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Wednesday, March 6, 2013

महिला दिवस या मज़ाक ?

आठ मार्च (महिला दिवस) पर दिल्ली दुष्कर्म पीडिता को "इंटरनेश्नल वुमन ऑफ करेज अवार्ड" दिया जाएगा। लेकिन अफ़सोस की बलात्कारियों को फांसी देकर पीडिता को न्याय नहीं दिया जाएगा।  कष्ट और अपमान से लुटी पीडिता को अवार्ड चाहिए या फिर न्याय?

कल 5 मार्च को इंदौर में सिविल जज परीक्षा की तैय्यारी कर रही छात्र के साथ गैंग-रेप  हुआ !

क्या बदला हमारे देश में ? स्त्री को कोई सुरक्षा मिलेगी या फिर वो यूँ ही मात्र एक उपभोग की वस्तु बनकर लुटती रहेगी?

इस देश में नारी की जो स्थिति थी, वो अब पहले जैसी नहीं है, स्त्री को मात्र एक कमोडिटी समझ कर उपभोग किया जाता है, फिर दूध में पड़ी मक्खी की तरह फेंक दिया जाता है।

स्त्रियाँ अपना सम्मान और सुरक्षा स्वयं करें। अच्छे बुरे पुरुष की पहचान आसानी से संभव नहीं अतः दूरी बना कर रखें। कितना भी कोई अच्छा लगे उसे संदेह के घेरे में ही रखें। भावनाओं में ना बहें , सावधान रहें ! सचेत रहें!

Zeal

Tuesday, July 31, 2012

औरत


एक औरत किताब के पन्नों में नहीं मिलती। वो सर्द रातों में उठकर बच्चे के लिए दूध बनाती है। भूखे पेट खेतों में और बिल्डिंगों में काम करती मिल जायेगी। तपती दोपहरी में बीमार बच्चे को छाती से चिपकाए अस्पताल के चक्कर काटती मिलेगी। पति के चेहरे पर परेशानी की शिकन देखते ही मंदिरों में माथा टेकती मिलेगी।

एक स्त्री ममता की मूर्ती होती है। करुणा और वात्सल्य से भरी होती है। समझना चाहो तो बस एक शब्द "माँ" ही काफी है, अन्यथा इतनी मोटी-मोटी असंख्य पुस्तकें भी अपर्याप्त हैं एक स्त्री को समझने के लिए।

Zeal

Wednesday, May 2, 2012

गयी सदी वो जाने दो, नारी खुद को पहचानो तुम...

तुम नारी हो , तुम जानो तो
शक्ति को अपनी, पहचानो तो।
हो जननी तुम , ये जानो तो ,
हो सृष्टिकर्ता , पहचानो तो।

तुम्हें मारकर गर्भ में ये,
कर रहे पाप ये बड़े-बड़े।
मानव से दानव बनकर ,
हैं खड़े अहम् के चीड बड़े।

तुम ही से ये जीवन है ,
तुम ही से सारे संसाधन।
तुमसे ही चलता सारा संसार,
तुमसे महके है घर-आँगन।

तुम अगर त्याग दो मन से इनको,
मछली बन तड़पें, बिन जल की।
अस्तित्व तुम्हारा समझाओ,
दुनिया अपने निर्मल मन की।

खुद को पहचानो, जानो खुद को।
निज का भी सम्मान करो
रह कर आश्रित इन पर तुम ,
मत अपना तुम अपमान करो।

नहीं कहीं तुम कमतर हो ,
नारी सृष्टि, तुम श्रेष्ठ हो।
सृजन, कल्पना, राग, शीलता।
हर क्षेत्र में ,ज्येष्ठ हो।

उठो तुम अब जागो तुम,
खुद से मत अब भागो तुम,
गर अन्याय, करे कोई,
सच क्या है, समझा दो तुम।

गयी सदी वो जाने दो,
अब कदम से ताल मिला दो तुम,
ओखल में जब सर दे डाला,
मूसल से मत डरना तुम।

दुर्गा , काली की धरती पर ,
नारी को कमतर जो समझेगा
अधोगति को पाकर वो,
अपने पापों को भुगतेगा।

बन के चंडी तुम , इन दानव का
अस्तित्व यहाँ मिटा देना।
चहुँ दिशा में , अपनी गरिमा का ,
परचम तुम लहरा देना।

नारी ये तेरा आँगन है,
है समस्त सृष्टि पर एहसान तेरा।
ना समझें तो समझा दो तुम,
व्यर्थ न जाए बलिदान तेरा।

गिद्ध सी लोलुप दृष्टि को ,
अब इन्हें मोड़ कर रख देना।
अवनत पलकों से पूजें पैर,
इनको ये सिखला देना।

तुम जननी हो, तुम शिक्षक हो।
क्यों 'सृजन' तुम्हारा बहक रहा,
अपने अन्दर की ममता से ,
वापस लाओ, जो भटक रहा।

कर्तव्य तुम्हारा देखो तुम,
अन्याय नहीं बढ़ने पाये,
हर योजन पर , रक्तबीज यहाँ,
कोई भ्रूण न डसने पाये।

इनको अपनी ममता से ,
संस्कार ज़रा सिखला देना।
गर ना मानें , समझाने से,
रणचंडी बन दिखला देना।

हे नारी , तुम ही सृष्टि हो,
तुमसे सृजन का सार मिला।
हर कण-कण में तेरी खुशबू है,
तीनों लोकों की आधारशिला।

Zeal

Monday, June 14, 2010

" Nari aur Purush "...Mere mann ke Udgaar !

Once I was having a discussion with my elder sister, who is professor in Physics. The discussion went on very interesting as it naturally came to the feelings of men and women. This discussion prompted me to write the following poem. The poem is dedicated to my elder sister.




"Nari aur Purush"


तुम अनंत, मै बिंदू
तुम चांद, मै चकोर
तुम बूंद, मै चातक



मै याचक, तुम निर्मम
मै माया, तुम ज्ञान
मै प्रस्तुत, तुम अलभ्य
मै समर्पण, तुम नियंत्रण

मै प्रवाह, तुम अवरुद्ध
मै राग, तुम वैराग्य
मै अनुराग, तुम तटस्थ
मै भक्ति, तुम तर्क

मै फेन, तुम सत्य
मै संकीर्ण, तुम विस्तृत
मै अपरिष्कृत, तू अभ्यस्त
मै क्षूद्र्, तू विशाल

मै उथली, तुम गहरे
मै समतल, तुम दुर्गम
मै अवांछित्, तुम आगम
मै लिप्त, तुम विर


मै धूल, तू नभ

मै व्यर्थ, तुम सफल
मै उदासी, तुम मुस्कान
मै सरल, तुम प्रबुद्ध
मै अभिव्यक्ति, मै उच्छ्रुंखल, मै स्वच्छंद.... तुम सन्यत