आज जब सारा देश भ्रष्टाचार के दानव से जूझ रहा है तो ऐसे में अन्ना जैसे भारतीय इसके खिलाफ लड़ने के लिए मैदान में आ गए हैं। इस उम्र में इतने कड़े विरोधों को झेलना और निरंतर अपनी बात पर डटे रहने कोई मामूली बात तो नहीं । आखिर वे ये कर क्यूँ रहे हैं ? वे निस्वार्थ भाव से देश के लिए ही कर रहे हैं , इसमें उनका कोई निजी स्वार्थ तो है नहीं। फिर देश के लिए लड़ी जाने वाली लडाई में कुछ लोग उनका इतना विरोध क्यूँ कर कर रहे हैं? क्या हासिल होगा इससे?
देश की जनता जो उनके साथ है वो इसलिए क्यूंकि वे जिस बात के लिए लड़ रहे हैं वह हम सभी की समस्या है। जनता मुद्दे के साथ है , किसी व्यक्ति के साथ नहीं। न ही आज की जनता इतनी इतनी भोली है की गलत व्यक्ति को यूँ ही अपना समर्थन दे देगी। इसलिए अनायास ही अन्ना का विरोध करके अपनी ऊर्जा का व्यर्थ मत कीजिये न ही मुद्दे से भटकाईये । मुद्दा बड़ा है , व्यक्ति नहीं इसलिए अपनी ऊर्जा को एकजुट होकर समर्थन जैसे सकारात्मक कार्य में लगाइए।
अन्ना और बाबा की अनावश्यक तुलना करने से बचिए । दोनों ही देश और आम जनता के लिए समर्पित हैं , दोनों ही निस्वार्थ देश के हित में लड़ाई लड़ रहे हैं। बस हर किसी के लड़ने का अपना अंदाज़ अलग होता है, इतना ही अंतर है। आज़ादी की लड़ाई में गरम दल और नरम दल में भी तो अंतर था , लेकिन लड़ तो सभी देश के लिए ही रहे थे , बस तरीके अलग थे। और सभी का नाम आज हम सम्मान के साथ वीर शहीद देशभक्तों के रूप में लेते हैं। अतः अन्ना और रामदेव में अनावश्यक भेद मत कीजिये। दोनों ही देश के लिए दो बड़ी सकारात्मक ताकतें हैं जो आम जनता के हित में ही सोच रही हैं।
इतने लोगों के समर्थन के बाद और इतनी बड़ी जिम्मेदारी होने पर कोई गलत दिशा में सोच भी नहीं सकता । अपने आप मन मस्तिष्क में नैतिकता और जिम्मेदारी बढ़ने लगती है। करोड़ों जोड़ी आँखें आज उन पर लगी हुयी है फिर उनके मंतव्यों पर संशय करना एक दुराग्रह जैसा लगता है। विरोध ही करना है तो उन हस्तियों की करिए जो बड़े-बड़े मुद्दों पर चुप्पी साधे हुए है।
आखिर विरोधों से लाभ क्या है ? सरकार करे तो करे लेकिन आम जनता का कुछ प्रतिशत विरोध क्यूँ कर रहा है ? यदि अन्ना भी अन्य सामान्य व्यक्तियों की तरह अपना आन्दोलन छोड़ दें और घर बैठ कर सामान्य चर्या अपना लें तो विरोधियों को क्या हासिल होगा। कौन लडेगा इस लड़ाई को ? देश के लिए स्वयं को आहुत करने वालों का विरोध हमारी तुच्छ एवं नकारात्मक सोच को परिलक्षित करता है।
जन आन्दोलों की आंधी में हम यदि एकजुट होकर अपना समर्थन दें और अनावश्यक निंदा से बचें और सकारात्मक सोच रखें तभी यह लड़ाई जीती जा सकती है।
Unity is strength ! ( एकता में ही बल है , विरोधों में नहीं)
Zeal
देश की जनता जो उनके साथ है वो इसलिए क्यूंकि वे जिस बात के लिए लड़ रहे हैं वह हम सभी की समस्या है। जनता मुद्दे के साथ है , किसी व्यक्ति के साथ नहीं। न ही आज की जनता इतनी इतनी भोली है की गलत व्यक्ति को यूँ ही अपना समर्थन दे देगी। इसलिए अनायास ही अन्ना का विरोध करके अपनी ऊर्जा का व्यर्थ मत कीजिये न ही मुद्दे से भटकाईये । मुद्दा बड़ा है , व्यक्ति नहीं इसलिए अपनी ऊर्जा को एकजुट होकर समर्थन जैसे सकारात्मक कार्य में लगाइए।
अन्ना और बाबा की अनावश्यक तुलना करने से बचिए । दोनों ही देश और आम जनता के लिए समर्पित हैं , दोनों ही निस्वार्थ देश के हित में लड़ाई लड़ रहे हैं। बस हर किसी के लड़ने का अपना अंदाज़ अलग होता है, इतना ही अंतर है। आज़ादी की लड़ाई में गरम दल और नरम दल में भी तो अंतर था , लेकिन लड़ तो सभी देश के लिए ही रहे थे , बस तरीके अलग थे। और सभी का नाम आज हम सम्मान के साथ वीर शहीद देशभक्तों के रूप में लेते हैं। अतः अन्ना और रामदेव में अनावश्यक भेद मत कीजिये। दोनों ही देश के लिए दो बड़ी सकारात्मक ताकतें हैं जो आम जनता के हित में ही सोच रही हैं।
इतने लोगों के समर्थन के बाद और इतनी बड़ी जिम्मेदारी होने पर कोई गलत दिशा में सोच भी नहीं सकता । अपने आप मन मस्तिष्क में नैतिकता और जिम्मेदारी बढ़ने लगती है। करोड़ों जोड़ी आँखें आज उन पर लगी हुयी है फिर उनके मंतव्यों पर संशय करना एक दुराग्रह जैसा लगता है। विरोध ही करना है तो उन हस्तियों की करिए जो बड़े-बड़े मुद्दों पर चुप्पी साधे हुए है।
आखिर विरोधों से लाभ क्या है ? सरकार करे तो करे लेकिन आम जनता का कुछ प्रतिशत विरोध क्यूँ कर रहा है ? यदि अन्ना भी अन्य सामान्य व्यक्तियों की तरह अपना आन्दोलन छोड़ दें और घर बैठ कर सामान्य चर्या अपना लें तो विरोधियों को क्या हासिल होगा। कौन लडेगा इस लड़ाई को ? देश के लिए स्वयं को आहुत करने वालों का विरोध हमारी तुच्छ एवं नकारात्मक सोच को परिलक्षित करता है।
जन आन्दोलों की आंधी में हम यदि एकजुट होकर अपना समर्थन दें और अनावश्यक निंदा से बचें और सकारात्मक सोच रखें तभी यह लड़ाई जीती जा सकती है।
Unity is strength ! ( एकता में ही बल है , विरोधों में नहीं)
Zeal
72 comments:
आज सभी घोटाले बाज सांसद कि गरिमा को बढ़ा रहे हैं
देश सर्वोपरि है, देश को प्रथम राष्ट्र होने की आवश्कतायें सर्वोपरि हैं।
जनता को अपनी लड़ाई खुद ही लड़नी होगी।
आदिम युग से यह मानव की प्रकृति रही है...
बुद्धिजीवियों का बस यही काम है कि मुद्दे से देश को भटकाना। आज कठिनाई यही है कि श्रेय किसे मिले। बस इसी की कूटनीति में सब लगे हैं। देश से बड़ा जब व्यक्ति को बना दिया जाता है तब यही होता है। ऐसा कौन सा आंदोलन होगा जिसमें कोई भी मीनमेख नहीं निकाली जा सकती है? इसलिए जो अपनी बुद्धि बल पर अपनी जीविका चलाते हो ऐसे बुद्धिजीवी आज जनता को भ्रमित करने पर तुले है। वे बन्दर की तरह दो बिल्लियों को लड़ाकर पूरी रोटी हड़प जाना चाहते हैं।
बड़ा तो मुददा ही होता है और इसी को उठाकर आदमी बड़ा बनता है और अन्ना जी जैसे बड़े ने भी कहा है कि मैं रहूं या न रहूं लेकिन आज़ादी की यह दूसरी जंग चलती रहनी चाहिए।
इसके बावजूद उनके चरित्र पर उंगलियां उठाई जा रही हैं जबकि चोर-जार संसद में बैठ जाएं तो उन पर ये आरोप नहीं लगाते।
इससे समझा जा सकता है कि हमारे ब्लॉग जगत के मार्गदर्शकों की तरह ही इन नेताओं की मंशा भी केवल अपना स्वार्थ साधना है और जो आड़े आए उस पर इल्ज़ाम धर दो, यह इनकी नीति है।
अन्ना हजारे के आंदोलन के पीछे विदेशी हाथ बताना ‘क्रिएट ए विलेन‘ तकनीक का उदाहरण है। इसका पूरा विवरण इस लिंक पर मिलेगा-
ब्लॉग जगत का नायक बना देती है ‘क्रिएट ए विलेन तकनीक‘ Hindi Blogging Guide (29)
सहमत
जनता का बडा वर्ग मुद्दों को अच्छी प्रकार समझता है और बाबा या अन्ना के साथ तो है ही उनके अलावा किसी और के आगे आने पर उनके साथ भी खडा होगा। जो लोग जनता को अपनी लडाई खुद लडने का ताना देते हैं उन्हें शायद देश की ज़मीनी हक़ीकत का अन्दाज़ नहीं है। दो जून की रोटी की जुगाड करते हुए भी ग़रीब आदमी अपनी लडाई हर पल लड रहा है। हत्यारे माओवादी और क्रूर पुलिस से लेकर अदालत के रिश्वती बाबू, लालची वकील और अक्षम व्यवस्था तक - शिक्षा और स्वास्थ्य से वंचित आम आदमी का जीवन हर पल एक संघर्ष है और उसे संघर्ष की बात करते हर व्यक्ति में एक आशा दिखती है।
"मुद्दा बड़ा है , व्यक्ति नहीं "आपने ठीक कहा हैं ! आज अन्ना ने जो मुहीम चलाई हैं वो हर भारतवासी का सपना हैं जो जल्दी पूरा होगा !
NGO को क्यों नहीं रखा जा रहा है लोकपाल के दायरे में..
रामलीला मैदान में हुई प्रेस कांफ्रेंस में अरविन्द केजरीवाल और प्रशांत भूषण ने साफ़ और स्पष्ट जवाब देते हुए लोकपाल बिल के दायरे में NGO को भी शामिल किये जाने की मांग को सिरे से खारिज कर दिया है. विशेषकर जो NGO सरकार से पैसा नहीं... लेते हैं उनको किसी भी कीमत में शामिल नहीं करने का एलान भी किया. ग्राम प्रधान से लेकर देश के प्रधान तक सभी को लोकपाल बिल के दायरे में लाने की जबरदस्ती और जिद्द पर अड़ी अन्ना टीम NGO को इस दायरे में लाने के खिलाफ शायद इसलिए है, क्योंकि अरविन्द केजरीवाल, मनीष सिसोदिया,किरण बेदी, संदीप पाण्डेय ,अखिल गोगोई और खुद अन्ना हजारे भी केवल NGO ही चलाते हैं. अग्निवेश भी 3-4 NGO चलाने का ही धंधा करता है. और इन सबके NGO को देश कि जनता की गरीबी के नाम पर करोड़ो रुपये का चंदा विदेशों से ही मिलता है.इन दिनों पूरे देश को ईमानदारी और पारदर्शिता का पाठ पढ़ा रही ये टीम अब लोकपाल बिल के दायरे में खुद आने से क्यों डर/भाग रही है.भाई वाह...!!! क्या गज़ब की ईमानदारी है...!!
भारत सरकार के Ministry of Home Affairs के Foreigners Division की FCRA Wing के दस्तावेजों के अनुसार वित्तीय वर्ष 2008-09 तक देश में कार्यरत ऐसे NGO's की संख्या 20088 थी, जिन्हें विदेशी सहायता प्राप्त करने की अनुमति भारत सरकार द्वारा प्रदान की जा चुकी थी.इन्हीं दस्तावेजों के अनुसार वित्तीय वर्ष 2006-07, 2007-08, 2008-09 के दौरान इन NGO's को विदेशी सहायता के रुप में 31473.56 करोड़ रुपये प्राप्त हुये. इसके अतिरिक्त देश में लगभग 33 लाख NGO's कार्यरत है.इनमें से अधिकांश NGO भ्रष्ट राजनेताओं, भ्रष्ट नौकरशाहों, भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों, भ्रष्ट सरकारी कर्मचारियों के परिजनों,परिचितों और उनके दलालों के है. केन्द्र सरकार के विभिन्न विभागों के अतिरिक्त देश के सभी राज्यों की सरकारों द्वारा जन कल्याण हेतु इन NGO's को आर्थिक मदद दी जाती है.एक अनुमान के अनुसार इन NGO's को प्रतिवर्ष न्यूनतम लगभग 50,000.00 करोड़ रुपये देशी विदेशी सहायता के रुप में प्राप्त होते हैं.
इसका सीधा मतलब यह है की पिछले एक दशक में इन NGO's को 5-6 लाख करोड़ की आर्थिक मदद मिली. ताज्जुब की बात यह है की इतनी बड़ी रकम कब.? कहा.? कैसे.? और किस पर.? खर्च कर दी गई. इसकी कोई जानकारी उस जनता को नहीं दी जाती जिसके कल्याण के लिये, जिसके उत्थान के लिये विदेशी संस्थानों और देश की सरकारों द्वारा इन NGO's को आर्थिक मदद दी जाती है. इसका विवरण केवल भ्रष्ट NGO संचालकों, भ्रष्ट नेताओ, भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों, भ्रष्ट बाबुओं, की जेबों तक सिमट कर रह जाता है.
भौतिक रूप से इस रकम का इस्तेमाल कहीं नज़र नहीं आता. NGO's को मिलने वाली इतनी बड़ी सहायता राशि की प्राप्ति एवं उसके उपयोग की प्रक्रिया बिल्कुल भी पारदर्शी नही है. देश के गरीबों, मजबूरों, मजदूरों, शोषितों, दलितों, अनाथ बच्चो के उत्थान के नाम पर विदेशी संस्थानों और देश में केन्द्र एवं राज्य सरकारों के विभिन्न सरकारी विभागों से जनता की गाढ़ी कमाई के दसियों हज़ार करोड़ रुपये प्रतिवर्ष लूट लेने वाले NGO's की कोई जवाबदेही तय नहीं है. उनके द्वारा जनता के नाम पर जनता की गाढ़ी कमाई के भयंकर दुरुपयोग की चौकसी एवं जांच पड़ताल तथा उन्हें कठोर दंड दिए जाने का कोई विशेष प्रावधान नहीं है.
लोकपाल बिल कमेटी में शामिल सिविल सोसायटी के उन सदस्यों ने जो खुद को सबसे बड़ा ईमानदार कहते हैं और जो स्वयम तथा उनके साथ देशभर में india against corruption की मुहिम चलाने वाले उनके अधिकांश साथी सहयोगी NGO's भी चलाते है लेकिन उन्होंने आजतक जनता के नाम पर जनता की गाढ़ी कमाई के दसियों हज़ार करोड़ रुपये प्रतिवर्ष लूट लेने वाले NGO's के खिलाफ आश्चार्यजनक रूप से एक शब्द नहीं बोला है, NGO's को लोकपाल बिल के दायरे में लाने की बात तक नहीं की है.
अन्ना जी ये देश द्रोही आपके साथ क्या कर रहे है....
1 शांति भूषण ........1993 मुंबई बम आतंकवादी विस्फोट के आरोपी शौकत गुरू और संसद हमले में दोषी अफजल के मृत्युदंड के खिलाफ मामले लड़े....
2 प्रशांत भूषण ..........कश्मीर की स्थिति के लिए भारतीय सेना को दोषी ठहराने वाले और भारतीय सेना के खिलाफ हमेंसा खड़े होने वाले साथ ही अफजल के मृत्युदंड के खिलाफ जनहित याचिका दायर करने वाले ...
3 स्वामी अग्निवेश .........समर्थक नक्सलवाद और कश्मीर में अलगाववाद के लिए लड़ने वाले गिलानी यासीन मलिक के समर्थक ...अमरनाथ यात्रा को पाखंड कहने वाले .....
4 संदीप पांडे ...........सदस्य अफजल गुरु को न्याय दिलाने के लिए बनी समिति के सदस्य.........
5 मेघा पाटकर व अरुंधती राय ........दोनों ही कश्मीर के अलगाववादियों के समर्थन में सुर में सुर मिलाने वाले ......
हो सकता है की मेरे इस सन्देश से लोगो को आपत्ति हो हो सकता है की आप इसे उचित भी न माने .........क्यों पिछली बार जब अन्ना जी अनशन में बैठे थे उस समय केजरीवाल और अग्निवेश ने भारत माँ के चित्र पर आपत्ति की थी ...क्यों इस बार मंच पर लगे चित्र में से भारत माँ के चित्र के साथ सुभाष चन्द्र बोश ,भगत सिंह ,रानी लक्ष्मी बाई व विवेकानंद के चित्र गायब है ...
एक बार अवश्य सोचे की कही हम भी अन्य लोगो की ही देखा देखी हाथो में तिरंगा लिए निकल पड़े है यक़ीनन भ्रष्टाचार के खिलाफ सभी के मन में आक्रोश है लेकिन दोस्तों कही इसी बहाने देशद्रोहियों के हाथ तो हम मजबूत तो नहीं कर रहे है..............
बुद्धिजीवियों की कमी नहीं है। एक ढूँढो हजार मिलते हैं। मेरी समझ से कुछ बुद्धिजीवी ऐसे भी होते हैं जिन्हें इस बात की चिंता नहीं होती कि हम देश को किधर ले जा रहे हैं! हमारा धर्म क्या है, किसका साथ दे रहे हैं, और किसका विरोध कर रहे हैं? वे उस दिल से नहीं सोचते जिसमें राष्ट्र रहता है, सिर्फ उस दिमाग से सोचते हैं जिसमे उनके द्वारा अर्जित ज्ञान का अहंकार रहता है। अपने ज्ञान का उपयोग वे राष्ट्र का हित करने में नहीं सिर्फ अपने दिमाग का लोहा मनवाने में करते हैं।
मेरी मूढ़ बुद्धि को तो यह पोस्ट अच्छी लगी।
निश्चित रूप से मुद्दा बड़ा है| मैं आपसे सहमत हूँ|
साथ ही कहना चाहता हूँ कि आपकी अंतिम पंक्ति
"Unity is strength ! ( एकता में ही बल है , विरोधों में नहीं)"
ने ही हो रहे थोड़े बहुत अन्ना विरोध के कारणों को स्पष्ट कर दिया है| दरअसल विरोधियों को अन्ना से कोई तकलीफ नही है, किन्तु उनका यूं अकेले अकेले लड़ाई लड़ना, अपनी मर्ज़ी के लोगों को इस लड़ाई को लड़ने का अधिकार देना ही अन्ना विरोध का कारण बना है| ये एक public movement है, कोई personal movement नहीं| अत: अन्ना को चाहिए कि यहाँ अपनी मर्ज़ी न चलाएं|
यदि लोकपाल के मुद्दे को इतना तूल न देकर, सम्पूर्ण भ्रष्टाचार मिटाने के मुद्दे पर एक साथ विचार किया जाता तो इतना हो हल्ला भी नही होता और बिना शक्तियां बांटें हम भ्रष्टाचार की लड़ाई लड़ पाते और संभवत: जीत भी जाते|
सबसे पहले हमे शत्रु (कांग्रेस) की धूर्तता को समझना होगा| किस प्रकार एक लाइन को छोटा किया जाता है व बाद में मिटाया जाता है, यह कोई कांग्रेस से सीखे|
एक उदाहरण यहाँ देखें|
बाबा रामदेव ने सम्पूर्ण भ्रष्टाचार, काले धन, व्यवस्था परिवर्तन, भ्रष्टाचारियों को दंड, नयी क़ानून व्यवस्था (जिसमे लोकपाल भी शामिल है) के मुद्दों पर एक बहुत बड़ी लड़ाई शुरू की, जिसका हिस्सा अन्ना भी थे| लेकिन किस प्रकार अन्ना को हाई लाईट कर बाबा रामदेव को छोटा व पूरी लड़ाई में से केवल एक लोकपाल के मुद्दे को बड़ा बना दिया गया| अब जब लोकपाल का मुद्दा बड़ा हो गया तो लीजिये एक और षड्यंत्र तैयार है| अभी एक और महिला (मुझे नाम याद नहीं आ रहा) लोकपाल का एक नया ड्राफ्ट लेकर आ गयी है| अभी तक एक ड्राफ्ट अन्ना टीम के पास था और दूसरा सरकार के पास| अब यह तीसरा विकल्प आ गया| अब इसके द्वारा अन्ना को छोटा बनाया जाएगा| जब अन्ना छोटे हो आएँगे तो यह नया मुद्दा लेकर एक और लड़ाई चलेगी| फिर वही चिल्ला चोट शुरू होगी और बाद में उसे भी छोटा बनाया जाएगा| ऐसे करते करते धीरे धीरे सभी को ख़त्म कर दिया जाएगा|
दिव्या दीदी, ये कांग्रेस बहुत धूर्त है, इसे अन्ना बहुत हलके ले रहे हैं| इन कुटीलों को मारने के लिए कुटिलता से ही काम करना होगा| क्रान्ति इतनी सस्ती नही होती जितना सड़क पर चिल्लाने वाले समझ रहे हैं, कि चिल्ला चोट करो और लीजिये आपका देश भ्रष्टाचार मुक्त|
इसके लिए कीमत चुकानी पड़ेगी|
अमर जीत जी की अंतिम पंकियों पर विचार करना बहुत जरुरी है|
मेरे उक्त कथनों से मुझपर पुन: अन्ना विरोध का आरोप लग सकता है| लेकिन बता देना चाहता हूँ कि अन्ना मुझसे या मुझ जैसे करोड़ों देशवासियों से जो अपेक्षा रखते हैं, मैं उन्हें निभा रहा हूँ| मैं अन्ना की अपेक्षाओं पर खरा उतर रहा हूँ| अन्ना ने जो जो कहा, मैं वो वो कर रहा हूँ| अन्ना ने कहा अनशन करो, वो भी किया| अन्ना ने कहा सड़कों पर आ जाओ, वो भी किया| अन्ना ने कहा जेल भर दो, उसके लिए भी तैयार हूँ, किन्तु कोई गिरफ्तार करे तो| मैं तो देख रहा हूँ कि जगह जगह प्रदर्शन हो रहे हैं किन्तु पुलिस नाम मात्र की| इनका मकसद गिरफ्तार करना है ही नही| सरकार तो कहती है कि चिल्लाने दो सालों को, कब तक चिल्लाएंगे?
अन्ना के लिए जो बन पड़ सकता है, करूँगा और कर भी रहा हूँ| यह अन्ना के प्रति मेरा विश्वास, प्रेम व सम्मान ही है|
लेकिन अब इससे इतर भी कुछ सोचना पड़ेगा| इसलिए जो गलत हो रहा है, उसका विरोध भी करूँगा|
मैं बार बार स्थान स्थान पर यह कह चूका हूँ फिर भी आज यहाँ फिर से कह रहा हूँ| मैं अन्ना व उनकी मुहीम का समर्थन करता हूँ| उनकी मुहीम में बढचढ कर शामिल हूँ| सड़क पर चिल्लाने वाली भीड़ का नेता बना घूम रहा हूँ| अत: अन्ना का विरोध नही कर रहा|
विषय से सम्बंधित एक पोस्ट में आज लिख चूका हूँ| शायद उससे मुझ जैसों की मनोस्थिति समझने में सहायता मिले|
जी हां आपसे पूरी तरह सहमत !!!! आज देश का हर अमन पसंद आदमी अन्ना है जय हिंद
मै zeal जी दिवस गौर जी तथा मदन शर्मा जी के ब्लॉग को सलाम करती हु जो लगातार आन्दोलन में जन फुकने में लगे है
@amar jeet said...
अन्ना जी ये देश द्रोही आपके साथ क्या कर रहे है.
आप कब तक इस कूप मुंडता में पड़े रहेंगे कृपया कुवें के मेढक न बनिए कुवें से बाहर निकालिए आप जैसे ललोगों के मानसिकता के कारण ही ये भारत बर्बाद हो रहा है zeal को साधुवाद जो ज्वलंत मुद्दे को उठाया
हम सैनिक वीर दयानंद के दुनिया में धूम मचा देंगे..........
हमारी परेशानी यह है कि हम हर उस व्यक्ति का कैरेक्टर सर्टिफिकेट मांगने लगते हैं जो सरकार से लड़े , क्योंकि हम अपने अंधेपन में वही देखते हैं जो यह सरकार हमें दिखाए | हम कहते हैं - "यदि तुम चाहते हो कि रावण के विरुद्ध हम तुम्हारे साथ हों, तो पहले तुम राम बनो | नहीं तो हम रावण का ही साथ देंगे , तुम्हारे नुक्स देखेंगे !! "
आज देश को एकजुट होकर अपनी शक्ति का परिचय तो देना ही होगा।
धीरे धीरे बादल छंटते जा रहे हैं|
कुछ और जानकारी मिली है|
अपनी पिछली टिपण्णी में मैंने जिस महिला का ज़िक्र किया था वह सोनिया की पर्सनल संस्था राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् (NAC)की सदस्या है, साथ ही साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा विधेयक बनाने में योगदान दे चुकी है| अब बताइये, इतनी पवित्र(?) महिला के सामने तो अन्ना बेचारे पानी भरते नज़र आएँगे|
जब मुझे पता है की मैं षड्यंत्रों का शिकार हो रहा हूँ, फिर भी मैं आँखें मूंदे बैठा हूँ, अन्ना का समर्थन भी कर रहा हूँ, थोड़े बहुत विरोध का कुछ तो कारण होगा|
महिला का नाम अरुणा राय है|
देश और मुद्दा दोनों ही सर्वोपरि हैं.
मुद्दा महत्वपूर्ण है, व्यक्ति नहीं।
अन्ना के विरोध में जो आवाजें उठ रही हैं, वह सत्ताधारियों की कुटिल रणनीति लग रही है। उसकी इस चाल से कुछ लोग भ्रमित हो रहे हैं।
आपने ठीक कहा कि जन आन्दोलों की आंधी में हम यदि एकजुट होकर अपना समर्थन दें और अनावश्यक निंदा से बचें और सकारात्मक सोच रखें तभी यह लड़ाई जीती जा सकती है।
'मैंने' निम्नलिखित टिप्पणी अन्यत्र लिखी, जो आपके सूचनार्थ भी दे रहा हूँ...
"क्यूंकि द्वैतवाद के कारण सुरों और असुरों में युद्ध मानव जीवन का सत्य है, हमारे ज्ञानी योगियों, सिद्धों, आदि द्वारा मौखिक अथवा सौभाग्यवश वर्तमान में भी उपलब्ध लिखित 'महाभारत' के पांडवों (परोपकारी देवता) और कौरवों (स्वार्थी राक्षश) के बीच हुए युद्ध से हमें क्या पता चलता है? क्या सीख मिलती है?...
पांडवों में केवल अर्जुन (कृष्ण की कृपा से?) जानता था चक्र-व्यूह में प्रवेश कैसे करना है और कैसे उससे बाहर भी निकल आना है...
किन्तु युद्ध के दौरान जब अर्जुन वहां नहीं था तो उस का पुत्र अभिमन्यु महारथियों द्वारा रचित 'चक्र-व्यूह' में घुस तो गया किन्तु अज्ञानतावश, सम्पूर्ण ज्ञान के अभाव से बाहर नहीं निकल पाया और महारथियों द्वारा मारा गया :(...
जैसे अनंत आत्माएं सौर-मंडल द्वारा रचित 'काल-चक्र' में प्रवेश तो पाती हैं, किन्तु 'हिन्दू' मान्यतानुसार बिरले ही मोक्ष प्राप्त करते हैं...
ऐसी मान्यता है कि कलियुग में मानव की प्राकृतिक क्षमता, चारों युगों में से, सबसे कम होती है, फिर भी त्रेता में राम और द्वापर में कृष्ण समान युग का 'पुरुषोत्तम' कोई न कोई तो होगा ही... जो केवल काल अथवा महाकाल (शून्य काल और स्थान से सम्बन्धित निराकार अजन्मा और अनंत परमज्ञानी जीव) ही शायद बता सकता है,,, अथवा वो योगी जो शून्य विचार की स्थिति में पहुँचने, उस परम ज्ञानी से सम्बन्ध स्थापित करने की प्राकृतिक क्षमता रखते हैं (कृष्ण की कृपा से!),,, किन्तु आम आदमी सीमित ज्ञान के आधार पर अधिकतर केवल तुक्का ही लगा सकता है और संभव है 'भाग्यवश' सही भी निकले !...
वैसे, मान्यता यह है कि कलिकावतार सफ़ेद घोड़े में आएगा :{?
दोनों माता सरस्वती समान श्वेत वस्त्र धारी, अन्ना, या कौंग्रेस / अथवा दोनों मिलकर क्या अन्धकार दूर कर पायेंगे ? ...
जय माता की! (अभिमन्यु की माता किन्तु सो गयी थी, 'माता' का जागना आवश्यक है)..."
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इसके अतिरिक्त बुद्धिजीवी तिरंगे की बात तो करते है, किन्तु शायद अधिकतर प्रकृति के संकेत न जानते हों कि उसके पीछे भावना क्या है?
सबसे ऊपर गणेश / हनुमान का केसरी रंग बना है लाल और पीले रंग के योग से (मंगल गृह का द्योतक?); बीच में सफ़ेद रंग बना है राजा सूर्य की किरणों में छुपे उसके दरबारियों के आठ रंगों के मिश्रण के अतिरिक्त स्वयं को मिला नौ रंग/ ऊर्जा, अल्ट्रा वायोलेट से इन्फ्रा रेड तक जो हमारे वातावरण में प्रवेश पाते तो हैं, किन्तु इन्द्र्धंनुष में केवल वायोलेट से लाल, सात रंग ही हमारी आँखें देख पाती हैं; और सबसे नीचे हरा (हरी भरी धरती का द्योतक?) बना है नीले और पीले के योग से... इस प्रकार (सुनहरी) पीला रंग पूरे झंडे में सर्वोच्च स्थान दिया गया है... बीच में काल-चक्र को दर्शाते नीला चक्र 'आकाश' का द्योतक है अर्थात (सूर्य पुत्र) शनि ग्रह का, कलयुग, मशीनी युग का द्योतक, और नीलाम्बर कृष्ण ने भी धनुर्धर अर्जुन से कहा वो केवल निमित्त मात्र है, एक माध्यम, सूर्य का प्रतिरूप, जिससे किरणें हर दिशां में धनुष से तीर समान निकल रहे हैं...
क्या सूर्य से तीर न निकलें तो पृथ्वी पर जीवन का अंत न हो जाएगा?
किन्तु समय आने पर वो भी संभव है - केवल तब ही जब ब्रह्मा की रात होजाए, उसके दिन की समाप्ति पर :)
...
मुद्दे की बात . बाकी सब गौड़ है .
एक बात और, इस काम में अरुणा राय के एक सहयोगी भी हैं, पूर्व IAS हर्ष मंदर| जो गुजरात में गोधरा काण्ड के बाद हुई साम्प्रदायिक हिंसा को लेकर मोदी व हिन्दू विरोधी अभियान छेड़े हुए हैं|
ध्यान दें, यहाँ मैं अन्ना का विरोध नही कर रहा, अपितु जो सरकारी षड्यंत्र धीरे धीरे मेरे सामने आ रहे हैं, उन्हें आपस में जोड़कर देख रहा हूँ तो ऐसा लग रहा है कि जिस प्रकार नेहरु द्वारा गांधी जी को गर्त में धकेल दिया गया, मुझे डर है कहीं अन्ना के साथ भी ऐसा ही न हो|
कांग्रेस जो खेल खेल रही है, उसमे मीडिया पूरी तरह उसके साथ है| उदाहरण के तौर पर गूगल पर केवल इतना टाइप करें " who owns the Indian media", परिणाम सामने होंगे| डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी ने जितना शोध किया, जितना लिखा, उसके लिए मीडिया के पास समय नही है| किन्तु जिज्ञासू लोगों के लिए एक स्त्रोत खुला है "youtube"...जिसका यथा संभव उपयोग करना चाहिए|
ऐसे भी संकेत मिल रहे हैं जिनसे लगता है कि अन्ना को शायद अब कुछ कहानी समझ आ रही है| जेल से निकलते समय उनका यह कहना कि यह अंतिम लड़ाई नही है, इसके बाद आगे की लड़ाई व्यवस्था परिवर्तन के लिए जारी रहेगी, विचारणीय है|
जो भी हो, प्रयास रहेगा कि कांग्रेस अपने कुचक्रों में सफल न हो सके| इसके लिए मैं अन्ना के साथ हूँ|
एकता मे शक्ति है.
अगर ये बात अन्ना को समझ मे आ जाती तो फिर बात ही कुछ और होती.
लेकिन वो तो कठपुतली बने है.
जैसा साथ वाले लोग नचायेँगे.
वैसा नाचेँगे.
मुद्दा निश्चित रूप से बड़ा है. समस्या आंदोलन के आंतरिक स्वरूप को लेकर उठती प्रतीत होती है जैसा कि अमर जीत की टिप्पणी से दिख रहा है. ग़ैर सरकारी संगठनों को सरकारी और विदेशी साहायता मिलती है. उसका उपयोग कैसे होता है यह जग ज़ाहिर है. ये अपने आप में भ्रष्टाचार के अड्डे हैं इसमें न पब्लिक को संदेह है और न सरकार को. केवल पब्लिक नहीं जानती कि सरकार और एनजीओज़ की एक मिलीभगत है.
अपनी बात को यहाँ विराम दूँगा कि मुद्दा बड़ा है व्यक्ति नहीं.
अन्ना और बाबा यदि साथ में लड़ें, फिर चाहे इस आन्दोलन का नेतृत्व बाबा करें या अन्ना, इससे मुझ जैसों को कोई फर्क नहीं पड़ता| अलग अलग बिखरे रहे तो शक्तियां बिखर जाएंगी|
इस विश्लेषण से बहुत जानकारी मिल रही है.इस समय बाबा रामदेव और अन्ना एक साथ हों तो शक्ति और सामर्थ्य में बहुत बढ़ोतरी होगी .पता नहीं दूरियाँ क्यों हैं दोनो में .
और जहाँ तक सवाल है कांग्रेस का .
तो उसका सर्वनाश तो निश्चित है.
और वो उसी दिन शुरु हो गया था. जब इसने 4 जून को संतो पे लाठी गोली चलायी थी.
संतो के श्राप से अच्छे अच्छे स्वाहा हो गये तो भला इस कांग्रेस की क्या औकात है ?
यही तो हमारे देश की सबसे बड़ी समस्या है की लोग अपना सही कार्य क्या है ये समझ नहीं पाते और अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी मारते हैं
बहुत सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति.आपको कृष्ण जन्माष्टमी की बहुत बहुत शुभकामनायें
सच कहा है ये मुद्दा बढ़ा है ... सब को मिल कर भ्रष्टाचार के विरुद्ध खड़ा होना है ...
सत्ता भ्रष्ट बनाती है और फिर बमुश्किल जब उसका कोई विरोध करता है तो बहुतेरे समझदार अपने सवाल खड़े कर उसी का विरोध करने पर उतारु हो जाते हैं। वैसे इनमें भी अधिकांश वे ही लोग होते हैं जो नित्यकर्म से पहले अखबार पर नजर मार मंहगाई का रोना रो, नेताओं को गालियां दे, देश की किस्मत पर अफसोस जाहिर कर अपनी माली हालत को कोसते हुए काम पर निकलते हैं। खुद की हिम्मत नहीं होती कुछ करने की या व्यवस्था पर चोट पहुंचाने की पर यदि कोई आगे बढता है तो उसकी टांग खींचने में गुरेज नहीं करते।
विरोधियों की संख्या बहुत कम है ,सरकार तो जन समर्थन देखकर घबरा गयी है ।
मैं आपसे सहमत हूँ ,हमसब को अभी एकजुट होकर मुकाबला करना चाहिए न कि मीनमेख निकालकर अपनी उर्जा को गलत दिशा में खर्च कर अपना ही नुकसान कर लें
सद्विचार.
चालीस करोड़ से १२० करोड़, अर्थात 'स्वतंत्र भारत' की सीमित भूमि पर आधारित जन संख्या चौगुनी हो गयी ६०+ वर्षों में ही, जिसके कारण हर क्षेत्र में समस्या गंभीर होती चली गयी, विशेषकर स्वास्थ्य के क्षेत्र में,,,
ऐसे में बाबा ने बीमार जनता की आँख खोल के लगता है गलती कर दी उन्हें 'योगा' सिखा के, जिससे जनता के कुछ भाग को प्रकृति से, केवल प्राणायाम अर्थात सांस पर नियंत्रण से ही, स्वास्थ्य लाभ मिलने लगा था... और यही नहीं, सबको अँधेरे में भी नजर आने लगा कि स्वास्थ्य ही केवल नहीं अपितु उनके सारे कष्टों का कारण केवल 'सरकार' ही है, और वो भी स्वयं 'अपनी सरकार'! जिसको जनता ने स्वयं ही चुना था!
ओ एम् जी! अर्थात ॐ जी ?! जिन्होंने ब्रह्मनाद से सम्पूर्ण साकार सृष्टि की रचना करी? और जो उन्ही के भीतर ही सदैव समाई भी हुई है, अर्थात ब्रह्माण्ड के अनंत शून्य के अन्दर, जिसके प्रतिरूप 'हम' सब भी हैं ("यथा पिंडे तथा ब्रह्मांडे")!
अब बताइये कि मुद्दा किसका है? योगेश्वर त्रेयम्बकेश्वर विष्णु / शिव का? अथवा उसके अज्ञानता के कारण असहाय प्रतीत होते 'सरकार' और 'जनता' दोनों प्रतिरूप / प्रतिबिम्ब का कलियुग में ?
दिल्ली की सड़कों पर लाखों लोगों की आवाज़ सुनकर भी अगर कोई अनसुनी करता है तो उसे १९७५ का इतिहास याद नहीं है।
इतनी गम्भीर चर्चा के बाद...
बडा नहीं इंसान, बडा नहीं भगवान
धरती कहे आसमान से, समय बडा बलवान :)
क्षमा प्रार्थी हूँ लिखते कि यदि स्वार्थी सरकार के स्वार्थी मानवों, इतिहासकारों, द्वारा लिखे इतिहास को ही केवल कोई पढ़े तो उसे प्रकृति के इतिहास का पता नहीं है - १९७५ के बाद १९७७ में जिस सरकार को इसी जनता ने आउट कर दिया उसे वो ही जनता फिर से '८० में क्यूँ उसे ले आई? और उसे सरकारी खजाने को लूटने की खुली छूट भी क्यूँ दे दी?... आदि, आदि... भगवा वस्त्रधारी के समर्थन से आई सरकार क्यूँ फिर फिर हटा दी जाती हैं? क्या इस लिए कि जोगी का काम राज्य करना नहीं है? उनका स्थान ऊंचा है - 'परम ज्ञान' को पाना! और अन्य 'आम आदमी' का भी मार्ग दर्शन करना,,, उनके सही गंतव्य तक पहुंचाने कि यद् दिलाना,,,
मच्छर यदि इतिहास लिखता तो वो कहता कि मानव मुझसे तो लड़ नहीं पाता, सम्पूर्ण संसार हमारी हस्ती मिटाने में लगा है और फिर भी उसके सारे प्रयास निरर्थक जा रहे हैं! यदि प्रभु की कृपा से उसकी शक्ति बढ़ रही है तो हमारी भी बढ़ रही है! पहले मलेरिया का ही मैं अधिकतर माध्यम था, कुनीन से ठीक हो जाता था,,, किन्तु आज तो मैंने भी तकनीक के क्षेत्र में - बड़े बड़े लैब, आधुनिक उपकरण अदि पर मल्टी मिलियन डॉलर खर्च किये बिना ही - प्रगति कर ली है! अब मैं और अधिक कष्टदायी चिकन गुनिया आदि अनेक बिमारी द्वारा मानव की नाक में दम किये रहता हूँ! आदि आदि,,, और जब आज प्रकृति के पंचभूतों को ही इसने बिगाड़ दिया है तो क्या अब अंत समय में अपने ही भ्रष्टाचार को मिटा पायेगा? अब तो शायद भगवान् ही मालिक है! किन्तु आधुनिक मानव तो अधिकतर भगवान् को मानता ही नहीं!
इस मुद्दे पर दो राय नहीं हो सकती...मुद्दे ज़रूरी हैं व्यक्ति नहीं...हाँ भीड़ को एक नेतृत्व अवश्य चाहिए...
इसलिए अनायास ही अन्ना का विरोध करके अपनी ऊर्जा का व्यर्थ मत कीजिये न ही मुद्दे से भटकाईये । मुद्दा बड़ा है , व्यक्ति नहीं इसलिए अपनी ऊर्जा को एकजुट होकर समर्थन जैसे सकारात्मक कार्य में लगाइए।
बहुत सुन्दर और सार्थक विचार हैं आपके.मैं पूर्णतय सहमत हूँ.
'कुछ लोग जो ज्यादा जानते हैं,
इंसान को कम पहचानते हैं
ये पूरव है,पूरव वाले
हर जान की कीमत जानते हैं'
एक ७४ साल का बुड्ढा व्यक्ति,छै दिन से अनशन पर है,
अपने लिए नहीं देश के लिए,जनता के लिए
और हम कमियाँ ढूँढने में लगे हैं.
धिक्कार है हमें.
एक शुभ समाचार के संकेत नज़र आ रहे हैं| अन्ना के आन्दोलन ने अब पुन: एक सकारात्मक मोड़ ले लिया है|
मैं अभी अभी आन्दोलन व रैली में शामिल होकर घर पहुंचा हूँ| आज कम से कम 35 से 40 हज़ार लोगों की भीड़ देखकर दंग रह गया| दोपहर साढ़े चार बजे से अभी रात साढ़े दस बजे तक वहीँ था| बहुत से लोगों से बात की, उनके विचार जाने| मुझे यह जानकर ख़ुशी हुई कि अधिकतर लोगों का कहना था कि चाहे लोकपाल आए न आए, काला धन आए न आए, भ्रष्टाचार मिटे न मिटे, किन्तु अब कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ करना है और वो कर के रहेंगे|
मतलब कांग्रेस का अपना ही दांव उल्टा पड़ गया| अब भ्रष्टों के सिंहासन हिल गए हैं|
आज की रैली में कुछ ज्यादा ही जोश था| हम लोगों ने आज जयपुर भर की गाड़ियों पर अन्ना की तस्वीरें चिपका दीं| जयपुर में शायद 60 से 70 प्रतिशत गाड़ियों पर अन्ना मुस्कुरा रहे हैं| कार, स्कूटर, मोटर साइकल, टैक्सी, रिक्शा, ऑटो, बस, ट्रक, ट्रेक्टर, जीप, कुछ भी नही छोड़ा| लोग भी ख़ुशी ख़ुशी लगवा रहे थे| इसके बाद अपने खर्चे पर मैंने व मेरे साथियों ने विकिलीक्स के स्विस बैंक सम्बन्धी खुलासों की एक प्रति से बीस हज़ार ज़िरोक्स निकाली, व सड़कों पर बांटी| वाहनों को रोक रोक कर लोगों को बताते हुए एक एक प्रति सभी को दीं| सरकारी बसों में चढ़ चढ़ कर एक एक यात्री को प्रतियां बांटी|
इसीलिए कह रहा हूँ कि अन्ना के आन्दोलन में मैं या मुझ जैसे कहीं भी पीछे नहीं हैं| आज कुछ सकारात्मक नज़र आया है तो उत्साह और बढ़ गया है| ऊर्जा दुगुनी हो गयी है|
अन्ना व उनके आन्दोलन के लिए पूरे जोरो शोरों से काम कर रहे हैं व करते रहेंगे|
अन्ना के पीछे जन-सैलाब का उमड़ जाना.... कारण है ...४ जून के बाद की घटना के बाद देश की सारी जनता अपना विरोध सरकार के प्रति दर्शाना चाहती थी उसे एक अवसर चाहिए था ... वह अवसर अन्ना जी के बहाने मिल गया.... 'जन लोकपाल बिल' से पहले वे सरकार पर अपनी भारी नाराजगी जताना चाहते थे कि वह तानाशाह हो गयी है.. अलोकतांत्रिक हरकतों पर उतर आयी है... भ्रष्टाचार और कालेधन की बादशाहत हासिल किये है... विश्व में उसके कारण भारत देश की छवि धूमिल हुई है......... महँगाई जैसे मुद्दों ने भी साथ दिया और आज एक भारी जन-सैलाब देखने को मिल रहा है.... लेकिन यह आंधी अचानक नहीं बनी... इसके नेपथ्य में ... रामदेव पर हुए अत्याचारों का आक्रोश भी भी है. अन्ना जी से जो विरोध है भी वह इसलिये कि वे इस राष्ट्रव्यापी आन्दोलन में सहयोग देने वालों से भेदभाव कर रहे हैं... जिनका कद और आदर ऊँचा है उनसे परहेज और जिनपर कद और सम्मान का अभाव है उन्हें मंच पर आसन... जब तक सत्ता-पक्ष के विकल्प को वे साथ लेकर साथ नहीं चलेंगे तब तक इसे धुंध में लट्ठ घुमाना कहेंगे...
देश की आजादी के समय गांधी जी ने देश की ग्रामीण जनता को 'राम राज्य' का सपना दिखाया था और आज के नये गांधी जी देश की जनता को भ्रष्टाचार मुक्त भारत का सपना दिखा रहे हैं... लेकिन यह तभी संभव है जब वे एक बड़े संभावित विकल्प का साथ लें.... अन्यथा यह पूरी लड़ाई व्यर्थ जायेगी..
दिव्या जी, मैं दिवस जी की सभी बातों से सहमत हूँ.
दिवस जी आपके जोश और जुनून की मन से तारीफ़ करते हैं.... नमन आपकी पूरी टीम को.
Almost Hindi translation of my sentiment...see my post on India Against Corruption..Posted on Thursday!!!
लोकपाल बिल बनने से कुछ हो या न हो लेकिन लोगों को कुछ पा लेने का अहसास तो हो ही जाएगा।
हम तो शुरू से ही कह रहे हैं कि सच्चे रब से डरो, जैसी उसकी ढील है वैसी ही सख्त उसकी पकड़ है।
अभी इंटेलेक्चुअल बने घूम रहे हैं लेकिन अगर भूकंप, बाढ़ और युद्धों ने घेर लिया तो कोई भी फ़िलॉस्फ़र बचा न पाएगा।
ईमानदारी के लिए ईमान चाहिए और वह रब को माने बिना और रब की माने बिना मिलने वाला नहीं है।
लोग उससे हटकर ही अपने मसले हल कर लेना चाहते हैं,
यही सारी समस्या है।
ख़ैर ,
आज सोमवार है और ब्लॉगर्स मीट वीकली 5 में आ जाइये और वहां शेर भी हैं।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर सभी को बधाई देते हुए 'मेरा' कहना है कि 'कर्म कर / फल की इच्छा मत कर' तो सभी ने सुना है... यद्यपि गीता का पांचवा अध्याय कर्मयोग पर है, उसमें से श्लोक १५ / १६ का हिंदी रूपांतर नीचे दे रहा हूँ...
"परमेश्वर न तो किसी के पापों को ग्रहण करता है, न पुण्यों को... किन्तु सारे देहधारी जीव उस अज्ञान के कारण मोहग्रस्त रहते हैं, जो उनके वास्तविक ज्ञान को आच्छादित किये रहता है.../ किन्तु जब कोई उस ज्ञान से प्रबुद्ध होता है, जिससे अविद्या का विनाश होता है, तो उसके ज्ञान से सब कुछ उसी तरह प्रकट हो जाता है, जैसे दिन में सूर्य से सारी वस्तुएं प्रकाशित हो जाती हैं..."
aadeniya divya ji..aapn ne bakhubi is jwalant mudde ko uthaya hai..main aapke bicharaon se hamesha ki tarah sahmat hoon..bartmaan pariprekshya mein is tarah ke lekho ki samicheenta aaur badh jaati hai..aap eun hi shadon se masal jalate rahein..hausla dilate rahein...jahan talwarein natmastak ho jaati hain..kalam bahan bhi sir uthati hai..is mahayagya ke safalta ki kamna aaur aap sabhi kalam ke pujariyon ko sadar naman aaur janmastmi ki hardik shubhkamnaon ke sath
आदरणीय प्रतुल भाईसाहब, बहुत बहुत धन्यवाद...
आपका आशीर्वाद बना रहे तो शीघ्र ही किला फतह भी कर लेंगे...
वैसे इस समय राजिव भाई दीक्षित की कमी बहुत खल रही है| वे आज हमारे साथ होते तो इतना विवाद ही नही होता| जिन राजिव भाई ने बाबा रामदेव, अन्ना हजारे, किरण बेदी, केजरीवाल, डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी, विश्वबंधु गुप्ता जैसी शक्तियों को एक कर दिया था, आज उनकी शहादत के बाद ये शक्तियां बिखर गयी हैं| निश्चित रूप से आज भारत की जनता में आग लग गयी है, यह आन्दोलन पूरे जोश में है, किन्तु यदि आज राजिव भाई हमारे बीच होते तो ये जोश कुछ और ही होता| राजिव भाई साथ होते तो आज आन्दोलन की शक्ति वर्तमान परिस्थितियों से दस गुना अधिक होती|
सही अर्थों में देखा जाए तो इस क्रान्ति के सूत्रधार न बाबा रामदेव हैं और न ही श्री अन्ना साहब हजारे| वे तो राजिव भाई ही हैं|
दिवस भाई
आपने सही कहा.
मुझे भी बहुत आश्चर्य हुआ था.
जब राजीव दीक्षित जी का इतनी कम उम्र मे निधन हो गया.
मुझे तो ऐसा लगता है. कि उनको इस कांग्रेस और विदेशी ताकतो ने ही मरवा दिया. क्यो कि जैसा मैने सुना था कि मरने के बाद उनका शरीर नीला पड़ गया था.
क्यो कि वो बाबा रामदेव की ताकत थे.
और षडयंत्रकारियो ने सोचा होगा कि अगर उनको खत्म कर दिया जाये.
तो बाबा रामदेव के आंदोलन की ताकत खत्म हो जायेगी.
व्यक्ति नहीं ..मुद्दा बड़ा होता है ...
व्यक्ति नहीं मुद्दा ही महत्वपूर्ण है। मैने तो ऐसा एक भी विरोध नहीं देखा जो भ्रष्टाचार के मुद्दे का विरोध कर रहा हो? मैने मनिष तिवारी को छोडकर एक भी व्यक्ति नहीं देखा जो अन्ना के व्यक्तिगत चरित्र पर आरोप करता हो। टीम के बारे में संशय है तो रहेंगे भी। विवेक से सभी दृष्टिकोण पर विचार करना कूप-मण्डूकता नहीं है। संशय तो वास्तविक जाग्रति का लक्षण है। मुद्दा लक्षी तो साथ और समर्थन देते हुए भी आंखे खुली रखते है। व्यक्ति भक्ति में नहीं पडते, अन्य दृष्टिकोण बिना देखे बस विरोध कहकर खारिज़ नहीं करते। इसे विरोध कहकर त्वरित आवेश में आने वाले अंध-भक्त होते है। ऐसे अन्धत्व को लॉली-पॉप से सहजता से ललचाया जा सकता है। वस्तुतः मुद्दे को महत्व देते जाग्रत लोगों का समर्थन और संशय चिंतन साथ चलता है। उनकी नजर वास्तव में ध्येय की ईमानदारी और सार्थक अन्तिम परिणामों पर भी होती है। आगे बढ़ना लेकिन दूरदृष्टि से, कैसे बुरा हो सकता है।
इसी परिपेक्ष्य में अमर जीत जी की टिप्पणी को देखा जाना चाहिए, जो कहीं से भी भ्रष्टाचार मुक्ति (मुद्दे) का विरोध नहीं है उसमें ‘अन्ना’ (व्यक्ति) का उपयुक्त सम्मान सुरक्षित है।
सबसे अधिक विवेकयुक्त टिप्पणी है श्री भूषण जी की, आपके शब्दों को यहां पुनः आलेखित करना उपयुक्त ही होगा-
मुद्दा निश्चित रूप से बड़ा है. समस्या आंदोलन के आंतरिक स्वरूप को लेकर उठती प्रतीत होती है जैसा कि अमर जीत की टिप्पणी से दिख रहा है. ग़ैर सरकारी संगठनों को सरकारी और विदेशी साहायता मिलती है. उसका उपयोग कैसे होता है यह जग ज़ाहिर है. ये अपने आप में भ्रष्टाचार के अड्डे हैं इसमें न पब्लिक को संदेह है और न सरकार को. केवल पब्लिक नहीं जानती कि सरकार और एनजीओज़ की एक मिलीभगत है.
अपनी बात को यहाँ विराम दूँगा कि मुद्दा बड़ा है व्यक्ति नहीं.
जेसी जी नें बड़ा ही सार्थक उदाहरण दिया- किन्तु युद्ध के दौरान जब अर्जुन वहां नहीं था तो उस का पुत्र अभिमन्यु महारथियों द्वारा रचित 'चक्र-व्यूह' में घुस तो गया किन्तु अज्ञानतावश, सम्पूर्ण ज्ञान के अभाव से बाहर नहीं निकल पाया और महारथियों द्वारा मारा गया :(...
अभिमन्यु पूर्णतः विवेकवान था, परिणामों के प्रति आस्वस्त नहीं था, उसने पूर्व ही जता दिया मैं 7 पडाव पार करने में समर्थ हूँ पर आठवे पडाव का ज्ञान मुझे नहीं है। सफलता अनिश्चित है। भीम के अतिविश्वास नें कहा कि आठवा तो मैं बल-प्रयोग करके पार करवा दूँगा। इसी विश्वास पर अभिमन्यु नें कदम बढाया, पर वह अतिविश्वास असफल रहा। और अभिमन्यु की जान देकर भी चक्रव्यूह में जीत हासील न हो सकी।
मित्र दिवस जी और मित्र प्रतुल जी का समर्थन सहित संशय समाधान का जाग्रत चिंतन, विवेक-युक्त चिंतन का प्रमाण है।
Dekhiye is samay sab logon ko yah achchhi tarah se samajh lena chahiye ki Rajiv Dixit ne jo mudde uthaye the unhe Ramdev ne aage badhaya isiloye ek shadyantra ke tahat unhe Bhilai (Durg) ke Apolo Hospital men marva diya gaya aur Swami Agnivesh ke madhyam se Anna Hajare ko Ramdev ka prabhav kam karne ke liye Dilli laya gaya.
Ab is samay Anna Ramdhun ga rahe hain media usko hava de raha hai. Koi ye nahin poochhta ki Madam aur unka poora parivar kahan hai? Kya kale dhan ko safed ki jagah peela banane men to nahin laga hai. Sone ki kimten kis tarah asman chhoone lagi hain. Is desh ki janta ko yah janne ka haq hai ki UPA chairperson ki sehat ka bultetin sarkar kyon nahin jari karti.
Baharhal Anna ke mudde ko hamen jivit rakhna hai use marne nahin dena. Aaj Krishna Janmashtami ke din ham yahi prarthna karen ki vo apni solaho kala ke roop men kahi n kahin kisi n kisi roop men apna jalwa bikherta rahe. Inhi shabdon ke sath.
वे निस्वार्थ भाव से देश के लिए ही कर रहे हैं , इसमें उनका कोई निजी स्वार्थ तो है नहीं। फिर देश के लिए लड़ी जाने वाली लडाई में कुछ लोग उनका इतना विरोध क्यूँ कर कर रहे हैं? क्या हासिल होगा इससे?
सभी संगीतकारों ने कुछ न कुछ तैयार किया हुआ है....
अनुरोध का गीत है तो विरोध का भी गीत है...
अच्छा संगीत कालजयी बन जाता है जबकि कानफोडू संगीत चार दिन में विच्छिन हो जाता है...
दुनिया में दोनों प्रकार के संगीत बजते हैं.... बस चार दिन का इंतज़ार... दूध और पानी अलग अलग हो जाते हैं....
सादर.....
true,... Unity is strength. We just need to keep in mind that the movement moves in right direction now.
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति /आज देश के हालात और जनसमुदाय के अन्तेर्मन की ब्यथा को बताती अत्याचार के खिलाफ लिखी,देश प्रेम के जज्बे को जगाती/बिलकुल सही कहा आपने की अन्ना निस्वार्थ भाव से ये लड़ाई लड़ रहे हैं उसमे सबको उनका साथ देना चाहिए /तभी इस देश का कुछ सुधार हो पायेगा / शानदार अभिब्यक्ति के लिए बधाई आपको /जन्माष्टमी की आपको बहुत बहुत शुभकामनाएं /
आप ब्लोगर्स मीट वीकली (५) के मंच पर आयें /और अपने विचारों से हमें अवगत कराएं /आप हिंदी की सेवा इसी तरह करते रहें यही कामना है /प्रत्येक सोमवार को होने वाले
" http://hbfint.blogspot.com/2011/08/5-happy-janmashtami-happy-ramazan.html"ब्लोगर्स मीट वीकली मैं आप सादर आमंत्रित हैं /आभार /
इस नए ब्लॉग में पधारें |
काव्य का संसार
अन्ना समर्थन व अन्ना विरोध, दोनों को समझना होगा,देश से बड़ा कोई नहीं ,किसी भी व्यक्ति को ,अकेले देश हित मुद्दे पर निर्णय लेने की इजाजत नहीं दी जा सकती है ,चाहे अन्ना हों या मनमोहन / इतिहास से सबक लें , देखें सबक मिल जायेगा ,पाकिस्तान ,बंगला - देश ,उदहारण हैं / भीख मांगने की आजादी हैं , पर
रोजगार ,समानता , विकास के अवसर , सिक्षा ,संसाधन ,पारदर्शिता ,मांगने की आजादी नहीं है / धर्म-स्थलों में ,करोड़ों ,अरबों चढाने की आजादी है , नाम ,गुमनाम दोनों रूपों से ,परन्तु देश हितार्थ कोई बाध्यता नहीं है ,श्वार्ग प्राप्ति के चाहत के सिवा / भ्रष्टाचार को परिभाषित किये बिना ,कोई भी आन्दोलन सफल नहीं है ,भावनाओं को भड़का कर ,दिवा श्वप्न दिखा कर ,हम यथार्थ तक नहीं पहुँच सकते / मात्र अनशन की भाषा सर्व मान्य होती तो युध्य क्यों लड़े जाते ,? सेना क्यों ?मात्र कुछ व्यक्तियों का हठ ,सर्व - हित में नहीं ,कुछ व्यक्तियों को आरोपित कर ,कुछ व्यक्तियों का तुष्टिकरण हो सकता है ,सर्व - हित का नही , .
इस देश के ,बच्चों [18 varsh तक ] और बुजुर्गों [६०वर्श के बाद ] की जिम्मेदारी वहन करो , देश सुरक्षित और भ्रस्टाचार मुक्त होगा ,किसी लम्बरदार की जरुरत नहीं / सेवा के नाम पर छद्म- वेशी,किसी नियम - उपनियम से बाहर क्यों ? आत्म हत्या की धमकी के नाम पर ,करोड़ों की दूरगामी हत्या का प्रयास क्यों ? यही प्रश्न शहीदे आजम ,भगत सिंह ने उठाया , क्या उसका कोई औचित्य नहीं ? भ्रष्टाचार की परिधि men ,सारे भ्रष्टाचार [ सामाजिक ,आर्थिक ,धार्मिक ,भौगोलिक ]क्यों नहीं ?
निश्चित ही मुद्दे बड़े होते हैं , व्यक्ति पीछे ../
फौरी तौर पर कार्य वाही जल्द बजी होगी .....
शुक्रिया जी /
@ हंसराज जी, हमारे पूर्वज रहस्यवादी प्रतीत होते हैं आज जब हम प्राचीन कथा कहानी आदि पड़ते हैं... शायद तब काल की उलटी चाल के कारण सभी वर्तमान कलियुग के मानव से कई गुना ज्ञानी थे...
गीता में 'कृष्ण' (हमारी गैलेक्सी के निराकार केंद्र के प्रतिरूप) कहते दर्शाए गए हैं कि तीनों लिओक में उनके पाने के लिए कुछ शेष बचा नहीं था, फिर भी वो प्रति पल कार्य किये जा रहे हैं, क्यूंकि साड़ी प्रकृति श्रंखलाबद्ध तरीके से उनकी नक़ल कर रही है... इस कारण यदि वो काम करना बंद करदें तो सब काम करना बंद करे देंगे और वो सृष्टिकर्ता के स्थान पर संहारकर्ता हो जायेंगे...
क्षीर सागर मंथन की कहानी भी हमारी गैलेक्सी को अमृत और अनंत, दर्शाती है,,, जिसमें एक कल्प की समाप्ति पर ब्रह्मा की रात आ जाती है और सब जीव कृष्ण में समां जाते हैं,,, जहां से वो ब्रह्मा के नए दिन आरम्भ होने पर फिर से अनंत काल-चक्र में प्रवेश पाते हैं...
अर्थात जीव केवल देवताओं के इतिहास को प्रतिबिंबित कर रहे हैं...
आज एक बात और सामने आई है| जिन बाबा रामदेव ने अन्ना को उठाया, उन्ही बाबा रामदेव का अन्ना ने अपमान किया| ये तो बाबा की महानता है कि वे आज भी अन्ना के समर्थन में खड़े हैं|
वहीँ दूसरी ओर दिल्ली जामा मस्जिद के शाही ईमाम बुखारी ने आज यह ऐलान किया की अन्ना की यह मुहीम इस्लाम विरोधी है| इसलिए देश भर के मुसलामानों से यह गुहार लगाईं गयी है की वे अन्ना के इस आन्दोलन में शामिल न हों| इस पर किरण बेदी व केजरीवाल दोनों बुखारी की जी हुजूरी करने पहुँच गए| उसे मना रहे हैं, मनुहार कर रहे हैं| शर्म आती है जब किरण बेदी व केजरीवाल जैसे कर्तव्यनिष्ठ व ईमानदार लोग इतना गिर जाते हैं|
यह सब क्या ड्रामा है अन्ना टीम का?
देश के एक सबसे सम्माननीय संत का अपमान करते हैं व उस दो कौड़ी के मौलाना (इससे किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचती है तो पहुंचे मेरी बला से| क्योंकि ऐसी भावनाओं को मैं दुर्भावना मानता हूँ, जिन्हें ठेस पहुंचाने में मुझे बड़ा आनंद आता है) की खातिरदारी में लगे हैं| अग्निवेश व अरुंधती जैसे दल्ले पहले ही अन्ना टीम की शोभा (?) बढ़ा रहे हैं| ये आज़ादी की कैसी दूसरी लड़ाई है, जिसमे लड़ने वाले (?) सभी देशद्रोही ही हैं?
इससे पहले अन्ना अपने मंच से भारत माता का चित्र पहले ही हटा चुके हैं क्योंकि अन्ना अब सोचने लगे हैं की भारत माता साम्प्रदायिक हैं|
निश्चित तौर पर हमे आज़ादी चाहिए, किन्तु समझौते से नहीं अपनी शर्तों पर चाहिए|
ये सब वही ड्रामा शुरू हो गया जो गांधी जी किया करते थे| एक ओर गांधी जी अंग्रेजों से समझौता करके Dominion states की मांग करते थे वहीँ दूसरी ओर भगत सिंह जैसे क्रांतिकारी अपनी शर्तों पर आज़ादी के लिए लड़ते थे| निश्चित रूप से दोनों ही अंग्रेजों का विरोध करते थे, जैसे आज अन्ना व कुछ गरम दल के लोग कांग्रेस का विरोध कर रहे हैं|
मुझ पर अन्ना विरोधी आरोप लग सकते हैं अत: बताना चाहूँगा की अन्ना के आन्दोलन में आज भी जोर डाल कर आ गया हूँ| कल स्विस बैंक की लिस्ट बांटी थी, आज सरकारी लोकपाल व जन लोकपाल की व्याख्याएं करने वाली हज़ारों प्रतियां बाँट कर आए हैं| कल ऑफिस से छुट्टी ली है| कल अपने कुछ साथियों के साथ जयपुर के इंजीनियरिंग कॉलेजों में जाकर छात्रों को आन्दोलन से जोड़ने का कार्यक्रम है| कक्षाओं में जाकर छात्रों व शिक्षकों से शामिल होने की प्रार्थना करेंगे|
उसके बाद शहर की गरीब बस्तियों के लोगों से भी बात करेंगे| उन्हें भी शामिल करेंगे|
अन्ना तो हमसे कुछ creative काम करवा नही रहे तो सोचा खुद ही कुछ कर लें|
संतोष इस बात का है की सड़कों पर यत्र अन सैलाब अब लोकपाल की लड़ाई नही लड़ रहा| उन्हें तो अब कांग्रेस से मुक्ति चाहिए|
अमरजीत जी और दिवस जी की टिप्पणियां गौर तलब हैं, प्रतुल जी ने भी अपनी टिप्पणी में काफी कुछ कह दिया है. जब भी कोई बात चलती है तो मामला हिन्दू मुस्लिम पर अटका दिया जाता है. प्रो मुस्लिम बन जाओ तो धर्मनिरपेक्षी और हिन्दू सच्ची बात कह दे तो आर०एस०एस का आदमी, संघ का आदमी.
खैर, जो भी हो, इस बिल के मामले में अन्ना का समर्थन. कहीं ऐसा न हो यह आन्दोलन प्रेशर रिलीज करने का काम करे, यह आशंका है, क्योंकि बाबा से तो पार्टियों को डर है और अन्ना से नहीं. परिवर्तन तभी आयेगा जब सत्ता की चाभी हाथ में हो. बाबा आयें, २०१४ का इन्तजार है.
मैं आपसे सहमत हूँ आज भी इस देश का एक तबका ऐसा है जो सिर्फ किसी राजनेता के नेतृत्व में ही विश्वास करता है और आन्दोलन की सफलता के प्रति शंकित है, शायद इसीलिए ऐसे बेहुदे प्रश्न उसके द्वारा उठाये जा रहे हैं, और आन्दोलन से जुड़ रहे लोगों का मनोबल तोड़ने का प्रयास किया जा रहा है,
यद्यपि साधारणतया जल तरल रूप में होता है, यह हिमालय आदि पहाड़ों पर हिम के रूप में, और भाप के रूप में बादलों में भी होता है...
जब तक सोत से पानी आता रहता है, हर नदी अपने विभिन्न मार्गों पर अग्रसर हो अंततोगत्वा सागर में मिल अपनी स्वतंत्रता गंवाती तो चली जाती है, किन्तु काल-चक्र समान जल-चक्र के अनंत होने से, बड़ी बड़ी नदियाँ आम तौर पर अपना अस्तित्व खोते प्रतीत नहीं होतीं...
किन्तु, जैसे आज दिखाई दे रहा है, हिमालय आदि पर्वतों के ग्लेसियर तीव्र गति से पिघल रहे हैं - उत्तरी ध्रुव का हिम भी... और, इन कारणों से सागर जल का स्तर भी धीरे धीरे बढ़ रहा है, जिसके कारण सबसे पहले तटीय क्षेत्रों के डूबने की आशंका प्रतीत हो रही है... इसके अतिरिक्त जान माल की हानि अन्य प्राकृतिक कारणों, जैसे चक्रवात, भूमि कम्पन, भू-स्खलन, सुनामी, वातावरण में ऐन्टआर्कटिका के आकाश में देखे गए ओजोन तल में छिद्र, आदि अनेक कारणों से भय तो है है किन्तु इसे मानसिक गुलामी ही कहेंगे कि 'वर्तमान बुद्धिजीवी' यह मान कर कि जीवन ऐसे ही अनंत काल तक चलता रहेगा, खुद तो भ्रमित हो रहे हैं, किन्तु अन्य आम अज्ञानी जनता को भी भ्रमित कर रहे हैं,,,
प्राचीन ज्ञानी कह गए, "...पल में प्रलय होएगी...आदि" जिससे हर 'हिन्दू', लक्ष्मण (पृथ्वी) समान, अपना परम लक्ष्य, 'राम' (ब्रह्मा) और 'भरत' (कृष्ण / विष्णु) का साथ देना, सदैव याद रखे...
किन्तु दूसरी और यह भी कह गए, "होता है वही / जो मंजूरे खुदा होता है", और "होई है सो ही जो राम रची राखा"...
गीता में परम लक्ष्य पाने हेतु 'कृष्ण में आत्म-समर्पण' आवश्यक बताया गया है...
एक कहावत भी है कि 'एक आदमी काफी है घोड़े को पानी के पास लेजाने में / किन्तु बीस भी उसे पानी पिला नहीं सकते!
यकीनन मुद्दा ही बड़ा है एक बार फिर आपने विचारणीय प्रस्तुति दी है सार्थक एवं सटीक लेखन के लिये शुभकामनाएं ।
आप से पूरी तरह सहमत हूँ कि नेट और टी वी पर अन्ना की अनावश्यक निंदा चलने लगती है.मुझे याद आता है "देते हैं भगवन को गली, इंसा को क्या छोड़ेंगे..कसमे वादे ..बातों का क्या ...
आपने सही कहा पर होना तो वही है जो सदियों से होता आया है क्यों की ये भारत की जनता है जिसे कुछ दिखाई नहीं देता बस उसे दिखाना पड़ता है जनता तो वही है जो अन्ना के अनसन से पहले थी क्या ये जनता पहले मर गई थी क्या क्या हुआ था इस जनता को १२५ करोड़ जनता में १ अन्ना ही क्यों निकला १ गाँधी जी क्यों निकले बात वही है की अब कलयुग आज्ञा है अभी तो कुछ हुआ भी नहीं है होना तो बाकि है और होना भी क्या है इस देश में आँखों के अंधे रहते है उस देश की दशा असी होती है फूट डालो राज करो इस समय bhrstachar जसे खाने की कोई वस्तु का नाम है जो खरब हो चुकी है अब उसे फेंकना है अरे मेरे देश वाशियो जागो अब भी कुछ हुआ नहीं है पर इस जनता को कुछ कहना भी बेकार लगता है क्यों की सब अपना पेट पलते नजर आते है किसी को नहीं लगता की ये मेरा भारत है मेरा भारत महँ जेसा नारा लगाने से कुछ नहीं होगा कुछ महान कर्म करो अन्ना के पीछे तो तुम लोग हो पर क्या इस लोक पल बिल से सब कुछ सही हो जायेगा ये नेता लोग सब कुछ छोड़ देगे अरे मेरे भाइयो आज अगर किसी ने किसी को मर दिया है तो उस को जेल होते होते २० साल गुजर जाते है फिर जज बदल जाते है मुंबई बम धामके के आरोपी १ अज भी जेल में है पैर उसको फंसी देने की जगह पोलिस उसकी हिफाजत में लगी है उसकी मेहमान नवाजी कर रही है हर रोज़ उसका मेडिकल होता है लाखो रूपया खर्चा होता है जेसे पोलिश का या सरकार का वो जवाई है कुछ नहीं होने वाला इस देश का और नेताओ का जय जवान जय किशन
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दिनेश पारीक
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
समर्थन भी किया जाय और विवेक भी जाग्रत रखा जाय, हर्ज़ ही क्या है। सावधानी उचित परिणाम ही देगी, आंखें मूंदनें का तो कोई प्रयोजन समझ नहीं आता? इससे आंदोलन को कोई विक्षेप पहुंचने वाला नहीं।
बहुत सही बात उठाई है....हर पंक्ति सोचने को विवश करती है
आज के वक़्त की आवाज़ ....और सच्चाई भी ......आभार
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सही कहा आपने।
व्यक्ति बडा नहीं, मुद्दा बडा है।
और मुद्दा है, देश का, देशहित का...
इसमें सबको साथ देना चाहिए, बगैर किसी भटकाव के।
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