भ्रष्टाचार के खिलाफ आजादी की इस लड़ाई में शहीद होने वाले , भारत माता के वीर सुपुत्र श्री अरुण दास जी को विनम्र श्रद्धांजली। सेनापति की सफलता पर बधाई लेकिन सेना के शहीदों को भुलाया नहीं जा सकता। कोई भी आजादी बिना बलिदान लिए नहीं मिलती। इतना व्यस्त भी क्या होना की जाने वाले के लिए दो पल न निकाले जा सकें उनको श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए। जिनकी आज हर तरफ जय जयकार हो रही है , उनका भी नैतिक दायित्व है की अपने साथ अनशन पर बैठे लोगों को और शहीद हो जाने वालों को बीच-बीच में याद कर लें।
एक अफ़सोस है की हमारे देश में मीडिया सिर्फ आसमान में चमकने वालों पर ज्यादा केन्द्रित रहता है। आम-जन जिस जज्बे को लेकर क्रान्ति की आंच को बढ़ता है , उसकी कोई गणना नहीं। स्वामी निगमानंद शहीद हो गए , अरुण दास शहीद हो गए , न मीडिया ने इसको दिखाना जरूरी समझ , न ही सरकार इन बलिदानों के प्रति स्वयं को जिम्मेदार समझती है।
कहाँ मिलेंगे ऐसे अनमोल हीरे हमारे भारत को ? अत्यंत दुःख के साथ भारत के अनमोल रत्नों को विनम्र श्रद्धांजलि।
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हम भी आराम उठा सकते थे घर पर रह कर,
हमको भी पाला था माँ-बाप ने दुःख सह-सह कर ,
वक्ते-रुख्सत उन्हें इतना भी न आये कह कर,
गोद में अश्क जो टपकें कभी रुख से बह कर ,
तिफ्ल उनको ही समझ लेना जी बहलाने को !
अपनी किस्मत में अजल ही से सितम रक्खा था,
रंज रक्खा था मेहन रक्खी थी गम रक्खा था ,
किसको परवाह थी और किसमें ये दम रक्खा था,
हमने जब वादी-ए-ग़ुरबत में क़दम रक्खा था ,
दूर तक याद-ए-वतन आई थी समझाने को !
अपना कुछ गम नहीं लेकिन ए ख़याल आता है,
मादरे-हिन्द पे कब तक ये जवाल आता है ,
कौमी-आज़ादी का कब हिन्द पे साल आता है,
कौम अपनी पे तो रह-रह के मलाल आता है ,
मुन्तजिर रहते हैं हम खाक में मिल जाने को !
नौजवानों! जो तबीयत में तुम्हारी खटके,
याद कर लेना कभी हमको भी भूले भटके ,
आपके अज्वे-वदन होवें जुदा कट-कट के,
और सद-चाक हो माता का कलेजा फटके ,
पर न माथे पे शिकन आये कसम खाने को !
एक परवाने का बहता है लहू नस-नस में,
अब तो खा बैठे हैं चित्तौड़ के गढ़ की कसमें ,
सरफ़रोशी की अदा होती हैं यूँ ही रस्में,
भाई खंजर से गले मिलते हैं सब आपस में ,
बहने तैयार चिताओं से लिपट जाने को !
सर फ़िदा करते हैं कुरबान जिगर करते हैं,
पास जो कुछ है वो माता की नजर करते हैं ,
खाना वीरान कहाँ देखिये घर करते हैं!
खुश रहो अहले-वतन! हम तो सफ़र करते हैं ,
जा के आबाद करेंगे किसी वीराने को !
नौजवानो ! यही मौका है उठो खुल खेलो,
खिदमते-कौम में जो आये वला सब झेलो ,
देश के वास्ते सब अपनी जबानी दे दो ,
फिर मिलेंगी न ये माता की दुआएँ ले लो ,
देखें कौन आता है ये फ़र्ज़ बजा लाने को ?
-------------
चर्चा अपने क़त्ल का अब दुश्मनों के दिल में है,
देखना है ये तमाशा कौन सी मंजिल में है ?
कौम पर कुर्बान होना सीख लो ऐ हिन्दियो !
ज़िन्दगी का राज़े-मुज्मिर खंजरे-क़ातिल में है !
साहिले-मक़सूद पर ले चल खुदारा नाखुदा !
आज हिन्दुस्तान की कश्ती बड़ी मुश्किल में है !
दूर हो अब हिन्द से तारीकि-ए-बुग्जो-हसद ,
अब यही हसरत यही अरमाँ हमारे दिल में है !
बामे-रफअत पर चढ़ा दो देश पर होकर फना ,
'बिस्मिल' अब इतनी हविश बाकी हमारे दिल में है !-
------
मिट गया जब मिटने वाला फिर सलाम आया तो क्या !
दिल की बर्वादी के बाद उनका पयाम आया तो क्या !
मिट गईं जब सब उम्मीदें मिट गए जब सब ख़याल ,
उस घड़ी गर नामावर लेकर पयाम आया तो क्या !
ऐ दिले-नादान मिट जा तू भी कू-ए-यार में ,
फिर मेरी नाकामियों के बाद काम आया तो क्या !
काश! अपनी जिंदगी में हम वो मंजर देखते ,
यूँ सरे-तुर्बत कोई महशर-खिराम आया तो क्या !
आख़िरी शब दीद के काबिल थी 'बिस्मिल' की तड़प ,
सुब्ह-दम कोई अगर बाला-ए-बाम आया तो क्या !
उपरोक्त ओजस्वी कवितायें , अमर शहीद 'राम प्रसाद बिस्मिल' की लिखी हुयी है। इन को हम तक पहुंचाने के लिए डॉ क्रांत वर्मा का हार्दिक आभार।
Zeal
एक अफ़सोस है की हमारे देश में मीडिया सिर्फ आसमान में चमकने वालों पर ज्यादा केन्द्रित रहता है। आम-जन जिस जज्बे को लेकर क्रान्ति की आंच को बढ़ता है , उसकी कोई गणना नहीं। स्वामी निगमानंद शहीद हो गए , अरुण दास शहीद हो गए , न मीडिया ने इसको दिखाना जरूरी समझ , न ही सरकार इन बलिदानों के प्रति स्वयं को जिम्मेदार समझती है।
कहाँ मिलेंगे ऐसे अनमोल हीरे हमारे भारत को ? अत्यंत दुःख के साथ भारत के अनमोल रत्नों को विनम्र श्रद्धांजलि।
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हम भी आराम उठा सकते थे घर पर रह कर,
हमको भी पाला था माँ-बाप ने दुःख सह-सह कर ,
वक्ते-रुख्सत उन्हें इतना भी न आये कह कर,
गोद में अश्क जो टपकें कभी रुख से बह कर ,
तिफ्ल उनको ही समझ लेना जी बहलाने को !
अपनी किस्मत में अजल ही से सितम रक्खा था,
रंज रक्खा था मेहन रक्खी थी गम रक्खा था ,
किसको परवाह थी और किसमें ये दम रक्खा था,
हमने जब वादी-ए-ग़ुरबत में क़दम रक्खा था ,
दूर तक याद-ए-वतन आई थी समझाने को !
अपना कुछ गम नहीं लेकिन ए ख़याल आता है,
मादरे-हिन्द पे कब तक ये जवाल आता है ,
कौमी-आज़ादी का कब हिन्द पे साल आता है,
कौम अपनी पे तो रह-रह के मलाल आता है ,
मुन्तजिर रहते हैं हम खाक में मिल जाने को !
नौजवानों! जो तबीयत में तुम्हारी खटके,
याद कर लेना कभी हमको भी भूले भटके ,
आपके अज्वे-वदन होवें जुदा कट-कट के,
और सद-चाक हो माता का कलेजा फटके ,
पर न माथे पे शिकन आये कसम खाने को !
एक परवाने का बहता है लहू नस-नस में,
अब तो खा बैठे हैं चित्तौड़ के गढ़ की कसमें ,
सरफ़रोशी की अदा होती हैं यूँ ही रस्में,
भाई खंजर से गले मिलते हैं सब आपस में ,
बहने तैयार चिताओं से लिपट जाने को !
सर फ़िदा करते हैं कुरबान जिगर करते हैं,
पास जो कुछ है वो माता की नजर करते हैं ,
खाना वीरान कहाँ देखिये घर करते हैं!
खुश रहो अहले-वतन! हम तो सफ़र करते हैं ,
जा के आबाद करेंगे किसी वीराने को !
नौजवानो ! यही मौका है उठो खुल खेलो,
खिदमते-कौम में जो आये वला सब झेलो ,
देश के वास्ते सब अपनी जबानी दे दो ,
फिर मिलेंगी न ये माता की दुआएँ ले लो ,
देखें कौन आता है ये फ़र्ज़ बजा लाने को ?
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चर्चा अपने क़त्ल का अब दुश्मनों के दिल में है,
देखना है ये तमाशा कौन सी मंजिल में है ?
कौम पर कुर्बान होना सीख लो ऐ हिन्दियो !
ज़िन्दगी का राज़े-मुज्मिर खंजरे-क़ातिल में है !
साहिले-मक़सूद पर ले चल खुदारा नाखुदा !
आज हिन्दुस्तान की कश्ती बड़ी मुश्किल में है !
दूर हो अब हिन्द से तारीकि-ए-बुग्जो-हसद ,
अब यही हसरत यही अरमाँ हमारे दिल में है !
बामे-रफअत पर चढ़ा दो देश पर होकर फना ,
'बिस्मिल' अब इतनी हविश बाकी हमारे दिल में है !-
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मिट गया जब मिटने वाला फिर सलाम आया तो क्या !
दिल की बर्वादी के बाद उनका पयाम आया तो क्या !
मिट गईं जब सब उम्मीदें मिट गए जब सब ख़याल ,
उस घड़ी गर नामावर लेकर पयाम आया तो क्या !
ऐ दिले-नादान मिट जा तू भी कू-ए-यार में ,
फिर मेरी नाकामियों के बाद काम आया तो क्या !
काश! अपनी जिंदगी में हम वो मंजर देखते ,
यूँ सरे-तुर्बत कोई महशर-खिराम आया तो क्या !
आख़िरी शब दीद के काबिल थी 'बिस्मिल' की तड़प ,
सुब्ह-दम कोई अगर बाला-ए-बाम आया तो क्या !
उपरोक्त ओजस्वी कवितायें , अमर शहीद 'राम प्रसाद बिस्मिल' की लिखी हुयी है। इन को हम तक पहुंचाने के लिए डॉ क्रांत वर्मा का हार्दिक आभार।
Zeal
37 comments:
अरुण दास जी को विनम्र श्रद्धांजलि
यही खलिश तो परेशान करती है. रोज हमारी सीमाओं पर बहादुर अपनी जान न्यौछावर करते हैं और हम वार्ता की मेज पर जाम टकराते हैं.
भ्रष्टाचार के खिलाफ आजादी की इस लड़ाई में शहीद होने वाले , भारत माता के वीर सुपुत्र श्री अरुण दास जी को विनम्र श्रद्धांजली
अश्रुपूरित विनम्र श्रद्धांजलि, जनहित में प्राण न्योच्छावर करने वाले शहीद अरुण दास जी को ।
मै श्रद्धावनत हूँ .
अरुण दास जी को विनम्र श्रद्धांजलि
सही कहा है आपने........मीडिया सिर्फ चमकते हुए तारों को ही दिखा रहा है.......इन सच्चे देशभक्तों को हमारी श्रद्धाजलि | |
अरूण दास को विनम्र श्रद्धांजलि।
इतिहास उन्हें नम आँखों से याद रखेगा।
मेरी ओर से भी भावभीनी श्रद्धांजलि।
hum unhe hamesha yaad rakhne ki kosis karenge, in sacceh deshbhakto ko hamari bhavbhini shradhanjali
कहावत है, "हाथी के पैर में सबका पैर", इसी विचार के आधार पर शायद होली, दीवाली (यद्यपि बच्चन के अनुसार 'मधुशाला' में प्रत्येक दिन सुबह और शाम!) आदि त्यौहार 'भारत' में एक दिन मनाये जाते हैं प्रति वर्ष,,,, स्वार्थी, राक्षश राज, रावण का भी पुतला जलता है दशहरे के दिन ही... 'शहीद दिवस' भी स्वतंत्र भारत में, महात्मा गाँधी के उस दिन '४८ में शहीद होने के कारण, ३० जनवरी को मनाया जाता है...
सत्य के लिए अपनी बली देने वाले सभी शहीदों को भाव भीनी श्रद्धांजलि अर्पित है!
भगवान् से प्रार्थना है कि वो सभी दिवंगत आत्माओं को शांति प्रदान करें!
ॐ शांतिः शांतिः !
अरूण दास जी को विनम्र श्रद्धांजलि ... ।
अरुण दास जी को श्रद्धा-पुष्प अर्पण करती हूँ !
- उनके पारिवार की भी सुध ली जानी चाहिये.
विनम्र श्रद्धांजलि उस बलिदानी को ....
अरूण दास जी को विनम्र श्रद्धांजलि ... ।
वैसे आपका कहना बिलकुल ठीक है . मीडिया की भूमिका, संदेहास्पद, हास्यास्पद , विवादास्पद और न जाने क्या क्या रहती है.
किसी एक व्यक्ति को केंद्र में रख कर औरों की भूमिका को नज़र अंदाज़ कर देना सर्वथा अनुचित है. स्वामी निगमानंद के बलिदान को भी कम नहीं आँका जा सकता .
अरुण दास जी को श्रधांजलि
विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित हैं ...
भावभीनी श्रद्धांजलि.......
अरुण दास जी को विनम्र श्रद्धांजलि
विनम्र श्रद्धांजलि
शहीदों को विनम्र श्रधांजलि .
दिव्या दीदी
शहीद अरुण दास के बारे में जब सुना था तो दुःख तो ज़रूर हुआ किन्तु उससे भी बड़ा दुःख तब हुआ जब उनकी शहादत को भुला दिया गया|
इस पूरे आन्दोलन में शहादत पाने वाले वे अकेले ही थे, किन्तु आन्दोलन की समाप्ति पर अरविन्द केजरीवाल द्वारा सभी को धन्यवाद दिया गया| यहाँ तक कि भारत के सबसे बड़े चोरों में से एक विलासराव देशमुख को भी धन्यवाद दिया गया| लेकिन शहीद अरुण दास को भुला दिया गया| यहाँ तक कि जिन बाबा रामदेव ने अपने समर्थकों को आन्दोलन का समर्थन करने के लिए प्रेरित किया था, दिल्ली के रामलीला मैदान में बैठे लोगों में से आधे से अधिक जिन बाबा रामदेव के समर्थक थे, उन्हें ही भुला दिया गया| शहीद अरुण दास भी भारत स्वाभिमान के कार्यकर्ता ही थे|
उनको इसीलिए भुलाया गया क्योंकि वे बाबा रामदेव के समर्थक थे| मीडिया तो बहुत दूर की बात है दिव्या दीदी, स्वयं आन्दोलन करने वाले पुरोधाओं ने भी इस महान शहीद को भुला दिया|
विनम्र श्रद्धांजलि
विनम्र श्रद्धांजलि...
मेरी ओर से भी भावभीनी श्रद्धांजलि।
भावभीनी श्रद्धांजलि।
विनम्र श्रद्धांजलि
अरुण दासजी को भाव -भीनी श्रधांजलि ..... मीडिया की यह बहुत बड़ी भूल है
इतिहास में स्वर्णाक्षरों मे याद किये जाने वाले शहीद श्री अरुण दास को विनम्र श्रद्धांजली.
रामराम.
अरुण दास जी की शहादत को देशवासी याद रखेंगे।
उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि।
अरुण दास जी को विनम्र श्रद्धांजलि । विश्मिल जी कि ओजस्वी व रोमांचित करने वाली कविता प्रस्तुत करने हेतु हार्दिक आभार।
शहीद अरुण दास जी को अश्रुपूर्ण नयनो ने बिनम्र श्रधांजली !
शहीद अरुण दास जी को विनम्र श्रद्धांजलि।
एक चीज और, मुझे कुछ धर्मिक किताबें यूनीकोड में चाहिये, क्या कोई वेबसाइट आप बता पायेंगें,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
हमारी भाव-भीनी श्रद्धांजलि.बिस्मिल जी की तीनों अमर रचनाओं ने भावुक कर दिया.
Thanks for bringing it to attention.
(PS:- In most countries media is always focused on news..)
अनजाने शहीदों को याद रखना सबसे बड़ी श्रद्धांजली है.
सर फ़िदा करते हैं कुरबान जिगर करते हैं,
पास जो कुछ है वो माता की नजर करते हैं ,
खाना वीरान कहाँ देखिये घर करते हैं!
खुश रहो अहले-वतन! हम तो सफ़र करते हैं ,
जा के आबाद करेंगे किसी वीराने को !
बिस्मिल की ये पंक्तियाँ आत्मा तक पहुँचाने के लिए आभार.
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