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Wednesday, November 14, 2012

बहिष्कार करते हैं हम बाल-दिवस पर नेहरू के नाम का..


बाल दिवस किसके नाम पर मनाते हैं हम ? वो नेहरू जिसने कई पीढ़ियों को दासता दे डाली ! वही नेहरू खानदान जिसके राज में गरीब आत्महत्या करते हैं और बच्चे कुपोषण का शिकार होकर भूख से बिलबिलाते हुए दम तोड़ते हैं। बहिष्कार करते हैं हम बाल-दिवस पर नेहरू के नाम का ! नेहरू बच्चों का सबसे बड़ा दुश्मन था। वो केवल विदेशियों का भक्त था !

जहाँ इतने कुपोषित और गरीब बच्चे हों , वहां  नेहरू को चाचा नाम से याद करना सबसे बड़ी मूर्खता है ! हमारे बच्चे गलत इतिहास जो पढ़ते हैं , इसीलिए नए गुलाम तैयार हो जाते हैं ! अरे बाल-दिवस मनाना  ही है तो डॉ राजेन्द्र प्रसाद, पटेल या फिर आज़ाद और बिस्मिल के नाम पर मानना चाहिए ! विदेशियों के हाथ बिके नेहरू खानदान के नाम पर नहीं !

जय हिन्द !
वन्दे मातरम् !

Friday, June 29, 2012

हिंदी ब्लॉगर को प्रताड़ित करता अंग्रेजी विकिपीडिया.

भारत भूमि में कोई एक बिस्मिल नहीं पैदा हुआ। हर दिन एक भगत , एक अशफाक और बिस्मिल पैदा होते हैं यहाँ। जिसकी जीती-जागती मिसाल हैं हमारे हिंदी ब्लॉगर - डॉ एम् एल वर्मा 'क्रांन्त ' जी। वर्मा जी ने अभूतपूर्व योगदान दिया है हिंदी और अंग्रेजी विकीपीडिया को। लेकिन अफ़सोस , की इन कायर अंग्रेजों ने वर्मा जी के आलेखों को विकिपीडिया पर मॉडरेट करना शुरू कर दिया। जब डॉ वर्मा ने इस पड़ताल की तो कायर -विकिपीडिया ने हमारे डॉ वर्मा को ब्लाक कर दिया। क्योंकि उन्हें डर था की वर्मा जी द्वारा शहीदों पर लिखे जा रहे आलेखों से कहीं भारत की जनता के खून में दुबारा उबाल न आ जाये।

कृपया एक नज़र इस आलेख पर डालें।

Friends this article was written/edited by me on English Wikipedia but it was cruelly edited there by some biased editors. You can very well see this article in its present position there at English Wikipedia. I was going to make it better but in the meantime I was blocked for an indefinite period. Since I can not edit there hence I found it better to copy it from there and pasted it here on my blog. At least some people will be benefited here. This is the true story behind this article.

डॉ वर्मा की उत्कृष्ट रचना पढ़िए----
हमने बिस्मिल की तड़पती वो गज़ल देखी है

वक़्त-ए-रुख्सत जो लिखी थी वो नकल देखी है


जब क़दम वादी-ए-गुर्बत में उन्होंने रक्खा
हमने उस दौर की जाँबाज फसल देखी है


सरफ़रोशी की तमन्ना में भी कितना दम था
खाक में मिलने की हसरत पे अमल देखी है


आज जरखेज जमीनों में जो उग आयी है
हमने हालात की बीमार फसल देखी है


कल भी देखा था जो हम सबको हिला देता था
और जब कुछ भी न होता हो वो कल देखी है

'क्रान्त'
अब मुल्क की हालत पे हँसी आती है

रंज होता था कभी सबको वो कल देखी है


ZEAL

Monday, April 9, 2012

शिखण्डी बन गया जेंटलमैन

मोदी जी जैसे गर्वीले, निष्ठावान, देशभक्त नेता के होते हुए मनमोहन सिंह जैसे अकर्मण्य लोग प्रधानमन्त्री बने बैठे हैं, जिनका ईमान मर गया है और स्वाभिमान खो गया है काश मनमोहन सिंह ने इतिहास पढ़ा होता तो वे जानते की देश के लिए जान देने वाले नेता ( नेताजी बोस, सरदार पटेल, विवेकानंद, बिस्मिल , भगत सिंह ,अशफाक उल्ला और चन्द्र शेखर आज़ाद) जैसे होते हैं। इन्होने तो अपनी शिक्षा-दीक्षा पर भी बट्टा लगा लिया। शिखण्डी बनने से क्या फायदा भला ?

Friday, February 10, 2012

फेसबुक बंद होने में मात्र १५ दिन शेष हैं। आग लगा दो ..

फेसबुक बंद होने में मात्र १५ दिन शेष हैं। आग लगा दो सबको जगा दो। पछताने के लिए ये शेष रह जाए की काश लिख दिया होता। हम डरते क्यों रहे। इन १५ दिनों में बहुत कुछ हो सकता है। इतना लिखो कि वतन का सौदा करने वाले देशद्रोहियों और अभिव्यक्ति कि स्वतंत्र छीनने वालों का रक्तचाप आसमान छूने लगे और फेसबुक बंद होने से पहले ही वे अपने नापाक मंसूबों में विफल हो जायें। 'वीर हनुमान' कि तरह समय रहते ही लंका में आग लगाकर अपनी ताकत बता दो। सत्ता में बैठे रावणों का विनाश तो तय है। डरना मना है ! --"सरफरोशी कि तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना , बाजुए कातिल में है। "--जय हो राम प्रसाद बिस्मिल!, जय हनुमान !, जय भारत ! वन्दे मातरम् !

Tuesday, August 30, 2011

शहीद अरुण दास को विनम्र श्रद्धांजलि

भ्रष्टाचार के खिलाफ आजादी की इस लड़ाई में शहीद होने वाले , भारत माता के वीर सुपुत्र श्री अरुण दास जी को विनम्र श्रद्धांजली। सेनापति की सफलता पर बधाई लेकिन सेना के शहीदों को भुलाया नहीं जा सकता। कोई भी आजादी बिना बलिदान लिए नहीं मिलती। इतना व्यस्त भी क्या होना की जाने वाले के लिए दो पल न निकाले जा सकें उनको श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए। जिनकी आज हर तरफ जय जयकार हो रही है , उनका भी नैतिक दायित्व है की अपने साथ अनशन पर बैठे लोगों को और शहीद हो जाने वालों को बीच-बीच में याद कर लें।

एक अफ़सोस है की हमारे देश में मीडिया सिर्फ आसमान में चमकने वालों पर ज्यादा केन्द्रित रहता है। आम-जन जिस जज्बे को लेकर क्रान्ति की आंच को बढ़ता है , उसकी कोई गणना नहीं। स्वामी निगमानंद शहीद हो गए , अरुण दास शहीद हो गए , न मीडिया ने इसको दिखाना जरूरी समझ , न ही सरकार इन बलिदानों के प्रति स्वयं को जिम्मेदार समझती है।

कहाँ मिलेंगे ऐसे अनमोल हीरे हमारे भारत को ? अत्यंत दुःख के साथ भारत के अनमोल रत्नों को विनम्र श्रद्धांजलि।

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हम भी आराम उठा सकते थे घर पर रह कर,
हमको भी पाला था माँ-बाप ने दुःख सह-सह कर ,
वक्ते-रुख्सत उन्हें इतना भी न आये कह कर,
गोद में अश्क जो टपकें कभी रुख से बह कर ,
तिफ्ल उनको ही समझ लेना जी बहलाने को !

अपनी किस्मत में अजल ही से सितम रक्खा था,
रंज रक्खा था मेहन रक्खी थी गम रक्खा था ,
किसको परवाह थी और किसमें ये दम रक्खा था,
हमने जब वादी-ए-ग़ुरबत में क़दम रक्खा था ,
दूर तक याद-ए-वतन आई थी समझाने को !

अपना कुछ गम नहीं लेकिन ए ख़याल आता है,
मादरे-हिन्द पे कब तक ये जवाल आता है ,
कौमी-आज़ादी का कब हिन्द पे साल आता है,
कौम अपनी पे तो रह-रह के मलाल आता है ,
मुन्तजिर रहते हैं हम खाक में मिल जाने को !

नौजवानों! जो तबीयत में तुम्हारी खटके,
याद कर लेना कभी हमको भी भूले भटके ,
आपके अज्वे-वदन होवें जुदा कट-कट के,
और सद-चाक हो माता का कलेजा फटके ,
पर न माथे पे शिकन आये कसम खाने को !

एक परवाने का बहता है लहू नस-नस में,
अब तो खा बैठे हैं चित्तौड़ के गढ़ की कसमें ,
सरफ़रोशी की अदा होती हैं यूँ ही रस्में,
भाई खंजर से गले मिलते हैं सब आपस में ,
बहने तैयार चिताओं से लिपट जाने को !

सर फ़िदा करते हैं कुरबान जिगर करते हैं,
पास जो कुछ है वो माता की नजर करते हैं ,
खाना वीरान कहाँ देखिये घर करते हैं!
खुश रहो अहले-वतन! हम तो सफ़र करते हैं ,
जा के आबाद करेंगे किसी वीराने को !

नौजवानो ! यही मौका है उठो खुल खेलो,
खिदमते-कौम में जो आये वला सब झेलो ,
देश के वास्ते सब अपनी जबानी दे दो ,
फिर मिलेंगी न ये माता की दुआएँ ले लो ,
देखें कौन आता है ये फ़र्ज़ बजा लाने को ?

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चर्चा अपने क़त्ल का अब दुश्मनों के दिल में है,
देखना है ये तमाशा कौन सी मंजिल में है ?

कौम पर कुर्बान होना सीख लो ऐ हिन्दियो !
ज़िन्दगी का राज़े-मुज्मिर खंजरे-क़ातिल में है !

साहिले-मक़सूद पर ले चल खुदारा नाखुदा !
आज हिन्दुस्तान की कश्ती बड़ी मुश्किल में है !

दूर हो अब हिन्द से तारीकि-ए-बुग्जो-हसद ,
अब यही हसरत यही अरमाँ हमारे दिल में है !

बामे-रफअत पर चढ़ा दो देश पर होकर फना ,
'बिस्मिल' अब इतनी हविश बाकी हमारे दिल में है !-

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मिट गया जब मिटने वाला फिर सलाम आया तो क्या !
दिल की बर्वादी के बाद उनका पयाम आया तो क्या !

मिट गईं जब सब उम्मीदें मिट गए जब सब ख़याल ,
उस घड़ी गर नामावर लेकर पयाम आया तो क्या !

ऐ दिले-नादान मिट जा तू भी कू-ए-यार में ,
फिर मेरी नाकामियों के बाद काम आया तो क्या !

काश! अपनी जिंदगी में हम वो मंजर देखते ,
यूँ सरे-तुर्बत कोई महशर-खिराम आया तो क्या !

आख़िरी शब दीद के काबिल थी 'बिस्मिल' की तड़प ,
सुब्ह-दम कोई अगर बाला-ए-बाम आया तो क्या !

उपरोक्त ओजस्वी कवितायें , अमर शहीद 'राम प्रसाद बिस्मिल' की लिखी हुयी है। इन को हम तक पहुंचाने के लिए डॉ क्रांत वर्मा का हार्दिक आभार।

Zeal