Monday, November 8, 2010

गर्भावस्था - एक सामान्य जानकारी

गर्भवस्था सम्बन्धी सामान्य जानकारी प्रत्येक स्त्री एवं पुरुष को होनी चाहिए इसलिए कोशिश की है एक सरल भाषा में इसे यहाँ प्रस्तुत करने की

गर्भधारण
करना अर्थात गर्भ का , गर्भाशय में ठहरना , पलना, तथा आकार पाना इसे ही हम सामान्य भाषा में प्रेगनेंसी कहते हैं गर्भवती स्त्री को चिकित्सकीय भाषा में 'ग्रेविड़ा ' कहते हैं गर्भकाल की अवधी ३८ से ४२ हफ़्तों की हो सकती है लेकिन सामान्तया यह अवधी ३८ हफ़्तों की होती है इसे 'जेस्टेशन पीरियड' कहते हैं गर्भकाल की गणना स्त्री के अंतिम मासिक स्राव की पहली तारीख [Last menstrual period - LMP ] से करते हैं प्रसव की तारिख [Expected date of delivery - EDD] ३८ हफ़्तों के बाद की दी जाती है प्रसव , दी हुई तारिख से १४ दिन पहले या बाद में भी हो सकता है

गर्भाशय में पल रहे गर्भ को , प्रथम आठ हफ़्तों तक 'एम्ब्रियो' कहते हैं तथा उसके बाद से
लेकर प्रसव होने तक इसे 'फीटस' कहते हैं

डायग्नोसिस -
  • मासिक स्राव का रुक जाना [मिस्ड पीरियड या एमिनोरिया]
  • रात्रि के समय मूत्र त्याग की आवृति बढ़ना।
  • लैब जांच- सुबह की मूत्र सैम्पल में 'ह्युमन कोरिओनिक गोनैड़ोत्रोपिन ' नामक हार्मोन की उपस्थिति गर्भ ठहरने की पुष्टि करती है।

गर्भकाल को तीन हिस्सों में विभाजित किया गया है

प्रथम ट्राईमेस्टर
द्वितीय ट्राईमेस्टर
तृतीय ट्राईमेस्टर

प्रथम ट्राईमेस्टर -
  • प्रथम ट्राईमेस्टर , में भ्रूण की स्वाभाविक मृत्यु [मिस्केरिअज ] का खतरा अधिक रहता है।
  • प्रथम बारह हफ़्तों में हारमोंस की अधिकता के कारण निपल्स तथा एरियोला का रंग गहराने लगता है।
  • इस अवधी के अंत तक , भ्रूण की लम्बाई तकरीबन इंच तथा वजन एक औंज हो जाता है


द्वितीय ट्राईमेस्टर-
  • १३ से २४ हफ्ते तक की अवधी द्वितीय ट्राईमेस्टर कहलाती है।
  • इस समय तक मोर्निंग सिकनेस भी समाप्त हो जाती है।
  • इस अवधी में २० हफ़्तों के बाद भ्रूण का घूमना महसूस किया जा सकता है इसे 'क्विकनिंग ' कहते हैं
तृतीय ट्राईमेस्टर-
  • २५ से ३६ हफ़्तों की अवधी तृतीय ट्राईमेस्टर कहलाती है।
  • इसमें तेज़ी से वजन बढ़ता है। गर्भ तकरीबन ३० ग्राम प्रतिदिन के अनुपात में वजन ग्रहण करता है।
  • इस काल के अंत तक , गर्भ का हेड-एंगेजमेंट हो जाने से उदर थोडा relax हो जाता है तथा गर्भिणी को स्वसन सम्बन्धी आराम पुनः मिल जाता है।
  • इस अवधी में जन्मा प्रीटर्म बच्चा , इंटेंसिव केयर द्वारा जीवित रह सकता है
कोंमप्लीकेशंस -
  • एनीमिया [खून की कमी]
  • कमर में दर्द
  • कब्ज़
  • ब्लड प्रेशर
  • हार्ट-बर्न
  • hemorrhoids
  • urinary tract infection
  • varicose veins
  • postpartum depression
नोट-
  • गर्भकाल के दौरान सामान्यता ११ से १५ किलो वजन बढ़ता है।
  • चौथे तथा पांचवे माह में , एक मॉस के अंतर से दो टिटनेस के इंजेक्शन लगवा लेने चाहिए।
  • प्रथम सात महीने तक महीने में एक बार, आठवें महीने में १५ दिन पर तथा नवां महिना लगने पर हर हफ्ते चिकित्सकीय जांच एवं परामर्श के लिए , जाना चाहिए।
  • प्रथम तथा तृतीय ट्राईमेस्टर में रेल यात्रा तथा सेक्स से बचें।
  • गर्भवती स्त्री के स्वास्थय का समुचित ध्यान रखने के लिए उसे पोषक आहार, विटामिन, आयरन तथा कैल्शियम देते रहना चाहिए।
  • नियमित एक्सेरसाइज़ [ थोडा घूमना अथवा तैरना ] लाभदायक है।

यदि कोई जिज्ञासा अथवा शंका हो या कुछ जानना चाहते हों तो निसंकोच पूछें

आभार

70 comments:

anoop joshi said...

ma'm kya is awastha me palak or megi(nudels) kha sakte hai?

anoop joshi said...

ya fir ma'm aap ye bata de ki kya nahi kahana chayiye..........

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

चलिये, जिन लोगों ने शंका व्यक्त की थी आपके प्रोफेशन पर वह अब दूर हो जायेगी..

सम्वेदना के स्वर said...

सार गर्भित जानकारीय़ॉं के लिये धन्यवाद!

ABHISHEK MISHRA said...

`nice post
मैंने कही पढ़ा था की गर्भ में बच्चा मुस्कराना , डरना आदि भावनाए प्रकट करता है क्या यह सत्य है ?????????
यदि बच्चा बुद्दिमान और स्वस्थ चाहिए हो तो कौन से तत्व आवश्यक है ?
उन के स्रोत क्या है ?

कविता रावत said...

..... बहुत लाभप्रद जानकारी ...आभार
. दीपपर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ

समयचक्र said...

काफी कुछ का मौका मिला .....

कुमार राधारमण said...

कभी इस पर भी प्रकाश डालें कि मनुष्य की संतान इतनी असहाय क्यों पैदा होती है जबकि पशुओं के बच्चे पैदा होने के कुछ ही पल बाद चलने-फिरने लगते हैं(अब यह बात और है कि इसी कारण मनुष्य जाति में परिवार या समाज की अवधारणा विकसित हुई है)। क्या यह गर्भधारण की अवधि में ज्यादा अंतर होने के कारण है?

Dr.R.Ramkumar said...

Nice! ek behad zaroori post..

Deepavali ki hardik shubhkamnayein

पूनम श्रीवास्तव said...

divya ji , sarv pratham deeep -parv -v-bhai duuj ki hardik badhai.
aapne jis paran ka ullekh kiya hai vah sach me sarahniy hai kyon ki hamme se bahut aaj bhi isase sambandhit jankaari puchhne me katrate hain .aapne yah bahut hi achha kiya kam se kam isse jo nahi janta hoga use bhi purn jankari mil skegi.
dhanyvaad sahit ---------
poonam

मनोज कुमार said...

लोगों को जागरूक करती रचना। बहुत सारी जनकारी एक डॉक्टर के क़लम से पढने को मिली।

Bharat Bhushan said...

Good work done Doctor! इससे पाठकों को निश्चित लाभ होगा.

ashish said...

आपने अपने शैक्षणिक योग्यता के विषय को अपनी पोस्ट के लिए चुना . सार्थक ब्लॉग्गिंग के लिए बधाई .

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

उपयोगी एवं ज्ञानवर्धक पोस्ट!

निर्मला कपिला said...

बहुत अच्छी जानकारी है। धन्यवाद। दिव्या अगर बच्चों मे डाउन सिन्द्रोम पर कुछ जानकारी दे सकें तो बहुत अच्छा होगा। शुभकामनायें।

बाल भवन जबलपुर said...

मह्त्वपूर्ण जानकारी है शुक्रिया
जानकारी के लिये

उपेन्द्र नाथ said...

बहुत अच्छी जानकारी... पेज सेव कर लिए है. आगे के लिए किसी और को रेफेरेंस देने के लिए. आभार.

उपेन्द्र नाथ said...

बहुत अच्छी जानकारी....... पेज सेव कर लिए है. आगे के लिए किसी और को रेफेरेंस देने के लिए. आभार..

ethereal_infinia said...

Dearest ZEAL:

Nice post.


Semper Fidelis
Arth Desai

डॉ टी एस दराल said...

सरल शब्दों में अच्छी जानकारी ।

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

बहुत सुन्दर जानकारी ..

बहुत सुन्दर पोस्ट --ये जानकारी अत्यंत जरूरी है..

डॉक्टर होने के नाते में इसमें कुछ बाते एड करना चाहूंगी |
हम EDD एकदम ४० हफ्ते को केलकुलेट कर के देते है.. हालाँकि डिलीवरी १४ दिन या कुछ और पहले तथा १४ दिन बाद तक हो सकती है.. जैसा आपने बताया ..

और कुछ बाते और कहूँगी..
१)हाई सोसाइटी में ही नहीं, ग्रामीण क्षेत्रों में भी धूम्रपान करती है महिलायें... चौकाने वाली बात नहीं ..मैंने खुद देखा है.. अतः धूम्रपान गर्भावस्था में वर्जित ही होना चाहिए ..इस से अपूर्ण कमजोर बच्चो की डिलिवेरी का खतरा बढ़ जाता है ...
२)दुसरी बात सर दर्द या ऐसे ही किसी भी तकलीफ की दवाई खुद नहीं लेनी या खानी चाहिए - डॉक्टर से परामर्श जरूरी है..
३)हाई हिल वाली सेंडल ना पहने ..
४)कपडे लूस हो तो बेहतर ..

आदि आदि..

आपकी ये पोस्ट चर्चामंच पर शुक्रवार को होगी ..

ZEAL said...

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@ अनूप जोशी-

मैगी में कोई पोषक तत्व नहीं होते , इसलिए गर्भावस्था के दौरान इसके सेवन से कोई लाभ नहीं मिलेगा। अपितु, मैगी में कुछ प्रेसेर्वेटिव , सोडिंयम , तथा वैक्स होता है , जो स्वास्थ्य को हानि पहुंचता है। यदा-कदा इसके सेवन से कोई नुक्सान भी नहीं है।

गर्भावस्था के दौरान पोषक तत्वों का सेवन करना चाहिए। आयरन, कैल्शियम , फोलिक एसिड के साथ साथ ताजे फल , हरी सब्जियां, दालें तथा दूध का सेवन करना चाहिए। ज्यादा चिकनाई वाले भोज्य पदार्थ जैसे पराठा, पूड़ी, तली हुई वस्तुएं न खाएं , क्यूंकि इससे अनावश्यक वजन बढ़ता है जो की गर्भावस्था में कॉम्प्लिकेशन पैदा करता है।

हफ्ते में एक बार अनार का जूस लें तो लाभदायक होगा।

पालक आदि पत्तेदार सब्जियों को भली प्रकार धोकर उपयोग में लायें।

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केवल राम said...

बहुत सारगर्भित जानकारी , यह विषय जीवन से जुड़े हैं इसलिए इन पर बेझिजक बात करनी चाहिए ..आप अपने कर्तव्य को पूरी निष्ठा से निभा रही हैं ...शुभकामनायें

ZEAL said...

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@-अभिषेक -

फीटस का मस्तिष्क तकरीबन छेह महीने में विकसित हो जाता है जिससे वह अपने वातावरण की ध्वनि को पहचानने लगता है। गर्भवती स्त्री की शारीरिक तथा मानसिक स्थिति का भ्रूण के मस्तिष्क विकास पर गहरा प्रभाव पड़ता है। शराब तथा धूम्रपान करने वाली स्त्री के गर्भ में पल रहा शिशु निश्चय ही मानसिक विकृतियों से ग्रस्त हो जाता है।

भ्रूण गर्भाशय में, प्लेसेंटा द्वारा अपना भोजन प्राप्त करता है। स्त्री को किसी भी प्रकार की तकलीफ होने पर भ्रूण के ब्रेन का विकास बाधित होता है।

आक्सीजन की पर्याप्त सप्लाई न मिलने पर भ्रूण औटिस्म [Autism] तथा सेरिब्रल- पालजी [Cerebral-palsy] जैसे मानसिक रोगों का शिकार हो जाता है।

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Dorothy said...

ज्ञानप्रद जानकारी की सहज और सरल अभिव्यक्ति के लिए धन्यवाद. आभार.
सादर
डोरोथी.

राम त्यागी said...

बहुत अच्छी जानकारी अन्यथा ये सब तो अब तक अंगरेजी में ही सुनते आये हैं ...keep it up !

ZEAL said...

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निर्मला जी,

डाउन सिंड्रोम एक जेनेटिक रोग है जो अधिक उम्र की महिला में गर्भधारण के कारण होता है। समान्तयः गर्भ धारण की उम्र ३५ वर्ष तक होती है। इससे ज्यादा की उम्र में गर्भ धारण होने से इस प्राकार की मानसिक विकृतियाँ होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।

डाउन सिंड्रोम से ग्रसित बच्चे में , मानसिक क्षमताएं, उसके सोचने समझने की शक्ति तथा उसका बौद्धिक स्तर काफी कम होता है। एक सामान्य बच्चे का IQ जहाँ १०० होता है , वहीँ ऐसे बच्चे का IQ ५० होता है।

शारीरिक रूप से भी इनमें विसंगतियां होती हैं । इनका चेहरा बड़ा तथा गोल होता है। ठुड्डी बहुत छोटी होती है। हाथ पैर छोटे होते हैं। आँखों का आकार बादाम जैसा होता है। तथा पैर के अंगूठे और अंगुली के मध्य काफी स्थान होता है। इन्हें ह्रदय सम्बन्धी रोग , कान के संक्रमण , thyroid संबंधी रोग तथा निद्रा जनित रोगों के होने का खतरा बना रहता है।

इस रोग से ग्रसित पुरुष १०० % नपुंसक होते हैं तथा स्त्रियाँ भी ८० % वन्ध्या होती हैं। इस रोग से ग्रसित स्त्री के बच्चे भी अधिकांशतः इसी रोग से ग्रसित पाए गए हैं। इस रोग का कोई इलाज नहीं है लेकिन शिक्षा तथा अच्छी देख भाल से इनका जीवन स्तर बेहतर बनाया जा सकता है।

इन रोगियों में एपिलेप्सी , एल्ज़िमर, मोतियाबिंद, रतौंधी , कान के संक्रामक रोग आदि होने का खतरा बना रहता है।

बस एक फायदा है -- इन्हें कैंसर होने का खतरा कम होता है।

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डा० अमर कुमार said...
This comment has been removed by the author.
मनोज भारती said...

ज्ञानवर्धक पोस्ट ...निश्चित रूप से जागरुक करती एक सुंदर पोस्ट !

Deepak chaubey said...

मेरे एक मित्र जो गैर सरकारी संगठनो में कार्यरत हैं के कहने पर एक नया ब्लॉग सुरु किया है जिसमें सामाजिक समस्याओं जैसे वेश्यावृत्ति , मानव तस्करी, बाल मजदूरी जैसे मुद्दों को उठाया जायेगा | आप लोगों का सहयोग और सुझाव अपेक्षित है |
http://samajik2010.blogspot.com/2010/11/blog-post.html

Kunwar Kusumesh said...

बहुत दिनों बाद एक ज़िम्मेदार डॉक्टर होने की ज़िम्मेदारी पुनः निभाई आपने.मैं आज आगे पीछे की और कोई बात नहीं करूंगा.हाँ,इस पोस्ट को देख के आज फिर लगा की मैं एक योग्य डॉ.दिव्या की पोस्ट देख रहा हूँ

उन्मुक्त said...

कुछ समय पहले मैंने एक चिट्ठी आंकड़े गलत बताते हैं नाम से लिखी थी। इसमें एक सवाल पूछा था। इसका जवाब यहां दिया है।

इसमें मैंने यह मान कर सवाल पूछा था कि लड़की या लड़के के जन्म होने की संभावन बराबर यानि आधी होती है।

मेरे बेटे का कहना है कि यह सच नहीं है। उसके मुताबिक लड़का या लड़की होना X या Y क्रोमोसोम पर निर्भर है। मां के गर्भ में इन दोनो को चलने की वेग भिन्न होता है इसलिये यह संभावना बराबर नही होती है। लेकिन जिस की संभावना ज्यादा होती है उसमें भ्रूण की स्वाभाविक मृत्यु की संभावन भी अधिक होती है इसलिये अन्त में दोनो बराबर हो जाते हैं।

मैं जानना चाहूंगा कि,
१- क्या मेरा बेटा सही कहता है;
२- क्या यह सच है कि लड़के या लड़किय में गर्भ ठहरेने में किसी एक की संभावना ज्यादा ज्यादा होती है;
३- क्या दोनो में से एक के भ्रूण की स्वाभाविक मृत्यु की संभावना अधिक होती है?

रचना said...

good
keep it up
its a better way to say the least

ZEAL said...

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उन्मुक्त जी,

गर्भ में भ्रूण के सेक्स की संभावना सदैव ५०-५० ही कही जायेगी क्यूंकि दो प्रकार के स्पर्म बनते हैं - X और Y । और स्त्री से केवल X वाले गैमीट बनते हैं। अब यदि XX निषेचित होता है तो लड़की, और यदि X Y निषेचित होता है तो लड़का पैदा होगा। [ law of probability ]।

लेकिन इस अनुपात को बदला जा सकता है , जिसके लिए बहुत से फैक्टर जिम्मेदार होंगे।

* यदि sperm count ज्यादा है तो लड़का होने की संभावना ज्यादा होती है।
* स्त्री के female tract का माध्यम यदि ज्यादा acidic रहता है , तो लड़की होने की संभावना ज्यादा रहती है , क्यूंकि pH अधिक होने से Y sperm की मृत्यु हो जाती है तथा केवल X- sperm ही बचते हैं निषेचित होने के लिए।
* निषेचन का समय - यदि निषेचन , ovulation के दो दिन में किया जाए तो लड़का होने की संभावना ज्यादा रहती है , क्यूंकि Y-sperm कमजोर होने के कारण ४८ घंटे के बाद नष्ट हो जाते हैं।

इसलिए आपके बेटे की बात भी सही है लेकिन फिर भी इसका उत्तर ५०-५० की संभावना ही रहेगा।

भ्रूण का सेक्स और miscarriage - miscarriage किसी दुर्घटनावश हो सकता है , इसका कोई सम्बन्ध भ्रूण के लिंग से नहीं है।

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ZEAL said...

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@- कुमार राधारमण -

आपका प्रश्न मन में कौतूहल पैदा करता है। इसका सही उत्तर जान्ने के लिए पशु चिकित्सक द्वारा अन्य स्तनधारियों में गर्भाधान की प्रक्रिया की comparetive study करनी होगी।

स्तनधारियों की साइज़ के अनुपात में ही उनका gestation पीरियड भी होता है। जैसे हैमस्टर का १६ दिन, चूहे का २१ दिन, कंगारू का ४० दिन, मनुष्य का २७३ दिन , गाय का २८० दिन, घोड़े का ३३६ , ऊँट का ४०६ दिन तथा हाथी का गर्भकाल तकरीबन ६६० दिन [ २२ महीने ] होता है , लेकिन इससे उसके जन्मे बच्चे की ताकत का कोई समंध नहीं दिखता। हां शाकाहारी स्तनधारी के नवजात बच्चे , माँसाहारी पशुओं के तुलना में जल्दी अपने पाँव पर खड़े हो जाते हैं और स्वयं अपना भोजन तलाशने में सक्षम हो जाते हैं।

जहाँ तक मैं इस तुलनात्मक अध्ययन को समझती हूँ, इसके लिए लिए गर्भ के दौरान तथा जन्म के बाद धीरे धीरे ही अंगों का समुचित विकास हो पाटा है , उसी के अनुसार धीरे-धीरे ही मनुष्य का बच्चा आत्म-निर्भर हो पाता है। इसमें गर्भकाल की लम्बाई का रोल कम, तथा अंगों के क्रमिक विकास का योगदान ज्यादा है.

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ZEAL said...

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comparative study ** [correction]

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G Vishwanath said...

Thanks for an informative post.
Some questions:

1)Why avoid only rail journeys and that too during the first and third trimester only?
Does it mean it's okay to travel by train in the second trimester?
Why rail journeys only.
What about bus? Air, Car, auto rickshaw?

I was under the impression that during pregnancy, any kind of travel that shakes the body is unsafe, whether it is by rail or other forms of transport. Please confirm or clarify.


2)Some persons get scared during eclipses and don't allow a pregnant woman to come out of the house during a solar eclipse. Is there any scientific reason for this?

3)Must a woman eat more during pregnancy? Some people believe the extra food is for the unborn baby.


Regards
G Vishwanath

सदा said...

बहुत ही उत्‍तम एवं ज्ञानवर्धक प्रस्‍तुति ....बधाई ।

ZEAL said...

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विश्वनाथ जी,

उत्तर १-

कार, ऑटो-रिक्शा , स्कूटर , बाइक , उछालना, कूदना सभी में खतरा है, तथा सावधानी बरतने की आवश्यकता है। फिर भी ये सब तो शहर के अन्दर ही इस्तेमाल होंगे। किसी भी आपात स्थिति में अस्पताल एवं डाक्टर उपलब्ध हो जायेंगे। लेकिन एक शहर से दुसरे शहर की यात्रा के सन्दर्भ में रेल यात्रा का जिक्र किया, जिसमें, काफी ध्वनि प्रदुषण तथा धक्के लगने की गुंजाइश होती है। तथा एक लम्बी अवधी की यात्रा होने के कारण किसी प्रकार की आपात स्थिति में चिकित्सकीय सुविधा भी नहीं उपलब्ध हो पाएगी।

द्वितीय trimester , काफी हद तक सुरक्षित रहता है।

उत्तर २-

सूर्य अथवा चन्द्र ग्रहण के प्रतिकूल प्रभावों का गर्भिणी पर असर , मेडिकल साइंस में नहीं पढ़ा। यदि कोई इससे प्रवित गर्भिणी हमारे पास आएगी , तो उसकी लक्षणों के आधार पर चिकित्सा की जायेगी। सूर्य अथवा चन्द्र ग्रहण की उसकी केस-हिस्ट्री का कोई महत्त्व नहीं होगा।

उत्तर ३-

गर्भ में पल रहा शिशु , माता के प्लेसेंटा से ही पोषण ग्रहण करता है । इसलिए माँ का केलोरी-इंटेक , गर्भावस्था में अधिक होना चाहिए। प्रथम तीन मॉस तक १५० ग्राम केलोरी-इंटेक प्रतिदिन बढ़ जाना चाहिए तथा शेष दो ट्राईमेस्टर में ,३५० ग्राम केलोरी-इंटेक बढ़ाना चाहिए । प्रतिदिन २५ से ३० ग्राम वजन बढ़ना ही चाहिए। यदि गर्भिणी को समुचित पोषण नहीं मिला तो उसके अन्दर स्टोर्ड फैट का breakdown होगा और ketone -बॉडी बनेंगे जो स्टार्वेशन की अवस्था को इंगित करते हैं। क्रोनिक किटोन formation से , mentally retarded शिशु के होने की संभावना होती है।

विटामिन , फोलिक एसिड , iron , केल्शियम आदि नयमित दवा के रूप में supplement करते हैं।

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डा० अमर कुमार said...


हमारे शास्त्रों के अनुसार गर्भावस्था में नदी नाले पार करना वर्जित माना गया है,
ग्रामीण क्षेत्रों में तो क्या, अर्धशिक्षित शहरी भी इसे मानते देखे गये हैं.. चूँकि यह शास्त्रों में निषिद्ध रखा गया है, इसलिये इसके पीछे कोई तर्क तो अवश्य ही होगा.... इसका कोई निराकरण ?

vandana gupta said...

बहुत लाभप्रद जानकारी ...आभार ।

arvind said...

bahut hi badhiya jaankaari...aabhaar.

रचना said...

हमारे शास्त्रों के अनुसार गर्भावस्था में नदी नाले पार करना वर्जित माना गया है,

possibilty of non availability of medical help in most circumstances makes the society probhibit pregnant woman to travel

S.M.Masoom said...

बेहतरीन जानकारी है. अरे यहाँ तो अस्पताल खुल गया वोह भी बग़ैर फीस के. टिप्पणी का जवाब पाने का चार्ज लगाना पड़ेगा ZEAL

महेन्‍द्र वर्मा said...

महत्वपूर्ण और उपयोगी जानकारी के लिए धन्यवाद।

Coral said...

दिव्याजी
बहुत अच्छी जानकारी दी है आपने!

Dr Xitija Singh said...

मह्त्वपूर्ण जानकारी है.... आभार ...

DR. ANWER JAMAL said...

Nice post .

DR. ANWER JAMAL said...

@ बहन दिव्या जी ! हम ओशो जी के विचारों से असहमति जता सकते हैं लेकिन उनके साथ अमेरिका में जो अन्याय हुआ उसकी तरफ zuroor ध्यान दिया जाना चाहिए .
२२ बंधक नौजवानों की तरफ तो ज़ुरूर ही . मेरा नया लेख भी इसी ब्लॉग वेद क़ुरआन पर है कृपया ज़ुरूर देखें .

केवल राम said...

मेरे ब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद , इस सृष्टि के कण -कण में परमात्मा विद्यमान है , परन्तु इंसान मन के वशीभूत होकर इसे महसूस नहीं कर पाता , इसे महसूस करने के लिए इंसान को संसार से ऊपर उठकर, मतलब अपने मन के अहंकार को त्यागकर प्रयास करना पड़ता है ...आप इस ब्लॉग पर आते रहिये मेरा प्रयास रहेगा इंसान के सामने जो भ्रम हैं उनका निराकरण करने का .... अनुसरण करने के लिए "स्वागत" के साथ हार्दिक आभार ...!
"चलते -चलते "पर भी आपका स्वागत है

ZEAL said...

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@ केवल राम -

धन्यवाद देने की क्या आवश्यकता है। यहाँ लोग आते ही तब हैं , जब हम चक्कर उनके ब्लॉग पर लगा कर आते हैं। और निश्चिन्त रहिये जब भी आपके ब्लॉग पर आउंगी विषय पर ही टिपण्णी करुँगी ।अनावश्यक लिखने में मज़ा नहीं आता ।


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प्रवीण पाण्डेय said...

जानकारी तो उपयोगी है पर समय निकल गया है।

amar jeet said...

दिव्या जी आपने बहुत अच्छी जानकारिया दी है अगले पार्ट में इन दिनों क्या सावधानिया बरतनी चाहिए और किस तरह के आहार लेने चाहिए बताइयेगा !मैंने कही पड़ा था की इन दिनों में गर्भवती महिला को हमेशा प्रसन्नचित रहना चाहिए और ज्यादा काम भी नहीं करना चाहिए !

Manoj K said...

Dr Divya,

please shed some light on the incidence of diabetes during pregnancy.
India is world's diabetes capital, it is estimated that the highest no. of diabetes patients belong to India.
Is it true that the incidence of diabetes in pregnancy (which is reversible after delivery) makes the lady prone to diabetes mellitus at a later age in her life.

Further are there any proven facts that big ladies (tall and heavy) give birth to babies which are more healthy than normal lady could deliver.

Best
Manoj K

ZEAL said...

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प्रवीण जी ,

आपका समय निकल गया है, लेकिन आपका ज्ञान दूसरों के काम आ सकता है . ज्ञान तो सदैव जनोपयोगी होता है.

--------------

अमरजीत जी ,

सावधानियां -

-ज्यादा दौड़ना अथवा कूदना न हो।
-ऐसा कुछ न करें जिससे धक्का लगने की सम्भावना
-तेज़ी से सीढ़ी न चढ़े-उतरें।
- दोपहिया वाहन न चलायें।
-परिवार के सदस्य-गर्भवती स्त्री को प्रसन्न रखें।
- ज्यादा घी तेल आदि वाली वस्तुओं का सेवन ना करें
-वजनदार भारी वस्तुओं को ना उठाएं , अत्यधिक श्रम न करें , लेकिन हलके फुल्के घरेलु कार्य अवश्य करें ।
-बेड रेस्ट केवल कोम्प्लिकेशन की अवस्था में ही advice किया जाता है।

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ZEAL said...

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मनोज जी,

गर्भावस्था के दौरान , बहुत से होरमोन निकलते हैं , जो अक्सर इंसुलिन हारमोन को अवरुद्ध कर देते हैं । इस diabetes को gestational-diabetes कहते हैं । यह गर्भावस्था के उत्तरार्ध में होती है तथा , प्रसव के बाद स्वमेव ही समाप्त हो जाती है।

यदि यह controlled नहीं है तो इसके कारण -

- pre-eclampsia नामक कॉम्प्लिकेशन होता है जिसके कारण blood-pressure बढ़ जाता है।
-amniotic fluid बहुत बढ़ जाता है
- premature labor होता है।
- सिजेरियन प्रसव काराना पड़ता है।
-तथा भविष्य में होने वाले गर्भ धारण में भी , gestational-diabetes होने की संभावना होती है।

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ZEAL said...

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kindly overlook the spelling errors and typos.
Thanks.

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S.M.Masoom said...

सिजेरियन प्रसव क्या आवश्यक हुआ करता है क्योंकि अगर आप नर्सिंग होम गए तो नोर्मल delievery तो बस भूल ही जाइये . ऐसा क्यों?

ZEAL said...

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मासूम जी,

सिजेरियन प्रसव कोम्प्लिकेशन की स्थिति में ही कराया जाता है। जिसका निर्णय एक डाक्टर ही ले सकता है । पहले नार्मल प्रसव की हर संभव कोशिश की जाती है । यदि प्रसव induction से भी संभव नहीं हो पाता , तब ऐसी स्थिति में सिजेरियन का निर्णय लेना पड़ता है।

यदि कोई आपात स्थिति है , अथवा गर्भ को आक्सीजन की कमी हो रही है [ fetal asphyxia ], तो ऐसी स्थिति में भी सिजेरियन करना पड़ता है। अन्यथा शिशु की मृत्यु हो सकती है । cerebral palsy हो सकती है , अथवा mental damage हो सकता है।

एक डाक्टर को त्वरित निर्णय लेना होता है। गर्भिणी तथा गर्भ की रक्षा करना ही एक चिकित्सक की प्राथमिकता होती है।

सभी डाक्टर पैसों की खातिर सिजेरियन करते हैं , ऐसे पूर्वाग्रहों से बचना चाहिए जन -सामान्य को।

.

जयकृष्ण राय तुषार said...

sundar jankari dhanyvad

गिरधारी खंकरियाल said...

ज्ञान वर्धक जानकारी परम उपयोगी है

बाल भवन जबलपुर said...

ऐसी ग्यानवर्धक जानकारीयों की ज़रूरत है
भाग्य

वीरेंद्र सिंह said...

बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी है.
आभार ..

mehzabin said...

bahut hee achchhee jankaree milee

Manoj K said...

आपने बहुत ही अच्छी जानकारी दी, धन्यवाद..

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