Wednesday, March 6, 2013
महिला दिवस या मज़ाक ?
Tuesday, July 31, 2012
औरत

एक औरत किताब के पन्नों में नहीं मिलती। वो सर्द रातों में उठकर बच्चे के लिए दूध बनाती है। भूखे पेट खेतों में और बिल्डिंगों में काम करती मिल जायेगी। तपती दोपहरी में बीमार बच्चे को छाती से चिपकाए अस्पताल के चक्कर काटती मिलेगी। पति के चेहरे पर परेशानी की शिकन देखते ही मंदिरों में माथा टेकती मिलेगी।
एक स्त्री ममता की मूर्ती होती है। करुणा और वात्सल्य से भरी होती है। समझना चाहो तो बस एक शब्द "माँ" ही काफी है, अन्यथा इतनी मोटी-मोटी असंख्य पुस्तकें भी अपर्याप्त हैं एक स्त्री को समझने के लिए।
Zeal
Wednesday, May 2, 2012
गयी सदी वो जाने दो, नारी खुद को पहचानो तुम...
Monday, June 14, 2010
" Nari aur Purush "...Mere mann ke Udgaar !
Once I was having a discussion with my elder sister, who is professor in Physics. The discussion went on very interesting as it naturally came to the feelings of men and women. This discussion prompted me to write the following poem. The poem is dedicated to my elder sister.
"Nari aur Purush"
तुम अनंत, मै बिंदू
तुम चांद, मै चकोर
तुम बूंद, मै चातक
मै याचक, तुम निर्मम
मै माया, तुम ज्ञान
मै प्रस्तुत, तुम अलभ्य
मै समर्पण, तुम नियंत्रण
मै प्रवाह, तुम अवरुद्ध
मै राग, तुम वैराग्य
मै अनुराग, तुम तटस्थ
मै भक्ति, तुम तर्क
मै फेन, तुम सत्य
मै संकीर्ण, तुम विस्तृत
मै अपरिष्कृत, तू अभ्यस्त
मै क्षूद्र्, तू विशाल
मै उथली, तुम गहरे
मै समतल, तुम दुर्गम
मै अवांछित्, तुम आगम
मै लिप्त, तुम विरत
मै धूल, तू नभ
मै व्यर्थ, तुम सफल
मै उदासी, तुम मुस्कान
मै सरल, तुम प्रबुद्ध
मै अभिव्यक्ति, मै उच्छ्रुंखल, मै स्वच्छंद.... तुम सन्यत