खुशियों में शामिल थी ! उसे अपने जीवन का लक्ष्य मिल चुका था !

लेकिन मित्र विराग को ये अच्छा नहीं लगता था. वो उसकी खुशियों में शामिल नहीं हो पाता था ! उसे चंचल का लेखन फूटी आँखों नहीं सुहाता था ! हमेशा उससे यही कहता रहता था की उसका लेखन व्यर्थ है , वह अपनी शिक्षा और योग्यता का दुरुपयोग कर रही है ! वह चंचल से नौकरी करने के लिए कहता था ! वो कहता था की यदि चंचल पैसे कमाएगी तो उसे सबसे ज्यादा ख़ुशी होगी !

चंचल जानती थी की जो उसकी ख़ुशी में आज नहीं शामिल है वो उसको मिलने वाली कल किसी दूसरी उपलब्धि पर भला कैसे खुश हो सकता है ! लेकिन समय बलवान होता है ! विराग के बार बार कहने पर उसने नौकरी कर ली ! सफलता की अनेक ऊँचाइयाँ चढ़ती चली गयी ! धन के मार्ग पर एक बार आने के बाद कोई वापस मुड कर नहीं देखता ! चंचल बहुत आगे निकल चुकी थी ! वो पहले भी खुश थी ! और आज भी ! लेकिन विराग अब अकेला था ! चंचल को ढूंढता था उसके लिखे हुए पन्नों में !

Saturday, July 16, 2011

क्या हमारी मीडिया भटक गयी है ?

देश और समाज के हालात से अवगत कराने का कार्य मीडिया का है ! लेकिन क्या हमारी मीडिया इस कार्य को निष्ठा के साथ अंजाम दे रही है ? आम जनता की बहुत अपेक्षाएं जुडी होती हैं मीडिया के साथ , वो उसकी तरफ सहायता पाने की दृष्टि से देखती है. अपनी आवाज को ऊंचा करना चाहती है मीडिया की मदद से! और देश तथा परिवेश का पारदर्शिता से दिखाया गया आइना देखना चाहती है!

क्या हमारी मीडिया नकारात्मक हो गयी है ?

देश में बहुत कुछ सकारात्मक भी हो रहा है ! लेकिन हमारी मीडिया कहीं न कहीं चूक रही है विकास एवं तरक्की के कार्यों को दिखाने में ! बिना किसी पूर्वाग्रह के दोनों पक्षों को उजागर करना चाहिए. फैले भ्रष्टाचार और बुराइयों से अवगत कराते जहाँ हमें सचेत करती है तो वहीँ अच्छे एवं विकास कार्यों को दिखाकर कुछ स्फूर्ति एवं ताजगी भी देनी चाहिए! शिक्षा स्वास्थ्य एवं तकनीक में हो रहे विकास को भी दिखाना चाहिए! निरंतर नकारात्मक ही दिखा दिखा कर दिमाग तथा हमारी सोच को भी निराशा से भर देती है! यदि कहीं आतंकवाद है , तो कहीं सरकार के इस दिशा में सद्प्रयास भी दिखाने चाहिए! यदि भ्रष्टाचार है , तो आम जनता द्वारा उसके खिलाफ लड़ी और लोकपाल बिल जैसे सार्थक प्रयासों को भी जन जन तक पहुँचाना मीडिया का ही कर्तव्य है !


क्या मीडिया जनता की आवाज़ बन पाती है ?

आज हमारे देश में सही नेतृत्व की कमी है ! एक ऐसा नेता जो देश को प्रगति और विकास की दिशा में ले जा सके ! अपनी जनता के मन में आत्मविश्वास और स्फूर्ति दे सके ! ऐसी दशा में जब राजनीतिज्ञों से हटकर कोई अन्ना अथवा रामदेव जैसा व्यक्ति आगे आता है राष्ट्र -हित में तो समूचा देश उसके साथ हो जाता है इस उम्मीद में की अब शायद मुश्किलों से निजात मिलेगी ! यहाँ पर मीडिया का भी दायित्व है वे इन नेतृत्वों के अच्छे और सशक्त पक्षों को सामने रखें , राष्ट्र विकास में सहयोग दें और आम जनता की आवाज़ बनें !


क्या मीडिया युवा वर्ग को भ्रमित कर रही है ?

आजकल विभिन्न चैनलों पर जो हिंसा, अभद्रता , अश्लीलता परोसी जा रही है , वह युवा पीढ़ी को क्या दिशा दे रही है भला ? कुछ नहीं तो , कुछ अच्छे संस्कार देने वाले शैक्षणिक सीरियल , discussions अथवा debates दिखाई जातीं ! निरर्थक प्रोग्राम्स को दिखाने के बजाये विद्वानों द्वारा सार्थक चर्चाएँ प्रस्तुत की जा सकती हैं ! निरंतर ह्रास क्यूँ ? पहले किरण बेदी जी की अदालत आती थी तो अब राखी सावंत की अभद्रता , चैनल की शोभा बनी हुयी है ! कहीं पति-पत्नी का अनावश्यक विवाद ही हर चैनल पर दिखाया जाएगा ! देश और व्यक्तित्व का विकास करने वाले दृश्यों और घटनाओं की प्रस्तुति होनी चाहिए जिससे युवा वर्ग कुछ प्रेरणा ले सके और motivate हो सके !


क्या मीडिया जजमेंटल हो रही है ?

मीडिया का काम है जनता को पारदर्शिता के साथ सत्य से अवगत कराना न की अपने विचारों को उन पर थोपना ! जब मीडिया "बाबा का पाखण्ड" अथवा "बाबा की बाजीगरी " जैसे वक्तव्यों का प्रयोग करती है तब वह निष्पक्ष नहीं रह पाती , जजमेंटल हो जाती है और व्यक्ति विशेष को काले रंग में पेंट करने का अनुचित प्रयास करती है . मीडिया का धर्म है , सत्य को बिना मिलावट के प्रस्तुत करे और पाखंड आदि की विवेचना को पाठक और जनता के लिए अपने-अपने विवेक के अनुसार करने के लिए छोड़ दे ! मीडिया को पक्षपात और पूर्वाग्रहों से रहित होना चाहिए !



मीडिया रामदेव बाबा से तो द्वेष रखती है लेकिन राहुल बाबा और नित्यानंद बाबा के खिलाफ ज्यादा कुछ नहीं कहती ! राहुल बाबा जो देश के भावी प्रधानमन्त्री की तरह देखे जा रहे हैं , उनका कहना है की " आतंकवादी हमले बहुत से देश में होते हैं , इन्हें रोकना मुमकिन नहीं " ....तो राहुल बाबा जब इतने असमर्थ हैं तो इन्हें राजनीति में रहने की क्या ज़रुरत है! मीडिया इस बचकाना और गैरजिम्मेदाराना वक्तव्य को नहीं उछालती ! आखिर क्यूँ ?


क्या हमारी मीडिया किसी प्रकार से मजबूर है ?



यदि हम मीडिया पर दया दृष्टि रख कर सोचें तो एक बात विचारणीय है की कहीं हमारी किसी प्रकार के दबाव में तो कार्य नहीं कर रही . आखिर सत्ता रूढ़ शक्तियां इतनी ताकतवर हैं की उनके खिलाफ सच को सामने लाने से पहले ही मीडिया को खरीद लिया जाता हो , अथवा धमकी दी जाती हो . यदि यह सच है तो विकल्प क्या मीडिया की इमानदारी बनाये रखने के लिए.!


क्या हमारी मीडिया का व्यवसायीकरण तो नहीं हो रहा ?

आज विभिन्न बड़े बड़े अखबार मालिकों की Townships हर शहर में बन रही हैं , जिनके अति-महगें आवास नेताओं ने खरीद रखे हैं ! आज पत्रकारिता एक पारदर्शी आइना बनने के बजाये एक बिल्डर की तरह आवास-विकास योजना से संलग्न नज़र आ रही है !

आज हर चैनल और पत्रकारिता अपना TRP बढाने के लिए उसे sensational करने पर लगी हुयी है ! अपने वक्तव्यों एवं प्रस्तुतियों के प्रति जिम्मेदार नहीं रह जा रही है ! बड़े बड़े नेताओं के संपर्क में रहते हुए अपने मुख्य उद्देश्य से भटक रही है और लालच उन पर हावी हो रही है ! ए राजा केस में , नीरा राडिया आदि प्रकरण इसी और इशारा करते हैं !

मुझे लगता है मीडिया को निष्पक्ष , इमानदार और जिम्मेदार रहना चाहिए अपने कर्म के प्रति !


Zeal

Wednesday, July 13, 2011

धर्म क्या है ? -- 'सनातन धर्म'

हिन्दू , इस्लाम और ईसाई नामक धर्म नहीं हैं. धर्म केवल सनातन है ! सनातन शब्द का अर्थ है - "जिसका न आदि है न अंत "

अंग्रेजी का religion शब्द सनातन धर्म से थोडा भिन्न है !
Religion से श्रद्धा का भाव सूचित होता है और श्रद्धा बदल सकती है ! यही वजह है , विश्वास बदलने के साथ लोग अपना धर्म परिवर्तन कर लेते हैं! लेकिन सनातन धर्म उस धर्म का सूचक है जिसे बदला नहीं जा सकता ! सनातन धर्म किसी साम्प्रदायिक धर्म पद्धति का सूचक नहीं है! यह जीवों में उनके शाश्वत कर्म का निर्देश करता है, जैसे जल से उसकी तरलता और अग्नि से उसकी ऊष्मा विलग नहीं की जा सकती , ठीक उसी प्रकार शाश्वत जीव से उसके सनातन कर्म को अलग नहीं किया जा सकता! सनातन धर्म जीव का शाश्वत अंग है!

अज्ञानता बढ़ने के साथ अलग अलग सम्प्रदायों ने अलग अलग धर्मों का नामकरण कर दिया और आज उसी धर्म के नाम पर अलगाव वा मनमुटाव होते रहते हैं! लेकिन सनातन धर्म साम्प्रदायिक नहीं है! सनातन धर्म विश्व का ही नहीं अपितु ब्रम्हांड के समस्त जीवों का धर्म है!

सनातन धर्म जीव के साथ शाश्वत रूप से रहता है ! गीता में कहा गया है जीव न तो कभी जन्मता है , न ही कभी मरता है ! धर्म की धारणा यदि संस्कृत के मूल शब्द से समझी जाए तो धर्म वह है जो पदार्थ विशेष में शाश्वत रूप से रहता है! जीव का शाश्वत धर्म 'सेवा' है ! पृथ्वी पर उपस्थित जीव किसी न किसी रूप में , किसी की सेवा ही कर रहा है ! निम्न पशु मनुष्य की सेवा , सेवक स्वामी की, एक मित्र दुसरे मित्र की , माता अपनी संतान की , पति-पत्नी एक दुसरे की , दुकानदार ग्राहक की तथा चिकित्सक अपने रोगियों की सेवा में सतत संलग्न रहता है ! कोई भी जीव अन्य जीवों की सेवा करने से मुक्त नहीं है! अतः सेवा करना ही जीव का सनातन धर्म है !

एक डाक्टर जिसका नाम राम है , उसका धर्म चिकित्सा सेवा है! उसके पास सुरेश आये अथवा रहीम , उसका शाश्वत धर्म 'सेवा' ही रहेगा मनुष्य मात्र के लिए !

जब प्रत्येक जीव का शाश्वत धर्म 'सेवा' है तो आस्था के नाम पर साम्प्रदायिक होकर हिन्दू , इस्लाम और ईसाई जैसे वर्गीकरण की आवश्यकता क्या है ? और धर्मनिरपेक्ष होने का औचित्य क्या है?

धर्म केवल सनातन है , जिसका न आदि है न अंत है और जो शाश्वत जीव में उसके शास्वत कर्म 'सेवा' के रूप में रहता है ! सनातन धर्म शाश्वत और स्वयं में ही धर्मनिरपेक्ष है जो मानवता की सेवा भावना पर बल देता है.

Zeal