अर्थशास्त्री प्रधानमन्त्री के राज में मंहगाई इतनी तेजी से बढ़ रही है लेकिन सरकार उसे रोक पाने में असफल है , ये दुखद है और हैरान करने वाला भी ! वैसे प्रधानमन्त्री स्वयं एक विद्वान् हैं और जानते हैं की किन प्रयासों द्वारा इस मुद्रा-स्फीति पर नियंत्रण पाया जा सकता है , लेकिन अफ़सोस है की सरकार का पूरा ध्यान नकारात्मक ऊर्जा के रूप में व्यय हो रहा है जैसे रामदेव से कैसे बचें और बालकृष्ण को कैसे उखाड़ फेंके आदि ! इस कारण से मुद्दे पर से उनका ध्यान सदैव हटा ही रहता है और उचित निर्णयों का अभाव सा दीखता है !
साढ़े छः करोड़ टन खाद्यान्न गोदामों में सड़ रहा है , इसके पीछे सरकार की क्या रणनीति हो सकती है भला ? राजकोष में घाटा बढ़ता जा रहा है , जिसे नियंत्रित करने के लिए खाद्यान के दाम ऊंचे कर दिए , जिसके खरीददार ही नहीं मिल रहे ! क्या इससे inflation कम हो जाएगा ! एक ओर भूखमरी, दूसरी अनाज की बर्बादी और तीसरी बढती मंहगाई ! आखिर ये किस अर्थशास्त्र की नीति है ?
मंहगाई की आग में पेट्रोल और डीज़ल भी भभक रहे हैं और सरकार ने इसे बुझाने की जिम्मेदारी RBI को सौंप दी है , जिसने पिछले दो वर्षों में ग्यारह बार ब्याज दरें बढा दी हैं ! क्या इससे रुकेगी मुद्रा-स्फीति ?
उद्योगपति अपना धन विदेशों में निवेश कर रहे हैं ! २७ अरब डॉलर घर आया तो बदले में ४४ अरब डॉलर का निवेश विदेशों में हुआ ! विदेशों में निवेश से मंहगाई बढ़ेगी या घटेगी ? "वालमार्ट" जैसी कम्पनियाँ यदि हमारे देश में आयेंगी तो छोटे-छोटे दुकानदार और किसान तो बर्बाद हो जायेंगे ! अमेरिका के दबाव में आकर और उनके सुझाव मानकर पहले ही बहुत नुकसान हो चुका है , अब वालमार्ट आदि में निवेश से आम जनता का कोई भला नहीं होने वाला! आखिर सरकार की मंशा क्या है -आम जनता को आबाद करना या फिर बर्बाद करना ? वही आम आदमी जो इन्हें चुनाव जिताकर कुर्सी पर बैठाता है ! लेकिन ऊँचे सिंहासन पर विराजने के बाद इन्हें न ही जनता की आवाज़ सुनाई देती है , न ही उसकी भुखमरी और न ही बढती मंहगाई से त्रस्त आदमी से कोई सरोकार दिखता है !
वैसे जो लोग इस सरकार को दुबारा चुनेंगे क्या उनपर इस बढती मंहगाई की मार नहीं या फिर वे सरकार को जिम्मेदार नहीं मानते ?
41 comments:
manhgai ki sunami me dhadhakta petrol....
vicharon ke pravah me urta zeal blog.....
pranam.
In response to your comment on "sundartaa kee pratimoorti ho tum"
Let remain a secret,guesses allowed
Regards
the problem is our government is very ir-responsible .. there target has never been the welfare of the coutry just themselves and their own is the way they look..
country who care for the nation.. this govt i doubt if it will ocme ot power again , the next one will start the same and saying the old govt was responsible...
it is a catch 22 situation.. end of the day if the govt people have money then ALL IS WELL ..
take everything from them then they will run helter skelter and things will happen in minutes ...
Bikram's
sabse achi apni cycle bhiya,
petrol ki nahi hai tensn bhiya.
ek saal me badle chahe kitni sarkar,
par ye chalta hai salon sal..,,
agar mahangayi se bachna hai to hame apni jarurte kam karni padengi(or ek din sanas lene ke liye bhi dukan par hawa ke liye line lagani padegi)
jai hind jai bharat
देश बना रहे, देश बचा रहे, चिन्ता हम सबको हो।
पैट्रोल ही क्या आम जरूरत की हर चीज मँहगी हो गईं है अब तो!
हाँ एक चीज बहुत सस्ती है और वो हे आदमी की जान!
चिंताजनक विषय है।
दिन पर दिन स्थिति बद से बदतर होती जा रही है.
ऐसे में आतंकवाद और कुदरत की मार से जनता की 'कराहने'
की आवाज भी बंद होती जा रही है.
आपने पूछा - " वैसे जो लोग इस सरकार को दुबारा चुनेंगे क्या उनपर इस बढती मंहगाई की मार नहीं या फिर वे सरकार को जिम्मेदार नहीं मानते ? "
तो
इन्हें मालूम है कि इन्हें चुनते वे हैं *****जिन्हें ये सबसे ज्यादा नुक्सान कर रहे हैं , और उनमे से अधिकतर अनपढ़ता/ नासमझी / / या फाल्स सेक्युलरिज्म के जालों में फंसी मछलियाँ हैं - जिन्हें ये चारे के लालच में फांस लेते हैं | :( |
और जो बदलना चाहें भी - उनके लिए चोइस है कहां ? यहाँ तो ये है कि आसमान से गिरे तो खजूर में अटक जाएँ - फ्रॉम फ्रायिंग पैन टू फाइर .... :(
पट्रोल सूंघना भी घातक है.. :) ..स्वास्थ के लिए और पैसों के लिए ...फिर बढती महंगे में वालमार्ट जैसी कंपनियों का जिक्र कर खासा भयभीत कर दिया दिव्या जी... महंगाई यूँ भी सर चड कर बोल रही है...
आपने भारत के आम आदमी की चिंता को बहुत अच्छे तरीके से उठाया। काश हमारे नेता भी ऐसे समझदार होते।
ये सरकार प्रो-इंडियन है...भारतीयों से दूर...जिस देश में खेती सबसे बड़ा उद्योग हो...वहां किसानों और आम आदमी की बदहाली...दुखी कर देती है...
bilkul sahi baare me post ki hai
कौन सुन रहा है ? जो सुनते हैं , वे वोट डालने ही नहीं जाते ।
कौन सुनेगा। अभी लंबी बहस चल रही थी एनडीटीवी पर। कैसे कैसे दलील दिए जा रहे थे। समापन इस बात से हुआ कि कल मंत्री सदन में वक्तव्य देंगे और बकौल एंकर बस उसके बाद महंगाई कम जाएगी।
समय आ गया है कि दो दशकों से चलाए जा रहे मुक्त अर्थव्यवस्था की नीति पर हमें पुनर्विचार करना चाहिए।
मँहगाई पर देश के नेता कहते हैं कि आज लोगों के पास बहुत पैसा है ..
सरकार कोई भी आए पिसना आम आदमी को ही है ..
very nice post, thanks
दिव्या दीदी...
पैट्रोल के दाम बढ़ने के पीछे भी एक बहुत बड़ा दुश्चक्र सरकार के द्वारा चलाया जा रहा है...जयपाल रेड्डी का कहना है की अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में तेल के दाम बढ़ने के कारण भारत में पैटोल, डीज़ल, कैरोसीन व गैस सिलेंडर के दामों में वृद्धि हुई है| पैट्रोल के दाम बढ़ने से पहले अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल का भाव १०७ डॉलर प्रति बैरल था, जो घट कर ९९ डॉलर प्रति बैरल पर आ गया| फिर किस अधिकार से जयपाल रेड्डी ने अपने गंदे मूंह से यह उलटी की? एक तो जनता पर महंगाई का दबाव बनाया, ऊपर से झूठ भी बोल रहे हैं|
कच्चे टेक से पेट्रोलियम प्राप्त करने की प्रक्रिया में एक सफ़ेद रंग का अपशिष्ट निकलता है| ईरान से जहाज के जहाज भर कर वह अपशिष्ट मुंबई में खाली हो रहा है व पैट्रोल में मिलाया जा रहा है| जिससे हमारी गाड़ियों के इंजन खराब हो रहे हैं|
कुअत्रोची के बेटे मलुस्मा को अंडमान निकोबार में १५,००० एकड़ जमीन दी गयी तेल खोदने के लिए| कहाँ जा रहा है वह सारा तेल? इटली के सबसे बड़े रैकेटियर को भारत में व्यापार करने के लिए अनुमति दे दी जाती है और किसी को इसका पता भी नहीं चलता| वह आदमी जिसे सी बी आई भी ढूंढ रही है, दिल्ली के कनौट प्लेस स्थित ली मैरेडियन होटल में अपना दफ्तर चला रहा है|
तेल के दाम के नाम पर भारत में आम आदमी की खून पसीने की कमाई से सट्टा खेला जा रहा है|
@वैसे जो लोग इस सरकार को दुबारा चुनेंगे क्या उनपर इस बढती मंहगाई की मार नहीं या फिर वे सरकार को जिम्मेदार नहीं मानते ?
दरअसल या तो ये वे लोग हैं जो खुद भ्रष्ट हैं, अथवा जो बुद्धूजीवी हैं...
दिव्या जी, जब हम बच्चे थे तो हम भाग्यवान कहे जा सकते हैं कि हमें उस समय खेलने का और 'प्रकृति' को निकट से देखने का अवसर प्राप्त हुआ... किन्तु तब हमारी विश्लेषण करने की क्षमता जन्म के समय लगभग शून्य प्रतीत होती, किन्तु काल के साथ निरंतर परिवर्तन शील प्रतीत होते संसार के साथ साथ अपनी बुद्धि में भी प्रगति और विकास हो रहा होगा,,, जिस कारण जैसे जैसे पहले तो पढ़ाई से ज्ञानवर्धन हुआ, और उसके बाद निजी जीवन में अनेक कटु और थोड़े थोड़े मधुर अनुभव भी होते चले गए (ब्लॉग के माध्यम से भी बहुत!)...
जो अपने पूर्वजों के शब्द हमारे आम कथा आदि में भी पढने को मिले (जिन्हें सौभाग्यवश सभी 'हिन्दुओं' को ही नहीं, अपितु किसी भी 'धर्म' से सम्बंधित व्यक्तियों को टीवी पर एक समय सभी को 'रामायण' और 'महाभारत' देखने का सुअवसर प्राप्त हुआ, और तब ट्रैफिक थम जाता था), 'मुझे' भाग्यवश काल-चक्र के बारे में अपने पूर्वजों के माध्यम से समझ आया कि संभवतः यह जगत ही मिथ्या है (अर्थात 'हम' भी मिथ्या हैं!), और वास्तव में 'हम' शरीर नहीं 'आत्माएं' हैं, अर्थात शक्ति रुपी अनंत 'शिव' के प्रतिबिम्ब अथवा प्रतिरूप हैं जो अपना भूत देख रहे हैं :) और शायद अब युग का अंत निकट है!
और इसके संकेत पतंग उड़ाने वाले कुछेक बच्चों को छत से नीचे गिर मृत्यु तक हो जाने के समाचार यदाकदा मिल जाते हैं क्यूंकि पतंग पर एकाग्रता पूर्वक ध्यान होने से वो भूल जाते हैं कि वो छत पर हैं और पीछे की ओर चलते चले जाते हैं :(
और 'पूर्वोत्तर भारत' में अस्सी के दशक में निजी अनुभव के कारण पता चला कि कैसे स्थानीय मणिपुरी माईतेई मान्यतानुसार अमृत भगवान् (सीदब, हमारे शिव?) के दो पुत्र हैं, सनामही (कार्तिकेय?) और पाखंग्बा (गणेश?), क्यूंकि उसी प्रकार उनकी मान्यतानुसार पाखंग्बा को पृथ्वी का राजा चुना गया (जो धरती पर सफ़ेद सांप के रूप में दिखाई दे सकते हैं), जबकि सनामाही को घर घर का राजा माना जाता है,,,
और इसे सौभाग्य कहें अथवा संयोग कि 'मुझे' एक रात हाइवे पर सफ़र करते ऐसे ही जीप की लाईट में नाग के दर्शन हुए... जिसने मुझे तब अधिक आश्चर्यचकित किया कि उसकी विशेषता यह थी कि वो पीछे की ओर (घाटी की तरफ) जा रहा था जबकि वो कोबरा के समान पहाड़ी की ओर फन ऊंचा किये था, और जो गोल गोल भी चक्र में घूम रहा था!
ek vicharniye post sabhi ki chinta ka vishya.very nice Dr. Divya.
बाकी जो बचा था महंगाई मार गई .
यह सिलसिला रुकेगा नहीं
मंहगाई रोकने के लिए किसी भी अर्थशास्त्री की आवश्यकता नहीं होती है बस देश की जनता के लिए दिल में जज्बा होना चाहिए। लेकिन यहाँ तो केवल सत्ता में बने रहने का ही जज्बा और प्रयास है। इसलिए गैरजरूरी कार्य ही प्राथमिकता में रहते हैं। दूसरों का चरित्रहनन करके नकारात्मक वोट से सत्ता प्राप्ति का प्रयास है, जबकि स्वयं के कृतित्व से सकारात्मक वोट का प्रयास रहना चाहिए।
The system of Governance has collapsed just because of greed for dirty money.
Even MMS ,considered to honest has fallen into the trap
satya wachan !
सुन्दर आलेख. इस व्यवस्था को ही बदलना होगा.
संगीता स्वरुप 'गीत' जी से पूरी तरह सहमत हूँ कि "सरकार कोई भी आए पिसना आम आदमी को ही है .. " यह ठीक है कि वाजपेयी जी के नेतृत्व में पूर्व n d a सरकार ने काफी हद तक महंगाई पर अंकुश लगा रखा था पर बदलते परिवेश में किसी से भी कुछ आशा रखना बेकार है !
'डूबते जहाज' के विषय पर निम्नलिखित लिंक देखा जा सकता है...
http://newsclick.in/india/special-interest-driven-upa-resembles-sinking-ship-0
ये सिलसिला क्या थम जाएगा सरकार यदि बदल दें.....
कोई और आएगा फिर वही होगा........
चिंताजनक विषय है।
कहते हैं "आने वाली घटनाओं की परछाइयां पहले से दिखने लगती हैं", मुंबई में अरब सागर के तट पर डूबते जहाज के विषय में एक और लिंक...
http://www.sify.com/news/coast-guard-rescue-30-crewmen-from-sinking-ship-news-national-lienEjcecai.html
जब तक पढ़े लिखे...निस्स्वार्थ लोग बहुतायत से राजनीति में आकर सरकार चलाने की जिम्मेवारी नहीं लेते...गरीबों का उद्धार संभव नहीं.
सरकार बदलने से समाधान नहीं आएगा... विचारणीय आलेख !
दिव्या जी,
मेरे हृदय में इस बात की अत्यधिक पीड़ा व्याप्त है कि
पहचान में आ गये देशद्रोहियों और लुटेरों के हाथों से इस १५ अगस्त को 'राष्ट्रीय ध्वज' फहराया जायेगा.
जब तक नहीं जानता था तब तक तो ठीक था... लेकिन ab ... देखकर makkhii nigalii नहीं jaatii.
आपकी बात से सहमत हूं ...सही लिखा है आपने ..आभार ।
सरकार तो उद्योगपति चलाते हैं। उद्योगपतियों के इशारे पर कीमतें बढ़ती हैं। मंत्रियों को निजी चुनाव खर्च और सौदे में कमीशन उद्योगपतियों से ही मिलता है। ऐसे में आम जनता की समस्याओं का समाधान मुश्किल प्रतीत होता है।
मंहगाई को पेट्रोल जलाए या पेट्रोल महंगाई को...इस महंगाई की सुनामी का अंत कब और कहां होगा कोई नहीं जानता।शायद कोई जन-क्रांति हो समय बदले...इसी की कामना रखें हैं।
लगता है आम आदमी की काफी परीक्षा ली जा चुकी है. राजनीतिज्ञों के प्रति देश में इतनी घृणा पहले कभी महसूस नहीं की.
अर्थशास्त्री प्रधान मंत्री जी ने साबित कर दिया " लक्ष्मी झाडे झाड-झुंगर,धनपत मांगे भीख,अमर सिंह जैसा मर गया ...........
आभार उपरोक्त पोस्ट हेतु.
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Here is the link --
http://blogsinmedia.com/2011/08/%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%B9%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%88-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%80-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%A7%E0%A4%A7%E0%A4%95%E0%A4%A4/
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जनता क्या करे......उसके पास बुरा या उससे बुरा या उससे भी बुरा चुनने का ही विकल्प होता है.........अच्छा तो कोई है ही नहीं.......जब तक इस देश की राजनीती धर्म और जातिवाद से ऊपर नहीं उठेगी तब तक कोई सम्भावना नहीं दिखती|
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