मारो , पीटो , बंदी बनाओ - यही है भारतीय सरकार की रणनीति ! कुचल दो , दमन कर दो , बुझा दो लोगों के दिलों में धधकती आग को , दबा दो जागरूक होती आवाजों को - यही है पहचान , भारतीय लोकतंत्र की !
कितने अन्ना और रामदेव को मारोगे, जिन्होंने अपने जैसे करोड़ों तैयार कर दिए हैं । भारत-भूमि , देशभक्तों , सत्याग्रहियों , अहिंसावादियों , सत्यवादियों और स्पष्ट्वादियों से अभी खाली नहीं हुयी है । आन्दोलन जारी रहेगा। दमन की नीति कारगर नहीं हो सकेगी । लोकतंत्र सही अर्थों में बहाल होगा ।
गरीब जनता बढती महंगाई और भूखमरी से त्रस्त होकर आत्महत्या का विकल्प चुन रही है , जिसके लिए सरकार जिम्मेदार है। हमारी सरकार तानाशाही की मिसाल कायम कर रही है। छोटे से लेकर बड़े , हर स्तर पर भ्रष्टाचार व्याप्त है। ऐसे में अन्ना की मांग जायज है और बहुत जरूरी भी है। जनता की हर इकाई की यही मांग है। लोकपाल बिल के दायरे में सभी को होना चाहिए। आखिर डर किस बात का ? डर तो सिर्फ चोरों को लगना चाहिए। जो सही है उसे भय किस बात का?
वैसे हमारी सरकार इतनी भी कमज़ोर नहीं। आजादी के ६४ वर्षों में बड़ी उस्तादी से कुर्सी बचाए हुए है। एक अरब जनता को मूर्ख बनाना कोई मामूली काम नहीं है। अन्ना , रामदेव और उनके साथ उठती लाखों आवाजों का दमन करना कोई हमारी सरकार से सीखे।
लोगों का कहना है कि सभी राजनीतिक पार्टियाँ एक सी ही हैं , सरकार बदलने से कोई लाभ नहीं । यदि यह सच है तो भी तख्ता पलटना चाहिए और यह सिलसिला तब तक जारी रहना चाहिए जब तक हम पर शासन करने वाली सरकारें अपनी जनता के हित में सोचना न सीख जाएँ ।
हमारे बेशकीमती मतों का लाभ स्वार्थी सरकार आराम से ले रही है। हमारी सरकार कमज़ोर है, डरपोक भी। स्वार्थी और अलोकतांत्रिक भी। भ्रष्ट भी और असंवेदनशील भी। जो जनता कि आवाज़ का दमन करे , वह असंवैधानिक और अनैतिक भी है।
Zeal
कितने अन्ना और रामदेव को मारोगे, जिन्होंने अपने जैसे करोड़ों तैयार कर दिए हैं । भारत-भूमि , देशभक्तों , सत्याग्रहियों , अहिंसावादियों , सत्यवादियों और स्पष्ट्वादियों से अभी खाली नहीं हुयी है । आन्दोलन जारी रहेगा। दमन की नीति कारगर नहीं हो सकेगी । लोकतंत्र सही अर्थों में बहाल होगा ।
गरीब जनता बढती महंगाई और भूखमरी से त्रस्त होकर आत्महत्या का विकल्प चुन रही है , जिसके लिए सरकार जिम्मेदार है। हमारी सरकार तानाशाही की मिसाल कायम कर रही है। छोटे से लेकर बड़े , हर स्तर पर भ्रष्टाचार व्याप्त है। ऐसे में अन्ना की मांग जायज है और बहुत जरूरी भी है। जनता की हर इकाई की यही मांग है। लोकपाल बिल के दायरे में सभी को होना चाहिए। आखिर डर किस बात का ? डर तो सिर्फ चोरों को लगना चाहिए। जो सही है उसे भय किस बात का?
वैसे हमारी सरकार इतनी भी कमज़ोर नहीं। आजादी के ६४ वर्षों में बड़ी उस्तादी से कुर्सी बचाए हुए है। एक अरब जनता को मूर्ख बनाना कोई मामूली काम नहीं है। अन्ना , रामदेव और उनके साथ उठती लाखों आवाजों का दमन करना कोई हमारी सरकार से सीखे।
लोगों का कहना है कि सभी राजनीतिक पार्टियाँ एक सी ही हैं , सरकार बदलने से कोई लाभ नहीं । यदि यह सच है तो भी तख्ता पलटना चाहिए और यह सिलसिला तब तक जारी रहना चाहिए जब तक हम पर शासन करने वाली सरकारें अपनी जनता के हित में सोचना न सीख जाएँ ।
हमारे बेशकीमती मतों का लाभ स्वार्थी सरकार आराम से ले रही है। हमारी सरकार कमज़ोर है, डरपोक भी। स्वार्थी और अलोकतांत्रिक भी। भ्रष्ट भी और असंवेदनशील भी। जो जनता कि आवाज़ का दमन करे , वह असंवैधानिक और अनैतिक भी है।
74 comments:
very nice.... i agree with you.
अन्ना तो पूरा अन्ना है और देसी है , कांग्रेसी है
अगर कोई गन्ना भी खड़ा हो किसी बुराई के खि़लाफ़ तो हम हैं उसके साथ।
कांग्रेसी नेता कह रहे हैं कि अन्ना ख़ुद भ्रष्ट हैं।
हम कहते हैं कि यह मत देखो कौन कह रहा है ?
बल्कि यह देखो कि बात सही कह रहा है या ग़लत ?
क्या उसकी मांग ग़लत है ?
अगर सही है तो उसे मानने में देर क्यों ?
अन्ना चाहते हैं कि चपरासी से लेकर सबसे आला ओहदा तक सब लोकपाल के दायरे में आ जाएं और यही कन्सेप्ट इस्लाम का है।
कुछ पदों को बाहर रखना इस्लाम की नीति से हटकर है।
अन्ना की मांग इंसान की प्रकृति से मैच करती है क्योंकि यह मन से निकल रही है, केवल अन्ना के मन से ही नहीं बल्कि जन गण के मन से।
इस्लाम इसी तरह हर तरफ़ से घेरता हुआ आ रहा है लेकिन लोग जानते नहीं हैं।
आत्मा में जो धर्म सनातन काल से स्थित है उसी का नाम अरबी में इस्लाम अर्थात ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण है और भ्रष्टाचार का समूल विनाश इसी से होगा।
आपकी रचना देखी जा रही है ब्लॉगर्स मीट वीकली में .
हमारी कामना है कि आप हिंदी की सेवा यूं ही करते रहें। सोमवार को
ब्लॉगर्स मीट वीकली 4 में आप सादर आमंत्रित हैं।
बेहतर है कि ब्लॉगर्स मीट ब्लॉग पर आयोजित हुआ करे ताकि सारी दुनिया के कोने कोने से ब्लॉगर्स एक मंच पर जमा हो सकें और विश्व को सही दिशा देने के लिए अपने विचार आपस में साझा कर सकें।
@ दिव्या जी,
सीधी-सपाट बयानी ... लेकिन इतनी अधिक असरकारी कि वर्तमान 'जनआक्रोश' को सही-सही व्यक्त कर रही है.
प्रायः हमें जिस पर घृणा मिश्रित अत्यंत क्रोध होता है ... उसके लिये मुख गालियों से पटा होता है और बददुआओं के हार उसके गले में डालने की उत्सुकता हरदम बनी रहती है... किन्तु आपने फिर भी अपने आक्रोश को संतुलित रखा ...
आपकी पोस्ट पढ़कर मुझे लगा कि ... शालीनता से व्यक्त आक्रोश भी 'अन्ना के अनशन' से कम प्रभावी नहीं होता.
आज हर जगह मुझे 'कांग्रेस पीड़ित' नज़र आते हैं.... गली-मौहल्ले में जो कांग्रेसी कार्यकर्ता घूमा करते थे ... वे आज़ अपने को कांग्रेसी बतलाने पर शरम महसूस करने लगे हैं. हमारे आस-पास 'कांग्रेसी' संबोधन 'भद्दी गाली' बनकर विकसित हो रहा है.
सही लिखा है आपने डा. दिव्या जी! हमारे कीमती वोटों पर राज करने वाले आज यह भी भूल गए हैं कि लोकतंत्र देश में वो कितना बड़ा अलोकतंत्रीय कृत्य कर रहें हैं ! जनता के अधिकारों का हनन करना और उनकी आवाजों को दबाना तो जैसे इनकी आदत बन चुकी है ! देश को नोच कर खाने वाले और कमजोर करने वाले ऐसे नेताओं कि क्या हमें वास्तव में ज़रूरत है ,आज यह सोचने का वक्त आ चुका है !
आज पूरा विश्व अन्ना हजारे जी के जज्बे को सलाम कर रहा है ! अगर आज भारत को बदलना है तो हमें अन्ना जी का समर्थन जी जान से करना होगा !
धन्यवाद !
"हमारी सरकार कमज़ोर है, डरपोक भी। स्वार्थी और अलोकतांत्रिक भी। भ्रष्ट भी और असंवेदनशील भी।"
इस सरकार की सब से बड़ी सफलता यह है कि यह जनता के पास प्रभुसत्ता भी नहीं सुरक्षित नहीं रहने देती. देखते हैं कब तक. अभी तो देश में संविधान के साथ खिलवाड़ के प्रयोग चल रहे हैं.
बस ! अब बहुत हो चुका है , कितने अन्ना और रामदेव को मारोगे, जिन्होंने अपने जैसे करोड़ों तैयार कर दिए हैं ।
जो भी दिल्ली मैं आकर लोकतंत्र की रक्षार्थ आवाज बुलंद करेगा उसे जबरन सरकारी विमान में डालकर दिल्ली से बाहर कर दिया जायेगा , ऐसा लगता है मानो दिल्ली देश की राजधानी न होकर चंद लोगों की बफौती बनकर रह गई है,
आभार उपरोक्त पोस्ट हेतु....
बढ़िया समसामयिक पोस्ट.... स्पाइनलेस सरकार तो डरेगी ही जनता की आवाज़ से...
दिव्या जी, आपने कहा, "हमारे बेशकीमती मतों का लाभ स्वार्थी सरकार आराम से ले रही है। हमारी सरकार कमज़ोर है, डरपोक भी।स्वार्थी और अलोकतांत्रिक भी। भ्रष्ट भी और असंवेदनशील भी। जो जनता कि आवाज़ का दमन करे , वहअनैतिक भी है। "...
जो दिखाई दे रहा है, उसके अनुसार आपने एक दम 'सत्य' कहा है,,, किन्तु हमारे पूर्वजों के दृष्टिकोण से यह 'माया' के कारण (एक परदे पर दीखते फिल्म समान) 'हमें' दिख रहा है,,, क्यूंकि काल-चक्र उल्टा चलता है - जिस कारण जो आपको वर्तमान लग रहा है, वास्तव में वो भूतनाथ यानि महाकाल का इतिहास है, भूत है, यानि आरंभिक स्थिति जब 'सागर मंथन', अर्थात उत्पत्ति, ब्रह्मनाद से आरम्भ हुई थी हमारे सौर-मंडल की, जो आज अनंत शून्य में साढ़े चार अरब वर्षों से विद्यमान है अमृत प्राप्ति के कारण...
कांग्रेस इस समय कुछ वैसा ही आचरण कर रही है जैसा इन्दिरा गांधी सरकार ने आपातकाल के दौरान किया था। सरकार को यह अतिआत्मविश्वास है कि जनता के पास कांग्रेस का कोई विकल्प नहीं है और उसे चुनना जनता की मजबूरी है। लेकिन कांग्रेस के साथ इस बार भी आम चुनाव में वैसा ही न हो जैसा आपातकाल के बाद चुनावों में इन्दिरा गांधी के समय की कांग्रेस के साथ हुआ था।
बढ़िया और सार्थक पोस्ट..सुन्दर.
आपने सच ही लिखा है मगर जिस प्रकार सूर्योदय से ठीक पहले घोर अन्धेरा होता है उसी प्रकार वर्तमान स्थिति जान पड़ रही. इन दुष्टों का इतिहास कोई बीस पच्चीस साल का होगा, मगर मुझे यकीन है की सज्जन व्यक्तियों का फिर से वक्त आएगा.....हमारा समवेत स्वर ही कुछ कर सकता है...आज जो चुप है वो भी अपराधी ही होगा.
आभार
Mam Sarkar jaise bhi hai , leking RAAJ to fir bhi kar rahi hai na ... yahi wajah hai ki hindustan peeche ja raha hai.. sarkar ko dara ke kya millega ... zaroorat hai to in lalchi leaders ko mitane ka .. yeh sarkar gayi kal doosri ayegi FIr wohi kahani shuru..
Zaroorat hai kuch aise leadaron ki jo DESH ke liye kuch karen .. na ki sirf apne liye.. APNE liye karo lekin DESH ka bhi kuch to karo...
Bikram's
जनतंत्र में जनता के पास विरोध का और कोई औजार नहीं है।
आवाज़ उठाना और सरकार अगर विरोध पर कान न धरे तो सत्याग्रह, अनशन आदि ही विकल्प है। हड़तालें देश का नुक्सान करती है। शान्तिप्रिय आन्दोलन ही मात्र अनुकूल मार्ग है। यदि उसका भी दमन होगा तो लोकतंत्र, लोकतंत्र कहलाने अधिकार ही खो देगा।
बढ़िया और सार्थक पोस्ट..सुन्दर.
बहुत सटीक बात कही है आपने .शुक्रिया
blog paheli
बिल्कुल सही कहा है आपने ...हर शब्द सार्थकता के ओज से परिपूर्ण ..आभार ।
मैं अन्ना हज्जारे का समर्थक नहीं विरोधी हूँ
!!!! " क्यों " ???????????
मित्रो हम भारत से "भ्रष्टाचार" मिटाने के लिये इतने ही कटिबद्ध है जितने की एक माँ अपने बच्चे के मुह से गंदगी साफ़ करने के लिए होती है. भ्रष्टाचार देश के ऊपर लगा वो कलंक है जिस से देश के तिरंगे का रंग भी धूमिल हो रहा है. यह भारत माता के दुपट्टे पर वो गन्दा दाग है जिस से भारत माता भी शर्मिंदा है. परन्तु क्या श्री अन्ना हज्जारे जी वास्तव में इस दाग को हटाना चाहते है या सिर्फ चंद लोगो के मोहरे बनकर देश को एक अँधेरी खाई में गर्त करना चाहते है. उनके इस गैर जिम्मेदार रवैये और अदुर्दार्शिता के कारण "मैं" उनके आन्दोलन का समर्थन नहीं करता. परन्तु कांग्रेस सरकार का विरोध करता हूँ इस बात के लिए की देश में विरोध करने का अधिकार वो देश के नागरिको से नहीं छीन सकती है.
मैं अन्ना हज्जारे के आन्दोलन का विरोधी हूँ क्योंकि -
http://parshuram27.blogspot.com/2011/08/blog-post.html
सार्थक आलेख.सरकार को दोष तो दिया ही जायेगा किन्तु क्या केवल वही दोषी है वास्तविक दोषी तो हम हैं जो अपने स्वार्थ पूरे करने के लिए इस सरकार को चुनते हैं जब हमारा कोई काम होने की बात आती है तो हम ही हैं जो ये कहते हैं की भाई जैसे भी हो हमारा काम करा दो हम क्यों नहीं कहते की हमारा काम हो या न हो हम भ्रष्टाचार से अपना काम नहीं कराएँगे.इसलिए पहले हमें अपने गिरेबां में झांकना होगा और ऐसी सरकार को चुनने से दूर रहना होगा क्योंकि ये भी कोई आकाश से उतरी हुई नहीं है हमारे बीच के लोगों में से ही चुनी गयी है.
आज तो हर जगह अन्ना ही अन्ना है, यहाँ भी है।
सिर्फ़ दो बंदों से डर गयी है डरपोक सरकार?
सुन्दर विचारणीय पोस्ट.
सरकार को जनता की आवाज सुननी ही पड़ेगी.
नेपथ्य में जो बाबा रामदेव के साथ किया उसकी पुनरावृत्ति करती दिखी सरकार और सरकार के वही चेहरे भी सामने आये . मेरे एक मित्र कहते है में सरकार, श्री मनीष तिवारी को देखते ही टीवी का स्विच बंद कर देता हूँ, कपिल जी को देखते ही हंसने लगता हूँ ,चिदंबरम जी की अंग्रेजी समझ में ही नहीं आती और प्रधानमंत्री जी की बार-बार शर्मिंदगी पर तरस आता है. जब सरकार के निर्णय हास्यास्पद हो जाए और आम जनता उसे सज्ञान में ही न ले तो क्या होगा..? सोचने का विषयसे है..गहन मनन का विषय है .. गंभीरता से सोचे शायद आप समझ जाये राहुल गांधी के ताजपोशी का महूरत बना लिया गया है . अब देश को सम्हालना जो है भले सरकार की भद्द हो जाये .
dam hai to kham hai... umra ki kya baat !
sarthak aur satik post
मै जनलोकपाल बिल का समर्थन करता हूँ.और चाहता हूँ कि जनलोकपाल बिल बने.
लेकिन अन्ना हजारे का मै घोर विरोधी हूँ.
उसके कई कारण है.एक कारण तो ये भी है कि
इसी अन्ना हजारे ने राज ठाकरे की उत्तर भारतीयो के खिलाफ नीति का समर्थन किया था.
खैर इस कारण को भी भुलाया जा सकता था.
लेकिन जो पिछले कुछ महिनो मे इसने बाबा रामदेव को जलन के कारण बुरा भला कहा है
उसको भुलाया नही जा सकता .
वो भी तब जब ये बाबा रामदेव के मंच के सहारे अपना चेहरा चमकाते रहे है.
मै लोकपाल बिल का पूरा समर्थन करता हूँ
लेकिन मै देख रहा हूँ कि इतनी भीड़ भड़क्का के बीच लोकपाल का मुद्धा खो गया और मुद्धा आ गया अन्ना बाबू की अनशन की जगह तय करने का.
अरे भाई जब ये ये शर्त रख रहे है कि जब तक पार्क मे अनशन की बिना शर्त इजाजत नही मिलेगी तब तक ये तिहाड़ मे ही अनशन करेँगे.
तो क्या ये ये शर्त नही रख सकते थे कि जब तक इनका वाला लोकपाल बिल नही बनेगा तब तक ये तिहाड़ मे ही अनशन करेँगे.बाहर नही निकलेँगे.
खैर आगे आगे देखते है होता है क्या ?
ये बात तो पक्की है कि कांग्रेस किसी भी हालत मे सिविल सोसायटी वाला लोकपाल बिल नही बनायेगी.
और जनता बेचारी फिर ठगी जायेगी.
मै जनलोकपाल बिल का समर्थन करता हूँ.और चाहता हूँ कि जनलोकपाल बिल बने.
लेकिन अन्ना हजारे का मै घोर विरोधी हूँ.
उसके कई कारण है.एक कारण तो ये भी है कि
इसी अन्ना हजारे ने राज ठाकरे की उत्तर भारतीयो के खिलाफ नीति का समर्थन किया था.
खैर इस कारण को भी भुलाया जा सकता था.
लेकिन जो पिछले कुछ महिनो मे इसने बाबा रामदेव को जलन के कारण बुरा भला कहा है
उसको भुलाया नही जा सकता .
वो भी तब जब ये बाबा रामदेव के मंच के सहारे अपना चेहरा चमकाते रहे है.
मै लोकपाल बिल का पूरा समर्थन करता हूँ
लेकिन मै देख रहा हूँ कि इतनी भीड़ भड़क्का के बीच लोकपाल का मुद्धा खो गया और मुद्धा आ गया अन्ना बाबू की अनशन की जगह तय करने का.
अरे भाई जब ये ये शर्त रख रहे है कि जब तक पार्क मे अनशन की बिना शर्त इजाजत नही मिलेगी तब तक ये तिहाड़ मे ही अनशन करेँगे.
तो क्या ये ये शर्त नही रख सकते थे कि जब तक इनका वाला लोकपाल बिल नही बनेगा तब तक ये तिहाड़ मे ही अनशन करेँगे.बाहर नही निकलेँगे.
खैर आगे आगे देखते है होता है क्या ?
ये बात तो पक्की है कि कांग्रेस किसी भी हालत मे सिविल सोसायटी वाला लोकपाल बिल नही बनायेगी.
और जनता बेचारी फिर ठगी जायेगी.
इस प्रस्तुति में भारत की आम जनता की आवाज समाहित है।
लोकतांत्रिक रूप से बनाई गई सरकार तानाशाही कर रही है। ऐसा तो अंग्रेज सरकार भी गांधी जी के साथ नहीं करती थी। कांग्रेस अपने पांव पर कुल्हाड़ी मार रही है।
प्रधान मंत्री को स्वयं बयान देना चाहिए कि लोकपाल के दायरे में प्रधान मंत्री को भी शामिल किया जाए।
Sarkaar sachhayee kee nidarta se dartee hai!
आपने सच लिखा है
मै लोकपाल बिल का समर्थन करता हूँ
एक भारी सितारे की मृत्यु से ही 'ब्लैक होल' बनता है जानते हैं आज सभी आधुनिक खगोलशास्त्री आदि 'वैज्ञानिक',,, और यह भी कि ऐसा ही सुपर शक्तिशाली ब्लैक होल हमारी गैलेक्सी के केंद्र में भी विद्यमान है... इस पृष्ठभूमि से साफ़ हो जाता है कि जिसे गीता, और अन्य 'हिन्दू' कथा कहानी आदि में 'कृष्ण' कह पुकारा गया वो वास्तव में इसी ब्लैक होल का प्रतिरूप अथवा प्रतिबिम्ब था... जो तथाकथित द्वापर युग में अवतरित हुआ (विष्णु का अष्टम अवतार), और जो गोकुल-ब्रिन्दाबन के गोप- गोपियों के साथ रास लीला तो कर गया किन्तु गोवर्धन पर्वत एक ऊँगली पर उठा मानव की क्षमता को भी दर्शा गया!
उसके जीवन के अनेकों प्रसंगों पर आधारित कहानियाँ कत्थक नृत्य द्वारा भी उत्तर भारत में सदियों से अपनाई जाती आ रही है, अथवा गुजरात में डांडिया नाच द्वारा - स्टेज पर चक्र समान गोल गोल घूमते हुए और सुरों (ॐ के अंश) के साथ ताल (काल पर भी दृष्टि रख) भी सही रखते हुए... जबकि दक्षिण भारत में वैष्णव मान्यता वाले व्यक्तियों ने इसे अपनाया, शैव लोगों के बीच 'भरत नाट्यम' अधिक प्रसिद्द हुआ - नटराज शिव से प्रेरित हो, जिनको विष्णु समान ही चतुर्भुज और शहस्त्र नामों वाला दिखाया जाता आ रहा है, किन्तु एक नट समान रस्सी पर चढ़ नृत्य करते...
अर्थात सौर-मंडल को हमारी गैलेक्सी में उसके बाहरी ओर रह अपने सदस्यों के साथ संतुलन बनाए रख लगभग साढ़े चार अरब वर्षों से निरंतर नृत्य करते - अपनी अपनी धुरी पर घूमने के अतिरिक्त प्रत्येक सदस्य का साकार में समायी शक्ति के द्योतक सूर्य के चारों ओर परिक्रमा भी करते रहते...
'कृष्ण', जो सब साकार में विराजमान हैं और मानव रूप में वे राजा हैं, कहते हैं कि (गंगाधर शिव) पृथ्वी के अनंत प्राणी जीवन के आधार दिन के राजा सूर्य और रात की रानी चन्द्रमाँ को वे ही शक्ति प्रदान करते हैं,,,
और आज वैज्ञानिक भी मानते हैं की चन्द्रमा हमारी पृथ्वी से ही उत्पन्न हुआ और इसकी परिक्रमा भी कर रहा है, अर्थात दोनों मिल कर दिन (प्रकाश) और रात (अन्धकार), दोनों काल में 'कृष्ण' अकेले ही शक्ति के वास्तविक स्रोत हैं...
और गीता में सांकेतिक भाषा में ज्ञानी कह गए कि कल्प के अंत में, (ब्रह्मा की रात्री आने पर), सभी प्राणी कृष्ण में प्रवेश कर जाते हैं और फिर नए कल्प के आरंभ होने पर अपनी शक्ति से वे पुनः उन्हें उत्पन्न करते हैं ,,, इत्यादि इत्यादि...
आज तो आज एक कहावत याद आ रही है " चोर के पांव नहीं होते "........
क्लीव सरकार और कर ही क्या सकती है . इसकी सड़ांध ने आम जनता का जीना मुहाल कर दिया है .
यह पोस्ट समय की मांग है -- आपको सैल्यूट दिव्या जी ...
@rohit jee -
अंग्रेजों की पालिसी थी - डिवाइड एंड रुल ... बस वही तकनीक अपनाई जा रही है |
मैं भी रामदेव जी की समर्थक हूँ - परंत्यु यह मुद्दा असल मुद्दे को भटका रहा है
विनाशकाले विपरीत बुद्धि| यह वाक्य इस सरकार पर सटीक बैठ रहा है|
सही कहा ...किसी भी परिस्थिति में सत्ता परिवर्तन आवश्यक हो गया है ...
sahi likha hai..jahir hai sangharsh lamab hoga..or jivant samaj me to is tharah andolon chalte rahenge....magar is tahra sarkar ka tarika galat hai...
आदरणीय शिल्पा जी
आपकी बात सही है.
लेकिन एक 74 साल के अनुभवी बुजुर्ग जो देश की बात करता हो. वो जब ऐसा व्यवहार करे .तो गुस्सा आता ही है.
इस जनलोकपाल बिल की मुहिम को मेरा पूरा समर्थन है.
मै केवल व्यक्तिगत रुप से अन्ना के व्यवहार की बात कर रहा हूँ. जिसका मै विरोधी हूँ.
ऐसा नही है कि आज जो लोग सड़क पर उतरे है वो कोई रामदेव विरोधी है. वो हर आंदोलन के समर्थक है. चाहे वो अन्ना का हो या बाबा का.
लेकिन जिस प्रकार एक को चड़ाया और दूसरे को गिराया जा रहा है. वो अच्छा नही है.
क्यो कि हमारी उम्मीदे अन्ना से इतनी नही है जितनी ज्यादा बाबा रामदेव से है.
क्यो कि जहाँ अन्ना का आंदोलन शरीर के एक छोटे से अंग की सफाई का है वही बाबा रामदेव का आंदोलन पूरे शरीर की सफाई का है.
अब आज ही का वाक्या देख लीजिये.
बाबा रामदेव तिहाड़ जेल पहुचे.
तो स्टार न्यूज का रिपोर्टर दीपक चौरसिया जहर उगलने लगा.
कहता है कि "बाबा रामदेव अब आ ही गये है तो अन्ना टीम उनको धक्के मार के भगा भी नही सकती .इसलिये मजबूरी मे मिल रही है."
खैर जो असली संघर्ष करेगा वो अपने लक्ष्य तक जरुर पहुच जायेगा.
मीडिया, अन्ना टीम लाख बाबा की बुराई कर ले.
कोई फर्क नही पड़ता.
मुझ में है हीरो की तर्ज़ पर...गुनगुनाइए...मुझ में है अन्ना...यदि भ्रष्टाचार से त्रस्त हैं तो अन्ना बनिए...तभी कुछ होगा...वर्ना फिर कुम्भकरणी नींद में देश सो जायेगा...और साठ साल बाद कोई और अन्ना जगायेगा...
झूठ और फ़रेब हमेशा सच्चाई और अच्छाई से डरता रहा है... आज भी वही हो रहा है॥
कोई सार्थक हल निकले।
हल तो निकलना ही चाहिए ....वर्ना देश का आम व्यक्ति कहाँ जाएगा ....हम सब को सजग होने की जरुररत है ...!
बहुत अच्छा लगा आपका यह लेख हम सभी को भी अन्ना जी का समर्थन भी करना चाहिए
हम तो आशा लगाये बैठे हैं.इतने आन्दोलन -मंथन के बाद जन-जन का सोच बदले(तभी कुछ सार्थक होगा)यही मनाते हुये !
2014 aur bharat swabhiman ka intezaar karen...
दिव्या दीदी, सरकार टी डर ही रही है, ७३ वर्ष के अन्ना से भी और पांच-छ: साल के उन बच्चों से भी जो सड़कों पर उतर आए हैं| दो दिन से शाम को मैं भी जयपुर में जगह जगह होने वाले आन्दोलनों में शामिल हो रहा हूँ| साथ में कई मित्रों को ले जाता हूँ| यहाँ शहर के मुख्य मार्गों व चौराहों पर युवा एकत्र हो जाते हैं| अधिकतर युवा ही होते हैं, किन्तु बुजुर्गों, महिलाओं व बच्चों की भी संख्या बढ़ रही है| रोज़ रास्तों पर आ गए हैं| नारेबाजियां हो रही हैं व मोमबतियां जलाई जा रही हैं| रैलियाँ भी निकाली जा रही हैं|
बाबा रामदेव द्वारा सुलगाई गयी चिंगारी अब आग पकड़ रही है व अन्ना इस आग में घी डाल रहे हैं| यह भी सही है कि कुछ स्थानों पर अन्ना भूल कर रहे हैं| जैसे आज ही बाबा रामदेव से मिलने से मना कर दिया| अन्ना को समझना चाहिए कि इस लड़ाई को बाबा रामदेव के बिना नहीं जीता जा सकता| सूत्रधार तो बाबा रामदेव ही हैं|
खैर अन्ना की जो भी मजबूरियां हो, मैं तो उनका साथ दूंगा ही| अन्ना एक सच्चे व देश भक्त व्यक्ति तो हैं ही साथ ही मुझे तो कांग्रेस को घेरने का बहाना चाहिए|
जो भी हो रहा है, ये सब शुभ संकेत हैं| अब लग रहा है इस भ्रष्टाचारी शासन का अंत अब निकट ही हैं|
अब इस आंदोलन का सार्थक हल निकलना चाहिए ..
सच से हर कोई डरता है......
'परम सत्य' केवल एक है, उसे निराकार नादबिन्दू कहा हमारे ज्ञानी पूर्वजों ने, अर्थात अनंत शक्ति का एक अकेला स्रोत जिसने ध्वनि ऊर्जा से सम्पूर्ण साकार सृष्टि की रचना की, अनंत रूप जो सभी अस्थायी होते हुए भी किसी काल विशेष के सत्य हैं - हमारे अनंत गैलेक्सियों / सौर-मंडलों में सर्वश्रेष्ठ गैलेक्सी ('मिल्की वे गैलेक्सी') / अमृत सौर-मंडल,,, संख्या में और आकार में भी अनेक अनंत सितारों में से एक साधारण किन्तु सर्वश्रेष्ट तारा, 'सूर्य', जिसका राजा है... अर्थात शक्ति के मूल स्रोत हैं, और जिसके दरबारी गण (अकबर के 'नौ-रत्नों' समान), 'नवग्रह', साकार होते हुए भी दसों दिशाओं पर मिलकर अनादि काल से नियंत्रण करते चले आ रहे हैं...
किन्तु 'काल' / महाकाल के प्रभाव से आज असहाय प्रतीत हो रहे हैं, और अनंत प्रतिबिम्बों में से कृष्ण का प्रतिरूप सर्वश्रेष्ठ राजा आज 'जादू की छड़ी' मांग रहा है, जो केवल निराकार ब्रह्म के पास है किन्तु, जो प्रतिबिम्बों से आत्म समर्पण की अपेक्षा करता है, और जो न झुके उसे फिर फिर झुकने आना ही पड़ता है ऐसा हमारे ज्ञानी पूर्वज कह गए...:(
हिन्दू मान्यतानुसार 'भगवान्', (श्री कृष्ण), किसी भी रूप में आ सकते हैं, विशेषकर जब युग का अंत निकट होता है,,,
इस लिए देखना यह है की वो 'बाबा' के रूप में आये हैं या 'अन्ना' के...
किन्तु यह भी सत्य है कि, महाभारत के स्वार्थी अर्थात राक्षश कौरवों समान, निर्णय वर्तमान 'सरकार' को ही लेना होगा कि वो 'भ्रष्टाचार' को मिटाने हेतु पहले पूरी जीर्ण-क्षीर्ण व्यवस्था को ही धराशायी कर नवीन सुंदर व्यवस्था को स्थापित करने हेतु क्या कदम उठाते हैं (यानि निराकार ब्रह्म की 'कृष्णलीला' में क्या लिखा है जो रुपहले परदे पर, यानि योगनिद्रा में लेटे विष्णु / शिव की तीसरी आँख पर अभी आना शेष है :)...
जो भी होगा वो हमारे भले के लिए ही होगा, कह गए ज्ञानी ध्यानी...:)
पीर वो प्यार की रित गही , तब गीत सनेह के संग रहै,.
साच को आंच न आवत है ,अरि भूप सुबुधि के नीर भरे /
विचारनीय ,रुचिकर आलेख को सम्मान जी / शुभकामनायें /
माफ़ी चाहूना...
[ कभी भूल के भी साडी गली आया करो जी ......]
ये सर्कार दरी है या नहीं यह कहना बिलकुल ठीक नहीं होगा इनकी कोई चल हो सकती है इस समय भारत खड़ा हो चूका है यह बात ठीक है की जहा मेधा पाटेकर या स्वामी अग्निवेश होगे वह भ्रष्ट्राचार से कैसे लड़ना क्यों की ये तो देश द्रोही है लेकिन भारत का मन भ्रष्ट्राचार बिरोधी है इस नाते अन्ना हजारे का समर्थन भारत के मन का समर्थन है निश्चित तौर पर भारत खड़ा होगा.
लोगों का कहना है कि सभी राजनीतिक पार्टियाँ एक सी ही हैं , सरकार बदलने से कोई लाभ नहीं । यदि यह सच है तो भी तख्ता पलटना चाहिए और यह सिलसिला तब तक जारी रहना चाहिए जब तक हम पर शासन करने वाली सरकारें अपनी जनता के हित में सोचना न सीख जाएँ ।
यही एक रास्ता है । सरकार लाख चाहेगी कि अगले चुनाव तक लोग भ्रष्टाचार के मुद्दे को और अण्णा के आंदोलन को भुला दें पर लोगों को चाहिये कि वे अपनी याददाश्त तेज रखें ।
सब कुछ देख कर तो लगता है कि ये आंदोलन भारत छोडो आंदोलन के तर्ज पर जा रहा है ।
जनता को समझ आने लगा है कि मालिक वो है। बस इतना सा समझ अच्छी तरह आ जाएगा तो सरकारों का रवैया तानाशाही जैसा नहीं रहेगा।
क्या आपने जनलोकपाल बिल की सरकारी ड्राफ़्टिंग और प्रशांत भूषण व शांतिभूषण द्वारा रची ड्राफ़्टिंग पढ़ी है??
क्या मौजूदा संविधान अक्षम है या उसके पालन में लगी लोकतान्त्रिक तरीके से चुनी विधायिका अक्षम है या सरकार किन्हीं "एलियन्स" ने बना रखी है, देश की जनता ने अपने अधिकारों की रक्षा के लिये अपने अपने हितों को ध्यान में रखते हुए प्रतिनिधि चुन कर सरकार बनायी है। नेताओं का भ्रष्ट आचरण जनता के व्यवहार का ही प्रतिबिम्ब है। ये विधेयक निरर्थक और अनावश्यक है लेकिन कांग्रेस द्वारा ही प्रायोजित ये "अण्णा ड्रामा" समझ पाना आसान कहाँ हैं। जब राज ठाकरे महाराष्ट्र में हिंदी भाषियों को कूटते-पीटते हैं तब ये ७३ वर्ष का अनुभवी कुटिल राजनीतिज्ञ उसका विरोध करने के लिये उपवास नहीं करता जबकि मोहनदास गांधी ने तो हिंदू-मुस्लिम विरोध के खिलाफ़ भी अनशन कर दिया था। ये गांधीवादी नहीं कांग्रेसवादी प्राणी है बहन जी। जनता के लिये ये विधेयक बस एक "टेम्परेरी पेनकिलर" है भ्रष्टाचार के दर्द हेतु, रामदेव को पीछे धकेलने के लिये अच्छा उपाय है ये।
जिसने यह जान लिया की हमारी अनंत आकार और अनंत सितारों आदि वाली गैलेक्सी देखने में तस्तरिनुमा प्रतीत होती है, जो वैसे तो बीच में मोटी और किनारे की ओर पतली है (शनि ग्रह समान),,, तो उसके लिए - इस पृष्ठभूमि से कि मानव मस्तिष्क एक ऐनालोजिकल कोम्प्यूटर है - सरल हो जाता है हर गोलाकार संरचनाओं में हमारी गैलेक्सी के विभिन्न रूपों को देखने में...
सबसे अच्छा प्राचीन काल में ऐम्फिथियेटर और वर्तमान में मॉडेल क्रिकेट खेल का सीढ़ीनुमा स्टेडियम है, जिसमें हजारों दर्शक टिम टिम करते तारों समान तालियाँ बजाते हैं और कलाकार / खिलाडी द्योतक हैं सौर-मंडल के सदस्यों के (जो खेल में विष्णु के तथाकथित दशावतार समान दस खिलाड़ियों के माध्यम से उनको प्रतिबिंबित करते हैं)...
इस खेल को लगभग दो सदियों तक अंग्रेजों ने अपनी सभी कॉलोनी में प्रचलित किया, और दूसरी ओर इस कारण कहा गया कि उनके राज्य में सूर्यास्त होता ही नहीं था! अर्थात सांकेतिक भाषा में कह सकते हैं की वे सूर्य को प्रतिबिंबित करते थे...
और द्वितीय विश्व युद्ध में मुख्यतया आर्थिक पतन के कारण, न चाहते हुए भी, उनके 'सोने की चिड़िया' को छोड़ कर जाने के पश्चात भारत का विभाजन हुआ (द्वैतवाद द्वारा 'मूल भारतीयों' को भटकाने हेतु? जिसका प्रतिबिम्ब टूटते संयुक्त परिवारों में भी देखा गया?)...
क्या धोनी की टीम की इंग्लैण्ड में हाल की करारी हार संकेत कर रही है (राजा) सूर्य के अस्ताचल गमन और रात्री के आगमन को ?
पुनश्च -
दिल्ली में बंग-भंग से उपजी स्थिति के कारण अंग्रजों द्वारा राजधानी के लिए कोलकाता के स्थान पर नयी दिल्ली (प्राचीन इन्द्रप्रस्थ) को चुना गया और निर्माण कार्य बेकर और ल्युटीएन को सौंपा गया...
वर्तमान गोलाकार संसद भवन ने, जहां पर सरकार के फैसले लिए जाते हैं, सम्पूर्ण संसार में प्रसिद्धि प्राप्त की है...
किन्तु कुछ लोगों का मानना है कि संभवतः दोनों भारत में विभिन्न स्थानों में भ्रमण किये होंगे और इस भवन का मूल रूप उन्होंने मोरेना, मध्य प्रदेश, स्थित 'शिव संसद', यानि 'एकतेश्वर मंदिर', (जो कभी शायद 'चौंसठ योगिनी मंदिर' भी कहलाता था?) से प्रेरणा पा नयी दिल्ली में निर्माण किया...
very true . bahut badhiya . love ur about me title.
like your blog . give your some time for me also .mere blog par bhi aapka swagat hai .
बहुत सुन्दर और असरकारी लेख ...
अन्ना के विरोधी तीन प्रकार के होते हैं ... एक वो जो खुद भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं ... जैसे कि हमारी सरकार ... दूसरी वो जो किसी कारण वश (धार्मिक कारण या फिर प्रांतिक कारण) समर्थन नहीं कर रहे हैं ... हालाँकि ये जानते हैं कि अन्ना सही मार्ग दिखा रहे हैं ... और तीसरे वो जो जनम से ही बेवक़ूफ़ हैं .... जिसको सही, गलत, अच्छे, बुरे, का कोई ज्ञान न हो ...
सार्थक और दमदार वैचारिक पोस्ट बधाई डॉ० दिव्या जी
सार्थक अभिव्यक्ति...आभार.
सादर,
डोरोथी.
हम अन्ना के आन्दोलन में उनके साथ हैं...भ्रष्ट सरकार और नेता नहीं चाहते कि अन्ना का लोकपाल विधेयक बने...लेकिन देश की जनता चाहती है कि देश से भ्रष्टाचार का जड़ से खात्मा हो और इसके लिए हमारे देश के नेताओं पर लगाम कसी ही जानी चाहिए। अन्ना का लोकपाल विधेयक एक आशा की किरण है...जिसे देश की जनता कभी बुझने नहीं देगी । यह विधेयक लागू हो कर रहेगा।
अभी जब मैं यह लिख रहा हूँ तो हमारे गली-मोहल्ले में लोग मोमबत्तियाँ लिए अन्ना हजारे के लिए नारे लगा रहें हैं और इस बात पर एकमत हैं...
हमारे प्रधानमंत्री ने कहा कि अन्ना कि आवाज़ देश की आवाज नहीं है...लेकिन हमारा मानना है कि भ्रष्ट लोगों को छोड़ कर सब चाहते हैं कि प्रधानमंत्री लोकपाल के दायरे में आए ...!!!
अन्ना हम तुम्हारे साथ हैं...सत्य की लड़ाई जारी रहे...अब नहीं तो कभी नहीं...अब हारे तो सब हारे...
जय हिंद !!!वन्देमातरम्
@रोहित जी
आदरणीय रोहित जी
मैंने पहले भी कहा कि मैं रामदेव जी की समर्थक हूँ | अन्ना मेरे लिए प्राइम नहीं हैं, प्राइम बात यह है कि जिस मुद्दे के लिए वे मांग उठा रहे हैं, वह मुद्दा मेरे लिए क्या मायने रखता है | यदि अभी हम अन्ना बनाम रामदेव में पड़े, तो फायदा दिग्गी जी को होने वाला है, रामदेव जी को नहीं | कृपया ध्यान दें कि रामदेव जी खुद भी अन्ना का विरोध करते नहीं दिख रहे, क्योंकि वे भी मुद्दे का महत्व समझ रहे हैं |
अन्ना ने जनता की दुखती रग को पकड़ कर जनता को जगाया है, और अभी यह रामदेव बनाम अन्ना की चर्चा will prove counterproductive ...
बात अब सरकार और अन्ना से आगे निकल चुकी है...सवाल है कि इसका नतीजा पूरी तरह से निकलेगा क्या..क्योंकि जैसा बिल अन्ना टीम चाहती है वो आएगा नहीं...न ही सरकार अपनी मर्जी पूरी तरह से चला पाएगी...सरकार का सीधे-सीध सभी शर्तों को मान लेना उसे कमजोर साबित करेगा...ये भी गलत होता पर मुश्किल यह है कि मजबूत इच्छाशक्ति वाले राजनेता की कमी देश को काफी खल रही है....इसलिए कई ऐसी बातें जो पहले हो जानी चाहिए थी अब तक नहीं हो पाई हैं....न ही आंदोलन खत्म होने से कुछ होगा...जरूरत होगी सतत जागरुक रहने की..
जो हमारे ज्ञानी पूर्वजों के माध्यम से 'हम' तक पहुंचा मानव जीवन का सत्व अथवा सत्य है वो है की हमारी पृथ्वी अनंत है, एक अनंत सौर-मंडल विशेष का एक सदस्य जिस पर हमारे अतिरिक्त अनंत प्राणी अनादी कल से प्रगट होते चले आ रहे हैं सभी साबुन के बुलबुले समान क्षण-भंगुर हैं, अस्थायी हैं...
यह धरा जिसने हमें कुछ वर्षों के लिए केवल धरा हुआ है वो आधुनिक वैज्ञानिकों, अर्थात वर्तमान ज्ञानियों, के अनुसार लगभग साढ़े चार अरब वर्षों से चली आ रही है, और आरम्भ में यह एक अग्नि का गोला थी जो काल के साथ साथ ठंडी होती गयी, सुन्दर होती गयी, और लगभग साढ़े तीन अरब वर्ष पहले आम बैक्टेरिया - जो आज भी यहाँ उपस्थित हैं - उस के पदार्पण के पश्चात अन्य अनंत प्राणीयों को धरा पर, पाताल में और आकाश में, तीनों लोक में, स्थान मिलता गया (जैसे 'विदेशी' तथाकथित भारत अथवा महाभारत में भी आते चले गए, 'खाली स्थान' भरते गए) और मानव का पृथ्वी नामक स्टेज में केवल कुछ लाख वर्ष पहले ही पदार्पण हुआ , यानि हम लेट लतीफ़ हैं जो अधिकतर अपने को सर्वोच्च स्थान दे - 'राक्षश' जो केवल निज स्वार्थ में - अन्य जीवों आदि को तुच्छ मान उनके साथ मनमाना व्यवहार करते चले आ रहे हैं... इत्यादि...
किन्तु आज परेशान हैं जब प्रकृति अर्थात 'कृष्ण के सुदर्शन-चक्र समान चक्र-वात' हमारी रचना को तहस-नहस कर जाता है, अथवा जीवनदायी जल (एवं अन्य भूत, अग्नि आदि भी) अनेकों प्राचीन सभ्यताओं के ध्वंस होने का कारण भी बना है, जानते हैं सभी पढ़े लिखे - हमारी कथा कहानी आदि के अनुसार प्रलय तो अवश्यम्भावी है,,, आदमी लाख चाहे 'काले धन' अथवा 'गोरे धन' का अनंत काल तक भोग करना,,, यही यक्ष प्रश्न द्वापर से चला आ रहा है जिसका उत्तर तब केवल युधिस्ठिर के पास था और आज शायद एक फकीर द्वारा प्रतिबिंबित होता है, किन्तु पढ़े-लिखों का उससे क्या लेना देना, घोड़े को तो उसके सामने लटका गाजर ही आगे और आगे चलाता है और उसकी आँखों के बगल में लगे पट्टे इधर उधर देखने ही नहीं देते और चाबुक की मार भी नहीं पड़ती क्यूंकि वो केवल गरीब के लिए है,,, आदि आदि...:)
यथार्थ को बताता हुआ सार्थक लेख /बहुत ही सही लिखा आपने सच मैं क्या हाल कर दिया इस देश का अब ये लहर उठी है तो इसे बंद नहीं होना चाहिए /सबका समर्थन अन्नाजी को मिलना चाहिए /भ्रष्ट नेताओं को सबक सिखाना ही चाहिए /भ्रष्टाचार अब ख़त्म होना ही चाहिए /इतने अच्छे लेख के लिए बधाई आपको /
स्पष्ट... बेधड़क... तल्ख़... और आज के लिए जरूरी लहजे में लिखा सार्थक लेख...
सादर...
great feelings.....
दिव्या जी,
क्यूंकि आपने गीता पढ़ी नहीं, आपकी सूचनार्थ, भागवद गीता,अध्याय ४/ ७ वे श्लोक में कृष्ण जी कहते दर्शाए गए हैं, "हे भरतवंशी! जब भी और जहाँ भी धर्म का पतन होता है और अधर्म की प्रधानता होने लगती है, तब तब में अवतार लेता हूँ."...
९/ ११-१२ में कहते हैं, "जब मैं मनुष्य रूप में अवतरित होता हूँ, तो मूर्ख मेरा उपहास करते हैं. वे मुझ परमेश्वर के दिव्य स्वभाव को नहीं जानते."... "जो लोग इस प्रकार मोहग्रस्त होते हैं, वे आसुरी तथा नास्तिक विचारों के प्रति आकृष्ट रहते हैं... इस मोहग्रस्त अवस्था में उनकी मुक्ति-आशा, उनके सकाम कर्म तथा ज्ञान का अनुशीलन सभी निष्फल हो जाते हैं."...
और, ८/ २१ में कहते हैं, "जिसे वेदांती अप्रकट तथा अविनाशी बताते हैं, जो परम गंतव्य है, जिसे प्राप्त कर लेने पर कोई वापिस नहीं आता, वही मेरा परमधाम है."
इत्यादि, इत्यादि...
बस यही सच्चाई है। कि देश की जनता चाहती है , देश से भ्रष्टाचार का जड़ से खात्मा हो।
जनता भ्रष्टाचार के मुद्दे के कारण ही अन्ना टीम के साथ है, यदि खेल हुआ या छल हुआ तो इन्हें मख्खी की तरह निकाल फैकेगी। अब जाग चुकी है। छिपे स्वार्थ भी होंगे तो मै समझता हूं इन्होंने जनसमर्थन का इतना बोझ ओढ लिया है। कि…………मुद्दे से हट भी न पाएंगे।
बाकी रामदेव जी में मुद्दे को लेकर सौजन्य शेष है जो समर्थन करते है। इतना सौहार्द अन्ना टीम को नहीं है कि भगवे रंग को सहजता से लें।
हमारे बेशकीमती मतों का लाभ स्वार्थी सरकार आराम से ले रही है। हमारी सरकार कमज़ोर है, डरपोक भी। स्वार्थी और अलोकतांत्रिक भी। भ्रष्ट भी और असंवेदनशील भी। जो जनता कि आवाज़ का दमन करे , वह असंवैधानिक और अनैतिक भी है।
बेशकीमती प्रासंगिक पोस्ट .
शुक्रिया जील बहना आपकी दस्तक का .
Live updates: Anna Hazare leaves Tihar jail to begin hunger strike
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Confrontation between Team Anna and Delhi police ends as Anna Hazare gets permission for two weeks of fasting.
Are you attending a protest?
संसद में चेहरा बनके आओ माइक बनके नहीं .मौजूदा सरकार और प्रधान मंत्री जी के पास पद तो हैं ,प्रतीक नहीं हैं .संसद को कुछ वकीलों ने अदालत बना दिया है .गिनती की बात करतें हैं ये लोग ,अब चार आदमी भी अपने साथ ले आयें .सब एक दूसरे को जो घटित हुआ है उसके लिए दोषी ठेहरा रहें हैं .आधिकारिक प्रवक्ता अपने वजूद को कोस रहें हैं .
दो पक्ष होतें हैं एक अच्छा एक बुरा .जब बुरा, बहुत बुरा हो जाता है तब अच्छाई उनके लिए भी स्वीकार्य हो जाती है .अन्ना जी एक प्रतीक बन उभरे हैं उज्जवल पक्ष के जिसे आभा सरकार के कालिख होते एहंकार ने दी है .
प्रधान मंत्री "माइक" बनके संसद में आतें हैं सच और झूठ बोलते वक्त उनका चेहरा यकसां लगता है .अब भी वह अपनी गलती सुधार कर एक "चेहरा" बनके आ सकतें हैं .अपनी गलती मान के कह सकतें हैं ,अन्नाजी हम गलत थे ,हम आपके प्रस्तावों को विचारार्थ संसद के पटल पर विमर्श के लिए रखेंगे .हम आपके साथ हैं .
आदरणीय भाई सुज्ञ जी, आपसे सहमती|
समस्या इतनी सस्ती नहीं है| जो कुछ हो रहा है, किसी पर भी विश्वास करना कठिन लग रहा है|
हालांकि मैं व्यक्तिगत रूप से अन्ना का समर्थन करता हूँ, अन्ना से कोई शिकायत नहीं है| किन्तु पिछले दिनों अन्ना ने जो गलतियां की वे प्रशंसनीय नही हैं|
यहाँ तक की अन्ना इस प्रकार बार बार खुद ही अपनी पींठ ठोक रहे हैं की छ: मंत्रियों के विकेट गिरा चूका हूँ| प्रश्न यही है की आखिर ये छ: मंत्री थे कौन? मुझे यह देखकर आश्चर्य होता है कि कलमाड़ी, चव्हान, देशमुख, शिंदे, ए आर अंतुले, मुरली प्रसाद देवड़ा आदि के राज्य में उन्हें केवल NCP शिवसेना के नेता ही मिले विकेट गिराने के लिए| क्या महाराष्ट्र में कांग्रेस के नेता नहीं मिले विकेट गिराने के लिए|
राजनीति में रूचि रखने वाले कुछ मुम्बईवासी मित्रों से ही पता चला है कि अन्ना के महाराष्ट्र में किये गए आन्दोलनों से फायदा कांग्रेस को ही हुआ है| इसके द्वारा अपनी सहयोगी पार्टी NCP व विरोशी पार्टी शिवसेना पर कांग्रेस ने दबाव बनाया|
आज दिल्ली में भी कहीं कुछ ऐसा ही न हो रहा हो| भारत के अव्वल दर्जे के धूर्तों की ज़मात ही कांग्रेस है| अन्ना जाने अनजाने इसके द्वारा बहकाए जा रहे हैं| रही सही कसार भूषण बाप बेटे व अग्निवेश जैसे दल्ले पूरी कर रहे हैं|
अन्ना को धूर्तों से बच कर रहना होगा, नहीं तो फिर से वही होगा १९४७ में गांधी द्वारा हुआ था|
jn jagran me aise lekh sarthak bhumika nibhate hai . is prshnsneey pryas ka hardik swagat hai .
'हिन्दू' मान्यतानुसार, आरम्भ में स्वयंभू (शम्भू) शिव अर्धनारीश्वर थे (शिव-सती, शरीर और शक्ति का योग) और उनका निवास स्थान काशी में था... सती की मृत्यु के बाद, कालांतर में, फिर उन्होंने सती के ही एक अन्य रूप हिमालय पुत्री पार्वती, (जिसने सूर्य देवता की शिव को ही पति रूप में पाने हेतु घोर तपस्या की), से ही विवाह किया और घर जमाई बन हिमालय में अपना स्थायी निवास कैलाश पर्वत की चोटी को बना लिया...
शिव-पार्वती का पहला पुत्र शक्ति शाली कार्तिकेय (मुरुगन) हुआ, पार्वती का स्कंध (दाहिना हाथ) कहलाया, किन्तु शिव के संहारकर्ता होने से पार्वती ने अपने ही नहीं वरन सभी देवताओं (सौर -मंडल के सदस्यों) के निराकार ब्रह्म समान अमृत प्राप्ति के लक्ष्य प्राप्ति हेतु (उनके बांये हाथ) गणेश की सृष्टि की और उसे गंगाधर पृथ्वी का राजा बना, और कार्तिकेय को रक्षा का भार सौंप, अमृत शिव के साथ चैन की बंसी बजाती आ रही हैं :)
योगियों ने मंगल ग्रह को गणेश, और शुक्र ग्रह को कार्तिकेय दर्शाया और इनके सार को मानव शरीर में क्रमशः मूलाधार (मेरुदंड के आधार पर) और विशुद्धि चक्र (गले) में दर्शाया,,, जबकि सूर्य के सार को पेट में (जठराग्नि)... और शिव-पार्वती (पृथ्वी-चन्द्र) को क्रमशः आँख और मस्तक (मस्तिष्क) में,,, भारत के वास्तविक संयुक्त भाग्य-विधाता :)
दिव्या जी पहले सभी बाबा (भगवा वस्त्र धारी) की ओर खिंचे, और अब सरकार के डंडे के कारण श्वेत वस्त्र धारी अन्ना की ओर... और दो नावों में सफ़र करते पानी में, कृष्ण के प्रतिरूप सागर में, गिरने की आशंका से भयभीत हो रहे हैं :)
पृथ्वी के ठन्डे भाग साइबेरिया से सारस (क्रेन) ग्रीष्म-काल में भारत आ बच्चे यहाँ दे और ठण्ड से बचने फिर उनको साथ ले साइबेरिया चली जाती हैं - वैसे ही जैसे सूर्य छह माह दक्षिण गोलार्ध में और छह माह उत्तर गोलार्ध में अनादि काल से व्यतीत करता चला आ रहा है और वो सारे संसार के हित में कार्य कर रहा है, वो न तो भारतीय है न अमेरिकन, न उत्तर भारतीय न दक्षिण भारतीय :) वो यद्यपि दक्षिण दिशा का और चन्द्रमा उत्तर दिशा का राजा माने जाते हैं... आदि, आदि,,,
अगर आपको प्रेमचन्द की कहानिया पसंद हैं तो आपका मेरे ब्लॉग पर स्वागत है |
http://premchand-sahitya.blogspot.com/
...और सबसे मज़े की बात तो ये है सरकार अभी कबूतर बनी बैठी है जबकि बिल्ली सामने खड़ी है :)
अन्ना टीम ने 'सूचना का अधिकार' क़ानून के लिये संघर्ष किया ... और सफल हुए... लेकिन इस क़ानून के बनने से अधिक लाभ नहीं हुआ... फिर भी माँगी गई अधिकांश सूचनायें दी नहीं जातीं... गलत दी जाती हैं.. या फिर 'सूचना उपलब्ध नहीं' कहकर टाल दिया जाता है.... दस से बीस प्रतिशत सूचनायें ही प्रदान की जाती हैं. .........
'जन लोकपाल विधेयक' आ जाने पर क्या होगा? कहना मुश्किल है...........
क्या एक साथ ५०० से अधिक सांसदों, मंत्रियों की निष्पक्ष जाँच की जा सकती है?
क्या वर्तमान प्रधानमंत्री और सुपरपावर 'इटेलियन विक्टोरिया' की जाँच करने की हिम्मत करेगा लोकपाल?
क्या स्वर्गीय/ नरकीय हुए अब तक के सभी प्रधानमंत्रियों और मृत भ्रष्ट नेताओं की जाँच भी करेगा? .. क्योंकि मैं 'सूचना के अधिकार' के तहत जानना चाहता हूँ कि किस नेता ने, किस मंत्री ने देश को कितना नुकसान पहुँचाया था?
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