दिव्या दीदी पिछले कुछ समय से देख रहा हूँ कि आप अपने लेखों पर आने वाली टिप्पणियों का जवाब नहीं दे रही हैं| क्या कोई विशेष कारण है?
यह आपकी व्यक्तिगत इच्छा हो सकती है, किन्तु हम चाहते हैं कि आपके जवाब मिलें...क्योंकि कुछ टिप्पणीकार लेख की आड़ में व्यक्तिगत रूप से धावा बोलते हैं| इन्हें जवाब देना आवश्यक है| पहल हम में से कोई करेगा तो गुटबाजी का आरोप भी मढ़ सकते हैं|
आशा है आप समझ रही होंगी...
सादर....
दिवस...
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दिवस जी ,
अब जवाब इसलिए नहीं देती क्यूंकि मन में एक "विरक्ति" पैदा हो गयी है !
ये विरक्ति एक दिन में पैदा नहीं हुयी , एक कारण से पैदा नहीं हुयी बल्कि एक लम्बी अवधि , कई कारणों और लोगों का रुख देखने के बाद ही बाद ही पैदा हुयी है ! कुछ लोग बहुत aggressive हैं , वे वाद के स्थान पर विवाद करने लगते हैं , जिससे मन खिन्न हो जाता है ! ऐसे लोगों से वाद करके समय नष्ट करने से लाभ नहीं !
आपका जिस तरफ इशारा है , उससे अच्छी तरह समझ रही हूँ लेकिन उनसे भी ज्यादा व्यक्तिगत धावा कुछ अन्य लोग बोलते हैं , जिधर आपका ध्यान नहीं गया है।
मेरे आलेख हमेशा एक बड़े वर्ग से संबोधित होते हैं , लेकिन निराश होकर किसी को भी जवाब न देने का निर्णय मेरे स्वयं के मानसिक सुकून के लिए है ! लोगों के triggers विचलित न कर सकें यही प्रयास रहेगा।
इस "विरक्ति" के आने से थोडा सा सिमट गयी हूँ खुद में.... शायद मेरे लिए यही बेहतर है ! फिर भी यही कोशिश रहेगी की अपने आलेखों और दुसरे ब्लौग पर की गयी टिप्पणियों में इमानदार रह सकूँ !
It is wise to bend rather than to break. Those who change will get spiritual wisdom. Conversely, those who have wisdom will decide to change. Change is the first law of Nature।
मेरे निराशाजन्य निर्णय से बहुतों को निराशा हुयी है , जिसका मुझे खेद है , लेकिन संभव है इसका कोई बेहतर परिणाम आये !
Just trying to maintain a very low profile.
कमेन्ट आप्शन बंद है !
Zeal